कुसुम चाहत के
>> Thursday, January 29, 2009
वृथा ही मैंने
चाहत के कुसुम चुन लिए ,
जिनमें कोई गंध नही थी ।
मात्र मन लुभाने का
हुनर था।
कुछ ताज़गी थी ,
कुछ रंग थे
जिन्हें देख कर
मन हुआ कि
उठा कर
अंजुरी भर लूँ ,
और मैं -
मंत्रमुग्ध सी
मन की अंजुरी
भर लायी ।
पर थे तो पुष्प ही न
मुरझा गए
कुम्हला कर हो गए
बेरंग से ,
और अब न
सहेजते बनता है
और न फेंकते ,
ज़िन्दगी !
ज़िन्दगी भी आज
बेरौनक सी हो गई है।
4 comments:
marmsparshi bhaav
daad hazir hai Geet
Sangeeta ji sadar pranaam...
वृथा ही मैंने
चाहत के कुसुम चुन लिए ,
जिनमें कोई गंध नही थी ।
-in 3 lines ko padh kar apka apni karni per pashchatap ka bhaav ujaager hota he.
कुछ ताज़गी थी ,
कुछ रंग थे
जिन्हें देख कर
मन हुआ कि
उठा कर
अंजुरी भर लूँ ,
और मैं -
मंत्रमुग्ध सी
मन की अंजुरी
भर लायी ।
-ye sab tha to fir pachhtava kyu????
पर थे तो पुष्प ही न
मुरझा गए
कुम्हला कर हो गए
बेरंग से ,
और अब न
सहेजते बनता है
और न फेंकते ,
-aah apki vivashta ka ye bhaav dekh kar man tees se bhar gaya...lekin dear shayed aap k pushpo ko aur adhik apki dekhbhaal ki jarurat thi..jisSe vo shayed itni jaldi na murjhate..shayed aur khil jate..???tb ye dukh na hota..waise ye b katu satye to he hi ki parivartan sasar ka niyam he..ek chola utarne ke baad hi naya chola milta he..
ज़िन्दगी !
ज़िन्दगी भी आज
बेरौनक सी हो गई है।
-koshishe karte rahiye...kaamyaab ho hi jayengi..(ha.ha.ha.) aur raunak laut aayegi..
अच्छी कविता है भई... आप को बधाई.......
Respected Sangeeta ji,
bahut hee sundar rachna...jo apke andar base prakriti prem ko ujagar kartee hai.badhai.
Poonam
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