घने शैवाल
>> Thursday, March 10, 2011
मन के समंदर में
न जाने कितने
घने शैवाल हैं
दिखते तो नहीं
पर ढकी है
पूरी तलहटी
इनके फैलाव से
मेरे अंतर्मन का सच भी
जैसे छिप सा गया है
मोती भरे सीप भी
दिखते नहीं आज -कल
तुम तैरना तो जानते हो
पर गोताखोर नहीं हो
शैवालों में उलझ
लौट आते हो
बार - बार साहिल पर
काश होते गोताखोर तो
ढूँढ ही लाते कोई मोती
जिसे देख मेरे मन पर
छाई शैवाल की परत
कुछ तो हल्की होती .
85 comments:
शैवालों का सतही चिकनापन और अन्दर का मोती, वाह।
ढूँढ ही लाते कोई मोती
जिसे देख मेरे मन पर
छाई शैवाल की परत
कुछ तो हल्की होती
आपकी रचनाएँ हमेशा कुछ अलग ही सोचने को विवश करती हैं..... सुंदर रचना
बेहतरीन बिम्ब
मन के समंदर में न जाने कितने घने शैवाल हैं दिखते तो नहीं पर ढकी है पूरी तलहटी इनके फैलाव से मेरे अंतर्मन का सच भी जैसे छिप सा गया है मोती भरे सीप भी दिखते नहीं
सुंदर भाव मन के -
यथार्थ से बहुत समीप अतिसुंदर रचना ..!!
बहुत प्यारी रचना ....शुभकामनायें आपको !
संगीता जी बेहद ही सुन्दर रचना....बधाई!
रचनाकार पर आकर मेरी कविता को पढ़्नें और अपनी प्रतिक्रिया देनें के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
सीप सुधारस ले रहे पीउ न खारा नीर
मांही मोती निपजै दादू बंद शरीर ॥
सुदर कविता
आभार
mann ka sach jane kin shaiwalon ke piche rah jata hai... her roj hatao, phir ug aate hain , ...per kalam , ishwarpradatt shabd sach ko hans ki tarah chug hi late hain
आपकी कल्पना की इस गोताखोरी से हमे तो अमूल्य कविता पढने को मिली . शैवाल तो तब तक ही सतह पर रहते है जब तक बरसात ना हो .मन प्रफुल्लित हुआ ,
वाह संगीता जी ,
मोती की खोज सार्थक होगी !जब जान लिया है उनका होना तो डूब-डूब कर खोजे बिना चैन कहाँ !
नितांत मौलिक और अनोखे बिम्ब ढूँढ कर लाने आपका कोई जोड़ नहीं है संगीता जी ! अद्भुत रचना है यह ! ना जाने कितने दिलों के समंदर की व्यथा को शब्द दे दिए हैं आपने जो आज भी अपने मन की सीपियाँ निकालने के लिये उस छाई शैवाल की परतों से उलझ रहे हैं ! बहुत सुन्दर रचना है ! मेरी बधाई स्वीकार करें ! आभार !
तुम तैरना तो जानते हो
पर गोताखोर नहीं हो
शैवालों में उलझ
लौट आते हो
बार - बार साहिल पर
...Ati sundar rachana se aapne rubru karayaa hai!...dhanyawaad!
wah.मन के समंदर में
न जाने कितने
घने शैवाल हैं
bahut hi saralta ke saath man ke bhaw ubharkar aaye hain.
यह शैवाल ही तो हमें निश्चिन्त जीवन देने की प्रेरणा देते हैं!
मन के समंदर में
न जाने कितने
घने शैवाल हैं
दिखते तो नहीं
पर ढकी है
पूरी तलहटी ....
बहुत ही सुन्दर भावमय करती पंक्तियां ...लाजवाब प्रस्तुति ।
ओह! क्या बात कही है और बेहतरीन बिम्ब प्रयोग्…………बडी गहरी बात कितनी सरलता से कह दी…………बहुत सुन्दर रचना दिल को छू गयी।
संगीता जी, हमारे मन का समन्दर तो बहुत गहरा है और शैवाल तो ऊपर ऊपर ही है आपको मोती मिलें और ऐसे ही सुंदर गीत रूपी मोती आप बाँटती भी रहें ! आभार और शुभकामनाएँ!
तुम तैरना तो जानते हो
पर गोताखोर नहीं हो
पूरी रचना कहीं इन्हीं दी पंक्तियों के बीच मिली मुझे ... :)
तुम तैरना तो जानते हो
पर गोताखोर नहीं हो
bas puri rahcha inhi 2 panktiyon simat si gayi lagti he!
sundar kavita!
सघन अनुभूति की अभिव्यक्ति।
रचना में बिम्बों का उत्तम प्रयोग।
गोताखोर होते तो ढूंढ ही लाते मोती ...
