ठंडी औरत
>> Wednesday, April 3, 2013
प्रेम में पगी
हिरनी सी आँखें ,
ठिठक जाती हैं
देख कर ,
उसकी आँखों में
एक हिंसक पशु ,
वासना की देहरी पर ,
दम तोड़ देती है
उसकी चाहत ,
आभास होते ही
हकीकत का,
जुटाती है
भर पूर शक्ति ,
लेकिन काली
बनते बनते भी ,
रह जाती है ,
मात्र एक
ठंडी औरत ।
68 comments:
बहुत गहरी बात कह दी।
काश थोड़ी हिम्मत और जुटा पाती... गहन भाव ...आभार
...kam shabdon mein aapne bahut kuchh kah dala sangeeta ji!..man mein kaI tarah ki bhavnaen umad rahi hai!...aabhaar!
दीदी
अंतस की बात
बाकी है कहना अभी
पर.....
सादर
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 06/04/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
बहुत सुन्दर .
बहुत सही और गहरी बात कही आपने। बहुत सुन्दर रचना।
शायद पूरी शक्ति नहीं जुटाई उसने. जिस दिन ठान लेगी काली बनना उस दिन बनकर ही रहेगी.
गज़ब की कविता है दी !! कमाल ..
एक औरत के अन्दर जाने कितने दर्द छुपे रहते हैं ..
बहुत बढ़िया रचना..
प्रेम की ऊष्मा जो नहीं थी....
गहन भाव...
सादर
अनु
इस ठंडी औरत की मनोदशा आग सी होती है .... जब विस्फोट हो
गहरे शब्द.
बहुत सुंदर ..भावपूर्ण रचना ...
राख में दबी चिन्गारियाँ हवा लगते ही वातावरण में छा जाती हैं!
कामयाब अभिव्यक्ति....
बहुत गहरी अभिव्यक्ति सुंदर रचना,,,,
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बस यही तो विडम्बना है कि निर्णय अनिर्णय के दोराहे पर खड़ी रह कर ही एक आम स्त्री अपना जीवन गुज़ार देती है ! जब मन को मजबूत बना कर निर्णय लेने की ज़रूरत होती है उसका आत्मविश्वास हिल जाता है ! बहुत संवेदनशील रचना है संगीता जी ! बधाई स्वीकार करें !
एक शेर अर्ज किया है....
सख्त था बाहर की दुनिया का सफर
घर की चौखट लांघना आसान था.
बाहर की सख्त दुनिया में अपना वजूद बनाने के लिये औरत को चंडी बनना होगा. वैसे आपकी कविता ज़मीनी हक़ीकत बयान कर रही है.
बहुत कुछ है जो रोकता है वो रूप धरने से.... गहन अभिव्यक्ति
स्त्री चलती है दोधारी तलवार पर , पुरुष सोचता है , वह वाही है क्या !!
Bahut sashakt rachna.
Ramram
सही कहा है ...सार्थक रचना !
ज्वाला आवश्यक है जीवन में ....ज्योति जैसी जो तम से लड़ सके .....अन्यथा बर्फ सी ठंडक से संवेदनाएं मर ही जाती हैं ...
गहन अभिव्यक्ति .....दी ...!!
बहुत बढ़िया-
शुभकामनायें स्वीकारें-
बेबसी की अजीब दास्तान...मार्मिक कविता..
आपकी सोच और लेखनी को सादर नमन ...
सादर
इस बेबसी को ही तोड़ना होगा ....
शुभकामनायें!
गहन भाव लिए बहुत ही सशक्त रचना,आभार आदरेया.
pida ko khoobsurat shabd diye hai
akrosh ka yah bhi ek roop hai...
नारी मन की परतों को खोला है आपने ... मार्मिक अभिव्यक्ति ... सभी कुछ खामोश रह कर ही सहती है नारी ...
प्यार में डूबी औरत का यही हश्र होता है
भावातिरेक से पूर्ण कविता।
लेकिन उसका यह ठंडापन ही उसे एक दिन काली बनने के लिए विवश कर देता है...
