पुस्तक परिचय -- " देशी चश्मे से लंदन डायरी " लेखिका - शिखा वार्ष्णेय
>> Saturday, September 21, 2019
" देशी चश्में से लंदन डायरी " ये पुस्तक और इस पुस्तक की लेखिका शिखा वार्ष्णेय किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं । शिखा वार्ष्णेय ने ब्लॉग जगत में भी अच्छा खासा नाम कमाया है । जहाँ तक मैं जानती हूं इनको कविताओं से बेहद लगाव है और घुम्मकड़ी की शौकीन हैं तो जहां भी जाती है वहाँ का विस्तृत व्योरा अपने लेखन में उतार देती हैं । इस पुस्तक से पहले इनकी दो पुस्तकें आ चुकी हैं एक काव्य संग्रह " मन के प्रतिबिम्ब " और दूसरी यात्रा वृतांत के रूप में " स्मृतियों में रूस " ।
देशी चश्मे से लंदन डायरी किताब किस विधा के अंतर्गत आती है ये तो मैं नहीं बता पाऊंगी लेकिन इसमें वो सारे लेख संकलित हैं जो लेखिका ने बीते समय में समाचार पत्र के एक कॉलम " लंदन डायरी " के लिए लिखे थे । उस समय अलग अलग समय में लेखों को पढ़ना एक अलग अनुभव था आज उन लेखों का संकलित रूप पुस्तक के रूप में पढ़ना भिन्न अनुभव दे रहा है ।
यूँ तो लेखिका लंदन वासी हैं , लेकिन भारतीय मूल की होने के कारण इन लेखों में लंदन की बात होते हुए भी कहीं न कहीं नज़रिया भारतीय ही रहा और इसी कारण इस किताब का शीर्षक " देशी चश्मे से लंदन डायरी " सटीक लगता है ।
इस किताब में कुल 63 लेख शामिल हैं । इन लेखों के माध्यम से लेखिका ने लंदन की व्यवस्था , रहन - सहन , संस्कृति , मौसम आदि की झलक दिखलाई है । इन लेखों को पढ़ते हुए आश्चर्य होता है कि कैसे दैनिक जीवन में होने वाली छोटी छोटी बातों को लेखिका आत्मसात करते हुए महत्त्वपूर्ण जानकारी देती चलती है और साथ ही एक जागरूक और ज़िम्मेदार नागरिक की तरह मन में उठने वाले प्रश्न या संशय भी सामने रखती हैं । हर लेख एक अलग विषय लिए पाठक के सामने प्रस्तुत होता है ।
प्रत्येक लेख में जो भी विषय चुना गया है उसे यूँ ही सहज सपाट नहीं लिख दिया गया है , वरन बहुत ही मर्यादित व्यंग्य भाषा का प्रयोग किया है । कई लेख ऐसे हैं जिनमे बिल्कुल अंत में ही पता चल पाया कि आखिर लेखिका की कलम चली किस विषय पर है । जैसे " हिंदी गीतों का दौर " । पुराने हिंदी फिल्मी गीतों के बोलों की तरफ जब वहां बच्चों का ध्यान जाता है और वो उन गानों को पसंद करते हैं तो लेखिका के मन में प्रश्न उठता है कि ऐसे सुमधुर गीत अब क्यों नहीं ।और जोड़ देती हैं इस बात से कि हिंदी के प्रोत्साहन के लिए जो लंदन में प्रयास होते हैं उसमें वहां के बच्चे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं । हिंदी का सम्मान करते हैं तो ऐसा सम्मान अपने देश भारत में क्यों नहीं ।
