बीज ख्वाब के
>> Thursday, June 3, 2010
मन की
बंजर धरती पर
कुछ ख्वाब
बो दिए थे
अश्कों के
दरिया से सींचा
पर
पल्लवित न हुआ
एक भी ख्वाब
फिर
उतर आई एक
उदासी की घटा
कि अचानक
तेरी मुस्कान की
बिजली सी चमकी
और बरस गए
काले बादल
बेसाख्ता
अब
उजली सी धूप
निखर आई है
मन की
माटी भी
महक गयी है
आज फिर से
कुछ बीज
ख्वाब के
छींट दूंगी
मन की
धरती पर .....
36 comments:
wah kya baat hai.........man kee dharatee par bahar aakar bas jae ye hee duaa hai fir aur lubhavne geet khilenge aap kee bagiya me,,,,,,,,,
आज फिर से
कुछ बीज
ख्वाब के
छींट दूंगी
मन की
धरती पर .....
main sinch dungi
मन की
बंजर धरती पर
कुछ ख्वाब
बो दिए थे
अश्कों के
दरिया से सींचा
पर
पल्लवित न हुआ
वाह ! ख़ूबसूरत भाव !
तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है
सभी ब्लोगेर साथियों का तहे दिल से शुक्रिया .संजय रहेगा सदा कर्जदार आपका।
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2010/06/blog-post.html
आज फिर से
कुछ बीज
ख्वाब के
छींट दूंगी
धरती के बीज अनुकूलित वातावरण पा अंकुरित तो होंगे ही
सुन्दर रचना
Hi di..
Man ki dharti par khwab ke,
beej ankurit rahen sabhi..
Dua humari palvit hon wo..
Khwab koi tute na kabhi..
Kavita jab jab teri padhta..
Antar main halchal hoti hai..
Man ke bhav samete saare..
Kavita shabdon main dhalti hai..
Bahut sundar bhav aur ahsaas..
DEEPAK..
touching
आज फिर से
कुछ बीज
ख्वाब के
छींट दूंगी
इन पंक्तियों ने सब कुछ कह दिया ...ऐसा ही तो होता है अक्सर
बहुत ही सुन्दर लिखा है .
Oh! Man ke mausam kaa taqzaa yahi hai..!
कहाँ से लाती हैं आप ऐसी सोच और अहसास - लाजवाब
संगीता जी !
कविता भी लिखा करो . यह तो ऋचा है ।
सुंदर भाव के साथ.....बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
waah mam bahut sundar bhaav
आज फिर से
कुछ बीज
ख्वाब के
छींट दूंगी
मन की
धरती पर .....
बढ़िया भाव!
हकीकत के भी कुछ पौधे रोप ही देना!
तेरी मुस्कान की
बिजली सी चमकी
और बरस गए
काले बादल
बेसाख्ता
अब
उजली सी धूप
निखर आई है
वाह वाह क्या बात कही है ...ऐसी सकारत्मक सोच वाली कविता हमारे चेहरे पर मुस्कान ले आई...भले ही बिजली ना चमके :)
वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे।
बस जी आशाओं के बीज डाल दीजिये खाब अपने आप रूप धारण कर लेंगे...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
बधाई.
संगीताजी बहुत ही अच्छा लिखा है, बधाई।
आज फिर से
कुछ बीज
ख्वाब के
छींट दूंगी
मन की
धरती पर .....
बहुत अच्छे भाव .. सुंदर प्रस्तुतिकरण !!
संगीताजी,
सुंदर भाव....
....कि अचानक
तेरी मुस्कान की
बिजली सी चमकी
और बरस गए
काले बादल
बेसाख्ता
अब
उजली सी धूप
निखर आई है.....
वाह !
वाह !
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.
bahut sundar...bahut hi sakaratmak.
bahut achchha laga ise padhna
कुछ बीज
ख्वाब के
छींट दूंगी
मन की
धरती पर .....
क्या बात कही है? कितने प्यारे शब्दों में ढाला है आपने . कुछ कह रही हैं ये पंक्तियाँ.
बहुत ही सुन्दर भाव भरी रचना……………मन को भिगो गयी।
pahle mafi chahungi bahar hone ke karan aap sabhi ke blog par nahi aa saki samya se ,magar aaplog ka sahyog phir bhi bana raha ,mausam ke mutabik likhi gayi is sundar rachna ko padhkar man jhoom utha rahat ko liye .shukriyaan .ati sundar .
सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!
शुक्रिया
एक औरत से बेहतर' इस' शेर का मर्म और कौन समझ सकता है
ख्वाबों के बीज तो अच्छे लगे ही पर जुगलबंदी का अपना मज़ा है
khaab ugate hain jiski mitti me
us jazeere(iland) ko aankh kahte hain .. :)
mast nazm mumma...dekhiye ek sher ban gaya is pe...:)
Wahwa...Khoobsurat Kavita hai Sandeeta ji.... Sadhuwaad..
बंजर धरती पर कुछ भी पल्लवित करने के लिए...
काफ़ी श्रम चाहिए...
भावुक रचना...बेहतर...
ख्वाबों की उम्र कम होती है ... पर आपने अपनी रचना में भावनाओं के अनुपम ख्वाब सजाए हैं ...
तेरी मुस्कान की
बिजली सी चमकी
और बरस गए
काले बादल
kisi ke liye koi kitna ajiij ho sakta h ,ki uski ek muskrahat zindgi ka saar badal deti h ..
BAHUT KHOOB :):)
man ki mati par 'ankhon ke haathon mein bharkar'' beech main bhi chheent doongi...:D
hehehhehehe
badhaayi mumma..muaaaaaaaaaah !
aapke sab khwaab foolein falein aur Vat-Vriksh banein..:):)
bahot sunder.
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