खिड़कियाँ
>> Wednesday, September 4, 2013
ये खुलती और बंद
होती खिड़कियाँ
उन पर टंगी
दो आँखें
फैलाती हैं
कितना प्रवाद
कुछ तर्क
कुछ कुतर्क
कर देती हैं
पास के घरों का
चीरहरण
ये खुलती और बंद
होती खिड़कियाँ ,
नहीं खोलते हम
मन की खिड़कियाँ
सारी कुंठाओं से ग्रस्त
रहते हैं मन ही मन त्रस्त
नहीं करते परिमार्जन
चलते रहते हैं
पुरानी लीक पर
परम्पराओं के नाम
संस्कारों के नाम
और धकेल देते हैं
स्वयं को बंद
खिड़कियों के पीछे .
63 comments:
मन की खिड़कियाँ खुलें तो नवप्रभात हो!
वाह आदरणीय ''गीत'' जी,
कमाल के शब्द संजोये हैं, और क्या उम्दा सोच है।
''मन के खिड़की, खोल प्यारे
मन के खिड़की, तू खोल,
ये जीवन अनमोल है प्यारे,
ये जीवन अनमोल।…….
बहुत ही अच्छी कविता हैं
http://www.sbhamboo.blogspot.in/
नेह की हवा चले तो टूटें सांकलें....खुलें खिड़कियाँ....
सुन्दर अभिव्यक्ति...
सादर
अनु
सुन्दर प्रस्तुति-
आभार आदरेया-
पर यहाँ तो-
मन की खिड़की पर जमी, दर्द-गर्द की पर्त |
अभिलाषाएं थोपती, अजब गजब सी शर्त ||
रविकर जी ,
जब खुलेंगी खिड़कियाँ तो
गर्द भी झड़ जाएगी
अभिलाषाएं फूल बन
शायद महक जाएंगी ।
मन की खिड़की खुले तो ताज़ा हवा लाए भीतर
बासीपन खो जाये और हँसे फूल सा खिलकर...सुंदर भाव !
बहुत सुन्दर रचना है, शब्द और भाव का संयोजन सुन्दर लगा !
जिस दिन मन की खिड़की खोल इंसान प्रेम और सौहार्द्र की ताज़ी हवा को अंदर आने देगा उसी दिन वह सारी कुंठाओं और कुतर्कों से मुक्ति पा लेगा और उसके जीवन में नयी सुबह आ शुभारंभ हो जाएगा ! सुंदर सार्थक सोच के साथ बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ! बधाई संगीता जी !
बहुत ही सुंदर और सार्थक रचना.
रामराम.
अगर न खुले तो दिलों के दरवाजों सी बंद होती है खिड़कियाँ , खूबसूरत रचनाश हमेशा की तरह
मन की खिड़कियाँ खुलते बहुत कुछ स्पष्ट और खुला खुला सा हो जाता है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
सच कहा है ... मन की खिड़कियों पे काले परदे डाले रहते हैं हम ... ओर घर की खिड़कियों से प्रगतिशील दिखाने की कोशिश करते हैं ...
सवेरा तो मन के खुएलने से आता है ...
बहुत ही भावमय .. गहरी अभिव्यक्ति ...
अनुभूत सत्य.. सुन्दर कहा है..
मन के बंद दरवाज़े .खोलती आपकी ये दिल को दस्तक देती खिड़कियाँ ....
स्नेह !
मन की खिड़की खोल आने दें ठंडी हवा के झोंके..बहुत सुन्दर...
हम डरते हैं तूफां के अंदर आने से
इसलिए बंद रखते हैं मन की खिड़कियाँ
नहीं समझते इतना भी कि इस तरह तो
रोक देते हैं ताज़ा हवा के आगमन को.
बहुत ही भावपूर्ण रचना है दी!
बहुत खूब कहा है. मन की - बाहर की खिड़कियाँ...
बंद खिड़कियाँ खुलनी भी जरुरी है ना
वाकई दूसरों की जिंदगियों में झाँकने का जहाँ सबब बनती हैं यह खिड़कियाँ ...वहीँ अपना अंतर, महफूज़ रखने का एक ज़रिया भी ....बहुत सुन्दर संगीताजी
बहुत सही है।
achcha likha hai
बहुत सुन्दर...सच में मन की खिड़कियाँ खुलेंगी तभी तो नया प्रकाश होगा :)
कर देती हैं
पास के घरों का
चीरहरण
ये खुलती और बंद
होती खिड़कियाँ ,
तमोगुणों से लदी हुई ये ,
देती कितनी झिडकियां।
सुन्दर व्यंग्य साधु खिडकियों पर।
ओह ..
मंगल कामनाएं आपको !
सुन्दर संगीता जी ।
कर देती हैं
पास के घरों का
चीरहरण
ये खुलती और बंद
होती खिड़कियाँ
बेमिसाल अभिव्यक्ति
सच कहा आपने कि मन की खिड़कियाँ खोलने की आवश्यकता है
शीतल मंद बयार उमड़ती, खुलें बन्द वातायन मन के।
सही है , समय के साथ परम्पराओं में बदलाव वांछित है और स्वाभाविक भी !
कहते भी है मन की खिड़कियाँ ना खोल पाने वाले बंद दरवाजे ही पाते हैं !
