ईमानदारी से
>> Tuesday, April 12, 2011
ईमानदारी से
चाहती हूँ कहना
कि
मैं ईमानदार नहीं.
क्यों कि
जो कहती हूँ
वो करती नहीं
जो सोचती हूँ
वो होता नहीं
जो होता है
वो चाहती नहीं .
इसी ऊहापोह में
जीती चली जाती हूँ
क्षण - प्रतिक्षण
परिस्थितियों में
ढलती चली जाती हूँ.
जो बदल जाये
वक़्त के साथ
तो बताओ
वो कैसे
रह पायेगा ईमानदार
खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
और मान लेती हूँ
कि
ज़िन्दगी जी रही हूँ.
जब कि जानती हूँ
कि
पल पल मर रही हूँ.
इसीलिए
कहती हूँ ईमानदारी से
कि
मैं ईमानदार नहीं .
88 comments:
मान लेती हूँकिज़िन्दगी जी रही हूँ.जब कि जानती हूँकिपल पल मर रही हूँ.इसीलिए कहती हूँ ईमानदारी सेकिमैं ईमानदार नहीं .
बहुत इमानदारी से मन की बात लिखी है ......!!
एक एक शब्द काबिले तारीफ़ है ...!!
खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
और मान लेती हूँ
कि
ज़िन्दगी जी रही हूँ.
सभी के मन को अभिव्यक्ति दे दी आपनें!! सार्थक
आदरणीय संगीता स्वरुप जी
नमस्कार !
मन की अथाह गहराईयों तक उतारते हुए लफ्ज़
अपनी कथा स्वयं ही कह रहे हैं
अभिवादन .
.................बहुत ही खुबसुरत रचना| धन्यवाद|
बहुत ही खूबसूरत रचना,
......दुर्गाष्टमी और रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
badee sunder abhivykti............
ज़िन्दगी जी रही हूँ.
जब कि जानती हूँ
कि
पल पल मर रही हूँ.
इसीलिए
कहती हूँ ईमानदारी से
कि
मैं ईमानदार नहीं .
--
सुन्दर रचना!
--
ईमानदारी के धरातल पर सभी का यही हाल है!
--
रामनवमी की शुभकामनाएँ!
सबका तो यही हाल है, खैर, सबका हो या ना भी हो...मेरा तो यही हाल है जो कविता में आपने कहा है..:)
यह ईमानदारी क्या कम है
कि हारके दिल ये कहे
कि मैं ही ईमानदार नहीं
कहते हैं सबसे अधिक ईमानदारी बेइमानी के धंधे में मिलती है।
*
अपने को ईमानदार नहीं मानने से बड़ी ईमानदारी क्या होगी।
बहुत खूब संगीता जी ! हर कोई बस भ्रम में ही तो जी रहा है !
जो बदल जाये
वक़्त के साथ
तो बताओ
वो कैसे
रह पायेगा ईमानदार
खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
और मान लेती हूँ
बहुत सुंदर,सच में आज कोई भी तो नहीं है ईमानदार....खुबसुरत।
एक ईमानदार प्रयास भावों को अभिव्यक्ति देने का। कुछ शे’र याद आ गए --
रास्ते में वो मिल गया अच्छा लगा,
सूना-सूना रास्ता अच्छा लगा।
कितने शिकवे थे मुझे थे तकदीर से,
आज क़िस्मत का लिखा अच्छा लगा।
मुझमें क्या है मुझको कब मालूम है,
उससे पूछो उसको क्या अच्छा लगा।
बहुत ही खुबसुरत रचना
रामनवमी पर्व की ढेरों बधाइयाँ एवं शुभ-कामनाएं
जहाँ सब कुछ बदल रहा हो वहाँ हम नहीं बदलेंगे तो कैसे चलेगा? अबदल तो बस एक वही है !
गज़ब कर दिया……………इतनी ईमानदारी भी ठीक नही………………सबके मन की बात सार्वजनिक कर दी।
वक़्त के साथ
तो बताओ
वो कैसे
रह पायेगा ईमानदार
मौलिक अनुभूतियों की मौलिक अभिव्यक्ति।
प्रभावशाली पंक्तियां।
रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
वाह बेईमानी को भी क्या इमानदारी से माना है ...:) ये क्या कम है.थोड़ी बेईमानी तो बनती है जीने के लिए.जैसे खाने में नमक :)
बहुत बहुत सुन्दर और गहरी अभिव्यक्ति.
इससे बड़ी ईमानदारी नहीं देखी।
इतनी ईमानदारी से तो सब कहा ,कैसे माने की ईमानदार नहीं ...
