मन के प्रतिबिंब ( काव्य - संग्रह ) / शिखा वार्ष्णेय ........ पुस्तक परिचय
>> Wednesday, August 14, 2013
लंदनवासी शिखा वार्ष्णेय का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है । उनकी पुस्तक " स्मृतियों में रूस " ( संस्मरण ) काफी सराही गयी है । वो अनेक विधाओं में लेखन करती हैं । आज " मन के प्रतिबिंब " उनका काव्य संग्रह हाथ में आने पर एक अलग ही अनुभूति का एहसास हुआ ..... ..मन के प्रतिबिंब से शिखा के मन को पढ़ा जा सकता है जहां वो अपने मन की संवेदनाओं को समेट काव्य रूप में प्रस्तुत करती हैं । इनकी कवितायें किसी विशेष विषय पर आधारित नहीं हैं ...हर वो विषय वस्तु जो किसी भी संवेदनशील मन को अंदर तक छू जाए इस पुस्तक में संकलित है ।
समसामयिक विषयों पर एक प्रश्न चिह्न लगाती कवितायें सोचने पर मजबूर कर देती हैं ... चीखते प्रश्न -- ऐसी ही कविता है जहां उत्तर की जगह मौन है और स्तब्धता है । व्यवस्था पर तीखे प्रश्न हैं ...
अपने किसी नागरिक की क्या / कोई जिम्मेदारी लेती है सरकार ? /क्यों एक भी मासूम को नहीं बचा पाती / दुश्मनों के खूनी शिकंजे से ? / कैसे वे मार दिए जाते हैं निर्ममता से / उनकी जेलों में ईंटों से / क्या होते है वहां पुलिस स्टेशन? / क्या बने हैं कानून और अदालतें?
बलात्कार जैसी घटनाओं से व्यथित मन आखिर पूछ ही बैठता है -- प्रलय बाकी है ? इसी संदर्भ में एक कली भी उनकी सशक्त रचना है --
खिलती है वो कली भी /पर इस हद तक कि / एक एक पंखुरी झड़ कर / गिर जाती है भू पर / जुदा हो कर / अपनी शाख से ....
नारी विमर्श पर शिखा अपनी रचनाओं से एक अलग ही दृष्टिकोण रखती हैं ..... हे स्त्री , नारी , सौदा इसी क्रम में ऐसी कुछ रचनाएँ हैं जो मन पर अमिट छाप छोड़ती हैं ....
ज़िंदगी पर अपना उनका एक फलसफा है जो उनकी बहुत सी रचनाओं में झलकता है -
तराजू के दो पलड़ों सी हो गई है जिंदगी.
एक में संवेदनाएं है दूसरे में व्यावहारिकता॥
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अपनी जिंदगी की
सड़क के
किनारों पर देखो
मेरी जिंदगी के
सफ़े बिखरे हुए पड़े हैं
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काश जिन्दगी में भी
गूगल जैसे ऑप्शन होते
जो चेहरे देखना गवारा नहीं
उन्हें "शो नैवर" किया जा सकता
और अनावश्यक तत्वों को "ब्लॉक "
इस क्षणिका में सोशल साइट्स का प्रभाव बहुत सहजता से ज़िंदगी में उतार दिया है ...
ऐसी ही कुछ रचनाएँ हैं -- करवट लेती ज़िंदगी , किस रूप में चहुं तुझे मैं , धुआँ - धुआँ ज़िंदगी , एक नज़र ज़िंदगी , भीड़ , पर्दा धूप पे -- जो ज़िंदगी की हकीकत से रु ब रु कराती हैं ।
ज़िंदगी पर जिस यथार्थता से शिखा की कलम चली है उतनी ही बेबाकी से प्रेम पर भी बहुत कुछ लिखा है .... वैसे भी कवि हृदय में प्रेम का एक विशिष्ट स्थान होता है और इसे शिखा ने अपने अनुभव से और भी विशिष्ट बना दिया है उनकी कुछ रचनाएँ सच ही मन को भावुक कर जाती हैं ... इस शृंखला में मुझे इनकी पुरानी कमीज़ , अब और क्या ? , ऐ सुनो बहुत पसंद आयीं ... पुरानी कमीज़ की जगह नयी कमीज़ आ जाती हैं लेकिन शिखा का प्रेम पुरानी कमीज़ के बिम्ब से पहले जैसा ही बना रहता है। ऐसे ही सब कुछ अर्पण करने के बाद वह सोचती हैं कि अब और क्या अर्पण करूँ ।
रूह अर्पित, जान अर्पित
जिस्म में चलती सांस अर्पित
कर दिए सारे अरमान अर्पित
अब और क्या मैं अर्पण करूँ।