मन के भीतर अथाह परते हैं कितना कुछ छुपा रहता है इसमें ...कहाँ आसान है इसे ढूंढ लाना ..
शैवाल , मोती ...अनोखे अनूठे बिम्ब !
मन की थाह लेना आसान काम नहीं है.
यह काम कुछ विशिष्ट लोग ही कर पाते हैं. आप विशिष्ट है.
बहुत ही शानदार रचना है.
आपको बधाई
सुन्दर रचना,संगीता जी !
बेहतरीन , सुन्दर रचना....बधाई!
man ki thah to wo gotakhor hi paa sakte hain...jo gahre paani paith...shival ko kuredo to moti mil sakte hain...pr shaival ki tah tak jana padta hai...ati sundar rachna...
मन के अंदर गोता लगाने के लिए गोताखोरी सीखनी पड़ेगी। सच बात है जिन खोजा तिन पाईयां,गहरे पानी पैठ।
इस बेहतरीन और प्यारी रचना के लिए बधाई!
gahan anubhoot bhavon ki sundar abhivyakti..
rachna ka ek-ek shabd moti sa...
शैवाल की पर्त -- दिल पर इसका प्रयोग कमाल का लगा। बहुत सुन्दर भावमय रचना। बधाई।
सुन्दर नये प्रतीकों वाली सुन्दर रचना । बधाई ।
उसी तलहटी में
जो ढक ली आज
तुमने अपने ही
विचारों के शैवाल से..
वहीँ कहीं...
ध्यान से देखना
सीप के मोती
दबे हैं कहीं.
गोताखोर नहीं वो,
बखूबी जानते थे
तो खुद भी
कुछ प्रयास किये होते
तो दोनों तरफ की
शैवाल ख़तम हो जाती
और पा जाते कुछ
सुंदर मोती तुम भी
और वो भी.
मन के समंदर में
न जाने कितने
घने शैवाल हैं
दिखते तो नहीं
पर ढकी है
पूरी तलहटी
इनके फैलाव से .......
मर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण काव्यपंक्तियों के लिए कोटिश: बधाई !
बेहद सुन्दर कविता --मन को छूने वाली अनुभूति --
ढूँढ ही लाते कोई मोती
जिसे देख मेरे मन पर
छाई शैवाल की परत
कुछ तो हल्की होती---
काश होते गोताखोर तो
ढूँढ ही लाते कोई मोती
जिसे देख मेरे मन पर
छाई शैवाल की परत
कुछ तो हल्की होती ....
रचना में भावाभिव्यक्ति बहुत अच्छी है ...बधाई.
आदरणीय संगीता जी , सादर प्रणाम
आपके बारे में हमें "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" पर शिखा कौशिक व शालिनी कौशिक जी द्वारा लिखे गए पोस्ट के माध्यम से जानकारी मिली, जिसका लिंक है...... http://www.upkhabar.in/2011/03/jay-ho-part-2.html
इस ब्लॉग की परिकल्पना हमने एक भारतीय ब्लॉग परिवार के रूप में की है. हम चाहते है की इस परिवार से प्रत्येक वह भारतीय जुड़े जिसे अपने देश के प्रति प्रेम, समाज को एक नजरिये से देखने की चाहत, हिन्दू-मुस्लिम न होकर पहले वह भारतीय हो, जिसे खुद को हिन्दुस्तानी कहने पर गर्व हो, जो इंसानियत धर्म को मानता हो. और जो अन्याय, जुल्म की खिलाफत करना जानता हो, जो विवादित बातों से परे हो, जो दूसरी की भावनाओ का सम्मान करना जानता हो.
और इस परिवार में दोस्त, भाई,बहन, माँ, बेटी जैसे मर्यादित रिश्तो का मान रख सके.
धार्मिक विवादों से परे एक ऐसा परिवार जिसमे आत्मिक लगाव हो..........
मैं इस बृहद परिवार का एक छोटा सा सदस्य आपको निमंत्रण देने आया हूँ. यदि इस परिवार को अपना आशीर्वाद व सहयोग देने के लिए follower व लेखक बन कर हमारा मान बढ़ाएं...साथ ही मार्गदर्शन करें.
आपकी प्रतीक्षा में...........
हरीश सिंह
संस्थापक/संयोजक -- "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" www.upkhabar.in/
अलग से विचारों से परिचय कराती हैं आपकी कविता ......
मम्मा.....
ज़्यादा उम्मीद बांध ली शायद कविता की नायिका ने.....जो गोताखोर नहीं है....फिर भी बार बार मन की गहराई में डूबने चला आता हो......क्या वो खुद एक मोती नहीं है???
:)
बहरहाल......
