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आवारा से ख्वाब

>> Wednesday, April 27, 2011


आवारा से ख्वाब 
कभी भी चले आते हैं 
आँखों में 
चाहती हूँ कि 
कर लूँ बंद 
हर दरवाज़ा 
और न आने दूँ 
ख़्वाबों को 
लेकिन इनकी 
आवारगी ऐसी है 
कि बंद पलकों में भी 
समा जाते हैं 
घबरा कर 
खोल देती हूँ किवाड 
जो बामुश्किल 
बंद किये थे 
और वो ख्वाब 
तरल आँखों में 
बादल बन 
करते रहते हैं 
अठखेलियाँ 
जब तक 
बरस नहीं जाते 
लेते नहीं 
जाने का नाम
और जाते भी कहाँ हैं ?
बस खेलते हैं 
लुका -  छिपी 
और मैं 
देखती  रह जाती हूँ 
आवारगी ख़्वाबों की. 



69 comments:

shikha varshney 4/27/2011 3:30 PM  

यही आवारा ख्वाब ही तो जीने का संबल हैं.शुकर है आपका कहना नहीं मानते और अपनी मर्जी से आ जाया करते हैं.
बहुत ही सुन्दर कविता हमेशा की तरह.

vandana gupta 4/27/2011 3:36 PM  

बहुत ही सुन्दर विचारों की माला बनाई है……………मन को छूती अभिव्यक्ति।

ब्लॉ.ललित शर्मा 4/27/2011 3:41 PM  

हमने तो जी किवाड़ ही उतार कर रख दिए, अब चाहे कोई आए और जाए।

शानदार अभिव्यक्ति
आभार

ashish 4/27/2011 3:49 PM  

ख्वाबों की आवारगी ही तो अभिव्यक्ति के लिए कच्चा मॉल है , लाख किवाड़ बंद करें कोई ख्वाब तो आँखों में चले ही आते है . सुँदर ख्वाब सी अभिव्यक्ति .

Sadhana Vaid 4/27/2011 4:11 PM  

सुकोमल, सुकुमार सी मनमोहक रचना ! इन ख़्वाबों की यही ढिठाई नींद के आगोश में लुढ़क जाने के लिये प्रेरित करती है ! वरना तो अब सोने से भी डर लगता है ! बहुत प्यारी रचना बधाई !

Anupama Tripathi 4/27/2011 4:22 PM  

ख्वाब कह रहा है ...
कोई मुझसे मेरी आवारगी न ले ..
मुझे आदत है इन्हीं आखों में समां जाने की ....!!

बहुत सुंदर रचना ....!!

Er. सत्यम शिवम 4/27/2011 4:36 PM  

बहुत ही सुंदर मनोभावों को समेटे..मनभावन रचना।

मनोज कुमार 4/27/2011 4:43 PM  

कविता का कथ्य मन के भीतर की बतों को कुशलतापूर्वक बयां करते हैं।
*
*
खाब तो बंद आंखों से ही दिखते हैं ...!

ZEAL 4/27/2011 4:44 PM  

Lovely creation with beautiful imagination .

सदा 4/27/2011 4:48 PM  

वाह ... बहुत ही खूबसूरत शब्‍दों का संगम इस रचना में ।

Yashwant R. B. Mathur 4/27/2011 4:52 PM  

बेहतरीन लिखा है आपने.

सादर

shobhana 4/27/2011 5:17 PM  

बहुत सुन्दर |उन्मुक्त भाव |

Suman 4/27/2011 5:52 PM  

ख्वाब न होते तो जीना मुश्किल हो जाता !
बहुत सुंदर....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 4/27/2011 6:01 PM  

हाँ जी!
आपने बहुत ही बढ़िया रचना पोस्ट की है!
--
मैंने भी उच्चारण पर एक स्वप्निल रचना ही लगाई है आज☻

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " 4/27/2011 6:25 PM  

बहुत ही सरल-सहज ढंग से ह्रदय के गहनतम भावों की अभिव्यक्ति......

आदरणीया संगीता जी ,

कविता तो यही है !

