बेख्याली के ख्याल
>> Monday, February 24, 2014
ज़िंदगी के दरख्त से सब उड़ गए परिंदे
दहलीज़ तक भी नहीं आते अब कोई बाशिंदे ।
दहलीज़ तक भी नहीं आते अब कोई बाशिंदे ।
पास के शजर से जब आती है चहचहाहट
पड़ जाते हैं न जाने क्यों मोह के फंदे ।
पड़ जाते हैं न जाने क्यों मोह के फंदे ।
सब हैं अपने अपनेआप में इतने व्यस्त
नहीं मिलते अब सहारे के लिए कोइ कन्धे ।
नहीं मिलते अब सहारे के लिए कोइ कन्धे ।
नेह नहीं मिलता कहीं हाट बाज़ार में
ना ही उगाही के रूप में काम आते हैं चंदे ।
ना ही उगाही के रूप में काम आते हैं चंदे ।
किसी के लिए जब न रहो काम के
करते रहो बस केवल अपने काम धंधे ।
करते रहो बस केवल अपने काम धंधे ।
43 comments:
समय का यह रूख
देता है वितृष्णा
तलाशता है मोह
और फिर शुरू होता है निर्वाण का सिलसिला ...
आज के जीवन में व्यस्तता और भागम-भाग इतनी अधिक है कि कोई चैन से नहीं बैठ पाता .भावनाएँ और संस्कार वही हैं पर उन्हें व्यक्त करने का समय नहीं हैं लोगों के पास-बात बस इतनी सी है. ऊब को मार भगाइए. आप भी कहाँ फ़ालतू ,बहुत काम हैं अभी आपके लिए तो !
ज़िंदगी के दरख्त से सब उड़ गए परिंदे … parindon ka kya hai Sangeeta ji … parinde to aate-jaate rahte hain bas darakht salaamat rahne chahiye …. yahi to jeevan hai … bahut dinon ke baad apki rachna padhne ko mili …
Saadar
Manju
बहुत बढ़िया है दीदी-
आभार आपका-
सब हैं अपने अपनेआप में इतने व्यस्त---
सब हैं अपने अपनेआप में इतने व्यस्त
नहीं मिलते अब सहारे के लिए कोइ कन्धे ।
सच ...आज के जीवन का सच यही है.....
बहुत सुंदर खयालात संगीता जी ! आपकी इस रचना ने चंद पंक्तियाँ याद दिला दीं !
तेरे जहान में ऐसा नहीं की प्यार न हो
जहाँ उम्मीद हो उसकी वहाँ नहीं मिलता !
शायद यही सचाई कहीं न कहीं मन को तिक्त और विरक्त कर जाती है !
सब हैं अपने अपनेआप में इतने व्यस्त
नहीं मिलते अब सहारे के लिए कोइ कन्धे ..
ये गज़ल नहीं ... आज के हालात का सटीक जायजा है ... पहले शेर से लेकर हर शेर अपने आप में जीवन के सच को सहज ही रख रहा है ... बाखूबी अभिव्यक्त किया है आपने इस दौर को ...
कभी कभी मेरे दिल में कुछ यूँ भी ख़याल आते हैं.
जिनको आपने इस गज़ल में बखूबी उतार दिया है.
निकालिए बोरियत के इस बिस्तर से और लग जाइए कलम के साथ.
सब हैं मस्त अपने अपने जिंदगी में
अनोपयोगी वास्तु का क्या महत्त्व है जिंदगी में ?
सुन्दर रचना
New post शब्द और ईश्वर !!!
New post: किस्मत कहे या ........
मार्मिक सत्य मगर इसका हल भी क्या। जब युवा थे सोचते , मगर कभी लगता है सोच लेते तो भी क्या …
bahut hi marmik bhav ...........ham sabhi mahsus karte hai kabhi na kabhi..........
~हर तरफ़ सन्नाटे की आवाज़ें गूँजी हैं,
क्या यही बस.. उम्र के इस दौर की पूँजी है..~
चलते-चलते ज़िन्दगी ये कैसे मुक़ाम पर पहुँच जाती है कुछ समझ नहीं आता , घबराहट होती है कभी-कभी आने वाले कल से .. :(
सुन्दर लिखा है दीदी !
~सादर
दीदी, सचमुच बेख़्याली में लिखे हुए ख़यालात लग रहे हैं... कविता के भाव प्रभावशाली हैं!! और असर करते हैं!!
इन बेख्याली के ख्यालों ने वर्त्तमान समाज की सच्ची तस्वीर खींच दी है .... गहन भाव
नमस्कार जी ....क्या कहूँ बहना ..
दिल के दर्द को.... जाने कौन
जिसने सहा.... बाकि सब मौन!!!
शुभकामनाये !स्वस्थ रहें!
