नन्हा दार्शनिक
>> Thursday, March 3, 2011
भावनाओं को सहेज
जब भी चाहती हूँ
उन्हें शब्दों में उकेरना
तो सुनाई दे जाती है
नन्हे की उआं उआं
छिन्न - भिन्न हो जाता है
सारा शब्द जाल
और मैं
मोहपाश में बंधी
उठा लेती हूँ उसे गोद में .
जब हो जाता है चुप वो
तो कयास लगाती हूँ
कि - याद आ रही थी दादी की
और यदि रोता रहता है तो
कह देती हूँ -
गुस्सा है दादी से
हम ऐसे ही ज़िंदगी भर
लगाते रहते हैं कयास
अपने मन- माफिक
बच्चे के साथ बतियाते हुए
लगता है कि
सबसे ज्यादा दार्शनिक
एक बच्चा होता है
अच्छी - बुरी बातों से अनभिज्ञ
जिसको जो सोचना है सोचे
कहीं भी एक टक देखते हुए
कभी भी मुस्कुरा दिया ,
तो कभी मुँह बिसूर दिया
दुनिया के छल - प्रपंच से रहित
गर बनना है दार्शनिक तो
एक बच्चा बन कर देखो ..
.
69 comments:
वाह संगीता जी ... आपने तो दादी का कार्यभार भी उठाया और नन्हे के लिए इतनी सुन्दर कविता लिख दी... कितनी प्यारी दादी है प्यारे से नन्हे की... कल चर्चामंच के लिए आपकी यह कविता का चयन कर रही हूँ... सादर
Kahte hain na,ki, mool se byaaj pyaaraa!To ab aapki ye pyaaree rachana bata rahee hai ki,aapka jeevan ab kiske atraaf me ghoom raha hai!
हम्म...मम्मा.....अब तो कविताओं का रंग बदल गया आपकी........कम से कम बेबी को तो बख्श दीजिये...अभी से उसे दार्शनिक बना दिया......:D
खैर.....अच्छी लगी कविता..:)
sahej ke rakhiyega कविताओं को achhe से....aur us din ki baby ki pic bhi le lijiyega.......badhiyaan sa album ban jayega..:D........:):)
chaliye pranaam Mumma....:)
बच्चे और बूढे एक समान दार्शनिक होते हैं, और शायद कवि भी। सच्ची कविता..... अच्छी कविता।
अब चली है दादी की कलम.'रचना का सुख'-एक जीवंत रचना के क्रियाकलापों से जुड़ना ,जीवन की सबसे प्राणमयी रचना है ,सबसे चैतन्य और साकार भी .
अपने बच्चों के साथ इतना अधिक और इतना अचानक आ पड़ा दायित्व बोध होता है कि विमूढ़ कर देता है .असली आनन्द तो मूल के इस ब्याज में है ,संगीता जी !
:) दादी जी को प्रणाम इस उम्दा रचना के लिए.
नन्हे मुन्ने बेटू जी ने कैसा अधिकार जमा लिया है आपके चेतन अवचेतन पर इसका प्रमाण है आपकी यह कविता ! बहुत ही प्यारी है ! सच में नन्हा सा बेबी जब अनायास ही आपको देख कर मुस्कुरा देता है तो उस पल में आप स्वयम को सारे संसार का शहंशाह समझने लगते हैं और ऐसे ही जब मूड खराब हो जाये औए लाख जतन करने पर भी चुप ना हो तो कितना असहाय, निरुपाय, निरीह और कातर से हो जाते हैं हम ! लगता है आजकल सारी प्रेरणा का स्त्रोत बेटूजी ही हैं ! आशा है आप अब पूरी तरह स्वस्थ होंगी ! बेटू जी को ढेर से शुभाशीष एवं आपको अनेकानेक शुभकामनायें !
मन की उड़ान और उसे शब्द देने की चाह कहाँ छूटती है ...इस व्यस्तता ने भी कविता लिखवा ही ली ...
सबसे बड़ा दार्शनिक होता है बच्चा ...एक बच्चा बन कर देखो ..
