रिश्तों की गांठें खोल दो और आजाद हो जाओ सारे रिश्तों से फिर देखो ज़िन्दगी कितनी सुकून भरी हो जाती है एक तरफ़ न तुम किसी के होंगे और न कोई तुम्हारा दूसरी तरफ़ तुम सबके होंगे और सारा जग तुम्हारा फिर तुम उम्मीदों को सीमाओं में नही बाँधोगे और दूसरे की कमियां गिनाने की सीमा नहीं लांघोगे .
बहुत सुंदर प्रिय दीदी | अपेक्षाएं किसी भी रिश्ते को बोझिल और दूभर बना देती हैं | निर्बंध रिश्ते एक सहज,सरल निकटता होती है | भगवान् कृष्ण ने भी कहा और ओशो ने भी | प्रेम में बन्धनहीन रहना और दूसरों को रखना ही सच्चा प्रेम है | बहुत भाई आपकी ये भावपूर्ण रचना | मेरा प्यार और शुभकामनाएं|
कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
5 comments:
man ko bhav vibhor karne vale ahsas
bahot khoobsurti se piroya hai aapne lafzo ko bhavo ki dor mai
daad hazir hai ..
Bahut khubshurat rachana hai..
Badhai
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 27 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह दी...बेहतरीन रचना।
क्या गज़ब लिखा है
तुम उम्मीदों को
सीमाओं में नही बाँधोगे
और दूसरे की कमियां गिनाने की
सीमा नहीं लांघोगे।
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सादर।
बहुत सुंदर प्रिय दीदी | अपेक्षाएं किसी भी रिश्ते को बोझिल और दूभर बना देती हैं | निर्बंध रिश्ते एक सहज,सरल निकटता होती है | भगवान् कृष्ण ने भी कहा और ओशो ने भी | प्रेम में बन्धनहीन रहना और दूसरों को रखना ही सच्चा प्रेम है | बहुत भाई आपकी ये भावपूर्ण रचना | मेरा प्यार और शुभकामनाएं|
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