..................................ज़रूरी था ...
>> Wednesday, March 23, 2011
आज मैंने
सारी संवेदनाओं को
लपेट दिया है
कफ़न में ,
और साथ में
रख दिया है
मन के ताबूत में
अपनी सारी
ख्वाहिशों को,
ख्यालात को,
खुशी को,
जज़्बात को,
या यूँ कहूँ कि
सारे एहसासात को
और फिर तुमने
अपने शब्दों के
हथौड़े से
ठोक डालीं थी
उसमें कीलें .
ज़रूरी था इन सबको
ताबूत में रखना
क्यों कि
मरे हुए को
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता ...
73 comments:
ऐसा होता है अक्सर जिन्दगी में और हममें से कितने ऐसा ही करते आ रहे हैं. सभ्यता और संस्कृति परिष्कृत हो हो रही है लेकिन न अहसास बदलते हैं और न सपनों के टूटने का सिलसिला . सब कुछ वैसे ही चल रहा है पता नहीं दुनियाँ बदली कहाँ है? और किसके लिए बदली है? हर १० में से ८ लोगों कि नियति तो कुछ ऐसा ही दिखा रही है.
उफ़ ! कितना दर्द भरा है इन पंक्तियों में ! संवेदनाएं कभी नहीं मरतीं ! उन्हें मरना भी नहीं चाहिये औए मरने दीजियेगा भी मत ! संवेदनाविहीन मनुष्य पाषाण की तरह हो जाता है और प्रस्तर प्रतिमाएं सिर्फ संग्रहालयों में अच्छी लगती हैं घरों में नहीं ! बहुत ही खूबसूरत रचना है अपने दिल के हाल जैसी ! बधाई स्वीकार करें !
दिल को छूते शब्दों के साथ ..बेहतरीन शब्द रचना ।
अगर संवेदना मर गयी तो इस निस्पृह जीवन का क्या मतलब . कविता की पंक्तिया एक मनःस्थिति को दर्शाती है जब इन्सान नैराश्य के भंवर में झूल रहा हो . पता नहीं कहाँ और कैसे आप इतना सोच जाती हो . असर कर गयी .
I m touched.
mann ke tabut mein rakhi jati hain yaaden ... kya pata kisi khaali kshanon mein unki zarurat ho jaye , ek naye anubhaw ke liye
per aaj
सारी संवेदनाओं को लपेट दिया है कफ़न में ,और साथ में रख दिया है मन के ताबूत में अपनी सारी ख्वाहिशों को, ख्यालात को, खुशी को, जज़्बात को, या यूँ कहूँ किसारे एहसासात को और फिर तुमने अपने शब्दों के हथौड़े से ठोक डालीं उसमें कीलें ... vyatha ki charam seema !
सारी ख्वाहिशों को, ख्यालात को, खुशी को, जज़्बात को, या यूँ कहूँ किसारे एहसासात को और फिर तुमने अपने शब्दों के हथौड़े से ठोक डालीं थी उसमें कीलें
बहुत ही सुन्दर भावमय करती पंक्तियां ...लाजवाब प्रस्तुति ।
रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
अंतिम कील ठोकने से पहले एक बार जरूर देख लें,शायद किसी संवेदना की सांस अब भी चल रही हो।
राजेश उत्साही जी की बात पर गौर करें.
जाने क्या क्या सोच लेती हो.
कविता उच्च कोटि की है ..पर ये भाव....आपकी कलम से मुझे अच्छे नहीं लगते.सॉरी.:(
Aah! Ye kaisa dard ufan aaya hai!!
bhut hi dard bhari panktiya hai aam jindgi aur logo ke bilkul kareeb... har sabd har kisi ke dil ka haal kahta hai...
ज़रूरी था इन सबको
ताबूत में रखना
क्यों कि
मरे हुए को
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता ...
अहसास और संवेदनाओं को कहाँ दफ्न कर पाते हैं ताबूत में..इनके बिना जीवन का क्या अस्तित्व रह जाता है..हरेक पंक्ति अंतस को छू जाती है.बहुत मार्मिक रचना..आभार
सभी पाठकों का हृदय से आभार ...
आप सभी सच कह रहे हैं कि संवेदनाएं खत्म नहीं होतीं ...यदि हो जातीं तो शायद यह पंक्तियाँ भी नहीं लिखी जातीं ...किसी भी इंसान की समस्त भावनाएं सबके प्रति कभी खत्म नहीं हो सकतीं ....लेकिन कोई ऐसा लम्हा आता है कि किसी एक के प्रति उसकी समस्त भावनाएं दम तोड़ दें .