ये ख्याल भी कम दार्शनिकनुमा नहीं !
बहुत अच्छी लगी आपकी कविता -
जितनी कोमल और निश्छल बच्चे की मुस्कान होती है वैसी ही कोमल और मन को छूती हुई रचना - नन्हें बेटू को मेरा प्यार दें .-
बधाई .
बहुत सुन्दर रचना!
दादी का प्यार पोते के लिए रचना में भी उमड़ आया है!
शिशु का बहुत-बहुत आशीर्वाद!
वाह , आज सुबह ही बन गई , बच्चो की किलकारी जीवन की तमाम परेशानियों पर भारी. देखिये ना उसने आपको दार्शनिक भी बना दिया और हम पढ़कर दर्शनिया रहे है .
हम ऐसे ही ज़िंदगी भर
लगाते रहते हैं कयास
अपने मन- माफिक
betu ki unaa ne bhi pyaare khyaal de diye
bohot bohot bohot pyaari kavita hai dadi....aur sach, sabse bada daarshnik ek nanha baccha hi hota hai....bohot acchi lagi mujhe ye kavita, ise save karke rakhungi....luv u
and give my love to mu little brother :)
dadiiiiiii............uhun uhun.....
ye taru aapke blog par aati hai, daddy ke par bhi jaati hai....main unka profile ni access kar pa rahi....use bolo na to allow me on her profile
बच्चों के साथ जी भर के बचपना जी लेना चाहिए। जितना हो सके। ज़िन्दगी की सबसे बड़ी खुशी यहीं है।
दुनिया के छल - प्रपंच से रहित
गर बनना है दार्शनिक तो
एक बच्चा बन कर देखो ..
betu ke saath milkar apne khoob achchi kavita rachi hai...
ये दार्शनिकता तो मन को भा गयी दादी पोते की…………नये नये विचारो को जन्म दे रहा है दादी के साथ्…………अब तो खूब नये नये अन्दाज़ की कवितायें पढने को मिलेंगी…………बेहद खूबसूरत भाव समेटे है कविता मे …………बहुत मन भायी।
बहुत ही प्यारी रचना .....सुन्दरता से मन के भाव संजोये हैं....... दादीजी :)
बहुत ही सुन्दर भाव हैं इस रचना के ..बेहतरीन प्रस्तुति ।
बहुत सुंदर और एकदम सच्ची सुच्ची कविता !
भावों को बड़े सलीके से संजोया है आपने.सुन्दर कविता.
'सबसे ज्यादा दार्शनिक एक बच्चा होता है'क्योंकि बच्चे का मासूम रूप भगवान की याद दिलाता है .
चर्चा मंच से आपकी पोस्ट पर आना हुआ ,बहुत अच्छा लगा दादी जी की प्यारी प्यारी अनुभूति से परिचय करके .मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा '
पर आपका स्वागत है .
बच्चे में है भगवान, बच्चा जीवन की शान.
गीता इसमें, बाईबल इसमें, इसमें है कुरान..
दुनिया के छल - प्रपंच से रहित गर बनना है दार्शनिक तो एक बच्चा बन कर देखो ...
वाह क्या खूब जीवन दर्शन व्यक्त किया है दो पंक्तियों में..बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना..आभार
Steek Observation!
sundar
वाह संगीता जी ...इत्ती सुन्दर कविता...
इसका श्रेय तो बेटू जी को है...
आदरणीया संगीता जी ,
' वात्सल्य रस ' साक्षात् खेल रहा है | असली जीवन दर्शन तो यहीं है |
हम ऐसे ही ज़िंदगी भर
लगाते रहते हैं कयास
अपने मन- माफिक
बच्चे के साथ बतियाते हुए
लगता है कि
सबसे ज्यादा दार्शनिक
एक बच्चा होता है
अच्छी - बुरी बातों से अनभिज्ञ
जिसको जो सोचना है सोचे
कहीं भी एक टक देखते हुए
कभी भी मुस्कुरा दिया ,
बहुत सुन्दर !!
