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..................................ज़रूरी था ...

>> Wednesday, March 23, 2011




आज मैंने 
सारी संवेदनाओं को 
लपेट दिया है 
कफ़न में ,
और साथ में 
रख दिया है 
मन के ताबूत में 
अपनी सारी 
ख्वाहिशों को, 
ख्यालात  को, 
खुशी को, 
जज़्बात को, 
या यूँ कहूँ कि
सारे एहसासात को 
और फिर तुमने 
अपने शब्दों के 
हथौड़े से 
ठोक डालीं थी 
उसमें कीलें .

ज़रूरी था इन सबको 
ताबूत में रखना 
क्यों कि 
मरे हुए को 
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता ...

73 comments:

रेखा श्रीवास्तव 3/23/2011 4:36 PM  

ऐसा होता है अक्सर जिन्दगी में और हममें से कितने ऐसा ही करते आ रहे हैं. सभ्यता और संस्कृति परिष्कृत हो हो रही है लेकिन न अहसास बदलते हैं और न सपनों के टूटने का सिलसिला . सब कुछ वैसे ही चल रहा है पता नहीं दुनियाँ बदली कहाँ है? और किसके लिए बदली है? हर १० में से ८ लोगों कि नियति तो कुछ ऐसा ही दिखा रही है.

Sadhana Vaid 3/23/2011 4:39 PM  

उफ़ ! कितना दर्द भरा है इन पंक्तियों में ! संवेदनाएं कभी नहीं मरतीं ! उन्हें मरना भी नहीं चाहिये औए मरने दीजियेगा भी मत ! संवेदनाविहीन मनुष्य पाषाण की तरह हो जाता है और प्रस्तर प्रतिमाएं सिर्फ संग्रहालयों में अच्छी लगती हैं घरों में नहीं ! बहुत ही खूबसूरत रचना है अपने दिल के हाल जैसी ! बधाई स्वीकार करें !

सदा 3/23/2011 4:47 PM  

दिल को छूते शब्‍दों के साथ ..बेहतरीन शब्‍द रचना ।

ashish 3/23/2011 4:51 PM  

अगर संवेदना मर गयी तो इस निस्पृह जीवन का क्या मतलब . कविता की पंक्तिया एक मनःस्थिति को दर्शाती है जब इन्सान नैराश्य के भंवर में झूल रहा हो . पता नहीं कहाँ और कैसे आप इतना सोच जाती हो . असर कर गयी .

रश्मि प्रभा... 3/23/2011 5:16 PM  

mann ke tabut mein rakhi jati hain yaaden ... kya pata kisi khaali kshanon mein unki zarurat ho jaye , ek naye anubhaw ke liye
per aaj
सारी संवेदनाओं को लपेट दिया है कफ़न में ,और साथ में रख दिया है मन के ताबूत में अपनी सारी ख्वाहिशों को, ख्यालात को, खुशी को, जज़्बात को, या यूँ कहूँ किसारे एहसासात को और फिर तुमने अपने शब्दों के हथौड़े से ठोक डालीं उसमें कीलें ... vyatha ki charam seema !

संजय भास्‍कर 3/23/2011 5:16 PM  

सारी ख्वाहिशों को, ख्यालात को, खुशी को, जज़्बात को, या यूँ कहूँ किसारे एहसासात को और फिर तुमने अपने शब्दों के हथौड़े से ठोक डालीं थी उसमें कीलें
बहुत ही सुन्‍दर भावमय करती पंक्तियां ...लाजवाब प्रस्‍तुति ।

संजय भास्‍कर 3/23/2011 5:17 PM  

रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|
कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

राजेश उत्‍साही 3/23/2011 5:43 PM  

अंतिम कील ठोकने से पहले एक बार जरूर देख लें,शायद किसी संवेदना की सांस अब भी चल रही हो।

shikha varshney 3/23/2011 6:15 PM  

राजेश उत्साही जी की बात पर गौर करें.
जाने क्या क्या सोच लेती हो.
कविता उच्च कोटि की है ..पर ये भाव....आपकी कलम से मुझे अच्छे नहीं लगते.सॉरी.:(

kshama 3/23/2011 6:43 PM  

Aah! Ye kaisa dard ufan aaya hai!!

विभूति" 3/23/2011 7:10 PM  

bhut hi dard bhari panktiya hai aam jindgi aur logo ke bilkul kareeb... har sabd har kisi ke dil ka haal kahta hai...