बहुत भाई मन को ये ईमानदारी !
sab beimaan hain ma !
kam se kam aap to bataati ho ! itni imaandaari dikhaayee !
kitna achcha likha hai !
kya bat hai
ईमानदारी से
चाहती हूँ कहना
कि
मैं ईमानदार नहीं.
जब कि जानती हूँ
कि
पल पल मर रही हूँ.
इसीलिए
कहती हूँ ईमानदारी से
कि
मैं ईमानदार नहीं .
Kitnee sahajtaa aur sadagee se aapne ye baat kah dee!
behad imaandari se aapne zurm kabool kar liya....ye badhappan bhi har kisi ke bas ki baat nahi hai.
बहुत प्यारी ईमानदारी !
kya bat hai !
Sangeeta ji ap ko padhna hamesha hi ek sukhad anoobhooti pradan karta hai
vishay- vastu ka kinchit matra aatmavlokan, hi yatharth ka pratinidhi hota hai , aapne to kavy ke hanthon nirupit kar diya hai . bahut khub .
sadhvad .
.
बहुत ईमानदारी से
चाहता हूँ कहना
कि
आप ईमानदार नहीं.
क्यों कि
आप जब भी
करते हो प्रशंसा
प्रशंसासूचक
एक-आद शब्द
अपने पास ही रख लेते हो.
ग़लत को
ग़लत नहीं कहते.
केवल
सुधार की कोशिश करते हैं
बड़ी शालीनता से.
आप ईमानदार नहीं.
देखा है मैंने हर कहीं.
यही देखा है
हर किसी ब्लॉग के टिप्पणी बॉक्स में.
यही देखा है
ब्लॉग की समीक्षा के समय.
फटकारना तो आपने सीखा ही नहीं.
समीक्षा के तराजू पर
डंडी मारते हो.
जितने भी शब्द हैं प्रशंसा के
दो-एक दबा जाते हो.
आप ईमानदार नहीं.
देखा है मैंने हर कहीं.
क्यों किसी की
बिना जरूरत
आव-भगत करो.
क्यों किसी को
खटिया के सिरहाने बैठाओ.
क्यों किसी के घर
ज़्यादा आओ-जाओ.
क्यों किसी की
सच्ची आलोचना कर
उसे उलझने को उकसाओ.
इसलिये बोलो
केवल मीठे वचन
वो भी कंजूसी से
अधिक बोले नहीं
कि उसने नजदीकियाँ बढायीं.
इसलिये खुद की शांति के लिये
जरूरी है
कि
कुछ ईमानदारी से दूरी बनाकर रहा जाये.
आप ईमानदार नहीं.
देखा है मैंने हर कहीं.
.
ओह! इससे जायदा इमानदारी अब क्या मिलेगी? आपने जो कहा....
सभी पाठकों को बहुत बहुत शुक्रिया ...
प्रतुल जी ,
अब आपकी बातों पर क्या कहूँ ? आपने तो सारे राज़ ही खोल दिए हैं ...बहुत ईमानदारी से लिखा है आपने ...आभार
ye apraadhbodh sirf imaandaaron ko hi ho sakta hai...varna aajkal beimaan badi shiddat se khud ko imaandaar batate ghoom rahe hain...vo kya hai-chor machaye shor...ek maandaar prayas...sarahniy...
बहुत सुंदर...मन के सीधे सच्चे भाव उकेरे हैं आपने.....
bahut hi imandari ki sunder prastuti
मुझे भी प्रसंशा के शब्द ढूढने में बेईमानी करनी पड़ी . ईमानदारी से बेईमानी के ताल्लुकात . क्या बात , क्या बात , क्या बात .
ज़िन्दगी जी रही हूँ.
जब कि जानती हूँ
कि
पल पल मर रही हूँ.
इसीलिए
कहती हूँ ईमानदारी से
कि
मैं ईमानदार नहीं .
wakai laazwaab rachna hai ,aesa hi hota hum mante nahi .
aapki imandari bahut achchi lagi.
शीर्षक "ईमानदारी से" और वर्णन यह कि मैं ईमानदार नहीं.. संगीता दी,
इस सादगी पे कौन न मर जाए ए खुदा!!
क्या बात है ....!
बहुत बढ़िया लाइने हैं यह ! शुभकामनायें आपको !!
इसे पढ़कर बहुत से लोग ये सोच रहे होंगे, हां हम भी तो इमानदार नहीं
गहन शब्दों के साथ बेहतरीन शब्द रचना ।
सटीक अभिव्यक्ति है दी...
सादर...
वक़्त के साथ
तो बताओ
वो कैसे
रह पायेगा ईमानदार
अनुभूतियों की मौलिक अभिव्यक्ति।,बहुत इमानदारी ज़िन्दगी लिखी है
आपने तो अपने बहाने सब का सच सामने ला दिया .