पास के शजर से जब आती है चहचहाहट
पड़ जाते हैं न जाने क्यों मोह के फंदे ।
वाह बेहतरीन..... जीवन के करीब से गुजरते शब्द ॥ एक एक शब्द ... .....बधाई
पास के शजर से जब आती है चहचहाहट
पड़ जाते हैं न जाने क्यों मोह के फंदे ।
घोंसले का मोह छोड़ने से भी कहाँ छूटता है :)
सटीक गजल !
आज का सच बताती सामयिक पंक्तियाँ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है संगीता जी की :
बेख्याली के ख्याल
ज़िंदगी के दरख्त से सब उड़ गए परिंदे
दहलीज़ तक भी नहीं आते अब कोई बाशिंदे ।
पास के शजर से जब आती है चहचहाहट
पड़ जाते हैं न जाने क्यों मोह के फंदे...
गीत.......मेरी अनुभूतियाँ पर
संगीता स्वरुप ( गीत )
अति सुन्दर रूपकत्व लिए बढ़िया बिम्ब परिधान लिए है यह रचना।
बहुत खूब,बहुत ही सुंदर गजल ...!
RECENT POST - फागुन की शाम.
एक सच ... मन को छूती अभिव्यक्ति
सादर
इस अपाधापी की भगदड से भरे जीवन का अच्छा वर्णन किया है अपने ...... सादर !
नेह नहीं मिलता कहीं हाट बाज़ार में
ना ही उगाही के रूप में काम आते हैं चंदे ।
सुंदर व अर्थपूर्ण पंक्तियां...
पक्षी का धर्म ही है पालना और उड़ा देना...
पास के शजर से जब आती है चहचहाहट
पड़ जाते हैं न जाने क्यों मोह के फंदे ।
वाह बेहतरीन.....
बहुत खूब
शानदार प्रस्तुति. से साक्षात्कार हुआ । मेरे नए पोस्ट
"सपनों की भी उम्र होती है " (Dreams havel life) पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है।
शानदार प्रस्तुति. से साक्षात्कार हुआ । मेरे नए पोस्ट
"सपनों की भी उम्र होती है " (Dreams havel life) पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है।
बहुत सुन्दर रचना
सब हैं अपने अपनेआप में इतने व्यस्त
नहीं मिलते अब सहारे के लिए कोइ कन्धे ।
marmik .....
नेह नहीं मिलता कहीं हाट बाज़ार में
ना ही उगाही के रूप में काम आते हैं चंदे ।
...वाह..बहुत सार्थक और संवेदनशील प्रस्तुति...सभी अशआर दिल को छू जाते हैं...
आह बहुत सुन्दर गीत और इसके भाव। मर्म बहुत ही लाज़वाब रूप से उल्लेखित किया आपने आदरणीय बधाई
एक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: ''जज़्बात ग़ज़ल में कहता हूँ''
एक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: ''कोई न सुनता उनको है, 'अभी' जो बे-सहारे हैं''
बहुत बढ़िया ग़ज़ल....
पास के शजर से जब आती है चहचहाहट
पड़ जाते हैं न जाने क्यों मोह के फंदे ।
बहुत ही सुन्दर ..
सादर
अनु
बहुत उम्दा...बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@भूली हुई यादों
सब हैं अपने अपनेआप में इतने व्यस्त
नहीं मिलते अब सहारे के लिए कोइ कन्धे ।
नेह नहीं मिलता कहीं हाट बाज़ार में
ना ही उगाही के रूप में काम आते हैं चंदे ।
बहुत सुन्दर भाव और यथार्थ दर्शाती पंक्तियाँ
भ्रमर ५
जीवन का वह सच ..जो दबे पाँव आकर ...न जाने कब ...हमारी ज़िन्दगीओं में पैठ जाता है ......
बहुत उम्दा रचना, बधाई.
बहुत दिनों बाद ब्लॉग जगत में कदम रखा हूं। कदम रखते ही पहले आपकी रचनाओं को खोजा और पहली ही रचना दिल को छू गई। सुंदर अभिव्यक्ति।
जीवन की सत्यता बताती हुई रचना
बहुत सुन्दर दीदी __/\__
आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (25-05-2014) को ''ग़ज़ल को समझ ले वो, फिर इसमें ही ढलता है'' ''चर्चा मंच 1623'' पर भी होगी
--
आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
सादर
आपकि बहुत अच्छी सोच है, और बहुत हि अच्छी जानकारी।
जरुर पधारे HCT- Mp3 गाने मेँ अपनी फोटो आसानी से लगाए।
सब हैं अपने अपनेआप में इतने व्यस्त
नहीं मिलते अब सहारे के लिए कोइ कन्धे ।
सच ! आज के जीवन का सच...
सटीक अभिव्यक्ति....
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