Kailash Sharma 3/23/2011 8:03 PM  

ज़रूरी था इन सबको
ताबूत में रखना
क्यों कि
मरे हुए को
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता ...

अहसास और संवेदनाओं को कहाँ दफ्न कर पाते हैं ताबूत में..इनके बिना जीवन का क्या अस्तित्व रह जाता है..हरेक पंक्ति अंतस को छू जाती है.बहुत मार्मिक रचना..आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) 3/23/2011 8:10 PM  

सभी पाठकों का हृदय से आभार ...


आप सभी सच कह रहे हैं कि संवेदनाएं खत्म नहीं होतीं ...यदि हो जातीं तो शायद यह पंक्तियाँ भी नहीं लिखी जातीं ...किसी भी इंसान की समस्त भावनाएं सबके प्रति कभी खत्म नहीं हो सकतीं ....लेकिन कोई ऐसा लम्हा आता है कि किसी एक के प्रति उसकी समस्त भावनाएं दम तोड़ दें .

....यहाँ भी मैंने केवल कील ठोकने वाले के प्रति सारी संवेदनाओं की बात लिखी है ...
ऐसा तो हो सकता है न :)

राजेश उत्साही जी की बात का विशेष ख़याल रखूंगी ..यदि कोई साँस बाकी हुई तो ज़रूर चाहूंगी कि दम न निकले :):)

फिर से एक बार आभार

राजकुमार सोनी 3/23/2011 8:23 PM  

संगीता जी
नमस्कार. आप जितने विविध विषयों पर लिखती है उसका मुकाबला थोड़ा मुश्किल है.
अच्छी कविता है. विचलित कर देने वाली.

सम्वेदना के स्वर 3/23/2011 8:28 PM  

संगीता दी,
कविता बार बार पढने को मजबूर करती है... और जितना पढें उतना ही उदास कर जाती है... सिर्फ एक शब्द काफी होते हैं सारी संवेदनाओं और तमाम भावों को दफ़न कर देने के लिए..
आपके स्वभाव के विपरीत भाव, लेकिन दिल को छूते हुए!!

Vaanbhatt 3/23/2011 9:21 PM  

abhi dafan karna baaki hai mere dost...keelein taboot ke jharokhon ko nahin rok payengi...aap ki sanvednayen to jivit rahengi hi...achchha kiya, taboot main rakha...jalaya nahin...

amit kumar srivastava 3/23/2011 9:27 PM  

itnaa dard....parantu khoobsoorat..rachna..

Dr (Miss) Sharad Singh 3/23/2011 9:28 PM  

आज मैंने
सारी संवेदनाओं को
लपेट दिया है
कफ़न में ,
और साथ में
रख दिया है
मन के ताबूत में
.......
और फिर
तुमने अपने
शब्दों के हथौड़े से
ठोक डालीं थी उसमें कीलें .....


इस एक कविता में जीवन का पूरा आख्यान लिख दिया आपने...

शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी मार्मिक रचना ....

हार्दिक बधाई...साधुवाद !

DR.ASHOK KUMAR 3/23/2011 9:36 PM  

बहुत खूबसूरत कविता हैँ ।
मन के एहसासोँ की अच्छी अभिव्यक्ति हुई हैँ। आभार संगीता दी ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 3/23/2011 9:53 PM  

होली के बाद इतनी मार्मिक रचना!
मगर है बहुत बढ़िया!

रूप 3/23/2011 10:05 PM  

अपनी सारी
ख्वाहिशों को,
ख्यालात को,
खुशी को,
जज़्बात को,
या यूँ कहूँ कि
सारे एहसासात को
और फिर तुमने
अपने शब्दों के
हथौड़े से
ठोक डालीं थी
उसमें कीलें .

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति . दिल की गहराइयों से ओमदे(umde) जज्बात हैं शायद. अति प्रभावी !

प्रवीण पाण्डेय 3/23/2011 10:12 PM  

कितना भी चाह लें पर यादें मरती नहीं है, पीड़ा सहने की आदत डाल लीजिये, सताना बन्द कर देंगी।

केवल राम 3/23/2011 10:38 PM  

क्यों कि
मरे हुए को
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता ...!

पूरा जीवन दर्शन समाहित कर दिया इन पंक्तियों में ...!

mridula pradhan 3/23/2011 10:43 PM  

udasi aur dard mishrit yah kavita dil ko choo gayee....

