सुलगता कोयला
>> Tuesday, August 25, 2009
मेरा मन
सुलगता हुआ
कोयला ...
हाथ मत लगाना
जल जाओगे
राख दिखती है
इसके चारों ओर
इसलिए
भ्रम में न आओ
फूंक मार कर देखो
निकलेंगी
इसके अन्दर से
तीव्रतम चिंगारियाँ
जो मुझे
जला डालेंगी
समग्रता से .
चाहती हूँ कि
कोई आए
और ढक ले मुझे
अपने पूरे वजूद से
इस तरह कि -
दम तोड़ दें
सारी चिंगारियाँ
अन्दर ही अन्दर
और शांत हो जाये मन
एक राख विहीन
ठंडे कोयले की तरह....
सुलगता हुआ
कोयला ...
हाथ मत लगाना
जल जाओगे
राख दिखती है
इसके चारों ओर
इसलिए
भ्रम में न आओ
फूंक मार कर देखो
निकलेंगी
इसके अन्दर से
तीव्रतम चिंगारियाँ
जो मुझे
जला डालेंगी
समग्रता से .
चाहती हूँ कि
कोई आए
और ढक ले मुझे
अपने पूरे वजूद से
इस तरह कि -
दम तोड़ दें
सारी चिंगारियाँ
अन्दर ही अन्दर
और शांत हो जाये मन
एक राख विहीन
ठंडे कोयले की तरह....
2 comments:
behtareen
इस तपिश से बच पाना कहाँ आसन है..?
नहीं बुझेंगी ये चिंगारियां इतनी आसानी से...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..!!
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