कई बार कोशिश की थी सिर्फ बच्चा बने रहने की, पर आस-पास न जाने कब, कोई-न-कोई, मुझे हर बार उस दुनिया से निकाल लाता है...
पर चलिए... आज के बाद बच्ची ही बनी रहूँगीं...
तभी तोः
मेरे दिल के किसी कोने में एक मासूम सा बच्चा
बड़ों की देखकर दुनिया, बड़ा होने से डरता है!!
bahut sundar.....
नन्हे मुन्ने बेटू जी पर बहुत सुन्दर रचना!
बहुत सुंदर रचना ... दादी को बधाई इस सुंदर रचना के लिए :)
बच्चे जैसी निश्छलता व निर्मलता किसी दार्शनिक को मिल जाये तो दर्शन पूर्णता पा जायेगा।
वाह दादी हो तो ऐसी। उसकी मुस्कान आँसूओं मे भी दर्शन ढूँढ लेती है। सच मे जब तक इन्सान बच्चा है तब तक ही निश्छल है। बहुत सुन्दर भावमय रचना। बधाई।
बहुत अच्छी कविता
नन्हे की उआं उआं
ye chaar shabd ek dum se dimag ko chhoo gaya di...:)
yaad aa gaya mujhe bhi apne bete ka pareshan karna..:)
bahut khub!!
अरे वाह उआं उआं ..............चित्र और कविता बहुत सुंदर ...
शिशु और दादी का संवाद तथा दादी का कयास अति खूबसूरत है. आशा है आगे भी ऐसा ही संवाद और कयास सुनने को मिलता रहेगा. दादी की दार्शनिकता प्रभावशाली है.
नन्हे मुन्ने के लिए प्यारीसी सुन्दर्सी रचना..बहुत सुन्दर अह्सास जगाती है!...धन्यवाद!
गर बनना है दार्शनिक तो
एक बच्चा बन कर देखो ...
दादी बन्ने का आनंद ले रही हैं आप ... और ठीक भी है ... ये पल दुबारा नहीं आते ...
बच्चों के साथ जब हम चार पल गुजारते हैं तो जिंदगी के सारे फलसफे बड़ी मासूमियत के साथ समझ आने लगते हैं ।
सचमुच एक नन्हा शिशु दार्शनिक ही होता है। मौन, दीन-दुनिया से बेफ़िक्र, स्वयमेव हंसना-रोना...।
दार्शनिकों के सारे लक्षण शिशु में होते हैं।
आपके पोते को बहुत-बहुत प्यार।
कितने प्यारे प्यारे एह्सास आ रहे है ना आज्कल. बस अब इन्त्जार है प्यारी प्यारी कविताओ का. दादी का प्यार उमद रहा है. सुन्दर कविता.:)
संगीता दी बहुत अच्छी कविता है. बचपन सा निश्छल मोहक और चंचल कुछ भी तो नहीं होता है.
bahut sunder....
is padvi ne aapko daarshnik bana diya .itni badhiya rachna hai ki iske liye naati ko badhai dena chahiye jo muk hokar bhi aapki madd kar raha .ek naye ahsaas se jod diya nanhe ne .
दार्शनिक मुबारक हो।
बेहद प्यारी कविता |बहुत बहुत बधाई आपको नई पुस्तक प्रकाशित करने के लिए
आशा
दुनिया के छल - प्रपंच से रहित गर बनना है दार्शनिक तो एक बच्चा बन कर देखो ...
सुन्दर कविता, वात्सल्य रस के भाव संजोये प्यारे से नन्हे की.कविताओं का रंग बदल गया संगीता जी, शुभकामनायें, दादी को बधाई
वाकई ...
इनसे अच्छा कोई नहीं इनसे सच्चा कोई नहीं ...
इनकी स्म्रतियां सहेज कर रखना दादी माँ ! आपके जीवन की वेशकीमती यादें यही रहेंगी ! शुभकामनायें !
आज मंगलवार 8 मार्च 2011 के
महत्वपूर्ण दिन अन्त रार्ष्ट्रीय महिला दिवस के मोके पर देश व दुनिया की समस्त महिला ब्लोगर्स को सुगना फाऊंडेशन जोधपुर की ओर हार्दिक शुभकामनाएँ..