सुंदर लगी कविता..और उसका ख्याल.......
बधाई मम्मा.....
(ashaa है आप खैरियत se hain !!
dhyaan rakhiyega ~!)
बहुत ही खुबसुरत रचना, धन्यवाद
सुन्दर कविता.बधाई स्वीकार करें!
rachana ka tartamya kalpnano ke vihangam path se sukhad anubhutiyon ki taraf le jata hua sundar laga .
aabhar
सुन्दर शांदों को पिरोया भाव के धागे से....बढ़िया.
काश होते गोताखोर तो
ढूँढ ही लाते कोई मोती
सुंदर ,अतिसुंदर
सार्थक प्रस्तुति, बधाईयाँ !
बहुत ही खूबसूरत रचना, आपकी लेखनी बहुत कम लफ्जों में बहुत बड़ी बात कह जाती है|
काश होते गोताखोर तो
ढूँढ ही लाते कोई मोती
जिसे देख मेरे मन पर
छाई शैवाल की परत
कुछ तो हल्की हो .........
kashmakash bhari rachna.
गोताखोर...इस शब्द से जीवन के एक प्रमुख दर्शन को बखूबी चित्रित किया गया है। गोता लगाने की प्रेरणा देती हुई एक सुंदर रचना।
man ki parte ughadti sunder kavita..
bahdia..
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
आपके गहन चिंतन मनन और नए बिम्बों के साथ ये कविता प्यारी लगी.
बहुत ही खुबसुरत रचना| धन्यवाद|
बस मन मुग्ध होकर रह गया आपकी दृष्टि और प्रभावशाली अभिव्यक्ति पर...
क्या कहूँ....
लाजवाब !!!!
वाह..क्या खूब लिखा है आपने।
बहुत प्यारी रचना !
jivan darshan bhi aur suchchai bhi..
बहुत सुन्दर कविता...बधाई.
__________________
पाखी के मामा जी को मिला बेस्ट जिला कलेक्टर का अवार्ड.
शैवालों के पर्दे में छिपे मोती और उनको खोजने वाला गोताख़ोर.. कमाल के सिम्बल इस्तेमाल किये हैं संगीता दी!!
......यह कवित्व ही है जो घने अन्धकार में भी प्रकाश का विश्वास बनाए रखता है...और शांत होकर, प्रकाश की प्रतीक्षा कर सकता है.इसलिए कवि की सत्ता सार्वभौम एवं सर्वोच्च है.....
........मन पर शैवाल का अस्तित्व - बोध एक भ्रम मात्र है..
काश होते गोताखोर तो
ढूँढ ही लाते कोई मोती
जिसे देख मेरे मन पर
छाई शैवाल की परत
कुछ तो हल्की होती
कविता पाठकों के मनोभावों के साथ तादात्म्य स्थापित करने में सफल है।
ढूँढ ही लाते कोई मोती
जिसे देख मेरे मन पर
छाई शैवाल की परत
कुछ तो हल्की होती
Moti to Ek aur shewal sab aur faila hua mushkil to hogi . Badhiya abhiwyakti
इनके फैलाव से मेरे अंतर्मन का सच भी जैसे छिप सा गया है
बहुत गहरी बात कही है |
सुन्दर कविता |
मन के समंदर में कितने घने शैवाल हैं वाकई पता नहीं चलता जब तक सूक्ष्म अवलोकन न हो मन का.चेतन,अवचेतन सुषुप्त आदि परत दर परत.खोजी गोताखोर ही मोती भरे सीप देख पाता है मन के समंदर में .'जिन खोजा तिन पाईयां,गहरे पानी पैठ'
ढूँढ ही लाते कोई मोती
जिसे देख मेरे मन पर
छाई शैवाल की परत
कुछ तो हल्की होती
bahut sundar rachana!
बहुत सुन्दर भाव लिए रचना |बधाई
आशा
नए और अनोखे प्रतीकात्मक लहजे में
कही गयी बहुत सुन्दर रचना ...
मन की अथाह गहराईयों तक उतारते हुए लफ्ज़
अपनी कथा स्वयं ही कह रहे हैं
अभिवादन .
मन के समंदर में
न जाने कितने
घने शैवाल हैं
दिखते तो नहीं
पर ढकी है
पूरी तलहटी
इनके फैलाव से
मेरे अंतर्मन का सच भी
जैसे छिप सा गया है
मोती भरे सीप भी
दिखते नहीं आज -कल
तुम तैरना तो जानते हो
पर गोताखोर नहीं हो
शैवालों में उलझ
लौट आते हो
बार - बार साहिल पर
काश होते गोताखोर तो
ढूँढ ही लाते कोई मोती
जिसे देख मेरे मन पर
छाई शैवाल की परत
कुछ तो हल्की होती .