" पुरानी साख और गौरव पूर्ण इतिहास " लिखते हुए राजे रजवाड़ों से आज के समय को जोड़ते हुए मंदी की मार सहता इंग्लैंड और उस पर वहाँ की रानी की हीरक जयंती को मनाना कहीं न कहीं लेखिका को कचोटता है । इस लेख में उनके मन की छटपटाहट साफ दिखाई देती है ।अपने मन में उठने वाले भावों को चुटीले व्यंग्य के साथ इंगित किया है - " माँएं अपने नवजात बच्चों को लिए रानी के दुर्लभ दर्शनों के लिए घंटों सड़क पर खड़ी इंतज़ार कर रहीं थीं ......... बच्चों को कार से एक हिलता हाथ दिखाई दिया और कुछ बड़े बच्चों को चेहरे की एक झलक भी मिल गयी , बस हो गया जनता का रानी का गौरवपूर्ण दर्शन समारोह ।" जनता पर अतिरिक्त कर का बोझ डाल इस तरह के दिखावे को लेखिका उचित नही मानती ।
इन लेखों के माध्यम से वहां की अनेक व्यवस्थाओं के बारे में नई जानकारी मिलती है ।भले ही वहां की आर्थिक नीतियां हों , शैक्षिक नीतियां हो , वहां मनाए जाने वाले त्योहार हों या फिर सामाजिक कार्य हों । फोस्टर केयर की क्या व्यस्था होती है और इनसे क्या लाभ और हानि हो सकती है इसकी जानकारी " घर बन पाते हैं फोस्टर केयर " में मिलती है । भारत में तो नानी- दादी ही बच्चों की देखभाल कर लेती हैं लेकिन वहां नानी की उम्र ज्यादा हो गयी तो उनसे बच्चे को लेकर फोस्टर केयर में डाल दिया गया ।
" अनुभव का शहर " से जानकारी मिलती है कि बच्चों को आगे आने वाले जीवन में अस्पताल, बैंक , पोस्ट ऑफिस , पुलिस स्टेशन आदि में किस तरह काम होता है इस सबका अनुभव कराने के लिए सिटी किडज़ानिया नाम का प्ले स्टोर खोला है । लेखिका की दृष्टि में यह एक बहुत सकारात्मक पहल है जहां बच्चे ज़िन्दगी की सच्चाई से रु ब रु होते हैं ।
" अंकों के खेल " में भारत में आज दसवीं और बारहवीं कक्षा में जो 100 % लाने की होड़ है और न आने पर अवसाद में आत्महत्या कर लेने की प्रवृति । लेकिन इंग्लैंड में बच्चे की जैसी क्षमता हो उसी तरह उसको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है । बहुत अहम मुद्दे पर शिखा की लेखनी चली है ।
सांस्कृतिक दृष्टि से देखा जाए तो कई लेखों में विभिन्न त्योहारों का ज़िक्र किया है । मई दिवस , थेम्स के तट से , लंदन में एशियाई त्योहार ,क्रिसमस तब और अब आदि में वहाँ किस तरह सारे त्योहारों का आनंद लिया जाता है बहुत सुंदरता से और विस्तृत वर्णन किया है ।
यूँ तो हर लेख ही अच्छी जानकारी से युक्त है लेकिन कुछ लेख खास आकर्षित करते हैं जैसे " पुस्तकालय ऐसे भी ", स्कूल बस का महत्त्व " , समान पाठ्यक्रम , अपराधों को रोकने की पहल , हार्न संस्कृति , चुनावी प्रक्रिया आदि । हार्न संस्कृति में बिना वजह के शोर पर व्यंग्य है तो इसके प्रारम्भिक इतिहास पर भी लेखिका की अपनी ही खोज है जो बहुत रोचक बन पड़ी है ।ऐसे ही चुनावी प्रक्रिया ऐसा लेख है जिसमें भारत और इंग्लैंड के चुनावों की तुलना की गई है ।इस तुलना का सच ही आनंद लेना है तो स्वयं ही इन लेखों को पढ़ना पड़ेगा ।
यहां भी बाबा लेख से इंगित कर दिया कि भारत में ही बाबा लोगों का प्रचलन नहीं है वहाँ भी ऐसे बाबा पाए जाते हैं ।