संगीता जी, बहुत सुन्दर कविता !
पुस्तक प्रकाशित होने के अवसर पर ढेरों बधाइयाँ !
सुन्दर कविता, वात्सल्य रस के भाव संजोये .
बधाई .
:) :)
प्यारी सी कविता
एक बच्चा होता है
अच्छी - बुरी बातों से अनभिज्ञ
जिसको जो सोचना है सोचे
कहीं भी एक टक देखते हुए
कभी भी मुस्कुरा दिया ,
तो कभी मुँह बिसूर दिया
दुनिया के छल - प्रपंच से रहित
गर बनना है दार्शनिक तो
एक बच्चा बन कर देखो ..
आद. संगीता जी,
इन चंद पंक्तियों में आपने पूरे जीवन का सार उड़ेल कर रख दिया !
आभार !
महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
सही है। एक बच्चे से बड़ा दार्शनिक दूसरा नहीं होता। बड़े-बड़े दार्शनिकों ने कहा है...वर्तमान में जीयो। एक बच्चा ही वर्तमान में जी पाता है।
नन्हे दार्शनिक का क्या नाम रखा संगीता जी ?
प्लूटो , अरस्तु , सुकरात ?
सही कहा...बच्चा बनकर देखो...
ममतामयी दादी के ह्रदय का स्नेह इस सुन्दर रचना में छलक छलक कर बाहर आ रहा है...
कोमल मुग्धकारी रचना...
संगीता जी ,, बच्चे को दार्शनिक बना दिया ,,, क्या खूब उपाधि दी है .. great ... कल ही गाना सुन रही थी , बच्चे मन के सच्चे .,.. सारे जग की आँख के तारे ... ये वो नन्हे फूल हैं जो भगवान् को भी लगते प्यारे ... तो जब भगवान् को ही प्यारे लगते हैं तो फिर आप तो दादी हैं , .. so sweet ....
वात्सल्य और दर्शन...
सत्य है कि एक नन्हें बच्चे से ज्यादा काबिल शिक्षक दुनिया में कोई नहीं हो सकता जिसके 'उआं उआं' और 'हीहीही' में दुनिया के तमाम दर्शन और ज्ञान गुम्फित होते है....
आपके मन में अद्भुत कविता का बीजारोपण करने वाले नन्हें फ़रिश्ते को सलाम...
बहुत बहुत धन्यवाद और टोकरा भर
कर शुभकामनाये .
सम्माननीया संगीता जी ये बाल मन और दार्शनिकता का गठबंधन बड़ी ही खूबसूरती से किया आप ने -सच इतना एकाग्र और दार्शनिक बनना है तो बच्चे सा मन बनाना ही चाहिए
कहीं भी एक टक देखते हुए
कभी भी मुस्कुरा दिया ,
तो कभी मुँह बिसूर दिया
दुनिया के छल - प्रपंच से रहित
गर बनना है दार्शनिक तो
एक बच्चा बन कर देखो ..
साधुवाद
सबसे ज्यादा दार्शनिक
एक बच्चा होता है
अच्छी - बुरी बातों से अनभिज्ञ
जिसको जो सोचना है सोचे
कहीं भी एक टक देखते हुए
कभी भी मुस्कुरा दिया ,
तो कभी मुँह बिसूर दिया
इसी लिए तो माँ के अंदर का भगवान बच्चों का विशेष ख्याल रखता है| बच्चे होते मन के सच्चे...और सत्य ईश्वर का ही एक नाम है उनकी ही एक विभूति है| बचपन ही सबसे अच्छा समय होता है - हम निश्छल होते है और सबकी आँख के तारे भी |
Today is good poorly, isn't it?
bahut sunder....
गर बनना है दार्शनिक तो एक बच्चा बन कर देखो ... दादी बन्ने का आनंद ले रही हैं आप ... और ठीक भी है ... ये पल दुबारा नहीं आते ...
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