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कविता यूँ बनती है....

>> Tuesday, July 6, 2010





भावों  की सरिता 

बह कर जब 

मन के सागर में 

मिलती है 

शब्दों के मोती 

से  मिल कर 

फिर कविता बनती है .


व्यथित से 

मन में जब 

एक अकुलाहट 

उठती है 

मन की 

कोई लहर जब 

थोड़ी सी 

लरजती है 

मन मंथन 

करके फिर 

एक कविता बनती  है..


अंतस की 

गहराई में 

जब भाव 

आलोडित होते हैं 

शब्दों के फिर 

जैसे हम  

खेल रचा करते हैं 

खेल - खेल में ही 

शब्दों की 

रंगोली सजती है 

इन रंगों से ही फिर 

एक कविता बनती है ...

.


39 comments:

vandana gupta 7/06/2010 12:15 PM  

आज तो बहुत दिनो बाद एक और नायाब कविता निकली है्………सच एक अन्तराल के बाद इतनी ही सुन्दर कविता उपजती है……………बहुत सुन्दर्।

Sunil Kumar 7/06/2010 12:28 PM  

व्यथित से
मन में जब
एक अकुलाहट
उठती है
मन की
कोई लहर जब
थोड़ी सी
लरजती है
मन मंथन
करके फिर
एक कविता बनती है..
सुंदर अभिव्यक्ति ,शुभकामनायें

shikha varshney 7/06/2010 12:32 PM  

जब कोई संगीता किसी शिखा से मिलती है ,
एक कविता तब भी बनती है :)
है न दी :)
मन के तारों को झंकृत करती रचना है.

mridula pradhan 7/06/2010 12:42 PM  

wah .bahot sunder likhin hain.

मनोज कुमार 7/06/2010 1:21 PM  

व्यथित से

मन में जब

एक अकुलाहट

उठती है

मन की

कोई लहर जब

थोड़ी सी

लरजती है

मन मंथन

करके फिर

एक कविता बनती है..

कवि मन की संवेदनाओं को समेटती यह कविता उच्च कोटि की है जिसे पढ़कर ये पंक्तियां याद आ गई
वियोगी होगा पहला कवि,आह से उपजा होगा गान,
उमड़कर आखों से चुपचाप,बही होगी कविता अनजान.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" 7/06/2010 1:49 PM  

आपने एकदम सही कहा है ... मन में न जाने कितने भाव अठखेलियाँ करते हैं ... न जाने कितने दर्द करवटें बदलते रहते हैं ...
जब ये बाहर आते हैं तो कविता के रूप में आते है ...

आपने मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान दिया, इस सम्मान के लिए धन्यवाद ..

रश्मि प्रभा... 7/06/2010 2:10 PM  

व्यथित से

मन में जब

एक अकुलाहट

उठती है

मन की

कोई लहर जब

थोड़ी सी

लरजती है

मन मंथन

करके फिर

एक कविता बनती है..

सच है, दर्द कतरे कतरे पन्नों पर अदभुत रूप में ढल जाता है

Apanatva 7/06/2010 3:35 PM  

wah kya baat hai........
bahut sunder abhivykti..........
bhavnae hee aatma hai kavita kee........vaise sunder kuch shavdo ke chayan se bhee rachana khadee karne me mahir hai log par nishpran hee lagtee hai kavita agar bhav viheen hai to...........

khwab shavd se chutkara pyara laga.............
hakeekat ka dharatal bahut pasand aaya......

मेरे भाव 7/06/2010 3:54 PM  

kavita ke srijan ka sahaj chitran..... shubhkamna

अरुण चन्द्र रॉय 7/06/2010 4:08 PM  

कविता के सृजन की गंभीर प्रक्रिया को कितनी सहज अभिव्यक्ति दी है आपने.. बहुत सुंदर !

दिगम्बर नासवा 7/06/2010 5:24 PM  

भावों की सरिता

बह कर जब

मन के सागर में

मिलती है

शब्दों के मोती

से मिल कर

फिर कविता बनती है .

