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रिश्तों का गणित

>> Tuesday, January 15, 2013


मैंने 


मैंने 
रख दिया था 
हर रिश्ता 
अलग अलग 
कोष्ठ में 
और सोचा था 
कि
हल कर लूँगी 
रिश्तों के सवाल  
गणित की तरह 
पर रिश्ते कोई 
गणित तो नहीं 
निश्चित नहीं होता 
कि कौन सा  कोष्ठ 
कब खोलना है 
किसे गुणा करना है 
और 
किसे जोड़ना है 
बस 
करती रहती हूँ कोशिश 
कि 
रिश्तों के कोष्ठकों के 
मिल जाएँ सही हल 
और रिश्तों  का गणित 
हो जाए सफल ..



77 comments:

mridula pradhan 1/15/2013 10:53 AM  

hul ho jaye to zaroor bata dijiyega.....

Pratibha Verma 1/15/2013 10:53 AM  

बहुत सुन्दर ....बधाई ...

सदा 1/15/2013 10:56 AM  

रिश्तों का गणित
हो जाए सफल ..
... वाह अनुपम भाव संयोजन
आभार सहित

सादर

Suman 1/15/2013 11:19 AM  

मैंने एक पोस्ट में स्पष्ट किया था मुझे गणित बिलकुल समझ में नहीं आता था, बाप रे.....रिश्तों का गणित तो उस गणित से भी ज्यादा उलझा हुआ है हल ही नहीं होता :)
वैसे रिश्तों को गणित की पहेली की तरह देखने की जरुरत है क्या ? विज्ञानं की तरह देखिये प्रयोग कीजिये :)

प्रतिभा सक्सेना 1/15/2013 11:36 AM  

रिश्तों का गणित तो आपस में उलझा देगा - अलग-अलग खांचों में रखिये ,कोई ललित-लेख, कोई इतिहास ,कोई गृह-विज्ञान की पहेली भी ..!

रश्मि प्रभा... 1/15/2013 11:43 AM  

यूँ भी हिसाब में व्यावहारिकता में कमजोर , मोह में वशीभूत इसे कहाँ समझ पाता है - बस समझौता कर लेता है

महेन्द्र श्रीवास्तव 1/15/2013 11:56 AM  

बहुत सुंदर रचना
बहुत सुंदर

virendra sharma 1/15/2013 11:56 AM  

रिश्तों के समीकरण बराबर बेलेंस करने पड़ते हैं गुना भाग करके ,जमा घटा ,जोड़ तोड़ सब कुछ करना पड़ता है .सुन्दर रूपकात्मक अभिव्यक्ति .

vandana gupta 1/15/2013 11:57 AM  

रिश्तों का गणित समझना इतना आसान कहाँ …………उम्दा प्रस्तुति।

Aruna Kapoor 1/15/2013 12:13 PM  

अगर आपको रिश्तों को गणित के माध्यम से हल करने में सफलता मिल जाती है तो...यहाँ जरुर सूचित करिएगा संगीता जी!...मेरे जैसे जरुर लाभ उठाएंगे!

मेरा मन पंछी सा 1/15/2013 12:38 PM  

रिश्तों का गणित बहुत उलझा हुआ है..
कोशिश यही है की सवाल का हल मिले..
बहुत ही बढ़ियाँ रचना....
:-)

वाणी गीत 1/15/2013 12:43 PM  

गणित मेरा पसंदीदा विषय है ...वैसी ही यह कविता लग रही है , हालाँकि रिश्तों का गणित किसी तयशुदा फ़ॉर्मूले पर नहीं चलता !

Madan Mohan Saxena 1/15/2013 12:47 PM  

बेह्तरीन अभिव्यक्ति .बहुत सुन्दर.बधाई .

दिगम्बर नासवा 1/15/2013 1:20 PM  

वाह ... बेहद लाजवाब रचना ... रिश्तों के सवालों को सुलझाना आसान नहीं होता .. बस कोशिश ही करनी होती है लगातार अंतहीन ...