सुज्ञ 4/27/2011 6:34 PM  

ख्बाबों की अद्भुत तुलना!!
एक स्वपनील अनुभूति !!

ला-जवाब रचना!!

गौरव शर्मा "भारतीय" 4/27/2011 7:12 PM  

वाह बेहतरीन भावाभिव्यक्ति...आभार

Kailash Sharma 4/27/2011 7:32 PM  

बस खेलते हैं
लुका - छिपी
और मैं
देखती रह जाती हूँ
आवारगी ख़्वाबों की....

बहुत खूब! ख्वाब कहाँ पीछा छोडते हैं और इनकी यह आवारगी ही तो जीने को प्रेरित करती है..बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति..आभार

Satish Saxena 4/27/2011 8:24 PM  

ख्वाब मुझे अच्छे नहीं लगते ...वे अक्सर हकीकत नहीं बन पते ! शुभकामनायें !!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') 4/27/2011 8:46 PM  

आदरणीय संगीता दी खुबसूरत अभिव्यक्ति है... पर दी...
"कुछ ख्वाब डराते हैं सच है, पर क्यों किवाड़ें बंद करें
जीवन की सूनी राहों में भी, ये ही तो आनंद भरें।
चुभते जो आँखों में उनको भावों में गूँथ पिरो ले हम
कुछ आंसू बनते हैं नगमें, और साँसों में मकरंद भरें।"
(क्षमा सहित) सादर...

रश्मि प्रभा... 4/27/2011 8:49 PM  

आवारा से ख्वाब
कभी भी चले आते हैं ... इनसे खेलती हूँ , अनगिनत ख्वाहिशें कोपलों की तरह उग आती हैं .... है न ?

Apanatva 4/27/2011 9:05 PM  

bahut sunder abhivykti.....inke bina bhee jeevan me soonapan hee rahega..... ha na ?

ati sunder

Patali-The-Village 4/27/2011 9:06 PM  

मन को छूती अभिव्यक्ति। धन्यवाद|

निवेदिता श्रीवास्तव 4/27/2011 9:30 PM  

ख़्वाबों की ख़ूबसूरती ही यही है कि हर बंधन खुदबखुद टूट जाते हैं ....बहूत सुन्दर अभिव्यक्ति....आभार !

डॉ. मोनिका शर्मा 4/27/2011 9:56 PM  

इन्हीं ख्वाबों से जीवन रोज़ नयी उड़ान भरता है....... उत्कृष्ट रचना

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' 4/27/2011 10:01 PM  

ख्वाब हों तो उन्हें पूरा करने का ताना-बाना बुनने की कवायद होती है...बहुत अच्छी रचना.

राज भाटिय़ा 4/27/2011 10:04 PM  

बस खेलते हैं
लुका - छिपी
और मैं
देखती रह जाती हूँ
आवारगी ख़्वाबों की.
बहुत खुब जी अति सुंदर ख्वाब.

Sushil Bakliwal 4/27/2011 10:18 PM  

बगैर इजाजत चले आते हैं इसीलिये ख्वाब कहलाते हैं.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने 4/27/2011 11:11 PM  

संगीता दी!
अब तो लगता है कि ख़्वाबों पर आपने पूरा रिसर्च कर रखा है.. कभी गिना है कि कितनी नज्में लिखी हैं आपने ख़्वाबों पर??
शायद ही ख़्वाबों का कोई पहलू बचा हो आपकी नज़र से.. यह भी लाजवाब!!

Dr Varsha Singh 4/27/2011 11:49 PM  

भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण ....
सुन्दर वैचारिक प्रस्तुतिकरण...
हार्दिक शुभकामनायें।

M VERMA 4/28/2011 5:11 AM  

और शायद ख्वाबों/बादलों की यही लुका-छिपी जीवन का सत्य है.

Rakesh Kumar 4/28/2011 8:50 AM  

खबाबों की आवारगी को देखना आसान काम नहीं.
द्रष्टा बनने की साधना करनी पड़ती है इसके लिए.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

KK Yadav 4/28/2011 10:38 AM  

आवारा से ख्वाब

कभी भी चले आते हैं ...इन ख्वाबों का अपना अलग ही आनंद है. सुन्दर रचना ..बधाई.

