एहसास
>> Wednesday, November 5, 2008
वक्त बहुत बेरहम हो चला है
ख्वाहिशें भी पूरी होती नही हैं
दर्द को भी बढ़ना है यूँ ही
खुशी भी कोई मिलती नही है।
चाहतें भी बिखर सी गयीं हैं
समेटने के लिए दामन कहाँ से लाऊँ?
सूनापन है इन आंखों में छाया
कोई रोशनी भी मैं कहाँ से पाऊँ ?
मेरी तन्हाइयों की बात न छेडो तुम
यादें तक तनहा हो चली हैं
इन अंधेरों में किसको पुकारूं में
परछाई भी मेरा साथ छोड़ चली है ।
हाथ बढाती हूँ पकड़ने को दामन
तो कहीं कुछ खो सा जाता है
सहारा भी चाहूँ किसी का तो
खाली हाथ लौट कर आ जाता है।
सूना -सूना सा आंखों का काजल
कह रहा है अपनी ही कहानी सी
सुनने की भी ताब नही है
लगती है सब जानी - पहचानी सी ।
आँखें बंद कर आज देखती हूँ
अपना साया भी साथ नही है
सोचो तो कैसा मुकद्दर है
दर्द का भी कोई एहसास नही है .
13 comments:
bahut dard aur tadap hai
ek mayoosi ek kuch adhuri khawaish hai
bahut acha likha hai
badhai
very touching!!
ek dard se bhari rachna...achcha likha hai Di
दर्द और फ़िर ये कहना दर्द का एहसास नहीं
वाह कितना धीरज है मन में ?
पीर के रत्नों को छिपाना भी कविता में ले आना
सच बधाई की पात्र है आपकी सोच और कलम
आँखें बंद कर आज देखती हूँ
अपना साया भी साथ नही है
सोचो तो कैसा मुकद्दर है
दर्द का भी कोई एहसास नही है .
main koi ek line chun nahin paayi....saari ki saari itni khoobsurat hai.....
itni taqleef, itni khalish, main stabdh hoon....
aap sach much bohot bohot zyada acchi tarha se bayaan karte ho...amazing
सोचो तो कैसा मुकद्दर है
दर्द का भी कोई एहसास नही है .
kamal kar diya ye likh ke
Anil
ख्वाहिशें भी पूरी होती नही हैं
दर्द को भी बढ़ना है यूँ ही
खुशी भी कोई मिलती नही है।
चाहतें भी बिखर सी गयीं हैं
क्या कहूँ, इन पंक्तियों में बस सच का अक्स नज़र आता है मुझे....
कुछ अपने दर्द, कुछ अपनी ही चाहते बिखरी सी नज़र आती है मुझे!
इन अंधेरों में किसको पुकारूं में
परछाई भी मेरा साथ छोड़ चली है
ज़िन्दगी का एक कड़वा सच,
अपना ही साया साथ छोड़ देता है,
जीवन का कठिन रास्तों पर.....
कोई साथ नहीं होता है..... जहाँ तक नज़र जाती है बस एक निरा शुन्य.......
सोचो तो कैसा मुकद्दर है
दर्द का भी कोई एहसास नही है .
अंत में सब कुछ बयां करती ये पंक्तियाँ......
सचमुच एक समय ऐसा भी आता है जब दर्द की इंतहा हो जाती है और
उसका एहसास भी नहीं होता है.......
dard ko awaz na do..
ye to kambakht hai
chala aayega..
sunepan ko andhero ko..
yado ko,tanhayi ko,
na jane kis kis ko
sath layega..
dard ko.......
ankho ka kajal,
aur apni parchhayi bhi..
sab ka sath chhod jayega..
dard ko.....
mukaddar ko na do dosh..
ankhe moond lene se
kya ye bhaag jayega..
thora hansi ko faila do..
thora gamo ko dara do.
apne saye ko ang laga kar..
ankho ka kajal mehka do..
tab ye dard bhaag jayega..!!
is dard ko awaz na do..
ye to kambakht hai
chala aayega..
hope u wil like it...
ok bye take care...urrsssssss
Badi Sooni-Sooni hai.. Zindagi ye zindagii..
Kuch iss geet ki yaad taaza ho aayi mann mein.. aapko padhte hee..
Gatika jee.. Aaj ke iss daur mein to ye geet aapki iss kavita ke saath sahaj ghulta-milta sa prateet ho raha hai.. "Dil ki tanhai ko aawaz bana lete hai.. Dard jab hadd se gujarta hai to gaa lete hai.."
A vry nice n well written poem.. bahut sahaj aur swabhaveek..
Ek baar phir.. aapki kalam ko salaam..
Yash..
peak of pain
dard ki intihaa
rachna ki drishti se bahot khoob or
aisi dard-e-zindgii khuda kisi ko na de.
ehsaas . bahut khub
jataaya aane dard ka rishta hai ek ehsaas ubhar k aaya...
jo shaayarnahi b ho use bhi tumne ye bahut bhaaya.
regards .likte rahiye ...
ehsaas ka kaise bhi ho roop me padhne me hamesha achcha lagtha hai
jab dard had ko paar kar jaye
to haalat aise hi hote hain.......
hum aapko ek he baat keh sakte hai ki... aap saadgi bhare shabdon ko goond kar jo ek man mohak kavita ka roopdeti hain.
tho ye he yaad aata hai k
jaise motiyon ko band aur piro kar ek bahu sunder haar ka roop deti hain...
==========
waise bhi ye baat bhi hai k
ye zaruri nahi kar har samay sazayaa jaye...saadgi bhi apne aap me kubsuri bayan karti hai.
Post a Comment