बहत 'जरूरी है
कि '
प्रतुल जी ने सही कहा -ईमानदारी से दूरी बनाकर रहा जाये.'
आदरणीया दीदी संगीता जी
प्रणाम !
सादर सस्नेहाभिवादन !
कविताएं आपकी हमेशा प्रभावित करती हैं …
आज की इस कविता के आगे तो नत मस्तक हूं …
… अवश्य ही इस स्तर की रचनाएं आपके यहां पहले भी पढ़ी हैं …
अभी इस रचना के भाव-प्रभाव के वलय में खोये रहने का मन है …
मैं ईमानदार नहीं
क्यों कि जो कहती हूँ वो करती नहीं
जो सोचती हूँ वो होता नहीं
जो होता है वो चाहती नहीं …
हाय रे इंसान की मज़बूरियां !
खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ
कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार …
ईमानदारी की यह पराकाष्ठा ! … और कहन का यह अंदाज़ !
सच्चे मन से आपकी इंसानियत को प्रणाम !
आपकी लेखनी को नमन !!
* श्रीरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं ! *
- राजेन्द्र स्वर्णकार
Bahut sunder
गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक आभार.
खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
और मान लेती हूँ
कि
ज़िन्दगी जी रही हूँ.
अत्यंत भावप्रवण कविता....
क्या खूब कहा है आपने, चुभता है कहीं-कहीं.
जो बदल जाये
वक़्त के साथ
तो बताओ
वो कैसे
रह पायेगा ईमानदार
खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
आदरणीय संगीता जी बहुत ही बेहतरीन कविता पढ़ने को मिली बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं |
जो बदल जाये
वक़्त के साथ
तो बताओ
वो कैसे
रह पायेगा ईमानदार
खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
आदरणीय संगीता जी बहुत ही बेहतरीन कविता पढ़ने को मिली बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं |
ईमानदारी से लिखी गई इमानदार अभिव्यक्ति |
ye apne aap main ek imaandaar abhuvyakti hai!
kammal ki kavita!
बहुत ही खूबसूरत रचना,
बेहद ईमानदार स्वीकरोक्ति ....काबिले तारीफ़ ....आभार !
आपने कहा 'मै ईमानदार नहीं'
आपका यह कहना क्या'ईमानदारी' नहीं.
लीजिये ईमानदारी से ही आपकी यह पोस्ट पूरी हुई
आपकी ईमानदारी की चाहत भी अधूरी न रही
बहुत खूब,आपकी ईमानदारी पर मैं तो हुआ कुर्बां.क
सादर नमन आपकी इस नम्रता के लिए.
आपने मेरे ब्लॉग पर आ मेरा मनोबल बढ़ाया है.
आपको पुनः मेरे ब्लॉग पर राम-जन्म का सादर बुलावा है.कृपया आइयेगा जरूर.
क्या बात है !! वास्तव में सही है हम अपने आप के लिए ईमानदार नहीं क्योंकि परिस्थितियाँ हमे आपने अनुकूल ढलने को मजबूर कर देती है वो सब करवाती है जो हम नहीं करना चाहते ..............
खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
और मान लेती हूँ
कि
ज़िन्दगी जी रही हूँ.
आप की पंक्तियाँ भी ये ही कह रही है !
बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.
खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
और मान लेती हूँ
कि
ज़िन्दगी जी रही हूँ.
जब कि जानती हूँ
कि
पल पल मर रही हूँ.
इसीलिए
कहती हूँ ईमानदारी से
कि
मैं ईमानदार नहीं ....
..
..
हा हा हा ...कितनी इमानदारी से अपनी बेईमानी उफ्फ्फ इमानदारी क़ुबूल किया है आपने ...सच में मज़ा आगया ... आपके इस ब्लॉग से नही जुड़ पाया था अबतक संगीता जी ...अब देखता हूँ कैसे आप लिखा एक भी शब्द बिना पढ़े गुजर जाता है आँखों से !
आपको याद है जब मैंने ब्लॉग जगत में पहला कदम रखा था तो आपने मुझे अपनी ऊँगली पकड़ा दिया था ..आप से मेरा सम्बन्ध ममता और वात्सल्य का है ...जो लेखन से इतर भी रहेगा...कई बार जीवन का संघर्ष थोड़ा कम समय देता है...इसलिए उदारता का त्याग मत करना...आपको प्रणाम संगीता जी !