Sushil Bakliwal 3/23/2011 10:44 PM  

मार्मिक अनुभूतियां दर्शाती चिंतनशील रचना । आभार...

Dr Varsha Singh 3/23/2011 10:47 PM  

आंतरिक पीड़ा की सहज अभिव्यक्ति.....

शिखा वार्ष्णेय जी से सहमत हूँ.. कि कविता उच्च कोटि की है ..पर ये भाव....आपकी कलम से मुझे अच्छे नहीं लगते.

प्रतिभा सक्सेना 3/23/2011 11:01 PM  

बहुत भावमय अभिव्यक्ति -
संवेदनाएं मरती नहीं -मर-मर कर जी उठती हैं .

Er. सत्यम शिवम 3/23/2011 11:02 PM  

मन की पीड़ा के क्षण को कितने सुंदर शब्द दिया है आपने...विवशता को जताया है आज के भौतिकवादी परिवेश में...भाव से भरी हुई बहुत ही सुंदर रचना.....धन्यवाद।

Rajesh Kumar 'Nachiketa' 3/23/2011 11:07 PM  

बहुत संवेदनशील....

Taru 3/23/2011 11:30 PM  

हम्म...मम्मा...

अव्वल तो संवेदनाएं महज कागज़ में दफनाई होंगी आपने....दिल का कोई गुब़ार निकालकर..मगर हकीकत में भी जब ऐसी संवेदनाएं आप दफना रही होंगी तो कहीं नए एहसास और नयी संवेदनाएं भी तो आकार ले ही रही होंगी ना......उनका परिणाम या अंजाम फिर जो भी हो...वो तो वक़्त ही तय करेगा....

मगर मैं सहमत हूँ आपकी बातों से भी और नज़्म की तासीर से भी......कभी कभी दफनाना भी चाहिए.....और आपने नज़्म में तरीके से क़ायदे se ही ताबूत में एहसास रखें हैं..so we दुबारा ज़रूर जन्मेंगे.........नई..???

और जैसा आपने कहा...किसी एक शख्स के लिए एहसास ख़त्म हो जाना...ये भी लाज़मी ही है...हम्म..फिर भी एक उम्मीद बाक़ी हमेशा रहती है...सामने वाला बंदा अपने अच्छे बर्ताव और पश्चाताप से एक दफे फिर एहसास के बीज दिल में बो सकता है...बशर्ते हम उसे मौक़ा दें रिश्ते के पौधे सींचने का.....है ना मम्मा...:) ?

हालाँकि नज़्म का स्याह रंग मेरा पसंदीदा है....फिर भी आप अच्छा अच्छा या फिर उग्र ही likha करें....:)

खुश रहें मम्मा....

नज़्म ke liye मुबारक़बाद है आपको.....

:):)

अनामिका की सदायें ...... 3/23/2011 11:31 PM  

samvaidna ke swar me swar milana chahungi.

thos keel thok di aapne bhi rachna ke tehet.

राज भाटिय़ा 3/23/2011 11:34 PM  

आज तो मन के तार बज उठे आप कि मार्मिक रचना पढ कर

वाणी गीत 3/24/2011 6:26 AM  

मरी हुई संवेदनाओं को दफनाने तक तो ठीक था ,किसी विशेष कारणों से हो तो ...
जरुर किसी विशेष परिस्थिति में ही ऐसा हुआ होगा ...
वरना संवेदनाओ के बिना कविता कैसे बनती !

दर्शन कौर धनोय 3/24/2011 11:38 AM  

ज़रूरी था इन सबको
ताबूत में रखना
क्यों कि
मरे हुए को
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता...

सुन्दर शेली सुन्दर भावनाए क्या कहे शब्द नही है तारीफ के लिए ..

दर्शन कौर धनोय 3/24/2011 11:38 AM  
This comment has been removed by the author.
ZEAL 3/24/2011 12:38 PM  

बेहद संवेदनशील रचना ।

Aruna Kapoor 3/24/2011 1:03 PM  

....मन के आक्रोश को कविता के माध्यम से रुबरु कराना वाकई कठीन होता है...लेकिन लगता है आपके लिए यह आसान है संगीताजी!..अति सुंदर रचना!...

Anita 3/24/2011 1:08 PM  

...इतनी जल्दी भी ठीक नहीं है, क्योंकि कारण कोई भी हो दुखी होने पर नुकसान तो आपका ही होगा, सो हंसें और हंसाएं ! मत फसें और मत फसायें !