....यहाँ भी मैंने केवल कील ठोकने वाले के प्रति सारी संवेदनाओं की बात लिखी है ...
ऐसा तो हो सकता है न :)
राजेश उत्साही जी की बात का विशेष ख़याल रखूंगी ..यदि कोई साँस बाकी हुई तो ज़रूर चाहूंगी कि दम न निकले :):)
फिर से एक बार आभार
संगीता जी
नमस्कार. आप जितने विविध विषयों पर लिखती है उसका मुकाबला थोड़ा मुश्किल है.
अच्छी कविता है. विचलित कर देने वाली.
संगीता दी,
कविता बार बार पढने को मजबूर करती है... और जितना पढें उतना ही उदास कर जाती है... सिर्फ एक शब्द काफी होते हैं सारी संवेदनाओं और तमाम भावों को दफ़न कर देने के लिए..
आपके स्वभाव के विपरीत भाव, लेकिन दिल को छूते हुए!!
abhi dafan karna baaki hai mere dost...keelein taboot ke jharokhon ko nahin rok payengi...aap ki sanvednayen to jivit rahengi hi...achchha kiya, taboot main rakha...jalaya nahin...
itnaa dard....parantu khoobsoorat..rachna..
आज मैंने
सारी संवेदनाओं को
लपेट दिया है
कफ़न में ,
और साथ में
रख दिया है
मन के ताबूत में
.......
और फिर
तुमने अपने
शब्दों के हथौड़े से
ठोक डालीं थी उसमें कीलें .....
इस एक कविता में जीवन का पूरा आख्यान लिख दिया आपने...
शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी मार्मिक रचना ....
हार्दिक बधाई...साधुवाद !
बहुत खूबसूरत कविता हैँ ।
मन के एहसासोँ की अच्छी अभिव्यक्ति हुई हैँ। आभार संगीता दी ।
होली के बाद इतनी मार्मिक रचना!
मगर है बहुत बढ़िया!
अपनी सारी
ख्वाहिशों को,
ख्यालात को,
खुशी को,
जज़्बात को,
या यूँ कहूँ कि
सारे एहसासात को
और फिर तुमने
अपने शब्दों के
हथौड़े से
ठोक डालीं थी
उसमें कीलें .
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति . दिल की गहराइयों से ओमदे(umde) जज्बात हैं शायद. अति प्रभावी !
कितना भी चाह लें पर यादें मरती नहीं है, पीड़ा सहने की आदत डाल लीजिये, सताना बन्द कर देंगी।
क्यों कि
मरे हुए को
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता ...!
पूरा जीवन दर्शन समाहित कर दिया इन पंक्तियों में ...!
udasi aur dard mishrit yah kavita dil ko choo gayee....
मार्मिक अनुभूतियां दर्शाती चिंतनशील रचना । आभार...
आंतरिक पीड़ा की सहज अभिव्यक्ति.....
शिखा वार्ष्णेय जी से सहमत हूँ.. कि कविता उच्च कोटि की है ..पर ये भाव....आपकी कलम से मुझे अच्छे नहीं लगते.
बहुत भावमय अभिव्यक्ति -
संवेदनाएं मरती नहीं -मर-मर कर जी उठती हैं .
मन की पीड़ा के क्षण को कितने सुंदर शब्द दिया है आपने...विवशता को जताया है आज के भौतिकवादी परिवेश में...भाव से भरी हुई बहुत ही सुंदर रचना.....धन्यवाद।
बहुत संवेदनशील....
हम्म...मम्मा...
अव्वल तो संवेदनाएं महज कागज़ में दफनाई होंगी आपने....दिल का कोई गुब़ार निकालकर..मगर हकीकत में भी जब ऐसी संवेदनाएं आप दफना रही होंगी तो कहीं नए एहसास और नयी संवेदनाएं भी तो आकार ले ही रही होंगी ना......उनका परिणाम या अंजाम फिर जो भी हो...वो तो वक़्त ही तय करेगा....
मगर मैं सहमत हूँ आपकी बातों से भी और नज़्म की तासीर से भी......कभी कभी दफनाना भी चाहिए.....और आपने नज़्म में तरीके से क़ायदे se ही ताबूत में एहसास रखें हैं..so we दुबारा ज़रूर जन्मेंगे.........नई..???
