copyright. Powered by Blogger.

हश्र ......

>> Tuesday, May 6, 2014




ज़र्द पत्तों की तरह 
सारी ख्वाहिशें झर गयी हैं 
नव पल्लव के लिए 
दरख़्त बूढ़ा हो गया है 
टहनियां भी अब 
लगी हैं चरमराने 
मंद समीर भी 
तेज़ झोंका हो गया है 
कभी मिलती थी 
छाया इस शज़र से 
आज ये अपने से 
पत्र विहीन हो गया है 
अब कोई पथिक भी 
नहीं चाहता आसरा 
अब ये वृक्ष खुद में 
ग़मगीन  हो गया है 
ये कहानी कोई 
मेरी तेरी नहीं है 
उम्र के इस पड़ाव पर 
हर एक का यही 
हश्र हो गया है ।



हमारी वाणी

www.hamarivani.com

About This Blog

आगंतुक


ip address

  © Blogger template Snowy Winter by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP