शाश्वत सत्य
>> Wednesday, December 8, 2010
मौत,
जो निश्चित है,
सत्य है/
आज नही तो कल
तुमको मिलनी है.
क्या अहसास नही होता
तुमको उस बौनेपन का
उसी वस्तु को माँग कर
जो अंत में तुम्हारी ही है.
जीवन तुम्हारा है.
मौत तुम्हारी है.
बस-
इन दोनो के बीच का
अंतराल अज्ञात
इसी अज्ञात को
सुंदर बनाने की चाह में,
कुरूप बन जाता है वह क्षण
जब तुम मौत को आवाज़ देते हो.
जीवन / मृत्यु
दोनो ही शाश्वत सत्य
हमारी ज़िंदगी की धुरी के
चारों ओर घूमते हुए
दिन - ब - दिन
पास आते जाते हैं
तुम अज्ञात क्षणों को
कितना खुशनुमा बना सकते हो
ज़िंदगी के सुखद क्षणों को
कितना पहचान सकते हो
यह तुम्हारे उपर निर्भर है
आज -
आम आदमी.
ज़िंदगी नही मौत माँगता है.
क्यों ---
क्यों कि मौत ज़िंदगी से
निहायत सस्ती हो गयी है.
तुम-
यदि आम इंसान से उपर हो
तो ज़िंदगी को जिओ, और
मौत का इंतज़ार न करते हुए
ज़िंदा रहो, और
उन अज्ञात क्षणों को
उसको प्रतीक्षा में
मत व्यतीत करो
जो अंत में
तुमको मिलनी ही है
और केवल तुम्हारी ही है.
लेकिन- ज़िंदगी-
ज़िंदगी केवल तुम्हारी नही
इस सत्य को झुठला देते हैं सभी
पर-
इस सत्य पर भी तो सोचो कभी...
100 comments:
आज तो एकदम संतों वाली बात कर दी :)वैसे लोग बोलें कितना भी लेकिन मौत चाहता कोई नहीं है :)अच्छी अच्छी बातें सिखाईं हैं.प्रेरक रचना..
शाश्वत सत्य को बहुत ही सुन्दरता से उकेरा है…………सुन्दर रचना।
कुछ ऐसा ही मैने लिख रखा है कभी लगाऊँगी।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (9/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
सच्चाई का बोध कराती लाजवाब रचना ।
Vaastavikta se rubaru karaaya aapne!
आज तो आपने पूरा जीवन दर्शन ही समझा दिया . मनुष्य जान बूझकर भी अनजान बना रहता है . गंभीर बातो को शब्दों में ढाल दिया है आपने .
बहुत गहन जीवन दर्शन को व्याख्यायित करती एक सार्थक एवं प्रेरक पोस्ट !
तुम-
यदि आम इंसान से उपर हो
तो ज़िंदगी को जिओ, और
मौत का इंतज़ार न करते हुए
ज़िंदा रहो, और
उन अज्ञात क्षणों को
उसको प्रतीक्षा में
मत व्यतीत करो
जो अंत में
तुमको मिलनी ही है
बहुत सुन्दर सन्देश के साथ सकारात्मक प्रस्तुति ! इसे पढ़ कर दिल खुश हो गया ! आभार एवं शुभकामनाएं !
आत्महत्या करने वालों को जरूर पढनी चाहिए ये रचना ... कितना आसान है मौत मांगना .. पर जीवन जीना मुश्किल ही सही पर जीना चाहिए ... अच्छी है बहुत ..... .
बहुत ही संवेदनात्मक काव्य रचना
ज़िन्दगी को कई तरह से परिभाषित करती सुन्दर कविता
वाह!
मौत और जिन्दगी दोनों का रहस्य रचना में समझा दिया आपने तो!
--
जीवन जीने की प्रेरणा देती सुन्दर रचना!
बहुत ही विचारणीय पोस्ट. बहुत ही सही कहा आपने.
"इन दोनो के बीच का
अंतराल अज्ञात "
इस अज्ञात अंतराल को ही भरने की कोशिश है.....
बहुत सुंदर कविता.
Rekha Srivastava to me
show details 5:13 PM (59 minutes ago)
संगीता,
नेट गड़बड़ कर रहा है. पेस्ट नहीं हो रहा है. नीचे वाला कमेन्ट पोस्ट कर देना प्लीज .
ये दर्शन की पढ़ाई भी शुरू कर दी है क्या? पूरी कविता बड़े दार्शनिकों वाली लग रही है. वैसे शाश्वत सत्य को स्वीकार करना ही यथार्थ है.
एक सन्देश लिए कविता के लिए बहुत बहुत बधाई.
आदरणीय संगीता जी,
बहुत ही गहरी बात कही है आपने.
सादर
kitni badi sachchyee kah di aapne itni sunderta ke saath.
इसी अज्ञात को
सुंदर बनाने की चाह में,
कुरूप बन जाता है वह क्षण
जब तुम मौत को आवाज़ देते हो.
Mumma......bahut bahut bahut hi inspiring and powerful creation hai.....loved this one a lot....
woh majboori aur arooorat wali kavita yaad aa gayi...
bahut badhayi mumma.....bahut achhi kavita ke liye...