मार्मिक अभिव्यक्ति
हर औरत अंततः बन ही जाती है अशक्त ठंडी औरत, भले हौसला रहा हो कभी बनाने का काली दुर्गा. भावप्रवाण रचना, बधाई.
आभास होते ही
हकीकत का,
जुटाती है
भर पूर शक्ति ,
लेकिन काली
बनते बनते भी ,
रह जाती है ,
मात्र एक
ठंडी औरत ।
एक त्रासदी की जीती बेबस औरत
गहन भाव लिए बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
एक चिंगारी दबी हुई है ।
बहुत बढ़िया ।
नारी मन की गहरी बात कही आपने। बहुत सुन्दर रचना।
हाँ! एक ठंडा सच..
behad sarthak post ..........samaj ka kala dhuaa sab jagah bikhra hua hai ...... badhai sundar rachna ke liye
किन्तु आज की नारी की आँखों के शोले अब ठन्डे नहीं होंगे बदलाव आ रहा है संगीता जी मन में बहुत से सवाल खड़े करती है ये रचना गहन अनुभूति हार्दिक बधाई आपको
shabdo ka sahi priyog va sahi matra mai - aap se sikhna chauga
मन की बातें अधिकार और हिंसा से कहाँ समझी जा सकती हैं।
प्रेम की शायद अपनी सीमाएं हैं
एक औरत की टीस
बात सीधी मन तक पहुची ...शब्दों में ढाल दिया आपने दर्द को ...बहुत ही उम्दा लिखा है जितनी तारीफ करूँ कम है
प्रेम में पगी
हिरनी सी आँखें ,
ठिठक जाती हैं
देख कर ,
उसकी आँखों में
एक हिंसक पशु ,
बहुत ही उम्दा कविता |आभार आपका |
बाहर से बुझी राख पर अन्दर से धधकती आग ...जब भभक उठती .......काली बन जाती है
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my post कोल्हू के बैल
बहुत ही गंभीर भाव इतनी आसानी से. आपका जवाब नहीं संगीता दी.
विचारों में औरतों के लिए निराशा हो सकती है पर केवल ऊपरी तौर पर। कवि का मूल मतलब है कि औरतों के आत्मा को झंझोडा जाए। कविता के शद्बों में स्वरूप जी आप इस उद्देश्य को छूने में सफल हो गई है।
drvtshinde.biogspot.com
बहुत गहन और सटीक अभियक्ति...
नारी मन की गहन अनुभूति को शब्दों में ढाल कर बहुत कुछ कह दिया है. आभार !
bahut khoob
सटीक चित्रांकन मनोभावों का। पॉवर-पैक्ड रचना।
सादर
मधुरेश
सम्बेद्नाओं को जगाने वाली समर्थ रचना ...बहुत दिनों बाद आज ब्लॉग के लिए समय मिला..सार प्रणाम के साथ
बहुत ही उम्दा कविता
निर्दोष पुष्प के रौंदे जाने का निर्दोष सजीव शब्द चित्र .
छटपटाहट के शब्दों को हिंसा कहाँ समझ पाती है. सटीक रचना.
लाजवाब ! सुन्दर पोस्ट लिखी आपने | पढ़ने पर आनंद की अनुभूति हुई | आभार |
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
bahut sahi likha aapne "kaali bante bante bhi reh jaatihai ek thandi aurat"
bahut sahi likha aapne "kaali bante bante bhi reh jaatihai ek thandi aurat"
अंतिम के एक एक शब्द मन में टीश पहुंचाते हैं।
(आप मेरे ब्लॉग तक आये इसका बहुत बहुत आभार।)
लेकिन काली
बनते बनते भी ,
रह जाती है ,
मात्र एक
ठंडी औरत ..
यही तो विडंबना है .... सशक्त रचना ....
manju
www.manukavya.wordpress.com
गहन अर्थ लिए हुए लेखनी
rishte ko bachane ke aas sab kuchh sehne par majbur kar deti hai yahan tak atmsamman ki chita bhi...
bahut hi achhi rachna
shubhkamnayen
nari ke man ki vyatha aapne ek kavita ke madhyam se bade hi marmik dhang se kha dali.......jai-Hind
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