खोज सत्य की
>> Tuesday, July 9, 2013
सत्य की खोज में
दर बदर भटकते हुये
मिली सूर्य रश्मि से
पूछा क्या तुम सत्य हो
मिला जवाब ...हाँ हूँ तो
पर सूर्य से निर्मित हूँ
यूं ही कुछ मिले जवाब
चाँद से तो कुछ तारों से
दीये की लौ से तो
जगमगाते जुगनुओं से
यानि कि
जहां भी उजेरा था
या रोशनी का बसेरा था
नहीं था खुद का वजूद
किसी और के ही द्वारा था
जब की बंद आँखें
तो घना अंधेरा था
अब सत्य को जान गयी
अंधकार को पहचान गयी
गर न हो किसी और की रोशनी
तो ---
ये तम ही तो सत्य है
जो कि सर्वत्र है ।
95 comments:
ये तम ही तो सत्य है-- कुछ विरोधाभास लगता है।
अंतर्द्वंद-
कागद पर-
शुभकामनायें दीदी-
तमसाकृत से है घिरा, निश्चय सत्य तमाम |
मार तमाचा तमतमा, सत्य ताक ले आम |
सत्य ताक ले आम, ख़ास इक बात बताई |
तम ही तो है सत्य, समझ में रविकर आई |
मनुवा सत्य निकाल, डाल दे थोड़ा घमसा |
भरत-सत्य साकार, पार कर जाए तमसा -
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
साझा करने के लिए आभार!
गहन कथन है और वाकई सत्य है ..
आँखे खोलने में समर्थ, आपकी यह अद्भुत रचना संग्रहणीय है !
बधाई और शुभकामनायें !
बिना आँख का सत्य है तम.. कृति अति उत्तम..
जब की बंद आँखें
तो घना अंधेरा था
अब सत्य को जान गयी
अंधकार को पहचान गयी
गर न हो किसी और की रोशनी
तो ---
ये तम ही तो सत्य है
जो कि सर्वत्र है.
वाकई यही परम सत्य है, बहुत ही उत्कृष्ट रचना.
रामराम.
@ सत्य की खोज में
दर बदर भटकते हुये
मिली सूर्य रश्मि से
पूछा क्या तुम सत्य हो
मिला जवाब ...हाँ हूँ तो
पर सूर्य से निर्मित हूँ
सूर्य की रश्मि ही नहीं खुद सूर्य भी
महा सूर्यों से जुड़ा है ...
पाठकों की प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार ....
मेरे विचार से न तो अंधेरा कोई विरोधाभास है और न ही बिन आँख का सत्य ..... प्रकाश के लिए प्रयास करना होता है जबकि अंधेरा स्वयंभू है ... कहीं कुछ गलत कहा हो तो क्षमा चाहूंगी ।
सत्य की खोज..आखिर कर ही ली. तम ही तो सच है वाकई ..
अद्भुत
wah di ...truth is truth
बहुत सुन्दर बात दी....
तम ही तो स्वयं से मिलवाता है.....
गहन भाव!!
सादर
अनु
गर न हो किसी और की रोशनी
तो ---
ये तम ही तो सत्य है
जो कि सर्वत्र है ।
....बहुत गहन और सार्थक अभिव्यक्ति..
अब सत्य को जान गयी
अंधकार को पहचान गयी
गर न हो किसी और की रोशनी तो
ये तम ही तो सत्य है जो कि सर्वत्र है ।
बहुत उम्दा लाजबाब प्रस्तुति,,,
RECENT POST: गुजारिश,
खुद के भीतर सच को तलाशना अभी बाकि है
बहुत ही गहन अभिव्यक्ति संगीता जी !
गर न हो किसी और की रोशनी
तो ---
ये तम ही तो सत्य है
जो कि सर्वत्र है.
कितना सच है ! यह तम ही तो है जो अपना भी है और सर्वव्यापी भी ! किसी और की रोशनी पर निर्भरता कैसी ? बहुत ही उत्कृष्ट रचना !
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन फिर भी दिल है हिंदुस्तानी - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत ही गहन बातें ......ताम ही अंतिम सत्य है जो अपना है
बहुत ही गहन बातें ......ताम ही अंतिम सत्य है जो अपना है
तम ने ढाँक लिया है सत्य को ,यह सही है !
बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (10-07-2013) के .. !! निकलना होगा विजेता बनकर ......रिश्तो के मकडजाल से ....!१३०२ ,बुधवारीय चर्चा मंच अंक-१३०२ पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
वैचारिक भाव लिए बहुत ही गहरी अभिव्यक्ति ..
बहुत बढ़िया
bahut badhiya
संगीता जी,
आप का सन्देश दिल को लगता है ...और छूता भी है
सत्य की ओर बड़ता कदम ....
स्वस्थ रहें!
....और सूर्य की ताकत तो अणु-परमाणुओं से ही है. अगर हम लघु ठहरे तो कोई बात नहीं.ज़रुरत है उस लघुता से भी ज्योत जलाने की. लेकिन अपने अन्दर का बहुरुपिया मरता नहीं और हावी रहता है असत्य. सत्य का मार्ग वाकई बहुत मुश्किल है. बहुत गहरी रचना. अति सुन्दर.