मन की खिड़कियाँ जिस दिन खुल जाये,सारी समस्याएँ हल हो जाएंगी। … बहुत सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर ..संगीता जी..शिक्षक दिवस पर शुभकामनाऎं
वाह . बहुत उम्दा,शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामना
कभी यहाँ भी पधारें
क्या बात वाह!
बहुत खूब
सुंदर काव्य रचना ...खिड़कियां ताज़ी महकती खुशबु भी लाती हैं |
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ये खुलती और बंद
होती खिड़कियाँ ..बहुत खूब लिखा..
बिलकुल सच. आज के भौतिकवादी युग में तो समय और कम हो गया है लोगों के पास.
खिड़कियाँ खुली हवा पाने के लिए होती हैं दूसरे घरों में झाँकने और प्रवाद रचने का निमित्त बन जायें तो
प्रदूषण बढ़ेगा ही - कहाँ स्वस्थ रह पायेगा मन !
अंतर्मन के आर पार निःशब्द करती
सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
मन की खिडकियाँ खुलें तो कमरे की खिडकियां खोल कर तांक झांक करने की नौबत ही न आये। सुंदर प्रस्तुति।
वाकई ..
यथार्थ अभिव्यक्ति ..
पुन :शुक्रिया उत्प्रेरक टिप्पणियों लाने।
ये खुलती और बंद
होती खिड़कियाँ
वाह ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
आदरणीया संगीता जी ..कमरे की खिडकियों के माध्यम से बहुत बड़ा अध्यात्मिक दर्शन कराया आपने ..अत्यंत जरूरी है यदि जीवन को सुखी बनाना है तो अंतःकरण की खिड़कियाँ खोलना ही होगा ..एक लम्बे अरसे से मेरे ब्लॉग पर आपकी उपस्थि प्रतीक्षित है ..आपका सतत मार्गदर्शन मुझे प्राप्त होता रहा है भविष्य में भी ऐसी ही कामना है
man ki khule khidakiyan aur aaye pranvayu ....
yahi aavashyak hai ....
भावों का सुन्दर चित्र
कुछ परम्पराएं खिड़़कियों में भी ताला लगा देती हैं।
बहुत ही अच्छी रचना।
bahut sundar rachna ........ham sabhi kahi na kahi isse prabhavit hai
नहीं खोलते हम
मन की खिड़कियाँ
सारी कुंठाओं से ग्रस्त
रहते हैं मन ही मन त्रस्त
नहीं करते परिमार्जन
चलते रहते हैं
पुरानी लीक पर
परम्पराओं के नाम
संस्कारों के नाम
और धकेल देते हैं
स्वयं को बंद
खिड़कियों के पीछे ...................
सच कहा संगीता जी, हम कितना ही तरक्की कर लें पर मन की ऑंखें बंद ही रखते है इसीलिए सही और गलत का निर्णय नहीं ले पाते ...
रचना के लिए बधायी
वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
खूबशूरत भाव और शब्द संयोजन और विन्यास
बहुत सुन्दर रचना 1 नहीं खोलते तभी तो इन मे दीमक [कुविचारों की] लग जाती है1
हालात और मन के बीच की कशमकश कुछ इसी तरह राहें तलाशती है। मन की खिड़कियां खोलना ही संवेदना का शिखर की ओर बढ़ना है। बधाई एवं शुभकामनाएं इस सुंदर रचना के लिए।
नहीं खोलते हम
मन की खिड़कियाँ
सारी कुंठाओं से ग्रस्त
रहते हैं मन ही मन त्रस्त
नहीं करते परिमार्जन
चलते रहते हैं
पुरानी लीक पर
परम्पराओं के नाम
संस्कारों के नाम
और धकेल देते हैं
स्वयं को बंद
खिड़कियों के पीछे .
100% Truth. Nice poem
नहीं खोलते हम
मन की खिड़कियाँ
सारी कुंठाओं से ग्रस्त
रहते हैं मन ही मन त्रस्त
नहीं करते परिमार्जन
बिल्कुल सटीक... घर की खिड़कियां खूब खोलते हैं हम
पास के घरों का चीरहरण देखने तमाशबीन जो ठहरे...कभी मन की खिड़की खोलकर मन का परिमार्जन करें तो बात ही कुछ और हो....।
वाह!!!!
हमेशा की तरह सारगर्भित लाजवाब सृजन।
बित्ताभर आसमां दिखाती खिड़कियाँ
घुटती साँसों में जान जगाती खिड़कियाँ,
पर्दे में छुपे गर्द भीतर ही बिखर जाते है
बिना खोले पोंछ दी जाती है जब खिडकियाँ।
-----
गहन अभिव्यक्ति दी।
प्रणाम
सादर।
और झरोखे से ही आसमान को निहारते हुए जीवन गंवा देते हैं । इस हतभाग के लिए क्या कहा जाए ... उद्वेलित कर गया ।
बहुत ही सुन्दर सृजन मन की खिड़कियाँ से झाँकता मंथन।
बेहतरीन सृजन दी 👌
चिंतन करने को प्रेरित करती बेहतरीन रचना । बहुत सार्थक और सकारात्मक लिखती हैं आप ।
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