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सुलगता कोयला

>> Tuesday, August 25, 2009


मेरा मन
सुलगता हुआ
कोयला ...

हाथ मत लगाना
जल जाओगे
राख दिखती है
इसके चारों ओर
इसलिए
भ्रम में न आओ
फूंक मार कर देखो
निकलेंगी
इसके अन्दर से
तीव्रतम चिंगारियाँ
जो मुझे
जला डालेंगी
समग्रता से .

चाहती हूँ कि
कोई आए
और ढक ले मुझे
अपने पूरे वजूद से
इस तरह कि -
दम तोड़ दें
सारी चिंगारियाँ
अन्दर ही अन्दर
और शांत हो जाये मन
एक राख विहीन
ठंडे कोयले की तरह....

2 comments:

स्वप्न मञ्जूषा 12/11/2009 11:33 PM  

इस तपिश से बच पाना कहाँ आसन है..?
नहीं बुझेंगी ये चिंगारियां इतनी आसानी से...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..!!

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