Khare A 4/28/2011 10:49 AM  

लेकिन इनकी
आवारगी ऐसी है
कि बंद पलकों में भी
समा जाते हैं

main aksar hi aapkopadhta hun, bakai aap ki kavitaye ek dams e alga hi hoti hain, sehaj ji wo bat aaap chupke se keh jati hain, aur wo bhi bahu kam shabdon me!

Dr (Miss) Sharad Singh 4/28/2011 12:19 PM  

और वो ख्वाब
तरल आँखों में
बादल बन
करते रहते हैं
अठखेलियाँ
जब तक
बरस नहीं जाते ......

बहुत ही हृदयस्पर्शी कविताएं लिखती हैं आप... आपकी यह कविता भी लाजवाब है...

आनंद 4/28/2011 1:21 PM  

जब तक
बरस नहीं जाते
लेते नहीं
जाने का नाम
और जाते भी कहाँ हैं ?
बस खेलते हैं
लुका - छिपी
और मैं
देखती रह जाती हूँ
आवारगी ख़्वाबों की....
..
दीदी इन्हें रोकना ...बस में नही है...बेहतर हे आप रोकने का प्रयास ही ना करें...छोर दें उन्मुक्त !!
प्रणाम दीदी !

Anita 4/28/2011 2:05 PM  

ख्वाब यदि कहना मान कर आने लगें तो उनकी जरूरत ही नही रह जायेगी, खूबसूरत रचना !

दिगम्बर नासवा 4/28/2011 3:41 PM  

Ye aawaara khwaab n hn jo jeena asaan nahi hoga ... bahut hi kamaal ka likha hai ...

Asha Joglekar 4/28/2011 6:23 PM  

ख्वाब ना हों तो जिंदगी क्या है । ख्वाब देखना और उन्हे पूरा करने की ललक में हर पल निछावर करना । तब ही तो बरस ते हैं ये ख्वाबों के बादल खुशी के आँसू बन कर । बहुत ही भाव भीनी रचना ।

Rachana 4/28/2011 7:25 PM  

awargi khvab ki kya baat hai spne ke bare me aesa sunder chitran shayad hi kisine kiya ho
rachana

रजनीश तिवारी 4/28/2011 8:53 PM  

जाते भी कहाँ हैं ?बस खेलते हैं लुका - छिपी ...ख़्वाब । बहुत सुंदर रचना ।

अनामिका की सदायें ...... 4/28/2011 8:55 PM  

har cheez apne control me rahe to fir zindgi ke maayne hi kuchh aur hon.

kavita ke zariye dil k bhaavo ka sunder chitran.

Vaanbhatt 4/28/2011 10:02 PM  

इन बादलों की लुका-छिपी में ही जिंदगी कट जाती है...आवारा ख्वाबों के पीछे भागते-भागते समय कब निकल जाता है पता नहीं चलता...

प्रवीण पाण्डेय 4/29/2011 10:03 AM  

यही आवारगी हमें नये विचारों से परिचय कराती है।

Aruna Kapoor 4/29/2011 3:27 PM  

वाह!..वाह!...बहूत ही सुन्दर प्रस्तुति!...एक भाव पूर्ण रचना...स्वागत है!

रंजना 4/30/2011 1:34 AM  

कितनी सरलता से कोमल भावों को अभिव्यक्ति दे दी आपने...

मनमोहक,अतिसुन्दर रचना...वाह !!!

Kunwar Kusumesh 4/30/2011 12:58 PM  

देखती रह जाती हूँ
आवारगी ख़्वाबों की.

climax बहुत अच्छा लगा.

हास्य-व्यंग्य का रंग गोपाल तिवारी के संग 4/30/2011 3:02 PM  

khwab ke bare mein likhi gayi kavita bahut achchhi hai. Par khwabon ke bina jivan adhoora bhi hai

पूनम श्रीवास्तव 4/30/2011 7:41 PM  

sangeeta di
ye khwaab hi to hote hain jo kabhi bhi kisi bhi waqt aankho me aakar tik jaate hain aur apni marji se hi jaate bhi hain .chahe aap lakh apni palk ko meench le par unhe aane se koi rok saka hai bhala
behatreen abhivykti
hardik badhai
poonam

विनोद कुमार पांडेय 5/01/2011 1:24 AM  

ख्वाब तो ऐसे ही होते हैं...बढ़िया भाव सुंदर रचना के लिए धन्यवाद

ZEAL 5/01/2011 7:30 AM  

I love to live in the world , full of dreams.

