झरोखा ..
>> Tuesday, April 5, 2011
कोई भी रिश्ता बनते ही
खड़ी हो जाती हैं
उसके चारों ओर
कई अदृश्य दीवारें ,
बिना दीवारों के
रिश्तों की कोई
अहमियत भी तो नहीं
पर मात्र दीवारों पर
डाल कर अपने
नेह की चादर
सोच लिया जाए कि
बन गयी है छत
और मुकम्मल हो गया
रिश्तों का मकाँ
तो होगी शायद
सबसे बड़ी भूल
क्योंकि -
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमें ज़रूरी है
एक झरोखे का होना .
60 comments:
'क्योंकि
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमे जरूरी है
एक झरोखे का होना '
**************
यथार्थ की सुन्दर, भावपूर्ण अभिव्यक्ति ..
पर मात्र दीवारों पर
डाल कर अपने
नेह की चादर
सोच लिया जाए कि
बन गयी है छत
और मुकम्मल हो गया
रिश्तों का मकाँ
तो होगी शायद
सबसे बड़ी भूल ... anubhaw kee chhat hi in diwaron ke madhya rishton ko ek taazgi deti hain... main to aapki soch ke saath tahal rahi hun
क्योंकि - हर रिश्ता जीने के लिए उसमें ज़रूरी है एक झरोखे का होना .
सटीक ...रिश्तों पर सकारात्मक प्रकाश डालती रचना .
बहुत सुंदर,
क्योंकि -
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमें ज़रूरी है
एक झरोखे का होना .
सच कहती हुई....हर एक पंक्ति ...।
bahut sunder......
aaj kee generation ise jharokhe ko SPACE kahtee hai......
Bahut khoob.
झरोखा तो बहुत जरुरी है वर्ना घुटन से दम तोड़ देंगे रिश्ते.
सटीक,भावपूर्ण और सुन्दर रचना हमेशा की तरह...
सच में बिना झरोखे के रिश्तों को हवा के ताजे झोके कैसे मिलेंगे और नहीं मिले तो रिश्ते पल्लवित कैसे होगे . दीवारों के दरम्यान रिश्ते दम तोड़ जाते है.
....बजाय एक के झरोखे अगर दो हों तो ताज़ी हवा बेरोकटोक आती जाती रहेगी... सुंदर रचना !
रिश्तों की गहरायी इसी में तो है,वरना हर रिश्ता अधूरा है....बहुत ही सुंदर भावों से आपने एक सत्य का साक्षात्कार कराया है...धन्यवाद।
'क्योंकि
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमे जरूरी है
एक झरोखे का होना '
Bahut vazandar evam arthpoorn baat kahi hai apne ! ye jharokhe hi to rishton ko oxygen pradan kate hain varna to har rishta kam samy men hi bimar ho jaye ! sundar aur gahan rachna ! badhaee evam shubhkamnayen !
क्योंकि -
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमें ज़रूरी है
एक झरोखे का होना .
Badee hee sahee baat kahee aapne....kaash! Is yatharth ko log samajh saken!
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमे जरूरी है
एक झरोखे का होना
सटीक बात कही आपने ! झरोखा भी हो, सिर्फ सामाजिक दीवारे और रिवाजों के पैबंद ही नाकाफी है !
क्योंकि -
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमें ज़रूरी है
एक झरोखे का होना .
Bahut thik frmaaya aapne !risto ki divaar me pyaar bahut jruri haae !
sangeeta Di!n rishton men ghutan aati hi jharokhaa n hone se hai!! rishton men suwaas tabhi bharti hai jab sambandhon ke vaataayan khule hon!!
bahut sundar rachnaa!!
सच कहा है , रिश्तों कि अहमियत सिर्फ अपने और अपने से बाँध लेने से नहीं होती. इस मामले भी बिहारी जी से बिल्कुल सहमत हूँ.
वास्तविकता की सुन्दर परिकल्पना। झरोखा होना ही चाहिये, नयापन बना रहता है।
सुन्दर सन्देश दी...
शाश्वत सत्य का दर्शन कराता है ... झरोखा...
सादर....
पर मात्र दीवारों पर
डाल कर अपने
नेह की चादर
सोच लिया जाए कि
बन गयी है छत
और मुकम्मल हो गया
रिश्तों का मकाँ
तो होगी शायद
सबसे बड़ी भूल ...
बहुत सटीक और सार्थक चित्रण..इसी झरोखे से तो प्यार की हवा आती है.बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना..आभार
क्योंकि -
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमें ज़रूरी है
एक झरोखे का होना .
यही बात तो समझनी है| मगर हम है नासमझ!
क्योंकि -
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमें ज़रूरी है
एक झरोखे का होना .
ताकि रिश्तों में भी सोच नई शक्ति नई स्फूर्ति बनी रहे .....
बहुत ज़रूरी है झरोखा ,ताज़ी हवा के बिना सहज रहना भी संभव नहीं -रिश्ता हो चाहे जीवन .
Haan jharokha to zaruri h.. mere case me 'space' ka jharokha :)... sundar kavita :)
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमें ज़रूरी है
एक झरोखे का होना .
बहुत सार्थक और अच्छी सोच ....
बहुत सुंदर और सार्थक बात कही है आप ने
सच है रिश्तों के फलने फूलने के लिए खुली हवाओं का झरोखा बहुत ज़रूरी है
ek mukammal soch. jharokhon ka hona jaruri hai tazgi banaye rakhne ke liye.