सामाजिक सरोकारों से और अपनी मिट्टी से जुड़ी शिखा का मन अमृत रस जैसी कविता के माध्यम से बरस जाता है जिसमें वर्षा को देख किसान खुश है और सोच रहा है कि इस साल बेटी के हाथ पीले कर देगा .... यतीम , उसका - मेरा चाँद बच्चों की मासूमियत को कहती बेहतरीन रचनाएँ हैं ।
अपने ख़यालों को , खुद से अनुभव हुये अहसासों को भी उन्होंने इस पुस्तक में शामिल किया है बर्फ के फाहे , यूं ही कभी कभी , गूंगा चाँद , ख्याली मटरगश्ती , रुकते - थमते से कदम , अपने हिस्से का आकाश ऐसी कुछ कवितायें हैं जो शिखा के मन के अंतर द्वंद्व को बखूबी कहती हैं ।
भले ही कितना ही मन भावुक हो पर उम्मीद का साथ उनके साथ हमेशा बना रहता है - उम्मीदों का सूरज , एक बुत मैडम तुसाद में , आज इन बाहों में , चाँद और मेरी गांठ , सीले सपने , उड़ान , उछलूं लपकूँ और छू लूँ कुछ रचनाएँ हैं जो सकारात्मक सोच को दिखाती हैं ।
कुल मिला कर यह काव्य संग्रह हर रस को आप्लावित करता है माँ को समर्पित उनकी रचनाएँ ... मैं तेरी परछाईं हूँ और तुझ पर क्या लिखूँ ऐसी रचनाएँ हैं जो मन पर गहरा प्रभाव डालती हैं साथ ही पिता के स्नेह में डूबी कवयित्री पुकार उठती है - पापा तुम लौट आओ न ... ।
मन का प्रतिबिंब पढ़ते हुये एक काल्पनिक इन्द्र धनुष प्रकट हो जाता है जिसमें हर रंग समाया हुआ है .... आशा है इसी तरह के अनुभव हर पाठक महसूस करेगा । पुस्तक को सुरुचि पूर्ण सजाया गया है । कवर पृष्ठ शिखा कि बेटी सौम्या द्वारा बनाया गया है जो बहुत सुंदर है और इससे यह भी पता चलता है कि उनका परिवार भी उनके कार्यों में रुचि लेता है । शिखा की कविताओं की भाषा सहज , सरल और ग्राह्य है जो हर पाठक को बहुत अपनी सी लगती है ... भले ही हिन्दी विद्व इसे उसकी कमी कहें पर जो कविता पाठकों के हृदय को छू ले वही असल में रचनाकार का धर्म है । और यह काव्य संग्रह इस बात पर खरा उतरता है ।
मन के प्रतिबिंब के लिए मैं शिखा को बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनायें प्रेषित करती हूँ ।
पुस्तक का नाम ---- मन के प्रतिबिंब
कवयित्री --- शिखा वार्ष्णेय
पुस्तक का मूल्य - हार्ड बाउंड 170/- और पेपर बैक 100/- रु है जो क्रमश: 10% और 20% की छूट पर उपलब्ध है.
पृष्ट संख्या - १०४
पुस्तक आपको VPP द्वारा भेजी जाएगी.
Subhanjali Prakashan
28/11, Ajitganj Colony, T. P. Nagar, Kanpur-208023,
Email : subhanjaliprakashan@gmail.Mobile : 09452920080
37 comments:
बहुत बढ़िया समीक्षा ....शिखाजी की लिखी कवितायेँ उनके ब्लॉग पर पढ़ी है, प्रभावित करती हैं ....
शिखा जी की कविता "पुरानी कमीज" मैंने
वटवृक्ष के प्रेम विशेषांक में पढ़ी है बहुत अच्छी लगी,बधाई शिखा जी को उनके पुस्तक प्रकाशन की
बधाई आपको भी बढ़िया पुस्तक समीक्षा करने
की !
बहुत बढ़िया समीक्षा लिखी है दी...
शिखा को पढना हमेशा बहुत सुखद अनुभव रहता है...
शुकाम्नाएं shikha को..
आपका शुक्रिया..
सादर
अनु
शिखा जी एक जाना माना नाम है ब्लॉग जगत में ... उनको पढ़ना हमेशा ही रुचकर रहता है ... आपने पुस्तक की समीक्षा के माध्यम से उत्सुकता बड़ा दी है .... आपको और शिखा जी को बहुत बहुत बधाई ...
शिखा वार्ष्णेय जी की पुस्तक मन के प्रतिबिंब की सुंदर और सटीक समीक्षा की आपने, शिखा जी निष्णांत लेखिका/कवियित्री हैं, उनके ब्लाग पर उनके लेखन का आनंद मिलता रहता है. आपका बहुत बहुत आभार.
Bahut badhiya sameeksha likhi hai aapne....Shikhaji kee bahu izzat karti hun mai.
शिखा वार्ष्णेय की लेखनी सम्मान योग्य है , अब आपकी समीक्षा से वह और निखरेगी !
बधाई शिखा जी को !