नींद भी तो रात भर नहीं आती ग़ालिब ;)
लिखते रहिये ....
जीवन तुम्हारा है.
मौत तुम्हारी है.
बस-
इन दोनो के बीच का
अंतराल अज्ञात
इसी अज्ञात को
सुंदर बनाने की चाह में,
कुरूप बन जाता है वह क्षण
जब तुम मौत को आवाज़ देते हो..
शाश्वत सत्य को रेखांकित करती बहुत ही गहन चिंतन से परिपूर्ण प्रेरक प्रस्तुति.आभार .
जीवन जीने के लिये हैं, मृत्यु की प्रतीक्षा के लिये नहीं।
संगीता दी!
जीवन और मृत्यु नितांत वैयक्तिक होते हैं..किंतु इसके बीच की यात्रा कई और जीवन के साथ साथ चलती है... मृत्यु का वरण किसी का व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है, किंतु उससे जुड़े कई जीवन को नष्ट करना उसके अधिकार से बाहर है!
बहुत ही दार्शनिक कविता!!
Very deep n thoughtful.. magar sumtymes death seems easier than to live..
sach kaha dadi aapne, zindagi keval apni nahin, is liye uska khaas khaayal rakhna chahiye, ye bhool jaate hai ham...
brilliant composition
जीवन के एक कटु सत्य को खूबसूरती से सामने लाती है ये पोस्ट
तुम अज्ञात क्षणों को
कितना खुशनुमा बना सकते हो
ज़िंदगी के सुखद क्षणों को
कितना पहचान सकते हो
यह तुम्हारे उपर निर्भर है
बस इन्ही बीच के क्षणों को जीना और सुख से जीना ही तो जिंदगी है और यही सुखद क्षण बाकी की जिंदगी को जीने की चाबी.
बहुत सकारात्मक सोच की ओर पाठकों को ले जाने का सुंदर प्रयास और मुकम्मल रचना पर बधाई.
सत्य का प्रकाश प्रज्वलित करती एक साकारात्मक रचना । आभार दी!
शाश्वत सत्य ....
दी, सच कहूं, तो कुछ कहा नहीं जा रहा इस रचना पर... इसलिए "मौन-आभार."
सत्य बात कही आप ने, जिस से सब आंखे बचाना चाहते हे, धन्यवाद
दर्शन की झलक है रचना में.
आज तो आप दार्शनिक बातें कर गईं।
जो लोंग हताश और निराश हो कर मौत की ख्वाहिश करते हैं उनके लिए सन्देश है।
यह कविता बहुत ही दार्शनिक है और लगता है आपने गहन अनुभूति के स्तर पर इसे जीया है, इसका सृजन किया है। हाँलाकि कविता में प्रयुक्त बिम्ब बहुत साधारण और सामान्य प्रयोग वाले हैं तथापि यह रचना आकर्षक है और भावविधान के दृष्टिकोण से यह पाठकों की संवेदना से सहज रुप से जुड़ जाती है।
मेरा नया बसेरा.......
मेरा नया बसेरा.......
sunder sandesh, satya vachan!
प्रेरक रचना !
बहुत गहन भाव लिए रचना |बहुत बहुत बधाई
आशा
जीवन तुम्हारा है.
मौत तुम्हारी है.
बस-
इन दोनो के बीच का
अंतराल अज्ञात
इसी अज्ञात को
सुंदर बनाने की चाह में,
कुरूप बन जाता है वह क्षण
जब तुम मौत को आवाज़ देते हो.
जीवन / मृत्यु
दोनो ही शाश्वत सत्य
पूरा जीवन दर्शन इन पंक्तियों में समाहित है. बेहद गंभीर रचना. माननीय और हर दिन पढ़ा जाने योग्य एक दार्शनिक रचना...आपने मेरा दिल जीत लिया और मै तो बार बार पढ़कर भी तृप्त नहीं हो पा रहा हूँ....सम्वेद्नावों को जागृत करती, मन को झकझोरती एक ऊर्जा प्रदायी गंभी रचना जो भावविभोर कर देती है....बहुत कुछ्ह छिपा है इसमें जितना ऊपर है उससे कैगुना अधिक गुह्य और गुप्त है लिकिन झांक रहा है उसे पकड़ना होगा, उस पर विचार करना होगा...बहुत दिनों बाद मिली एक ऐसी ऐसी पोस्ट जिसकी चाहत मन में सदा से रहती है ..आपके गूढ़ ज्ञान को सलाम .....
बड़ा दार्शनिक अंदाज है ,गहरे भाव और शाश्वत सत्य ।
आपकी अनुभूतियां जीवन और मौत के बीच की ख़ाई को कम करने में सभी को सहायक होंगी,, आमीन।
मौत जीवन का अंतिम सत्य ...मगर जीवन से बहुत अधिक सस्ता ....
दो पल के जीवन से एक उम्र चुरानी है ....!
मौत तो सत्य है ही, लेकिन जिंदगी भी महत्वपूर्ण है..