पूरी रचना बहुत ही खूब.कुछ भी छोड़ दूं तो नाइंसाफी होगी.
सलाम.
मन के समंदर में / न जाने कितने / घने शैवाल हैं / दिखते तो नहीं / पर ढकी है / पूरी तलहटी
एकदम सही कहा संगीता जी! मन के समंदर के शैवाल दिखते नहीं हैं लेकिन उनसे ढंकी रहती है हमारी सम्पूर्ण विचारधारा और सम्पूर्ण ज़िंदगी
आद दी, काश मैं गोताखोर होता... रचना के घने शैवालों में फंसे व्यथा के अदृश्य मोती को ढूंड पाता...
रचना का सुदृढ़ संयोजन बांध लेता है... आभार..
सादर.
संगीता जी सुंदर कविता के लिए बधाई ,होली की शुभकामनाएं |
sangeeta di
aapjo bhi likhti hain bahut alag sa,behatreen.
jinko samjhne ke liye bahut hi gahan bhav ki jarurat hoti hai,aur aapko usme maharat haasil hai.
मन के समंदर में न जाने कितने घने शैवाल हैं दिखते तो नहीं पर ढकी है पूरी तलहटी इनके फैलाव से
haqikat ko darshati gahri abhivykti.
aabhar
poonam
हर किसी कि चाहता होती है कि वो गोताखोर मिले जो उसके हर शैवाल, हर मोती की कोमलता को समझे...
बहुत ही सुन्दर... कुछ अलग सी रचना...
ढूँढ ही लाते कोई मोती
जिसे देख मेरे मन पर
छाई शैवाल की परत
कुछ तो हल्की होती
आत्म-मंथन सा प्रेरक है।
निरामिष: शाकाहार : दयालु मानसिकता प्रेरक
असली गोताखोर तो आप हो. जाने कैसे भावों के गहरे सागर में डुबकी लगा कर शब्दों के मोती ढूंढ लाती हो.
बहुत बहुत बहुत सुन्दर और गहरी पंक्तियाँ...पता नहीं कैसे लिख लेती हो ऐसा ..
संगीता जी,
गहरे पानी पैठने को कहती हुई कविता सुन्दरता में अपनी बात कहती है कि मोती की खोज किसी की किस तरह शैवाल हटाती है दूसरी ओर। न्यूटन भी यही कहे हैं कि हर एक क्रिया की ठीक विपरीत प्रतिक्रिया होती है।
मुझे चर्चामंच में स्थान देने का विशेष शुक्रिया।
होली की आप सभी को रंगारंग मुबारकबाद........
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
काश होते गोताखोर तो
ढूँढ ही लाते कोई मोती
जिसे देख मेरे मन पर
छाई शैवाल की परत
कुछ तो हल्की होती .
lajwaab .....!!
ढूँढ ही लाते कोई मोती
जिसे देख मेरे मन पर
छाई शैवाल की परत
कुछ तो हल्की होती
ati sundar .holi ki badhai aapko .
आप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.
सादर
सुंदर रचना,बेहतरीन बिम्ब ...
आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!
होली की शुभ अवसर पर आपको ,समस्त परिवार को और सभी ब्लोगर जन को हार्दिक शुभ कामनाएँ.
होली का त्यौहार आपके सुखद जीवन और सुखी परिवार में और भी रंग विरंगी खुशयां बिखेरे यही कामना
आपको और समस्त परिवार को होली की हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएँ ....
शैवाल के पीछे मोती
यकीनन कोई गोताखोर ही ढूँढ पायेगा.
सुन्दर रचना
vaaha bahut badhiya......
khoobsurat panktiyaan hain
aadarniya Sangita Di,
aapko padhne ka mauka abhi tak kam hi mil paya hai..aaj aapke blog tak pahuncha hu..jitna padha utna man prasann ho gaya..adbhud hain aapki rachnayen...bahut bahut abhar..
.
मेरे अंतर्मन का सच भी
जैसे छिप सा गया है
मोती भरे सीप भी
दिखते नहीं आज -कल ...
मन के विचारों की खूबसूरत बयानगी ।
.
Bimbo ko sundar prayog... behad khubsurat rachana
काश होते गोताखोर तो
ढूँढ ही लाते कोई मोती
जिसे देख मेरे मन पर
छाई शैवाल की परत
कुछ तो हल्की होती .
संगीता जी नमस्कार -उपर्युक्त पंक्तियाँ बहुत सुन्दर बन पड़ी हैं गहराई में डुबोती हुयी अगर वो डूब पाता तो शायद इस अंतर्मन को भांप जाता
शुभ कामनाये आप अपने इस हार में यों ही मोती पिरोती रहें
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
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