Behad imaandaar aur safal koshish... pasand aayi :)
इससे ज्यादा ईमानदारी और क्या हो सकती है संगीता जी की आपने अपने ही ईमान पे प्रश्न चिह्न लगा दिया...पहरेदार सोच भी बेईमान हो जा सकते हैं यह तो ईमानदारी से हम स्वीकार कर ही सकते हैं...रक्षक भक्षक तो हो ही जाते हैं....एक ईमानदार प्रस्तुति के लिए ईमान से बधाई...
हाँ , आपकी सलाह शिरोधार्य....अगली प्रस्तुतियाँ अलग अलग ही करूंगा क्षणिकाओं को छोडकर।
आभार।
Bahut hi sundar....ya yun kahiye ki jeevan ki sacchai.
har ek ki yahi dastaan hain.
jo chahte hain wo hota nahi
aksar wahi hota hain jo hum
chahte nahi.
isiliye har uljhan se bach niklne
ka bas ek hi raasta hain.
badal lo apni soch ko,chahe ham andar se tutte rahe,aankho main cheepa kar aansu bas muskura kar keh
do ki ab ham imaandaar na rahe.
Bahut hi sundar....ya yun kahiye ki jeevan ki sacchai.
har ek ki yahi dastaan hain.
jo chahte hain wo hota nahi
aksar wahi hota hain jo hum
chahte nahi.
isiliye har uljhan se bach niklne
ka bas ek hi raasta hain.
badal lo apni soch ko,chahe ham andar se tutte rahe,aankho main cheepa kar aansu bas muskura kar keh
do ki ab ham imaandaar na rahe.
अदभुत रचना और सत्यता को ईमानदारी से उजागर कर, उम्दा लफ़्ज़ों का चयन! प्रशंशनिये रचना...
पल पल मर रही हूँ.
इसीलिए
कहती हूँ ईमानदारी से
कि
मैं ईमानदार नहीं .
वाकई बहुत सुंदर है
क्या कम है यह ईमानदारी ...बहुत खूब संगीता जी.
खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
और मान लेती हूँ
कि
ज़िन्दगी जी रही हूँ.
bahut khoob
rachana
आदरणीया संगीता जी ,
जो आपसे अभिव्यक्त हुआ है उससे बढ़कर ईमानदार कुछ भी नहीं !
यही तो सच्ची ईमानदारी है कि जिंदगी की कशमकश को बेबाकी से कहा जाए |
यह ईमानदारी साहस भरी है ...
प्रणाम स्वीकारें |
sangeeta di
aswasthta ke chalte bahut hi vilamb se tippni de rahi hun .
hriday se xhma prarthini hun.
aapki har rachname ek alag hi aakarshhan hota hai.
bahit hi gahrai se likhti hain aapji bhi likhti vo ek aoni amit chhap chhod jaati hai.
bahut hi gahan anubhuti ke saath rachi gahan abhivyakti.
bahut bhut badhai
poonam
आपकी इस ईमानदारी को सलाम.
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
...सच्ची अभिव्यक्ति।
jo kaha hai ,emaandari se kha hai
kavita achchi hai
भाव प्रवण!
मान लेती हूँकिज़िन्दगी जी रही हूँ.जब कि जानती हूँकिपल पल मर रही हूँ.इसीलिए कहती हूँ ईमानदारी सेकिमैं ईमानदार नहीं
बहुत गहरी अभिव्यक्ति .... और ईमानदार सोच :-)
बहुत ही खुबसुरत रचना| धन्यवाद|
बहुत बढिया !!
सुन्दर परिपक्व रचना, शायद सभी के दिलों की बात कह रही है.
कैसे रह पाऊं मैं इमानदार खुद से व सब से
हर एक नजर तोलती मुझे तरह तरह से है
Is baat ki imaandaari se swikaar krna bhi kahaa aasaan hai ...
सोचने की बात है कि ईमानदार वक़्त(/परिस्थिति ) नहीं या व्यक्ति ......कोशिश ईमानदार हो तो व्यक्ति को ईमानदार कहा ही जाना चाहिए ....दीदी किस खूबी से आपने अपनी ईमानदारी को सम्मान दिला ही दिया
बहुत सुन्दर भावना प्रधान रचना
बहुत सुन्दर कविता..बधाई.
________________________
'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!
वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी
आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
बहुत सुन्दर संगीता दी...
सच में..खुद से बेईमानी कर रहे हैं हम सभी...फिर कहाँ से ईमानदार हुए.
बहुत अच्छा लिखा है आंटी।
सादर
बेहद ईमानदारी से भावनाओं को अभिव्यक्त करती कविता .साहित्य में अद्भुत प्रवाह प्रस्तुत करती. हमेश की तरह आपकी लेखनी का कमाल बधाई
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
हम सभी बेईमान है....
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