Unknown 1/15/2013 2:27 PM  

रिश्तों का गणित , बेह्तरीन अभिव्यक्ति .बहुत सुन्दर.बधाई

रविकर 1/15/2013 2:38 PM  

गजब अभिव्यक्ति-
प्रेरित करती हुई ||
सादर नमन दीदी ||

रविकर 1/15/2013 2:47 PM  

ठक ठक करके कोष्ठक, मँझला सँझला छोट |
रहे खोलते रात-दिन, पहले बड़का पोट |
पहले बड़का पोट, अंश हर वर्ग मूल थे |
पड़े दशमलव विन्दु, वह पर कुछ फिजूल थे |
जोड़-गाँठ में दक्ष, किन्तु रिश्तों का अहमक |
चक्रव्यूह के द्वार, भीम सा करता ठक ठक ||

Maheshwari kaneri 1/15/2013 3:04 PM  

रिश्तों का गणित समझना उतना आसान भी तो नही ...बहुत सुन्दर ,अनुपम भाव संजोए है इस गणित में..आभार

गिरधारी खंकरियाल 1/15/2013 3:04 PM  

एक भूलभुलैये की तरह घूमते रहते हैं।

आनंद 1/15/2013 3:09 PM  

दीदी आपके अनुभव मेरे काम आयेंगे ... क्योंकि कुछ रिश्ते तो हर कोई कोष्ठकों में बंद करके रखता ही है|
प्रणाम दी !

shikha varshney 1/15/2013 3:24 PM  

गणित कभी पसंदीदा विषय होता था, पर रिश्तों का यह गणित नहीं हल होता. क्या क्या उपमाएं लाती हो आप भी :).

Anju (Anu) Chaudhary 1/15/2013 3:45 PM  

रिश्तों का सुलझाव,गणित के हर सवाल से अधिक जटिल है

Madhuresh 1/15/2013 3:56 PM  

गणित ये है कठिन , लेकिन शायद प्रेम और श्रद्धा से ऊपर नीचे गुणा करने पर बहुत सुलझ जाती है। :)
बहुत ही सरल, सार्थक अभिव्यक्ति।
सादर
मधुरेश

डॉ. मोनिका शर्मा 1/15/2013 6:02 PM  

वाह , रिश्तों की भूल भुलैया पर एक अलग सी रचना .....

प्रवीण पाण्डेय 1/15/2013 7:17 PM  

जिसका मान निकाल रहे थे, वह अपूर्ण निकला..

देवेन्द्र पाण्डेय 1/15/2013 8:51 PM  

कोई सूत्र काम नहीं करता। प्रेम है कि रिश्तों में नहीं बंधता।

सूर्यकान्त गुप्ता 1/15/2013 8:55 PM  

रिश्तों का गणित ही अलग है ....

सुन्दर भाव ....आभार।

शिवम् मिश्रा 1/15/2013 10:02 PM  

मेरे हिसाब से सटीक तुलना की है आपने ... मुझे गणित भी काफी उलझता रहा है और कुछ रिश्ते भी !

चल मरदाने,सीना ताने - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Kailash Sharma 1/15/2013 10:46 PM  

सच में रिश्तों की गणित बहुत मुश्किल है हल करना..

ANULATA RAJ NAIR 1/15/2013 11:01 PM  

यूँ भी गणित पसंद नहीं थी...और ये रिश्तों की गणित भी न समझ आती है न हल होती है....नियमबद्ध कोई काम हमसे होते नहीं...
(आज तो दी आपने इम्तिहान ले डाला :)
सादर
अनु

Sadhana Vaid 1/16/2013 2:29 AM  

हर किसीके मन की उलझन को आपने सुन्दर रूपक में पिरो दिया है संगीता जी ! शायद सभी इन समीकरणों का हल जानने के लिए उत्सुक हैं मेरी ही तरह ! आपको जवाब मिल जाएँ तो एक पोस्ट उस पर भी ज़रूर लिखिएगा ! सबका भला हो जाएगा !

yashoda Agrawal 1/16/2013 8:34 AM  

अब सफल हो रहा है
ये गणित
अनगिनत हादसों के बाद
हर सही इन्सान
ने हल कर लिया है
और...दानव
न सुधरे हैं
न ही सुधरेंगे.....
सादर

ओंकारनाथ मिश्र 1/16/2013 9:36 AM  

रिश्तों का गणित वाकई बहुत उलझा होता है..सुन्दर रचना.

अशोक सलूजा 1/16/2013 12:57 PM  

काश!रिश्तों का गणित भी सफ़ल हो
कटे न नम्बर एक मिले पुरे सौ ..काश! ऐसा हो !

