हश्र ......
>> Tuesday, May 6, 2014
ज़र्द पत्तों की तरह
सारी ख्वाहिशें झर गयी हैं
नव पल्लव के लिए
दरख़्त बूढ़ा हो गया है
टहनियां भी अब
लगी हैं चरमराने
मंद समीर भी
तेज़ झोंका हो गया है
कभी मिलती थी
छाया इस शज़र से
आज ये अपने से
पत्र विहीन हो गया है
अब कोई पथिक भी
नहीं चाहता आसरा
अब ये वृक्ष खुद में
ग़मगीन हो गया है
ये कहानी कोई
मेरी तेरी नहीं है
उम्र के इस पड़ाव पर
हर एक का यही
हश्र हो गया है ।
41 comments:
जो गुमाँ था अपने होने का
वह खड़खड़ाने लगा है - जब गिरे
संगीता जी बाद आपकी पोस्ट नजर आई तो बहुत ख़ुशी हुई।
हर जिंदगी का भी यही हश्र है , तभी तो काल रुकता कहाँ है ? सबको पीछे छोड़ कर आगे बढ़ जाता है।
जिसको ख़ुशी से स्वीकार करना ही चाहिए.. तब वर्तुल पूरा होगा..
हर पतझड़ के बाद वसंत आता है और वृक्ष की हर पत्रविहीन शाख और टहनी नव किसलय एवं कोमल अंकुरों से पुष्पित पल्लवित हो जाती है ! यही प्रकृति का नियम है ! इसलिये निराशा का यह आलम भी दीर्घजीवी नहीं होना चाहिये ! इतने खूबसूरत रूपक को रचने के लिये आपको बहुत-बहुत बधाई सगीता जी !
यह बात सही है कि समापन-सत्र शुरू हो जाने पर बाद जीवन का क्रम बदल जाता है,लेकिन प्रकृति में बेकार कुछ भी नहीं.
बीच-बीच में आप कहाँ ग़ायब हो जाती है -आप की जरूरत तो अब हमें है .
हर एक को गुजरना है इस स्थिति से !
कभी पढ़ा था यह शे'र कहीं ---
गिरती हुई दीवारों तुमको हम थाम लेंगे ,
बेबस हुए कभी तो तुम्हारा ही सहारा लेंगे !
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ...
ज़रा नजरें घुमा कर देखिये तो पता चलेगा कि इस वृक्ष की जरुरत अब कहाँ है. पर आप है कि देखती ही नहीं :).
वैसे कविता का जबाब नहीं और आपका भी.
समय का एक ऐसा सत्य जो सब पर सामनता से लागू होता है. सुन्दर कृति.
समय का एक ऐसा सत्य जो सब पर सामनता से लागू होता है. सुन्दर कृति.
शुभ प्रभात
बेहतरीन रचना
सादर..
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं...
कविता बहुत प्रभावशाली है लेकिन जीवन को देखने का एक और नजरिया भी है..फल जब पक जाता है तो उसकी मिठास बढ़ जाती है..खुशबू आती है..व्यक्ति जब वृद्ध हो जाता है तो परिपक्वता व गरिमा से भर जाता है..और चुपचाप पके फल की तरह बिना किसी दर्द के झर जाता है..एक नया बीज बनकर नये कलेवर में आने के लिए..
हकीकत बयाँ करती लाजवाब प्रस्तुति हमेशा की तरह धारदार और मारक
http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/05/blog-post_7.html
ये माना जीवन की कहीकत है ये ... पर इसी को समय की गति भी कहते हैं ... फिर इस अवस्था में भी तो सार्थक कार्य होते हैं ... होंसला बनाए रखना चाहिए ... प्राकृति को सहज लेना ही जीवन है ...
प्रभावी रचना .. सोचने को मजबूर करती हुयी ...
वाह-वाह क्या बात है। बहुत ही उम्दा रचना।
बहुत ही सशक्त और प्रभावशाली रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
संगीता जी बहुत दिनो बाद आपकी पोस्ट पढ़्ने को मिली बहुत अच्छा लगा..भाव पूर्ण
किसने कहा अब वो उम्र के अंतिम पड़ाव में किसी काम का नहीं रहा .......उसके पास अनुभव की थाती है और जो समझदार मुसाफिर हैं वे उससे लाभ उठा ही लेते हैं ........
शरीर की मज़बूरी है देर सवेर हर कोइ बूढ़ा हो ही जाता है !
पेड़ के गिरते जर्द पत्तों को क़भी ध्यान से देखिये हवा के साथ नृत्य करते हुये झर रहे है यह एक़ परिपक्वता की ओर इशारा है !
जीवन का सार्थक संदेश देती कविता
आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (11-05-2014) को ''ये प्यार सा रिश्ता'' (चर्चा मंच 1609) पर भी होगी
--
आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
सादर
सटीक रचना
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना। जिंदगी का यह एक कडवा सच है। नये पौधों को भी तो जगह चाहिये।
कटु सत्य जीवन में एक समय ऐसा भी आता है...
भावपूर्ण रचना....
जीवन का कटु सत्य को उभारती सुन्दर अभिव्यक्ति !
बेटी बन गई बहू
"नव पल्लव के लिए
दरख़्त बूढ़ा हो गया है "
वाह। आपकी रचनाये सृजन के लिए प्रेरित करती रहीं हैं. बहुत सुन्दर और सार्थक रचना. मैंने भी अपनी एक नयी ग़ज़ल में इसी पीड़ा को गाने का प्रयास किया है आपके स्नेह और आशीर्वाद की अपेक्षा है.
आभार
और इसी पड़ाव तक पहुँचने के लिये ये सारा सफ़र है
बहुत सुन्दर रचना
बहुत ही सुन्दर....
खामखाह का गुमाँ रहता है इन्सान को सभी को एक ही राह पर चलना होता है आखिरी में
उम्र के इस पड़ाव पर
हर एक का यही
हश्र हो गया है ।
और आप सबकी फि़क्र में इतनी गहराई में उतर कर नि:शब्द कर देती हैं ....
एक न एक दिन सबका यही हश्र होना है. भावपूर्ण रचना, बधाई.
ओह ,
मंगलकामनाएं आपको !!
Autumn's beauty and curse..............
सच !! एकदम सच बात !
सुन्दर कविता !
आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (01-06-2014) को ''प्रखर और मुखर अभिव्यक्ति'' (चर्चा मंच 1630) पर भी होगी
--
आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
सादर
kya baat hai.......
यह तो प्रकृति का सत्य है .. यह नियत ही है.. सुन्दर अभिव्यक्ति आपकी ..
ये कहानी कोई
मेरी तेरी नहीं है
उम्र के इस पड़ाव पर
हर एक का यही
हश्र हो गया है ।
sahi kaha aapne aesahi hota hai jeevan ke bhavon ko bahut khubi se shabdon me piroya hai
badhai
आप की रचना कविता-मंच
पर प्रकाशित की गयी...
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