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मोह से निर्मोह की ओर

>> Friday, July 21, 2017

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मोह  से  ही तो 
उपजता  है  निर्मोह 
मोह  की अधिकता 
लाती है जीवन में क्लिष्टता 
और  सोच  हो जाती  है कुंद
मोह के दरवाज़े होने लगते हैं  बंद ।
हम ढूँढने  लगते  हैं ऐसी  पगडण्डी 
जो हमें  निर्मोह  तक ले  जाती  है 
धीरे धीरे जीवन में 
विरक्तता  आती  चली जाती है 
मोह  की तकलीफ से गुज़रता 
इंसान  निर्मोही हो  जाता  है 
या यूँ  कहूँ कि इंसान 
मोह के बंधन  तोड़ने को 
मजबूर  हो  जाता  है ।
संवेदनाएं  रहती  हैं  अंतस में 
पर ज़ुबाँ  मौन  होती  है 
प्रश्न  होते  हैं  चेहरे  पर 
और आँखें   नम  होती हैं 
बीतते  वक़्त  के  साथ 
खुश्क  हो  जाती हैं  आँखें 
और चेहरा भावशून्य  हो जाता है 
ऐसा  इंसान लोगों  की  नज़र में 
निर्मोही  बन  जाता  है ।





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फलसफा ज़िन्दगी का

>> Saturday, July 1, 2017


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ज़िंदगी की नाव ,मैंने 
छोड़ दी है इस 
संसार रूपी दरिया में ,
बह रही है हौले हौले ,
वक़्त के हाथों है 
उसकी पतवार ,
आगे और आगे 
बढ़ते हुये यह नाव 
छोड़ती जाती है 
पानी पर भी निशान ,
जैसे जैसे बहती है नाव 
पीछे के निशान भी 
हो जाते हैं धूमिल ,
यह देखते हुये भी 
हम खुद को नहीं बनाते 
इस दरिया की तरह , 
 लगे रहते हैं हम 
पुराने निशानों की खोज में 
और  करते रहते हैं शिकायत कि
दर्द के सिवा  हमें 
कुछ नहीं मिला , 
चलो आज नाव से ही सीखें 
ज़िंदगी का फलसफा 
आगे बढ़ने में ही है 
असल मज़ा 
निशान देखने के लिए 
गर नाव रुक जाएगी 
अपने पीछे फिर कोई 
निशान भी नहीं बनाएगी । 

 #हिन्दी_ब्लॉगिंग

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