डॉ. मोनिका शर्मा 3/24/2011 8:52 PM  

ज़रूरी था इन सबको
ताबूत में रखना
क्यों कि
मरे हुए को
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता

बेहतरीन अभिव्यक्ति.... गहन अभिव्यक्ति

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') 3/24/2011 10:02 PM  

आदरणीय संगीता दी,
कई बार पढ़ गया रचना को...
संकेतों के घने होते शैवाल की वज़ह से पानी (रचना) में आई अपारदर्शिता नज़रों और मन को मोह लेती है.... इस अपारदर्शिता से कुछ प्रश्न भी झांकते हैं .... अनुत्तरित से....
अद्भुत अभिव्यक्ति है...
सादर...

रानीविशाल 3/24/2011 10:36 PM  

Dil pe paar nikalti sanvednaaen...bahut gahan abhivyakti.

पूनम श्रीवास्तव 3/25/2011 6:20 AM  

sangeeta di
bahut hi gahre jajbaat liye ek samvedan sheel prastuti jo man ko bhauk kar gai .aapne bilkul sahi likha hai ki----

ज़रूरी था इन सबको
ताबूत में रखना
क्यों कि
मरे हुए को
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता
bahut hi dil me gahre chhap chhodti khoob surat abhivyakti
poonam

Kunwar Kusumesh 3/25/2011 1:54 PM  

झकझोरने में समर्थ.
भावों से लबरेज़.

शोभना चौरे 3/26/2011 12:39 PM  

नई सवेद्नाओ के लिए पुरानी का दफन होना ही ठीक है ,वरना जीवन को गति कैसे मिलेगी |
हर रात की सुबह होती ही है |

Akhilesh 3/26/2011 2:02 PM  

बहुत ही खूबसूरत रचना है| परन्तु भावो की सुगंध और आवाज दोनों को कैद कर सके ऐसा कोई ताबूत दिल बना सकता नहीं|अगर बना सकता तो उसे दिल कोई कहता नहीं|

इतनी खूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद|

Patali-The-Village 3/26/2011 2:10 PM  

अद्भुत अभिव्यक्ति है| इतनी खूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद|

Unknown 3/27/2011 7:51 PM  

सारी संवेदनाओं को लपेट दिया है कफ़न में ,और साथ में रख दिया है मन के ताबूत में अपनी सारी ख्वाहिशों को, ख्यालात को, खुशी को, जज़्बात को, या यूँ कहूँ किसारे एहसासात को और फिर तुमने अपने शब्दों के हथौड़े से ठोक डालीं उसमें कीलें .....

बहुत ही खूबसूरत रचना, बधाई

महेन्‍द्र वर्मा 3/27/2011 7:54 PM  

जीवन में ऐसे अवसर कभी-कभी आ जाते हैं जब ख़्वाब, ख़्वाहिश, जज़्बात, अहसास मरण को प्राप्त होते हैं। लेकिन इनका पुनर्जन्म भी हो जाता है। यह चक्र चलता रहता है और यही जीवन है।
मर्मस्पर्शी कविता।

गिरिजा कुलश्रेष्ठ 3/28/2011 5:13 PM  

संगीता जी कविता दिल को छू गई । जो आशाओं व खुशियों का केन्द्र हो और वही कीलें ठोके तो साँसों की परवाह रह ही किसे जाती है । खूबसूरत अभिव्यक्ति ।

Shikha Kaushik 3/28/2011 6:09 PM  

sangeeta ji bahut hi gahan bhavon ko aapne shabdob ke madhyam se prakat kiya hai .
aapne meri kavita ke us ansh ko 'abhidha' me le liya hai .ye panktee maine ''lakshyarth 'likhi hain .purush stri ka sada se yah kahkar uphas udata raha hai ki stri ki akl ghutnon me hoti hai isiliye maine likha hai ki tumahri akl to ghutnon me nahi fir tumne kaise yah dushkarm kar dala .

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" 3/29/2011 9:06 PM  

अपनी सारी
ख्वाहिशों को,
ख्यालात को,
खुशी को,
जज़्बात को,
या यूँ कहूँ कि
सारे एहसासात को
और फिर तुमने
अपने शब्दों के
हथौड़े से
ठोक डालीं थी
उसमें कीलें .

waah....bahut dard hai rachna me...


bahut bahut bahut sunder!!!