''मन के प्रतिबिंब '' काव्य संग्रह के लिए बहुत बहुत शुभकामनायें शिखा ...!!
बहुत बढ़िया समीक्षा की है दी ,बधाई ...!!शिखा की कविताओं को उनके ब्लॉग पर पढ़ते रहते हैं ....प्रभावशाली लेखन है ...!!
आदेर्नीय संगीता जी बहुत ही बढ़िया समीक्षा पढने को मिली ..आदेर्नीया शिखा जी की किताब के माध्यम से उनके तमाम रचनाओं के पढने का मौका मिलेगा ये सुखद है ..सादर बधाई और प्रणाम के साथ
पठनीय रचनायें, सुन्दर समीक्षा।
सुन्दर समीक्षा और समीक्षित रचनाएं। नव प्रतीक विधान शब्द चित्र के साथ गुम्फित हैं रचनाओं में शिखा वार्ष्णेय की।
''मन के प्रतिबिंब '' काव्य संग्रह के लिए शिखा जी को बहुत बहुत शुभकामनायें ...!!
बहुत सुंदर समीक्षा,बधाई ..
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.
बढिया समीक्षा
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ
अत्यन्त हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ कि
आपकी इस बेहतरीन रचना की चर्चा शुक्रवार 16-08-2013 के .....बेईमान काटते हैं चाँदी:चर्चा मंच 1338 ....शुक्रवारीय अंक.... पर भी होगी!
सादर...!
बहुत बढ़िया लिखी है..शिखा जी को बधाई..
यह तो सच है कि शिखा जी ब्लॉगरों कि चिर परिचित हैं, और जब उनकी पुस्तक का विश्लेषण आपने किया है तो पुस्तक का वजन अपने आप ही बढ़ गया ।
आपको एवं शिखा जी को बहुत बहुत बधाई ।
...बहुत बढ़िया समीक्षा
बहुत सुन्दर
कविता और गद्य दोनों में समान रूप से निष्णात शिखा जी की अनुभूतियाँ, जीवन के विविध रंगों में
छलक उठी हैं.उनकी कुछ तो पंक्तियाँ बार-बार मन में गूँजती हैं.उनका प्रभाव पुत्री सौम्या को कलाकार बना गया है.उन दोनों को बधाई और व्यापक दृष्टि ले कर चलनेवाली समीक्षक, संगीता जी को कैसे भूला जा सकता है,पहले उन्हें !
बहुत ही अच्छी समीक्षा की है आपने ... बधाई सहित शुभकामनाएँ
बहुत बढ़िया समीक्षा ********
खुबसूरत परिचय ...खुबसूरत समीक्षा में !
बहुत आभार संगीता जी !
स्वस्थ रहें!
शिखा जी की रचनाएँ सदैव प्रभावित करती रही हैं..बहुत सुन्दर समीक्षा..
बहुत ही सुन्दर समीक्षा
सादर आभार!
बहुत ही अच्छी समीक्षा ...
रुचिकर...
:-)
Shikha ki book hai, to aise hi lajabab hogi, fir aapki sameeksha ne usko aur lajabab bana diya.....
बहुत सुंदर समीक्षा!
खूबसूरत रचनाएँ!
शिखा जी को हार्दिक शुभकामनाएँ ~
~सादर!!!
वाह ! शिखा जी भी कवयित्री के रूप में स्थापित हो गईं .... शिखा जी को बहुत बहुत बधाई ....!!
और आपको भी संगीता ....ये समीक्षा का कम भी बहुत कठिन है जो आपने कर दिखाया .... !!
जीवन का स्पन्दन रूदन सब कुछ लिए रहतीं हैं शिखा जी वार्ष्णेय की रचनाएं। समीक्षा भी सुन्दर की है आपने। शुक्रिया आपकी टिपण्णी का।
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं...
इतनी सुन्दर समीक्षा के बाद उसे पढ़ने की इक्षा और तीव्र हो गयी है
लगातार सफ़र में रहने के कारण बहुत देर से देख पाई यह पोस्ट.
दी !! आपके इस प्रेम का और इस सम्मान का मेरे पास कोई उत्तर नहीं है:) न ही आभार के लिए शब्द :). बस इतना कहूँगी कि आपके और
समस्त पाठकों के द्वारा दिए गए इतने सम्मान से अभिभूत हूँ.
सुंदर प्रस्तुति...
शिखा जी के ‘मन का प्रतिबिम्ब‘ आपके शब्दों में पुनर्प्रतिबिम्बित हो रहा है।
शिखाजी को बधाई और आपको भी इस सुंदर समीक्षा के लिये।
अरे वाह...बहुत ही अच्छी समीक्षा है!!
मैं शायद सबसे आखिर में लिख पाऊं कुछ...:)
itni achchi sameeksha dekh kar pustak padhne ki bahut utsukta hai ..... Shikha ji ko aur apko bahut bahut badhai .....
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