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बेख्याली के ख्याल

>> Monday, February 24, 2014




ज़िंदगी के दरख्त से सब  उड़ गए परिंदे
दहलीज़ तक भी नहीं आते अब कोई बाशिंदे ।

पास के शजर से जब आती है चहचहाहट
पड़ जाते हैं न जाने क्यों मोह के फंदे ।

सब हैं अपने  अपनेआप में इतने व्यस्त
नहीं मिलते अब सहारे के लिए कोइ कन्धे ।

नेह नहीं  मिलता कहीं  हाट  बाज़ार में
ना  ही उगाही  के  रूप  में  काम आते  हैं चंदे ।

किसी के लिए  जब न रहो काम के
करते  रहो बस केवल अपने काम धंधे । 


43 comments:

रश्मि प्रभा... 2/24/2014 11:27 AM  

समय का यह रूख
देता है वितृष्णा
तलाशता है मोह
और फिर शुरू होता है निर्वाण का सिलसिला ...

प्रतिभा सक्सेना 2/24/2014 11:46 AM  

आज के जीवन में व्यस्तता और भागम-भाग इतनी अधिक है कि कोई चैन से नहीं बैठ पाता .भावनाएँ और संस्कार वही हैं पर उन्हें व्यक्त करने का समय नहीं हैं लोगों के पास-बात बस इतनी सी है. ऊब को मार भगाइए. आप भी कहाँ फ़ालतू ,बहुत काम हैं अभी आपके लिए तो !

Manju Mishra 2/24/2014 12:12 PM  

ज़िंदगी के दरख्त से सब उड़ गए परिंदे … parindon ka kya hai Sangeeta ji … parinde to aate-jaate rahte hain bas darakht salaamat rahne chahiye …. yahi to jeevan hai … bahut dinon ke baad apki rachna padhne ko mili …
Saadar
Manju

रविकर 2/24/2014 12:19 PM  

बहुत बढ़िया है दीदी-
आभार आपका-

सब हैं अपने अपनेआप में इतने व्यस्त---

डॉ. मोनिका शर्मा 2/24/2014 12:45 PM  

सब हैं अपने अपनेआप में इतने व्यस्त
नहीं मिलते अब सहारे के लिए कोइ कन्धे ।
सच ...आज के जीवन का सच यही है.....

Sadhana Vaid 2/24/2014 1:49 PM  

बहुत सुंदर खयालात संगीता जी ! आपकी इस रचना ने चंद पंक्तियाँ याद दिला दीं !

तेरे जहान में ऐसा नहीं की प्यार न हो
जहाँ उम्मीद हो उसकी वहाँ नहीं मिलता !

शायद यही सचाई कहीं न कहीं मन को तिक्त और विरक्त कर जाती है !

दिगम्बर नासवा 2/24/2014 3:21 PM  

सब हैं अपने अपनेआप में इतने व्यस्त
नहीं मिलते अब सहारे के लिए कोइ कन्धे ..

ये गज़ल नहीं ... आज के हालात का सटीक जायजा है ... पहले शेर से लेकर हर शेर अपने आप में जीवन के सच को सहज ही रख रहा है ... बाखूबी अभिव्यक्त किया है आपने इस दौर को ...

shikha varshney 2/24/2014 4:50 PM  

कभी कभी मेरे दिल में कुछ यूँ भी ख़याल आते हैं.
जिनको आपने इस गज़ल में बखूबी उतार दिया है.
निकालिए बोरियत के इस बिस्तर से और लग जाइए कलम के साथ.

कालीपद "प्रसाद" 2/24/2014 4:52 PM  

सब हैं मस्त अपने अपने जिंदगी में
अनोपयोगी वास्तु का क्या महत्त्व है जिंदगी में ?
सुन्दर रचना
New post शब्द और ईश्वर !!!
New post: किस्मत कहे या ........