Harihar (विकेश कुमार बडोला) 1/16/2013 2:22 PM  

बहुत सुन्‍दर भावाभिव्‍यक्ति।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया 1/16/2013 3:11 PM  

रिश्तों की गणित हल करना आसान नही है,,
बहुत उम्दा भाव अभिव्यक्ति ,,,

recent post: मातृभूमि,

Anonymous,  1/16/2013 5:54 PM  

आपकी रचना पर कोई टिप्पणी करना सूर्य को दीपक दिखाना ही होगा , हम आपके सामने अभी बहुत छोटे है । आपसे और आपके लेखन से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा इस आशा के साथ आपको और आपके लेखन को सलाम करते है ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 1/16/2013 6:10 PM  

बस
करती रहती हूँ कोशिश
कि
रिश्तों के कोष्ठकों के
मिल जाएँ सही हल
और रिश्तों का गणित
हो जाए सफल ..
वाह, वाकई एक जटिल सवाल है सामने हल करने के लिए !

Ramakant Singh 1/16/2013 9:08 PM  

रिश्तों में कोई जोड़ घटाव गुणा भाग नहीं होता नहीं उसका वर्गमूल निकल जाता , रिश्तों को जिया जाता है ...

virendra sharma 1/16/2013 11:57 PM  

साधारण गुना भाग से सधते नहीं हैं रिश्तों की समीकरण .जोड़ तोड़ बनाने में तनी हुई रस्सी पे चलना पड़ता है .नट बनना पड़ता है .सुन्दर अभिव्यक्ति .आभार आपकी सद्य टिपण्णी के लिए .

जयकृष्ण राय तुषार 1/17/2013 4:51 AM  

बहुत ही सुन्दर सी कविता |रिश्तों की भी गणित बहुत उलझाती है |आभार

अनामिका की सदायें ...... 1/17/2013 11:20 AM  

rishton aur ganit ki gutthiyon par racha ye sameekaran sambhavtah prashansneey hai.

Anita 1/17/2013 1:01 PM  

रिश्ते तो गुलाब के फूल की तरह हैं..या बहती हुई धारा की तरह..तरल हैं.. इन्हें कैसे कोई कसौटी पे कस सकता है या समेट सकता है ..

Amrita Tanmay 1/17/2013 7:55 PM  

सुन्दर कहा है. .वैसे रिश्तों का गणित उलझा हुआ ही अच्छा लगता है ..

चला बिहारी ब्लॉगर बनने 1/17/2013 8:55 PM  

सुरक्षा और मोहब्बत के कोष्ठक में बंद रिश्ते सिर्फ एक गणित सूत्र से जुड़े होते हैं.. गुणा.. मल्टीप्लाई करते हैं संबंधों को..
आपकी कविता है तो इसमें अनोखापन होना ज़रूरी है दी!! :)

ankush chauhan 1/18/2013 1:25 PM  

बहुत सुन्दर रचना

kavita verma 1/18/2013 2:47 PM  

rishton ka ganit bahut pecheeda hota hai..

मनोज कुमार 1/19/2013 10:42 AM  

यह वह गणित है, जिसका समीकरण जितन सरल हो ठीक, वरना जटिलता से हल करने की कठिनाइयां बढ़ती ही जाती हैं।

Saras 1/19/2013 10:48 AM  

सच कहा संगीताजी ...ज़िन्दगी भर हम इसी जोड़ने घटाने में लगे रह जाते हैं...पर हल हमेशा बदले हुए मिलते हैं......अप्रतिम रचना ...!

Satish Saxena 1/19/2013 1:44 PM  

आप सफल हों ...
शुभकामनायें प्रयत्नों को !

शिवनाथ कुमार 1/19/2013 10:51 PM  

रिश्तों का गणित
आखिर इतना भी मुश्किल नहीं है
इंसानियत और अपनेपन का एक ही कोष्ठ हो तो काफी अच्छा हो ,,,

सादर आभार !

उड़ता पंछी 1/20/2013 9:07 AM  

छोटा मूँह और बड़ी बात करू तो माफ़ कर दीजियेगा

बस माँ के रिश्ते को छोड़ कर हर रिश्ता शर्तों से बंधा है
अगर शर्तों का हिसाब किताब बंद हो जाये तो गणित हल हो जाये !!

अपनी इस छोटी सी पंछी को अपना आशीष दीजिये तांकि वो भी गणित हल कर सके
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रचना दीक्षित 1/20/2013 11:46 AM  

रिश्तों का गणित सामान्य गणित से भी ज्यादा दुरूह है. इसे तो सुलझने का प्रयत्न उसे और उलझा जाता है.

Onkar 1/20/2013 4:51 PM  

सच कहा, रिश्तों का गणित.. मुश्किल है हल करना

Udan Tashtari 1/21/2013 7:10 AM  

सही गणित!!

virendra sharma 1/22/2013 9:48 AM  

.आभार आपकी टिपण्णी का .

