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गर चाहते हो

>> Wednesday, August 26, 2009


दिया तो
जला लिया है
हमने ज्ञान का
पर आँख में
मोतियाबिंद
लिए बैठे हैं .
रोशनी की कोई
महत्ता नहीं
जब मन में अन्धकार
किये बैठे हैं .

आचार है हमारे पास
पर
व्यवहार की कमी है
चाहते हैं पाना
बहुत कुछ
पर हम मुट्ठी
बंद किये बैठे हैं .

चाहते हैं
सिमट जाये
हथेलियों में
सारा जहाँ
जबकि
हम खुद ही
कर - कलम
किये बैठे हैं .

चाहते हैं पाना
नेह की
सुखद अनुभूति
लेकिन
हृदय - पटल
बंद किये बैठे हैं ..

गर चाहते हो कि
ऐसा सब हो
तो --
खोल दो
सारे किवाड़
आने दो एक
शीतल मंद बयार
मन - आँगन
बुहार दो
नयन खोल
दिए में
तेल डाल दो
मोतियाबिंद
हटा दो
हृदय के पट खोलो
प्रेम को बांटो
बाहें फैलाओ
और जहाँ को समेट लो .....

3 comments:

रश्मि प्रभा... 8/26/2009 3:20 PM  

gar chahte ho to khol do kiwaad prem baanto,jahan samet lo......bahut hi achhi rachna

पूनम श्रीवास्तव 8/26/2009 5:45 PM  

चाहते हैं
सिमट जाये
हथेलियों में
सारा जहाँ
जबकि
हम खुद ही
कर - कलम
किये बैठे हैं .
Adarneeya Sangeeta ji,

bahut hee samvedanatmak hotee hain apakee kavitayen.padhkar man bhavuk ho jata hai.
Poonam

दिगम्बर नासवा 8/31/2009 5:00 PM  

चाहते हैं पाना
नेह की
सुखद अनुभूति
लेकिन
हृदय - पटल
बंद किये बैठे हैं ..

सत्य और सार्थक रचना है ............ लाजवाब लिखा है ............ अक्सर हम अपने मन को बंद कर लेते हैं और असल सुख का अनुभव नहीं कर पाते .........

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