मदन शर्मा 5/01/2011 4:59 PM  

पहली बार आपके ब्लॉग पर आया अच्छा लगा!
बहुत सुंदर पंक्तियाँ...बहुत खुबसुरत भाव..शानदार!!
मन को छूती अभिव्यक्ति!!
ह्रदय से आभार ,इस अप्रतिम रचना के लिए...

mridula pradhan 5/01/2011 6:08 PM  

khwwab par bahut achcha likhin.......

ज्योति सिंह 5/01/2011 6:24 PM  

देखती रह जाती हूँ
आवारगी ख़्वाबों की.
waah kya kahne ,laazwaab ye bhi jaroori hai .nahi to aankhe sooni ho jaayengi .

वीना श्रीवास्तव 5/02/2011 7:15 PM  

बादलों की इन्हीं लुका-छिपी में जीवन के सारे रंग है....
बहुत सुंदर रचना...

जयकृष्ण राय तुषार 5/03/2011 6:07 AM  

आदरणीया संगीता जी पूरी कविता ही बहुत खूबसूरत है बधाई और शुभकामनाएं|

Akanksha Yadav 5/03/2011 1:45 PM  

ये ख्वाब भी न....आवारा ही होते हैं. सुन्दर प्रस्तुति...बधाई.

कुमार राधारमण 5/03/2011 4:42 PM  

ख़्वाबों का होना ज़रूरी है। उन्हें देख सकने वाली आंखें भी चाहिए। पूरी कायनात ख्वाबों का ही तो नतीज़ा है।

निर्मला कपिला 5/04/2011 8:19 AM  

बस खेलते हैं
लुका - छिपी
और मैं
देखती रह जाती हूँ
आवारगी ख़्वाबों की.
ये आवारगी भी कई बार बहुत सकून देती है सुन्दर रचना के लिये बधाई।

BrijmohanShrivastava 5/04/2011 11:32 AM  

सपनो का नम आंखेंा में तब तक खिलवाड करना जबतक कि वरस न जाये, रचना से मिलते चित्र । उत्तम रचना उत्तम चित्र

Urmi 5/04/2011 2:31 PM  

बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आकर सुन्दर कविता पढ़ने को मिला जिसके लिए धन्यवाद! !

निर्झर'नीर 5/05/2011 1:25 PM  

बादल बन
करते रहते हैं
अठखेलियाँ
जब तक
बरस नहीं जाते

कितनी कशिश है इन शब्दों में..
आपकी कविताओं की तारीफ़ में कुछ कहना तो अब ऐसा लगता है जैसे सूरज को दिया दिखाना ..

हाँ आपका मेरे ब्लॉग पे आना यक़ीनन मेरे लिए शौभाग्य की बात है

Anonymous,  5/07/2011 11:30 PM  

ख़्वाब बादल बन कर आँखों में..... वाह !! बेहद ख़ूबसूरत कल्पना..

Amrita Tanmay 5/20/2011 5:58 PM  

लाज़वाब प्रस्तुति...आवारा ख्वाब और लुका - छिपी ..

neha 5/23/2011 10:30 AM  

a vry beautiful thought with a gr8 presentation,loved evry line of it!!A big THANK YOU for visiting my blog.

Pushpendra Vir Sahil पुष्पेन्द्र वीर साहिल 6/08/2011 12:47 AM  

जो ख़्वाब ही तो न हों तो खालीपन शोर मचाने लगेगा....... बहुत ही खूबसूरत रचना...

Shaifali 8/21/2011 7:10 PM  

aisa lagta hai mere hi bhaav likh daale hai aapne....bahut hi jyada sundar.
Regards,
Shaifali
guptashaifali.blogspot.com

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