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कुसुम चाहत के

>> Thursday, January 29, 2009



वृथा ही मैंने

चाहत के कुसुम चुन लिए ,

जिनमें कोई गंध नही थी ।

मात्र मन लुभाने का

हुनर था।

कुछ ताज़गी थी ,

कुछ रंग थे

जिन्हें देख कर

मन हुआ कि

उठा कर

अंजुरी भर लूँ ,

और मैं -

मंत्रमुग्ध सी

मन की अंजुरी

भर लायी ।

पर थे तो पुष्प ही न

मुरझा गए

कुम्हला कर हो गए

बेरंग से ,

और अब न

सहेजते बनता है

और न फेंकते ,

ज़िन्दगी !

ज़िन्दगी भी आज

बेरौनक सी हो गई है।



4 comments:

निर्झर'नीर 1/30/2009 10:32 AM  

marmsparshi bhaav
daad hazir hai Geet

taanya 1/30/2009 4:07 PM  

Sangeeta ji sadar pranaam...
वृथा ही मैंने
चाहत के कुसुम चुन लिए ,
जिनमें कोई गंध नही थी ।
-in 3 lines ko padh kar apka apni karni per pashchatap ka bhaav ujaager hota he.

कुछ ताज़गी थी ,
कुछ रंग थे
जिन्हें देख कर
मन हुआ कि
उठा कर
अंजुरी भर लूँ ,
और मैं -
मंत्रमुग्ध सी
मन की अंजुरी
भर लायी ।
-ye sab tha to fir pachhtava kyu????

पर थे तो पुष्प ही न
मुरझा गए
कुम्हला कर हो गए
बेरंग से ,
और अब न
सहेजते बनता है
और न फेंकते ,
-aah apki vivashta ka ye bhaav dekh kar man tees se bhar gaya...lekin dear shayed aap k pushpo ko aur adhik apki dekhbhaal ki jarurat thi..jisSe vo shayed itni jaldi na murjhate..shayed aur khil jate..???tb ye dukh na hota..waise ye b katu satye to he hi ki parivartan sasar ka niyam he..ek chola utarne ke baad hi naya chola milta he..

ज़िन्दगी !
ज़िन्दगी भी आज
बेरौनक सी हो गई है।
-koshishe karte rahiye...kaamyaab ho hi jayengi..(ha.ha.ha.) aur raunak laut aayegi..

योगेन्द्र मौदगिल 1/31/2009 8:30 PM  

अच्छी कविता है भई... आप को बधाई.......

पूनम श्रीवास्तव 2/01/2009 12:08 AM  

Respected Sangeeta ji,
bahut hee sundar rachna...jo apke andar base prakriti prem ko ujagar kartee hai.badhai.
Poonam

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