वाणी गीत 2/24/2014 5:01 PM  

मार्मिक सत्य मगर इसका हल भी क्या। जब युवा थे सोचते , मगर कभी लगता है सोच लेते तो भी क्या …

Dr. sandhya tiwari 2/24/2014 5:58 PM  

bahut hi marmik bhav ...........ham sabhi mahsus karte hai kabhi na kabhi..........

Anita Lalit (अनिता ललित ) 2/24/2014 6:40 PM  

~हर तरफ़ सन्नाटे की आवाज़ें गूँजी हैं,
क्या यही बस.. उम्र के इस दौर की पूँजी है..~
चलते-चलते ज़िन्दगी ये कैसे मुक़ाम पर पहुँच जाती है कुछ समझ नहीं आता , घबराहट होती है कभी-कभी आने वाले कल से .. :(

सुन्दर लिखा है दीदी !

~सादर

चला बिहारी ब्लॉगर बनने 2/24/2014 7:03 PM  

दीदी, सचमुच बेख़्याली में लिखे हुए ख़यालात लग रहे हैं... कविता के भाव प्रभावशाली हैं!! और असर करते हैं!!

संध्या शर्मा 2/24/2014 7:32 PM  

इन बेख्याली के ख्यालों ने वर्त्तमान समाज की सच्ची तस्वीर खींच दी है .... गहन भाव

अशोक सलूजा 2/24/2014 10:21 PM  

नमस्कार जी ....क्या कहूँ बहना ..
दिल के दर्द को.... जाने कौन
जिसने सहा.... बाकि सब मौन!!!

शुभकामनाये !स्वस्थ रहें!

Unknown 2/25/2014 1:41 PM  

पास के शजर से जब आती है चहचहाहट
पड़ जाते हैं न जाने क्यों मोह के फंदे ।

वाह बेहतरीन..... जीवन के करीब से गुजरते शब्द ॥ एक एक शब्द ... .....बधाई

Suman 2/25/2014 4:32 PM  

पास के शजर से जब आती है चहचहाहट
पड़ जाते हैं न जाने क्यों मोह के फंदे ।
घोंसले का मोह छोड़ने से भी कहाँ छूटता है :)
सटीक गजल !

प्रवीण पाण्डेय 2/25/2014 7:27 PM  

आज का सच बताती सामयिक पंक्तियाँ

virendra sharma 2/25/2014 11:07 PM  

बहुत सुन्दर प्रस्तुति है संगीता जी की :

बेख्याली के ख्याल

ज़िंदगी के दरख्त से सब उड़ गए परिंदे

दहलीज़ तक भी नहीं आते अब कोई बाशिंदे ।
पास के शजर से जब आती है चहचहाहट

पड़ जाते हैं न जाने क्यों मोह के फंदे...
गीत.......मेरी अनुभूतियाँ पर
संगीता स्वरुप ( गीत )

अति सुन्दर रूपकत्व लिए बढ़िया बिम्ब परिधान लिए है यह रचना।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया 2/25/2014 11:33 PM  

बहुत खूब,बहुत ही सुंदर गजल ...!
RECENT POST - फागुन की शाम.

सदा 2/26/2014 2:57 PM  

एक सच ... मन को छूती अभिव्‍यक्ति
सादर

निवेदिता श्रीवास्तव 2/26/2014 6:39 PM  

इस अपाधापी की भगदड से भरे जीवन का अच्छा वर्णन किया है अपने ...... सादर !

Ankur Jain 2/26/2014 7:16 PM  

नेह नहीं मिलता कहीं हाट बाज़ार में
ना ही उगाही के रूप में काम आते हैं चंदे ।

सुंदर व अर्थपूर्ण पंक्तियां...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून 2/26/2014 8:21 PM  

पक्षी का धर्म ही है पालना और उड़ा देना...

संजय भास्‍कर 2/28/2014 5:38 PM  

पास के शजर से जब आती है चहचहाहट
पड़ जाते हैं न जाने क्यों मोह के फंदे ।

वाह बेहतरीन.....