बहुत सही कहा है आपने एक झरोखे का होना अति आवश्क है । आभार संगीता दी ।
"उन्हीने भुला दिया मुझे.......गजल"
कविता में रिश्तों की पारिवारिक भूमिका के सवाल को प्रमुखता से उठाया गया है।
'क्योंकि
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमे जरूरी है
एक झरोखे का होना '
सही कहा हर रिश्ते को एक स्पेस की जरूरत भी होती है…………बहुत सुन्दर रचना।
पर मात्र दीवारों पर
डाल कर अपने
नेह की चादर
सोच लिया जाए कि
बन गयी है छत
और मुकम्मल हो गया
रिश्तों का मकाँ
तो होगी शायद
सबसे बड़ी भूल
क्योंकि -
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमें ज़रूरी है
एक झरोखे का होना .
bahut prabhawi, atyshik sundar. mere liye tippaniyon ke liye dhanyawad.aap bahut hi achchha likhti hain !
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमें ज़रूरी है
एक झरोखे का होना ....
Sach kaha hai ... rishton ko bhi to taazi hava ki jaroorat hoti hai ...
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमें ज़रूरी है
एक झरोखे का होना ....
बहुत सुन्दर कविता...
शब्दशः हृदयस्पर्शी...
वाकई यह झरोखा ही तो है जो रिश्तों को जिलाए रखता है।
पर मात्र दीवारों पर
डाल कर अपने
नेह की चादर
सोच लिया जाए कि
बन गयी है छत
और मुकम्मल हो गया
रिश्तों का मकाँ
तो होगी शायद
सबसे बड़ी भूल
बहुत सही बात कही है आपने ... सुन्दर रचना !
क्योंकि -
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमें ज़रूरी है
एक झरोखे का होना .
bilkul sahi sonch di.....risto me tazagi bnaye rakhne ke liye ye jaruri hai ..
sangeeta di
bilkul saty avam sateek bat kahi hai aapne kyon ki har rishto ko jeene ke liye dil me jagah to hona hi chahiye samrpan avam vishvash ke saathrishto ko banaye rakhne ke liye.
क्योंकि -
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमें ज़रूरी है
एक झरोखे का होना .
bahut hi badhiya
badhai ke saath
poonam
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमें ज़रूरी है
एक झरोखे का होना ।
रिश्तों में दीवार और झरोखों की कल्पना...
वाह, काव्य में बिल्कुल मौलिक प्रयोग।
बहुत प्रभावी रचना।
बिल्कुल, झरोखे का होना बहुत जरुरी है...सुन्दर रचना.
'क्योंकि
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमे जरूरी है
एक झरोखे का होना '
bahoot khoob...!!!
रिश्तों को समझानेवाला लेखन...अच्छा है..
बहुत ठीक लिखा है "बिना दीवारों के रिश्तों की कोई अहमियत ---"
नहीं होती |
आशा
हर रिश्ते के लिए जरुरी है एक झरोखा ...
कम शब्दों में बड़ी गहरी बात !
दिलों की नजदीकी और रिश्तों में सम्मानित दूरी को मुकम्मल रख सकता है झरोखा.
बहुत सार्थक बात कह गयी यह रचना
neh ki chadar ki chhat pasand aayee... kachche makanon mein rahne ka maza kuchh aur hai...lekin jhrokhe to chahiye hi...na
बहुत सटीक और सार्थक चित्रण|
सही है...झरोखा न हो दम घुटने लगता है हर रिश्ते का।
सही है...झरोखा न हो दम घुटने लगता है हर रिश्ते का।
'पर मात्र दीवारों पर डाल कर अपने नेह की चादर सोच लिया जाए कि बन गयी है छत और मुकम्मल हो गया रिश्तों का मकाँतो होगी शायद सबसे बड़ी भूल'
झरोखे का होना जरूरी है रिश्ता जीने के लिये.
तो एक झरोखा मेरे ब्लॉग पर भी झांकने का खोलियेगा न. आपने मेरे ब्लॉग पर आकर अपने नेह की चादर तो डाली ही है एक बार.बस एक झरोखे की आवश्यकता है.रिश्ते को जिला दीजिये, प्लीज.
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमें ज़रूरी है
एक झरोखे का होना .
क्या बात है ......!!
आप कितनी आसानी से यथार्थ को छू जाती हैं .....!!
बहुत ही सुंदर रचना ......बधाई
ज़िन्दगी का ऐसा सच इतनी सहजता से आपने बता
दिया ,जिसकी अकसर अनदेखी हो जाती है । सादर !
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमे जरूरी है
एक झरोखे का होना
खूबसूरत प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें
बहुत खूब ! लेकिन कितने लोग झरोखे को समझ पाते हैं? ज्यादातर लोग तो दीवार और बस दीवार चाहते हैं. वर्तमान युग के रिश्तों पर एक सार्थक रचना.
'बिना दीवारों के
रिश्तों की कोई
अहमियत भी तो नहीं' सच है .
रिश्ते एक उलझी पहेली हैं। उन्हें सुलझाने का आपका एक सार्थक प्रयास। यह पहेली उन लोगों के लिए और भी जटिल हो जाती है झंझावात ने जिनकी चादर और दीवारें दोनों को एक झटके में उडा लिया हो।
क्योंकि
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमे जरूरी है
एक झरोखे का होना
यथार्थ की सुन्दर, भावपूर्ण अभिव्यक्ति
हमेशा की तरह.
बहुत सुंदर....अहसासपूर्ण..झरोखा होना ही चाहिये...
ye baat mujhe bahut bhaayee ma!
दीवारों पर
डाल कर अपने
नेह की चादर
सोच लिया जाए कि
बन गयी है छत
और मुकम्मल हो गया
रिश्तों का मकाँ
तो होगी शायद
सबसे बड़ी भूल
सही कहा आपने, सिर्फ सोच लेने भर से ही तो रिश्ते मुकम्मल नहीं हो जाते...
really heart touching wordsssss...
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