आवारा से ख्वाब
>> Wednesday, April 27, 2011
आवारा से ख्वाब
कभी भी चले आते हैं
आँखों में
चाहती हूँ कि
कर लूँ बंद
हर दरवाज़ा
और न आने दूँ
ख़्वाबों को
लेकिन इनकी
आवारगी ऐसी है
कि बंद पलकों में भी
समा जाते हैं
घबरा कर
खोल देती हूँ किवाड
जो बामुश्किल
बंद किये थे
और वो ख्वाब
तरल आँखों में
बादल बन
करते रहते हैं
अठखेलियाँ
जब तक
बरस नहीं जाते
लेते नहीं
जाने का नाम
और जाते भी कहाँ हैं ?
बस खेलते हैं
लुका - छिपी
और मैं
देखती रह जाती हूँ
आवारगी ख़्वाबों की.
69 comments:
यही आवारा ख्वाब ही तो जीने का संबल हैं.शुकर है आपका कहना नहीं मानते और अपनी मर्जी से आ जाया करते हैं.
बहुत ही सुन्दर कविता हमेशा की तरह.
बहुत ही सुन्दर विचारों की माला बनाई है……………मन को छूती अभिव्यक्ति।
हमने तो जी किवाड़ ही उतार कर रख दिए, अब चाहे कोई आए और जाए।
शानदार अभिव्यक्ति
आभार
ख्वाबों की आवारगी ही तो अभिव्यक्ति के लिए कच्चा मॉल है , लाख किवाड़ बंद करें कोई ख्वाब तो आँखों में चले ही आते है . सुँदर ख्वाब सी अभिव्यक्ति .
:)
सुकोमल, सुकुमार सी मनमोहक रचना ! इन ख़्वाबों की यही ढिठाई नींद के आगोश में लुढ़क जाने के लिये प्रेरित करती है ! वरना तो अब सोने से भी डर लगता है ! बहुत प्यारी रचना बधाई !
ख्वाब कह रहा है ...
कोई मुझसे मेरी आवारगी न ले ..
मुझे आदत है इन्हीं आखों में समां जाने की ....!!
बहुत सुंदर रचना ....!!
बहुत ही सुंदर मनोभावों को समेटे..मनभावन रचना।
कविता का कथ्य मन के भीतर की बतों को कुशलतापूर्वक बयां करते हैं।
*
*
खाब तो बंद आंखों से ही दिखते हैं ...!
Lovely creation with beautiful imagination .
वाह ... बहुत ही खूबसूरत शब्दों का संगम इस रचना में ।
बेहतरीन लिखा है आपने.
सादर
बहुत सुन्दर |उन्मुक्त भाव |
ख्वाब न होते तो जीना मुश्किल हो जाता !
बहुत सुंदर....
हाँ जी!
आपने बहुत ही बढ़िया रचना पोस्ट की है!
--
मैंने भी उच्चारण पर एक स्वप्निल रचना ही लगाई है आज☻
बहुत ही सरल-सहज ढंग से ह्रदय के गहनतम भावों की अभिव्यक्ति......
आदरणीया संगीता जी ,
कविता तो यही है !
ख्बाबों की अद्भुत तुलना!!
एक स्वपनील अनुभूति !!
ला-जवाब रचना!!
वाह बेहतरीन भावाभिव्यक्ति...आभार
बस खेलते हैं
लुका - छिपी
और मैं
देखती रह जाती हूँ
आवारगी ख़्वाबों की....
बहुत खूब! ख्वाब कहाँ पीछा छोडते हैं और इनकी यह आवारगी ही तो जीने को प्रेरित करती है..बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति..आभार
ख्वाब मुझे अच्छे नहीं लगते ...वे अक्सर हकीकत नहीं बन पते ! शुभकामनायें !!
आदरणीय संगीता दी खुबसूरत अभिव्यक्ति है... पर दी...
"कुछ ख्वाब डराते हैं सच है, पर क्यों किवाड़ें बंद करें
जीवन की सूनी राहों में भी, ये ही तो आनंद भरें।
चुभते जो आँखों में उनको भावों में गूँथ पिरो ले हम
कुछ आंसू बनते हैं नगमें, और साँसों में मकरंद भरें।"
(क्षमा सहित) सादर...