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' 1/22/2013 6:09 PM  

सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

Anita Lalit (अनिता ललित ) 1/23/2013 8:30 PM  

क्षमा चाहते हैं दीदी! बहुत देर से आए हम...! क्या करें... आजकल बहुत व्यस्त दिनचर्या चल रही है... :(
ह्म्‍म्म... रिश्ते! वो भी गणित में...??? :((
दीदी, छोटा मुँह बड़ी बात कर रही हूँ....रिश्ते निभाना कठिन तो बहुत होता है... मगर जोड़-घटाने से शायद और भी Complicated हो जाएँगे... इन्हें तो Drawing जैसे विषय से कभी स्माइली :) बनाकर , कभी गुस्सा दिखाकर, कभी मान-मुनव्वल से और कभी सीटी बजाकर यानि कि... कुछ बातों को भूल कर आगे बढ़कर...-बस! ऐसे ही निभाते चले जाना चाहिए... :))
~सादर!!!

Anonymous,  1/24/2013 1:33 AM  

Mere man ki vyatha, antarman ki aapadhapi...vyakt kar di aapne in shabdo main

Anita 1/24/2013 9:47 AM  

रिश्तों का गणित हल करना हो तो पहले सद्गुरु रूपी अध्यापक से मन का गणित सीखना होगा...

priyankaabhilaashi 1/24/2013 1:24 PM  

बेहद खूबसूरत..!!!

रेखा श्रीवास्तव 1/25/2013 12:58 PM  

रिश्तों की गणित तो सुलझाते सुलझाते एक जिन्दगी गुजर जाती है और सवाल अनसुलझे ही रह जाते हैं . वैसे लगा बहुत सुन्दर आपका गणित .

कविता रावत 1/25/2013 1:10 PM  

रिश्तों का गणित हल करना मुश्किल है
सार्थक रचना....

Naveen Mani Tripathi 1/25/2013 4:41 PM  

vakai bahut hi kathin kary hai rishto ki ganit ko hal karna .....apni khas visheshta se susajjit rachana ak punh padhane ko mili .....bahut bahut aabhar .

Asha Joglekar 1/26/2013 2:54 PM  

रिश्तों के गणित का हल मिल जाये तो क्या बात है । अनूठे प्रतीक लिये सुंदर कविता ।

रचना दीक्षित 1/26/2013 2:56 PM  

आपको गणतंत्र दिवस पर बधाइयाँ और शुभकामनायें.

abhi 1/27/2013 12:20 PM  

वाह....एकदम अलग सी लगी कविता...
वैसे मैं तो गणित के फोर्मुले वाले चित्र को देखकर घबरा गया था :)

virendra sharma 1/27/2013 10:58 PM  


शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .

virendra sharma 1/28/2013 5:47 PM  

सुन्दर विचार .आभार .आभार आपकी टिपण्णी का

Virendra Sharma ‏@Veerubhai1947
ध्यान योग में छिपा है मनोरोगों का समाधानhttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2013/01/blog-post_1333.html …
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19mVirendra Sharma ‏@Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ सोमवार, 28 जनवरी 2013 पांचहज़ार साला हमारी योग ध्यान और मननशीलता की परम्परा http://veerubhai1947.blogspot.in/
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महेन्‍द्र वर्मा 1/30/2013 7:59 PM  

रिश्तों का गणित किताबों की गणित से कहीं अधिक कठिन होता है।

अच्छा अंदाज।

शोभना चौरे 1/31/2013 9:38 PM  

रिश्ते और सवाल (गणित )
सुन्दर बिम्ब

नादिर खान 2/04/2013 10:56 PM  

बस
करती रहती हूँ कोशिश
कि
रिश्तों के कोष्ठकों के
मिल जाएँ सही हल
और रिश्तों का गणित
हो जाए सफल
बहुत खूब कहा संगीता जी ...

गणित में सूत्र और समीकरण की भूमिका है
तो रिश्तों में प्रेम और विश्वास की
और फिर कोष्ठक खुद-बखुद खुलते चले जायेंगे

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) 2/05/2013 8:45 AM  

सूत्र एक बस प्रेम का,सरल करे हर प्रश्न
जोड़ घटाना भाग गुण,स्वयं मनाते जश्न |

Unknown 2/08/2013 6:02 AM  

risto ka ganit behad ulajhi huyee pahei hai,ak ka hal niklte hi dusara
sawal fir......SUNDR DARSNIK CHINTAN

संजय भास्‍कर 2/15/2013 1:12 PM  

बेह्तरीन अभिव्यक्ति .बहुत सुन्दर.बधाई

Shashi 2/17/2013 2:29 AM  

very beautiful .

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