यानि कि
जहां भी उजेरा था
या रोशनी का बसेरा था
नहीं था खुद का वजूद
किसी और के ही द्वारा था
सच है
अपने भीतर का जो भी है , वही सत्य है ! वह तम है तो भी !!
मगर सूरज के लिए तो उसका प्रकाश उसका स्वय का ही है :)
बेहद सुन्दर रचना है .अन्धेरा उजेरा बढ़िया शब्द प्रयोग .उजेरा ब्रह्मा का दिन (ज्ञान मार्ग )है अन्धेरा (भक्ति मार्ग )बोले तो भटकाव है .ईश्वर को ही नहीं जानते हैं भक्त .३ ३ करोड़ देव कुल को ही ईश्वर माने बैठें हैं उसे मत्स्य और कच्छप में भी ठोक दिया है .कण कण में भी कई तो अहं ब्रह्मास्मि का भ्रम लिए हैं .
(दीया ,दीये )
एक अलग दृष्टिकोण ………… सत्य की खोज चाहे किसी भी मार्ग से की जाये सत्य सत्य ही रहता है फिर तम हो या प्रकाश सबमें है उसी का वास
सत्य को खोजता मन..सुन्दर अभिव्यक्ति..आभार
ये तम ही तो सत्य है जो कि सर्वत्र है ...
बेहद प्रभावशाली रचना सत्य से निकटता ....
कविता का विचार बहुत बढ़िया है।
तम भेदने,
जीवन धरे,
एक किरण निकली।
बहुत ही बढ़िया
ये तम ही तो सत्य है
जो कि सर्वत्र है ।
गज़ब....
ये तम ही तो सत्य है
जो कि सर्वत्र है ....मगर उजालों का भी तो अस्तित्व है
ये तम ही तो सत्य है
जो कि सर्वत्र है ....मगर उजालों का भी तो अस्तित्व है
बहुत सुंदर रचना
ऐसी रचना कभी कभी ही पढने को मिलती है।
बहुत सुंदर
कांग्रेस के एक मुख्यमंत्री असली चेहरा : पढिए रोजनामचा
http://dailyreportsonline.blogspot.in/2013/07/like.html#comment-form
बहुत खूबसूरत रचना, लाजवाब!
तम से मुंह क्या मोड़ना। सच तो सच ही है!!
गहरा चिंतन ...
क्या हम जो जीव हैं चलते फिरते ... पर किसी और की देन नहीं हैं ... आत्मा या ये शरीर भी किसी दूसरे का दिया नहीं है .... फिर तम से कम हम भी कहाँ ...
पुन: आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
गर न हो किसी और की रोशनी
तो ---
ये तम ही तो सत्य है
जो कि सर्वत्र है ।
गहन कथन और पूरी ईमानदारी
अहम् ब्रह्म ... सत्य वचन
लिखते रहिये
गहन, गंभीर भाव लिये रचना..
सुन्दर प्रस्तुति
Beautiful!!!!
बहुत उम्दा प्रस्तुति...
ये तम ही तो सत्य है
जो कि सर्वत्र है ।
सच ....
सत्यम् वचनम्
आँखें बंद करने पर अंधेरे में जो उजाला मिले..... वही अमूल्य है!
~सादर!!!
namste didi
kaisi hain aap........aaj bde dino baad...is aur aanaa huya......waqt kuch busy ho rkhaa he....
aur aaj aapki ye rchnaa pri......ये तम ही तो सत्य है
जो कि सर्वत्र है ।
sach he dii.....bahut saarthak rchnaa.......ek sukhad ehsaas huya pr ke
take care
बहुत गहन विचार
इसी तम में छुपा है प्रकाश...जो स्वयंभू है..
सत्य की सास्वत खोज , सटीक अभिव्यक्ति संगीता जी बेहतरीन काव्य
बात कुछ विरोधाभास लगती है...तम ही सत्य है??
हमारी तो प्रार्थना है:
तमसो माँ ज्योतिर्गमय...
अँधेरे से उजाले की ओर की यात्रा सत्य की ओर यात्रा है, तो फिर तम कैसे सत्य हुआ??
इसकी व्याख्या करेंगी तो हमारा भला होगा!
सादर/सप्रेम,
सारिका मुकेश
कमाल की कल्पना ........ बंद आँखों का तम सत्य का परिचय देता है .
वाह .....
सादर शुभकामनायें
सभी पाठकों का और उनकी प्रतिक्रिया का बहुत बहुत आभार ....
सारिका जी ,
आपने बिलकुल सही कहा है ...हमारी प्रार्थना है कि तमसो माँ ज्योतिर्गमय.....