आवारा से ख्वाब
कभी भी चले आते हैं ... इनसे खेलती हूँ , अनगिनत ख्वाहिशें कोपलों की तरह उग आती हैं .... है न ?
bahut sunder abhivykti.....inke bina bhee jeevan me soonapan hee rahega..... ha na ?
ati sunder
मन को छूती अभिव्यक्ति। धन्यवाद|
ख़्वाबों की ख़ूबसूरती ही यही है कि हर बंधन खुदबखुद टूट जाते हैं ....बहूत सुन्दर अभिव्यक्ति....आभार !
इन्हीं ख्वाबों से जीवन रोज़ नयी उड़ान भरता है....... उत्कृष्ट रचना
ख्वाब हों तो उन्हें पूरा करने का ताना-बाना बुनने की कवायद होती है...बहुत अच्छी रचना.
बस खेलते हैं
लुका - छिपी
और मैं
देखती रह जाती हूँ
आवारगी ख़्वाबों की.
बहुत खुब जी अति सुंदर ख्वाब.
बगैर इजाजत चले आते हैं इसीलिये ख्वाब कहलाते हैं.
संगीता दी!
अब तो लगता है कि ख़्वाबों पर आपने पूरा रिसर्च कर रखा है.. कभी गिना है कि कितनी नज्में लिखी हैं आपने ख़्वाबों पर??
शायद ही ख़्वाबों का कोई पहलू बचा हो आपकी नज़र से.. यह भी लाजवाब!!
भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण ....
सुन्दर वैचारिक प्रस्तुतिकरण...
हार्दिक शुभकामनायें।
और शायद ख्वाबों/बादलों की यही लुका-छिपी जीवन का सत्य है.
खबाबों की आवारगी को देखना आसान काम नहीं.
द्रष्टा बनने की साधना करनी पड़ती है इसके लिए.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
आवारा से ख्वाब
कभी भी चले आते हैं ...इन ख्वाबों का अपना अलग ही आनंद है. सुन्दर रचना ..बधाई.
लेकिन इनकी
आवारगी ऐसी है
कि बंद पलकों में भी
समा जाते हैं
main aksar hi aapkopadhta hun, bakai aap ki kavitaye ek dams e alga hi hoti hain, sehaj ji wo bat aaap chupke se keh jati hain, aur wo bhi bahu kam shabdon me!
और वो ख्वाब
तरल आँखों में
बादल बन
करते रहते हैं
अठखेलियाँ
जब तक
बरस नहीं जाते ......
बहुत ही हृदयस्पर्शी कविताएं लिखती हैं आप... आपकी यह कविता भी लाजवाब है...
जब तक
बरस नहीं जाते
लेते नहीं
जाने का नाम
और जाते भी कहाँ हैं ?
बस खेलते हैं
लुका - छिपी
और मैं
देखती रह जाती हूँ
आवारगी ख़्वाबों की....
..
दीदी इन्हें रोकना ...बस में नही है...बेहतर हे आप रोकने का प्रयास ही ना करें...छोर दें उन्मुक्त !!
प्रणाम दीदी !
ख्वाब यदि कहना मान कर आने लगें तो उनकी जरूरत ही नही रह जायेगी, खूबसूरत रचना !
Ye aawaara khwaab n hn jo jeena asaan nahi hoga ... bahut hi kamaal ka likha hai ...
ख्वाब ना हों तो जिंदगी क्या है । ख्वाब देखना और उन्हे पूरा करने की ललक में हर पल निछावर करना । तब ही तो बरस ते हैं ये ख्वाबों के बादल खुशी के आँसू बन कर । बहुत ही भाव भीनी रचना ।
awargi khvab ki kya baat hai spne ke bare me aesa sunder chitran shayad hi kisine kiya ho
rachana
जाते भी कहाँ हैं ?बस खेलते हैं लुका - छिपी ...ख़्वाब । बहुत सुंदर रचना ।
har cheez apne control me rahe to fir zindgi ke maayne hi kuchh aur hon.
kavita ke zariye dil k bhaavo ka sunder chitran.