Onkar 3/01/2014 9:17 PM  

बहुत खूब

प्रेम सरोवर 3/05/2014 8:31 PM  

शानदार प्रस्तुति. से साक्षात्कार हुआ । मेरे नए पोस्ट
"सपनों की भी उम्र होती है " (Dreams havel life) पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है।

प्रेम सरोवर 3/05/2014 8:32 PM  

शानदार प्रस्तुति. से साक्षात्कार हुआ । मेरे नए पोस्ट
"सपनों की भी उम्र होती है " (Dreams havel life) पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है।

Vandana Ramasingh 3/07/2014 7:09 AM  

बहुत सुन्दर रचना

Dr.NISHA MAHARANA 3/15/2014 3:34 PM  

सब हैं अपने अपनेआप में इतने व्यस्त
नहीं मिलते अब सहारे के लिए कोइ कन्धे ।
marmik .....

Kailash Sharma 3/19/2014 8:31 PM  

नेह नहीं मिलता कहीं हाट बाज़ार में
ना ही उगाही के रूप में काम आते हैं चंदे ।
...वाह..बहुत सार्थक और संवेदनशील प्रस्तुति...सभी अशआर दिल को छू जाते हैं...

Unknown 3/29/2014 11:06 PM  

आह बहुत सुन्दर गीत और इसके भाव। मर्म बहुत ही लाज़वाब रूप से उल्लेखित किया आपने आदरणीय बधाई

एक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: ''जज़्बात ग़ज़ल में कहता हूँ''

एक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: ''कोई न सुनता उनको है, 'अभी' जो बे-सहारे हैं''

ANULATA RAJ NAIR 4/02/2014 1:35 PM  

बहुत बढ़िया ग़ज़ल....
पास के शजर से जब आती है चहचहाहट
पड़ जाते हैं न जाने क्यों मोह के फंदे ।
बहुत ही सुन्दर ..

सादर
अनु

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' 4/11/2014 10:29 PM  

बहुत उम्दा...बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@भूली हुई यादों

Surendra shukla" Bhramar"5 4/12/2014 3:22 PM  

सब हैं अपने अपनेआप में इतने व्यस्त
नहीं मिलते अब सहारे के लिए कोइ कन्धे ।
नेह नहीं मिलता कहीं हाट बाज़ार में
ना ही उगाही के रूप में काम आते हैं चंदे ।

बहुत सुन्दर भाव और यथार्थ दर्शाती पंक्तियाँ
भ्रमर ५

Saras 4/17/2014 2:15 PM  

जीवन का वह सच ..जो दबे पाँव आकर ...न जाने कब ...हमारी ज़िन्दगीओं में पैठ जाता है ......

डॉ. जेन्नी शबनम 4/20/2014 9:09 PM  

बहुत उम्दा रचना, बधाई.

मो. कमरूद्दीन शेख ( QAMAR JAUNPURI ) 4/21/2014 12:06 AM  

बहुत दिनों बाद ब्लॉग जगत में कदम रखा हूं। कदम रखते ही पहले आपकी रचनाओं को खोजा और पहली ही रचना दिल को छू गई। सुंदर अभिव्यक्ति।

Anju (Anu) Chaudhary 4/22/2014 9:43 PM  

जीवन की सत्यता बताती हुई रचना

सविता मिश्रा 'अक्षजा' 4/28/2014 11:35 PM  

बहुत सुन्दर दीदी __/\__

Unknown 5/24/2014 10:00 PM  

आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (25-05-2014) को ''ग़ज़ल को समझ ले वो, फिर इसमें ही ढलता है'' ''चर्चा मंच 1623'' पर भी होगी
--
आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
सादर

Basant Khileri 5/25/2014 8:37 AM  

आपकि बहुत अच्छी सोच है, और बहुत हि अच्छी जानकारी।
जरुर पधारे HCT- Mp3 गाने मेँ अपनी फोटो आसानी से लगाए।

Dr Varsha Singh 5/25/2014 5:15 PM  

सब हैं अपने अपनेआप में इतने व्यस्त
नहीं मिलते अब सहारे के लिए कोइ कन्धे ।

सच ! आज के जीवन का सच...
सटीक अभिव्यक्ति....

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