शिखा के लेखों को पढ़ते हुए ऐसा महसूस होता है कि वो अप्रत्यक्ष रूप से उन लोगों से प्रश्न कर रही हैं जो विदेशों की प्रशंसा में अपने देश भारत की निंदा करना शुरू कर देते हैं । यह विचार "लोमड़ी का आतंक " पढ़ते हुए आया । वहाँ पर लोमड़ी को एक हानिरहित जीव माना जाता है इसलिए उससे निपटने की कोई व्यवस्था नहीं है । लेकिन लेखिका की नज़रों में लोमड़ी का कितना आतंक है वो आप लेख पढ़ कर ही जान पाएंगे । लेख के अंत में एक मासूम से प्रश्न कि भारत में बेचारे गाय , बैलों का क्या कसूर जो सड़क पर यूँ ही आवारा घूमते हैं ।इसका तात्पर्य यह नही कि वो इसको सही बता रही हैं बस एक जिज्ञासा मात्र है उन लोगों से जो गाय ,बैलों के सड़क पर घूमने के कारण देश की निंदा करते हैं ।
कुल मिला कर ये सारे लेख केवल इंग्लैंड के लिए ही नहीं बल्कि भारत के लिए भी एक नया दृष्टिकोण देते हैं । यह पुस्तक इंग्लैंड के बारे में घर बैठे काफी जानकारी देती है । इन लेखों को पढ़ते हुए लगता है कि लेखिका का दिल भारत में बसा है या ये ज़्यादा सही होगा कहना कि भारत शिखा के दिल में बसता है ।
भाषा सहज और सरल है , चुटीली व्यंग्यात्मक भाषा से सारे ही लेख रोचक बन पड़े हैं । कहीं भी भाषा की दुरूहता नहीं दिखती । किसी भी लेख में नीरसता महसूस नहीं होती ।पुस्तक का आकार प्रकार भी आकर्षित करने वाला है । छपाई भी स्पष्ट है । इसके लिए प्रकाशक बधाई के पात्र हैं । पुस्तक का कवर पेज भी मनमोहक बन पड़ा है । कलाकार शीतल माहेश्वरी को हार्दिक बधाई । कहीं कहीं वर्तनी की अशुद्धि खटकती है । एक ही सुझाव है कि सम्पादन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए था ।
शिखा को इस पुस्तक के लिए मैं हार्दिक बधाई देती हूँ और आने वाले समय में और पुस्तकें प्रकाशित हों ऐसी कामना करती हूं ।
पाठकों से निवेदन है कि पहले इस्तेमाल करें फिर विश्वास करें यानि पहले ये पुस्तक पढ़ें फिर मेरे लिखे पर विश्वास करें ।
पुस्तक का नाम -- देशी चश्मे से लंदन डायरी
लेखिका - शिखा वार्ष्णेय
प्रकाशक - समय साक्ष्य
सम्पर्क - 01352658894
ISBN No ----- 978-93-88165-18-1
मूल्य - ₹ 200/
13 comments:
वाह बेहतरीन रचनाओं का संगम।एक से बढ़कर एक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (23-09-2019) को "आलस में सब चूर" (चर्चा अंक- 3467) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
इतनी सारगर्भित समीक्षा किसी पुस्तक की हो तो लिखना सफल हो जाता है।
दीर्घावधि के पश्चात् आपका लेखन फढ़ने को प्राप्त हुआ। पुस्तक कैसी है यह तो पढ़ने से ही पता चलेगा किन्तु आपके प्रस्तुतीकरण से जिज्ञासा को प्रज्वलित अवश्य कर दिया है।
सुंदर समीक्षा, पुस्तक के बारे में समुचित जानकारी देती हुई..
बहुत अच्छी समीक्षा की है संगीता जी आपने , धन्यवाद
बहुत सारगर्भित अच्छी समीक्षा ...
शिखा जी तो वैसे ही अच्छा लिखती हैं ... बहुत बधाई है उन्हें इस पुस्तक प्रकाशन पर ...
बहुत विस्तार से हर भाग परसुंदर समीक्षा, जो पुस्तक के बारे में जानकारी ही नहीं देती बल्कि पुस्तक पढ़ने को आकर्षित करती है ।
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