और जैसा आपने कहा...किसी एक शख्स के लिए एहसास ख़त्म हो जाना...ये भी लाज़मी ही है...हम्म..फिर भी एक उम्मीद बाक़ी हमेशा रहती है...सामने वाला बंदा अपने अच्छे बर्ताव और पश्चाताप से एक दफे फिर एहसास के बीज दिल में बो सकता है...बशर्ते हम उसे मौक़ा दें रिश्ते के पौधे सींचने का.....है ना मम्मा...:) ?
हालाँकि नज़्म का स्याह रंग मेरा पसंदीदा है....फिर भी आप अच्छा अच्छा या फिर उग्र ही likha करें....:)
खुश रहें मम्मा....
नज़्म ke liye मुबारक़बाद है आपको.....
:):)
samvaidna ke swar me swar milana chahungi.
thos keel thok di aapne bhi rachna ke tehet.
आज तो मन के तार बज उठे आप कि मार्मिक रचना पढ कर
मरी हुई संवेदनाओं को दफनाने तक तो ठीक था ,किसी विशेष कारणों से हो तो ...
जरुर किसी विशेष परिस्थिति में ही ऐसा हुआ होगा ...
वरना संवेदनाओ के बिना कविता कैसे बनती !
ज़रूरी था इन सबको
ताबूत में रखना
क्यों कि
मरे हुए को
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता...
सुन्दर शेली सुन्दर भावनाए क्या कहे शब्द नही है तारीफ के लिए ..
बेहद संवेदनशील रचना ।
....मन के आक्रोश को कविता के माध्यम से रुबरु कराना वाकई कठीन होता है...लेकिन लगता है आपके लिए यह आसान है संगीताजी!..अति सुंदर रचना!...
...इतनी जल्दी भी ठीक नहीं है, क्योंकि कारण कोई भी हो दुखी होने पर नुकसान तो आपका ही होगा, सो हंसें और हंसाएं ! मत फसें और मत फसायें !
ज़रूरी था इन सबको
ताबूत में रखना
क्यों कि
मरे हुए को
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता
बेहतरीन अभिव्यक्ति.... गहन अभिव्यक्ति
आदरणीय संगीता दी,
कई बार पढ़ गया रचना को...
संकेतों के घने होते शैवाल की वज़ह से पानी (रचना) में आई अपारदर्शिता नज़रों और मन को मोह लेती है.... इस अपारदर्शिता से कुछ प्रश्न भी झांकते हैं .... अनुत्तरित से....
अद्भुत अभिव्यक्ति है...
सादर...
Dil pe paar nikalti sanvednaaen...bahut gahan abhivyakti.
sangeeta di
bahut hi gahre jajbaat liye ek samvedan sheel prastuti jo man ko bhauk kar gai .aapne bilkul sahi likha hai ki----
ज़रूरी था इन सबको
ताबूत में रखना
क्यों कि
मरे हुए को
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता
bahut hi dil me gahre chhap chhodti khoob surat abhivyakti
poonam
झकझोरने में समर्थ.
भावों से लबरेज़.
नई सवेद्नाओ के लिए पुरानी का दफन होना ही ठीक है ,वरना जीवन को गति कैसे मिलेगी |
हर रात की सुबह होती ही है |
बहुत ही खूबसूरत रचना है| परन्तु भावो की सुगंध और आवाज दोनों को कैद कर सके ऐसा कोई ताबूत दिल बना सकता नहीं|अगर बना सकता तो उसे दिल कोई कहता नहीं|
इतनी खूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद|
अद्भुत अभिव्यक्ति है| इतनी खूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद|
सारी संवेदनाओं को लपेट दिया है कफ़न में ,और साथ में रख दिया है मन के ताबूत में अपनी सारी ख्वाहिशों को, ख्यालात को, खुशी को, जज़्बात को, या यूँ कहूँ किसारे एहसासात को और फिर तुमने अपने शब्दों के हथौड़े से ठोक डालीं उसमें कीलें .....