सच कहा है .. मान के भाव जब शब्दों की पताका पकड़ते हैं .. कविता अपने आप निकल आती है ...

daanish 7/06/2010 6:15 PM  

व्यथित-से मन में जब
एक अकुलाहट उठती है .....

सच कहा है आपने
ऐसे ही किसी गहरे मंथन के बाद ही
जन्म लेती है कोई रचना ...

आभार

rashmi ravija 7/06/2010 8:02 PM  

कविता बनने की प्रक्रिया को कितनी खूबसूरती से बयाँ कर दिया..
बहुत सुन्दर

चला बिहारी ब्लॉगर बनने 7/06/2010 8:27 PM  

भाव, मन अऊर सब्दों से मिलकर कबिता बनता है, ई बात बहुत सही बताईं आप... जऊन आदमी के अंदर ई तीनों बात हो ऊ कबि है, चाहे कबिता साहित्त के कोनो स्रेनी में हो. कोनो छंद का बंधन नहीं... जब हमरा जईसा अनपढ अदमी कबिता लिख लेताहै, अऊर आपा लोग का आसिर्बाद मिल जाता है त मानना पड़ता है कि आपका परिभासा एकदम सही है कबिता का...

अनामिका की सदायें ...... 7/06/2010 11:50 PM  

एक अटल सत्य की तरह आपकी बात भी बिलकुल सच है कि लिखने वाले के सामने यही हालात होते हैं और ऐसा ही सब मन-मंथन होता है तो कविता का जन्म होता है.

बहुत सुंदर शब्द दिए हैं कविता को.

वाणी गीत 7/07/2010 7:04 AM  

अंतस की अकुलाहट जब शब्द रंगोली सजाती है तो कविता बनती है ...
और जब अकुलाहट मौन हो तो दर्द , दुःख ,आंसूं , छटपटाहट !!

शोभना चौरे 7/07/2010 11:07 AM  

संगीताजी
कविता के जन्म की इससे सुन्दर परिभाषा क्या हो सकती है ?
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |

प्रवीण पाण्डेय 7/07/2010 11:29 AM  

जिन कारणों से उपजती है कविता, उनका निदान भी करती है ।

Avinash Chandra 7/07/2010 12:08 PM  

मन की
कोई लहर जब
थोड़ी सी
लरजती है
मन मंथन
करके फिर
एक कविता बनती है..

:) :)
behad khubsurat kavita bani...banti rahe.

Aruna Kapoor 7/07/2010 2:17 PM  

भावों की सरिता



बह कर जब


मन के सागर में


मिलती है


शब्दों के मोती


से मिल कर


फिर कविता बनती है .


कितना गूढार्थ है इन श्ब्दों में...मै अपने शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती!...इतना ही कह सकती हुं कि मै भाव-विभोर हो उठी हुं!

ज्योत्स्ना पाण्डेय 7/07/2010 3:54 PM  

सुन्दर है कविता की सृजनगाथा....

बहुत बहुत बधाई....

सम्वेदना के स्वर 7/07/2010 9:58 PM  

एक यात्रा काव्य सृजन की... एक यात्रा मन के भीतर… आभार!!

KK Yadav 7/08/2010 12:07 PM  

कविता के निर्माण पर सुन्दर कविता..बधाई !!

Akanksha Yadav 7/08/2010 2:32 PM  

शब्दों की
रंगोली सजती है
इन रंगों से ही फिर
एक कविता बनती है ...गूढ़ अर्थ छिपे हैं इस कविता में..बधाई.

निर्मला कपिला 7/08/2010 6:46 PM  

अंतस की

गहराई में

जब भाव

आलोडित होते हैं

शब्दों के फिर

जैसे हम

खेल रचा करते हैं
सही बात है। मन के भावों के बिना कविता कहाँ बन पाती है। सुन्दर रचना के लिये बधाई

PAWAN VIJAY 7/09/2010 9:44 AM  

जब कोई बात अनायास मन को छु जाती है तो कविता का उदय होता है.
जैसे क्रौंच के पंछी को घायल देखकर एक डाकू के मन में जो भाव उठे वही उसे वाल्मीक बना दिया

ZEAL 7/09/2010 8:14 PM  

शब्दों की
रंगोली सजती है
इन रंगों से ही फिर
एक कविता बनती है ..

behad sundar rachna...aabhar.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') 7/09/2010 10:42 PM  

काव्य सृजन प्रक्रिया का सीधा सादा और सच्चा बयान. सचमुच पढ़कर धन्य हुआ. साधुवाद.