यानि अंधेरे से उजाले कि ओर जाना .... यानि कि सच तो यही है कि हर जगह अंधेरा है .... और हमें उजाला पाने के लिए , उस ओर जाने के लिए प्रयत्न करना होगा .... रोशनी भी तभी चाहिए जब अंधेरा है बिना किसी प्रकाश पुंज के हम केवल अंधेरा ही देखते और महसूस करते हैं । रोशनी के लिए हम सूरज पर निर्भर हैं या फिर तारों पर या फिर कृत्रिम प्रकाश पर जिसमें दिये , मोमबत्ती से ले कर बिजली तक शामिल है .... पर अंधेरा ?
बस यही भाव थे मेरी इस रचना के .... बाकी सबके अपने विचार हैं .... शुक्रिया आपने मुझे अपनी बात रखने के लिए कहा ।
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
इस सौंदर्य का दर्शन उजाले-अंधेरे से परे है. यही वास्तविक सत्य है.
bhav- shabd- tasveer - eno - Adutiy
तम होने पर ही अपनी स्वयं की रोशनी दिखाई देती है ।
सुंदर प्रस्तुति ।
गर न हो किसी और की रोशनी
तो ---
ये तम ही तो सत्य है
जो कि सर्वत्र है ।
आत्म स्वरूप में टिक परमात्म प्रकाश से आत्मा को आलोकित होने दो .
पता नहीं सत्य क्या है!
रोशनी कहती है
सत्य मैं हूँ
अंधेरा भी कहता है
सत्य मैं हूँ
जब गुजरती है कोई अंतिम यात्रा
तो यह आवाज भी सुनता आया हूँ..
राम नाम सत्य है।
पता नहीं सत्य क्या है!
तम ही सत्य है और उस सत्य में निहित तत्व को देखने के लिए प्रकाश तो चाहिए ही
बहुत कुछ कहती, सोचने को विवश करती
सादर !
ये तम ही तो सत्य है
जो कि सर्वत्र है । -------
जीवन के सत्य पथ को दर्शाती सुंदर रचना
सादर
अब सत्य को जान गयी
अंधकार को पहचान गयी
गर न हो किसी और की रोशनी
तो ---
ये तम ही तो सत्य है
जो कि सर्वत्र है ।
जीवन दर्शन से परिपूर्ण बहुत सुन्दर पंक्तियां.....
बहुत सुन्दर, अगर रोशनी न मिले तो जीवन भी अन्धकारमय ही है!
शुक्रिया आपकी निरंतर टिप्पणियों का .ॐ शान्ति
वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
सत्य यही है... अति उत्तम, शुभकामनाएँ.
जब की बंद आँखें
तो घना अंधेरा था
अब सत्य को जान गयी
अंधकार को पहचान गयी
utkrisht rachana ......saty ke aas pas ...aabhar Sangeeta ji .
ये तम ही तो सत्य है-- अँधेरा और उजाला दोनों सत्य हैं .....
बहुत अच्छी रचना ......
वाह ! शानदार प्रस्तुति . एक - एक शब्द का चयन बहुत ही खूबसूरती से किया गया है .बधाई .
मेरा ब्लॉग स्वप्निल सौंदर्य अब ई-ज़ीन के रुप में भी उपलब्ध है ..एक बार विसिट अवश्य करें और आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणियों व सलाहों का स्वागत है .आभार !
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-स्वप्निल शुक्ला
बहुत अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
bahut sundar rachna..
बहुत गहन और सुंदर लिखा है दी ....तुम बिन जीवन कैसा जीवन ....
मैंने एक टिप्पणी दी तो थी दिख क्यों नहीं रही ....??
शानदार रचना ...!!
‘हर तमस में उजास का उत्स है‘ की व्याख्या करती अच्छी रचना।
बहुत ही सुंदर काव्य हैं ,आदरणीया |
पढ़कर अच्छा लगा |सादर आभार |
सुन्दर प्रस्तुति...
gahan anubhootiyon se bhari hui rachna ine ka marg prast karti hai .....
क्या बात है कितने उदाहरण देकर आप बात को स्पष्ट कर देती हैं ....
संगीताजी ...इसे पढ़कर काफी देर तक सोचती रही...और जितना सोचा .....उतनी यथार्थ के करीब लगी ...बहोत सुन्दर ...!!!!
बहुत सुन्दर ...गहन अभिव्यक्ति है ! संगीता जी !
बहुत अच्छा लगा आपको पढ़कर
अच्छी रचना
शिखा वार्ष्णेय जी की पुस्तक की बहुत सुन्दर समीक्षा की है । आभार
आत्म ज्योत ही असली उजाला है।
बस आत्मसाध करने की आवश्यकता है, हर इंसान को।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन गुनाह किसे कहते हैं ? मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत सुन्दर रचना ...
ये तम ही तो सत्य है
जो कि सर्वत्र है ..बिल्कुल सही
सत्यता की खोज, पूर्णता की खोज और सत्य प्रकृति की गोद में विचरित स्वप्न में नहीं।
अंधेरे और उजाले के परे जो है वही है सत्य और उसके प्रकास में ही अंधेरा उजाला सब दिखता है।
सुंदर अलग सा सत्य।
बहुत सुन्दर रचना ...सादर नमस्ते दी
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