Anonymous,  3/29/2011 9:12 PM  

bahut khoob
shandar poem

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Asha Joglekar 3/30/2011 11:12 AM  

न न संगीता जी ये अहसास ही तो हैं जो हमें ऊर्जा देते हैं इन्हें ताबूत में न रखें । जमाना तो तैयार ही है कील ठोकने के लिये ।
दर्दभरी कविता ।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " 3/30/2011 3:57 PM  

सशक्त मार्मिक अभिव्यक्ति ....
पूरी की पूरी रचना दिल पर दस्तक देने में समर्थ |

Udan Tashtari 4/01/2011 2:13 AM  

बहुत संवेदनशील रचना...अद्भुत

Arvind Mishra 4/01/2011 8:24 AM  

"मरे हुए को
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता ."
और अगर यह होता तो
मरे हुए को
यूँ ही नहीं छेड़ा नहीं जाता .:)

विनोद कुमार पांडेय 4/02/2011 8:24 AM  

बढ़िया अभिव्यक्ति...बधाई..

Suman 4/02/2011 2:01 PM  

bahut badhiya rachna ........

ज्योति सिंह 4/02/2011 10:47 PM  

और फिर तुमने
अपने शब्दों के
हथौड़े से
ठोक डालीं थी
उसमें कीलें .
waah bahut khoob .

Rakesh Kumar 4/03/2011 3:50 PM  

बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
भारत के विश्व कप जीतने की बहुत बहुत बधाई.

شہروز 4/03/2011 4:22 PM  

umda!!! mubarakbad lijiye dil se!!

Anonymous,  4/03/2011 11:59 PM  

एकदम सही कहा संगीता जी, "मरे हुए को यूँ ही नहीं छोड़ा जाता..." उनको तो दफनाना ही पड़ता है वरना सड़ने लगते हैं.. फ़िर वो चाहे रिश्ते हों या अहसास या फ़िर इंसान... मरे हुओं को साथ लेकर नहीं चला जाता... कुछ उदास लेकिन बहुत ही संवेदनशील रचना

virendra sharma 4/04/2011 1:24 AM  

Mare hue ko yoon hi nahi chhodaa jaataa dfn kiyaa jaataa hai man kee atal gehraaiyon me .
veerubhai .

Vijuy Ronjan 4/04/2011 10:42 AM  

Dukhi ho gaya main...aaj ki duniya mein bhawnaon ka koyi kadra nahi...rishtey yun hi bik rahe aur khwahishon ko dafn kiya jaa raha...

aapke ek ek shabd aaj ki sachhayi ko ujagar karte hain...rishton ko jeene ki khatir,ham roz yun hi marte hain...

दिगम्बर नासवा 4/04/2011 1:51 PM  

जज्बातों पर ठकी अंतिम कील ... बहुत गहरी और संवेदनशील रचना ...

Amrita Tanmay 4/04/2011 11:06 PM  

aah! hriday ekbargi kabragaag ban gaya...dard bhi dafan ho gaya..

Amrita Tanmay 4/04/2011 11:09 PM  

aah! hriday ekbargi kabragaag ban gaya...dard bhi dafan ho gaya..

Akshitaa (Pakhi) 4/05/2011 9:21 AM  

यह तो बहुत सुन्दर गीत है..अच्छा लगा यहाँ आकर.

Aruna Kapoor 4/05/2011 2:59 PM  

हर रिश्ता
जीने के लिए
उसमें ज़रूरी है
एक झरोखे का होना .


...रिश्ते को कायम रखने के लिए यह अत्यंत जरुरी है!...बेहतरीन रचना!

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) 4/06/2011 5:44 PM  

ज़रूरी था इन सबको
ताबूत में रखना
क्यों कि
मरे हुए को
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता ...

bahut hi marmsprshi rachna di ...bhavnayen ander tak dastak deti hun hain....

निर्झर'नीर 4/15/2011 1:54 PM  

aapki kavitaon ki tariif mumkin nahi hai yun chand shabdon mein sirf mehsoos ki ja sakti hai in shabdon mein simte bhavoN ki khushbu ..baad ki dono kavitayen bhi purmanii hai hamesha ki tarah ..tippani nahi kar pata hun lekin har kavita ko padhta jaroor hun .

Anju Purohit 7/12/2011 9:51 AM  

ज़रूरी था इन सबको
ताबूत में रखना
क्यों कि
मरे हुए को
यूँ ही नहीं छोड़ा जाता ...

khoobsoorat..

अभिव्यक्ति....

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