पूनम श्रीवास्तव 7/10/2010 1:50 PM  

sangeeta ji,
sach me kavita aise hi to banti hai.
jo bhav dil ke sagar me
manthan kar ke shabdo ke roop me nikalte hai
unhi shabdo ko chun chun kar
ham nai kavita ko janam dete hai.

पूनम श्रीवास्तव 7/10/2010 2:40 PM  

sangeeta ji,
sach me kavita aise hi to banati haijaise tinka tinka jod kar ghonshla banta hai vaise hi shabd shabd chun chun kar man se kavita ke bhav upajate hai.
poonam

राजकुमार सोनी 7/11/2010 4:24 PM  

सच बात है कविता कुछ इसी तरह बनती है
यह रचना भी शानदार है
थोड़ा विलंब से पहुंचा इसके लिए क्षमा.

अरुणेश मिश्र 7/12/2010 9:48 AM  

कविता निर्माण का कच्चा माल जब पक जाता है तब कविता .........
प्रशंसनीय ।

Amrendra Nath Tripathi 7/13/2010 2:21 AM  

कविता बनने को लेकर अपने ख्याल को आपने व्यक्त किया है | हर रचनाकार की इच्छा अपनी सृजन-प्रक्रिया को रखने की होती है | कविता बनने को लेकर , एक नजर तुलसीदास जी की इन पंक्तियों पर डाली जाय जो मुझे बहुत प्रिय हैं , उम्मीद है आपको भी पसंद आयेंगी ---
'' हृदय सिंधु मति सीप समाना। स्वाति सारदा कहहिं सुजाना॥
जौं बरषइ बर बारि बिचारू। होहिं कबित मुकुतामनि चारू॥ '' [ बालकाण्ड , रामचरितमानस ]
--- सोचिये इसके बाद भी कविवर कहते हैं कि '' कबित विवेक एक नहिं मोरे '' !

रेखा श्रीवास्तव 7/13/2010 9:46 AM  

kavita bahut sundar ban rahi hai, ekdam sach ujagar kar diya hai. sagar men jitane gahare tum doob rahi ho utane hi khoobsoorat moti jad rahi ho rachaanon men.
bahut din baad aane ke liye kshma.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World 7/14/2010 1:35 PM  

कविता के सृजन पर लाजवाब कविता..बधाई.

_________________________
अब ''बाल-दुनिया'' पर भी बच्चों की बातें, बच्चों के बनाये चित्र और रचनाएँ, उनके ब्लॉगों की बातें , बाल-मन को सहेजती बड़ों की रचनाएँ और भी बहुत कुछ....आपकी रचनाओं का स्वागत है.

वीरेंद्र सिंह 7/14/2010 4:01 PM  

Bilkul sahi kaha Aapne. Mere hisaab se bhi kavita aise hi banti hai.

AApne kvita likhne ke kachhe maal ko leker, Usko Shabdon ka jaama pahnakar Ek sunder kavita hi rach daali. AABHAAR.

वीरेंद्र सिंह 7/14/2010 4:01 PM  

Bilkul sahi kaha Aapne. Mere hisaab se bhi kavita aise hi banti hai.

AApne kvita likhne ke kachhe maal ko leker, Usko Shabdon ka jaama pahnakar Ek sunder kavita hi rach daali. AABHAAR.

वीरेंद्र सिंह 7/14/2010 4:02 PM  

Bilkul sahi kaha Aapne. Mere hisaab se bhi kavita aise hi banti hai.

AApne kvita likhne ke kachhe maal ko leker, Usko Shabdon ka jaama pahnakar Ek sunder kavita hi rach daali. Bahut Khoob. AABHAAR.

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