इन बादलों की लुका-छिपी में ही जिंदगी कट जाती है...आवारा ख्वाबों के पीछे भागते-भागते समय कब निकल जाता है पता नहीं चलता...
यही आवारगी हमें नये विचारों से परिचय कराती है।
वाह!..वाह!...बहूत ही सुन्दर प्रस्तुति!...एक भाव पूर्ण रचना...स्वागत है!
कितनी सरलता से कोमल भावों को अभिव्यक्ति दे दी आपने...
मनमोहक,अतिसुन्दर रचना...वाह !!!
देखती रह जाती हूँ
आवारगी ख़्वाबों की.
climax बहुत अच्छा लगा.
khwab ke bare mein likhi gayi kavita bahut achchhi hai. Par khwabon ke bina jivan adhoora bhi hai
sangeeta di
ye khwaab hi to hote hain jo kabhi bhi kisi bhi waqt aankho me aakar tik jaate hain aur apni marji se hi jaate bhi hain .chahe aap lakh apni palk ko meench le par unhe aane se koi rok saka hai bhala
behatreen abhivykti
hardik badhai
poonam
ख्वाब तो ऐसे ही होते हैं...बढ़िया भाव सुंदर रचना के लिए धन्यवाद
I love to live in the world , full of dreams.
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया अच्छा लगा!
बहुत सुंदर पंक्तियाँ...बहुत खुबसुरत भाव..शानदार!!
मन को छूती अभिव्यक्ति!!
ह्रदय से आभार ,इस अप्रतिम रचना के लिए...
khwwab par bahut achcha likhin.......
देखती रह जाती हूँ
आवारगी ख़्वाबों की.
waah kya kahne ,laazwaab ye bhi jaroori hai .nahi to aankhe sooni ho jaayengi .
बादलों की इन्हीं लुका-छिपी में जीवन के सारे रंग है....
बहुत सुंदर रचना...
आदरणीया संगीता जी पूरी कविता ही बहुत खूबसूरत है बधाई और शुभकामनाएं|
ये ख्वाब भी न....आवारा ही होते हैं. सुन्दर प्रस्तुति...बधाई.
ख़्वाबों का होना ज़रूरी है। उन्हें देख सकने वाली आंखें भी चाहिए। पूरी कायनात ख्वाबों का ही तो नतीज़ा है।
बस खेलते हैं
लुका - छिपी
और मैं
देखती रह जाती हूँ
आवारगी ख़्वाबों की.
ये आवारगी भी कई बार बहुत सकून देती है सुन्दर रचना के लिये बधाई।
सपनो का नम आंखेंा में तब तक खिलवाड करना जबतक कि वरस न जाये, रचना से मिलते चित्र । उत्तम रचना उत्तम चित्र
बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आकर सुन्दर कविता पढ़ने को मिला जिसके लिए धन्यवाद! !
एक भाव पूर्ण रचना,बहूत ही सुन्दर प्रस्तुति!
निरामिष: अहिंसा का शुभारंभ आहार से, अहिंसक आहार शाकाहार से
बादल बन
करते रहते हैं
अठखेलियाँ
जब तक
बरस नहीं जाते
कितनी कशिश है इन शब्दों में..
आपकी कविताओं की तारीफ़ में कुछ कहना तो अब ऐसा लगता है जैसे सूरज को दिया दिखाना ..
हाँ आपका मेरे ब्लॉग पे आना यक़ीनन मेरे लिए शौभाग्य की बात है
ख़्वाब बादल बन कर आँखों में..... वाह !! बेहद ख़ूबसूरत कल्पना..
लाज़वाब प्रस्तुति...आवारा ख्वाब और लुका - छिपी ..
a vry beautiful thought with a gr8 presentation,loved evry line of it!!A big THANK YOU for visiting my blog.
जो ख़्वाब ही तो न हों तो खालीपन शोर मचाने लगेगा....... बहुत ही खूबसूरत रचना...
aisa lagta hai mere hi bhaav likh daale hai aapne....bahut hi jyada sundar.
Regards,
Shaifali
guptashaifali.blogspot.com
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