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नई अनुभूति

>> Thursday, November 13, 2008


ख़्वाबों में अक्सर
देखा है मैंने ख़ुद को
किसी ऊँची
पहाडी की चोटी पर खड़ा
जब भी झांकती हूँ
नीचे की ओर
तो डर के साथ
एक सिहरन भी होती है
डर-
शायद गिर जाने का
और सिहरन-
शायद एक नई अनुभूति की ।

5 comments:

निर्झर'नीर 11/26/2008 4:23 PM  

dar shyad gir jane ka or sihran ek nai anubhooti kii..

speechless

yashoda Agrawal 9/27/2021 3:02 PM  

आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 27 सितम्बर    2021 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर
आप भी आइएगा....धन्यवाद!

yashoda Agrawal 9/27/2021 3:03 PM  

आदरणीय दीदी
सादर नमन
सूचित करना भूल गई थी
क्षमा
सादर

Sweta sinha 9/27/2021 9:40 PM  

ऊँचाई का
मुश्किल सफ़र
धैर्य और सजगता की
परीक्षा होती है
ऊँचाईयाँ
जिम्मेदारी की
नयी परिभाषा रचती है
नीचे की कठिनाइयों को
भूलने की शर्त पर।
------
सादर।

रेणु 9/27/2021 11:45 PM  

बहुत बढ़िया प्रिय दीदी |डर रोमांच के साथ आ ही जाता है | ये जीवन का नैसर्गिक भाव है | निर्भयता के साथ कहीं ना कहीं इसका अस्तित्व भी बना ही रहता है | हार्दिक शुभकामनाएं आपके लिए | आपके ब्लॉग पर आकर आज बहुत अच्छा लग रहा है |

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