बहुत ही खूबसूरत रचना, बधाई
जीवन में ऐसे अवसर कभी-कभी आ जाते हैं जब ख़्वाब, ख़्वाहिश, जज़्बात, अहसास मरण को प्राप्त होते हैं। लेकिन इनका पुनर्जन्म भी हो जाता है। यह चक्र चलता रहता है और यही जीवन है।
मर्मस्पर्शी कविता।
संगीता जी कविता दिल को छू गई । जो आशाओं व खुशियों का केन्द्र हो और वही कीलें ठोके तो साँसों की परवाह रह ही किसे जाती है । खूबसूरत अभिव्यक्ति ।
sangeeta ji bahut hi gahan bhavon ko aapne shabdob ke madhyam se prakat kiya hai .
aapne meri kavita ke us ansh ko 'abhidha' me le liya hai .ye panktee maine ''lakshyarth 'likhi hain .purush stri ka sada se yah kahkar uphas udata raha hai ki stri ki akl ghutnon me hoti hai isiliye maine likha hai ki tumahri akl to ghutnon me nahi fir tumne kaise yah dushkarm kar dala .
अपनी सारी
ख्वाहिशों को,
ख्यालात को,
खुशी को,
जज़्बात को,
या यूँ कहूँ कि
सारे एहसासात को
और फिर तुमने
अपने शब्दों के
हथौड़े से
ठोक डालीं थी
उसमें कीलें .
waah....bahut dard hai rachna me...
bahut bahut bahut sunder!!!
bahut khoob
shandar poem
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न न संगीता जी ये अहसास ही तो हैं जो हमें ऊर्जा देते हैं इन्हें ताबूत में न रखें । जमाना तो तैयार ही है कील ठोकने के लिये ।
दर्दभरी कविता ।
सशक्त मार्मिक अभिव्यक्ति ....
पूरी की पूरी रचना दिल पर दस्तक देने में समर्थ |
बहुत संवेदनशील रचना...अद्भुत
"मरे हुए को
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता ."
और अगर यह होता तो
मरे हुए को
यूँ ही नहीं छेड़ा नहीं जाता .:)
बढ़िया अभिव्यक्ति...बधाई..
bahut badhiya rachna ........
और फिर तुमने
अपने शब्दों के
हथौड़े से
ठोक डालीं थी
उसमें कीलें .
waah bahut khoob .
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
भारत के विश्व कप जीतने की बहुत बहुत बधाई.
umda!!! mubarakbad lijiye dil se!!
एकदम सही कहा संगीता जी, "मरे हुए को यूँ ही नहीं छोड़ा जाता..." उनको तो दफनाना ही पड़ता है वरना सड़ने लगते हैं.. फ़िर वो चाहे रिश्ते हों या अहसास या फ़िर इंसान... मरे हुओं को साथ लेकर नहीं चला जाता... कुछ उदास लेकिन बहुत ही संवेदनशील रचना
Mare hue ko yoon hi nahi chhodaa jaataa dfn kiyaa jaataa hai man kee atal gehraaiyon me .
veerubhai .
Dukhi ho gaya main...aaj ki duniya mein bhawnaon ka koyi kadra nahi...rishtey yun hi bik rahe aur khwahishon ko dafn kiya jaa raha...
aapke ek ek shabd aaj ki sachhayi ko ujagar karte hain...rishton ko jeene ki khatir,ham roz yun hi marte hain...
जज्बातों पर ठकी अंतिम कील ... बहुत गहरी और संवेदनशील रचना ...
aah! hriday ekbargi kabragaag ban gaya...dard bhi dafan ho gaya..
aah! hriday ekbargi kabragaag ban gaya...dard bhi dafan ho gaya..
यह तो बहुत सुन्दर गीत है..अच्छा लगा यहाँ आकर.
हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमें ज़रूरी है
एक झरोखे का होना .
...रिश्ते को कायम रखने के लिए यह अत्यंत जरुरी है!...बेहतरीन रचना!
ज़रूरी था इन सबको
ताबूत में रखना
क्यों कि
मरे हुए को
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता ...
bahut hi marmsprshi rachna di ...bhavnayen ander tak dastak deti hun hain....
aapki kavitaon ki tariif mumkin nahi hai yun chand shabdon mein sirf mehsoos ki ja sakti hai in shabdon mein simte bhavoN ki khushbu ..baad ki dono kavitayen bhi purmanii hai hamesha ki tarah ..tippani nahi kar pata hun lekin har kavita ko padhta jaroor hun .
ज़रूरी था इन सबको
ताबूत में रखना
क्यों कि
मरे हुए को
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता ...
khoobsoorat..
अभिव्यक्ति....
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