:)
क्या अहसास नही होता
तुमको उस बौनेपन का
सांगीता जी , बस इतना ही कहूँगा:-
तजुर्बे का पर्याय नहीं....................
आदरणीय संगीता जी
नमस्कार !
शाश्वत सत्य को रेखांकित करती बहुत ही गहन प्रस्तुति.आभार .
तुम अज्ञात क्षणों को
कितना खुशनुमा बना सकते हो
ज़िंदगी के सुखद क्षणों को
कितना पहचान सकते हो
यह तुम्हारे उपर निर्भर हो
यथार्थपरक कविता। ज़िंदगी को कैसे जिया जाए, यह हम पर ही निर्भर है।
बहुत सुन्दर लिखा आपने...बधाई.
______________
'पाखी की दुनिया' में छोटी बहना के साथ मस्ती और मेरी नई ड्रेस
jijivisha ko jagrit karnewali hai apki rachna...
sahi kaha hai apne ki zindgi par keval apna hi adhikar nahi hota balki wah uttardayee hoti hai sambandhon , samaj aur desh ke prati...
संगीता जी ब्लॉग पर पढ़ी हुई बेहतरीन रचनाओं में से एक
बहुत उम्दा !
आज इंसान परेशानियों से जूझने के बजाय इतनी आसानी से आत्महत्या का विकल्प चुन लेता है ,
इसी को आप ने शब्द दे दिये
मृत्यु शाश्वत सत्य है .. बढ़िया रचना ..... आभार
सच्च है मृत्यु मांगने से भी नहीं मिलती ....
जीवन को राह दिखाती है आपकी रचना ....
आपकी हर रचना प्रेरणादायक होती है ....
गहन अनुभव है आपमें ....
sakaratmakta kee disha me jo bhee kadam uthae jate hai sabhee ko prerna dete hai........nav shakti sancharit hotee hai........
aap bus aise hee anmol motiyo ko bikheratee rahiye........
aabhar
लेकिन- ज़िंदगी-
ज़िंदगी केवल तुम्हारी नही
इस सत्य को झुठला देते हैं सभी
पर-
इस सत्य पर भी तो सोचो कभी...
जीवन के सत्य को शब्द देती प्रेरणादायी रचना । आभार...
मेरी नई पोस्ट 'भ्रष्टाचार पर सशक्त प्रहार' पर आपके सार्थक विचारों की प्रतिक्षा रहेगी...
www.najariya.blogspot.com
नमस्कार संगीता जी !
आज पहली बार मै आपके ब्लॉग पे आई हूँ ,आपकी सभी रचनाएँ मैंने पढ़ी .बहुत ही अच्छी-अच्छी रचनाएँ मिली पढ़ने को सबसे अच्छी बात ये लगी की आपकी लेख सत्य के आस पास है .... बहुत सुन्दर .धन्यवाद !!!
क्या कहूँ? आपने तो निशब्द कर दिया.
लेकिन- ज़िंदगी-
ज़िंदगी केवल तुम्हारी नही
इस सत्य को झुठला देते हैं सभी
पर-
इस सत्य पर भी तो सोचो कभी.
जिन्दगी से ऊब चुके लोगो के लिए एक सुन्दर सन्देश देती रचना !
यह संसार का सबसे बडा आश्चर्य है कि एकदिन सभी को मरना है, लेकिन उस परम सत्य के बारे में कोई नहीं सोचता।
---------
त्रिया चरित्र : मीनू खरे
संगीत ने तोड़ दी भाषा की ज़ंजीरें।
बहुत बड़ा सत्य है मृत्यु... और हम छह कर भी इसे झुटला नहीं पाते...
बहुत सुन्दर रचना... मैंने भी इस पर कोशिश की है... जल्द ही आपके सामने प्रस्तुत करूंगी...
--
"तुम अज्ञात क्षणों को
कितना खुशनुमा बना सकते हो
ज़िंदगी के सुखद क्षणों को
कितना पहचान सकते हो
यह तुम्हारे उपर निर्भर है"
सत्य और सुन्दर !
मंजु
बहुत ही बेहतरीन रचना...मेरा ब्लागःः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे....धन्यवाद
सच के साथ दिक्कत ये है की उसकी व्याख्या नहीं हो सकती...
वाकई जिन्दगी सिर्फ हमारी तो नहीं..
मोहतरमा ,आपकी रचना शाश्वत सत्य से छोटे से जीवन के शाश्वत पहलुओं से रूबरू कराने के लिए शुक्रिया
कितना खुशनुमा बना सकते हो
ज़िंदगी के सुखद क्षणों को
कितना पहचान सकते हो
यह तुम्हारे उपर निर्भर है
बहुत ही प्यारा सन्देश दिया है आपने इन पंक्तियों में.
जिन्दगी तो बेवफा है इक दिन तो ठुकराएगी
मौत मेहबूबा है अपने साथ लेकर जाएंगी
बेहतरीन पोस्ट।
बहुत सही व सुंदर.
घुघूती बासूती
सच्चाई को आपने बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! शानदार रचना!
मृत्यु से सुन्दर कुछ भी नहीं।
जन्म और मृत्यु के सत्य से साक्षात्कार हो जाय तो मध्य का जीवन स्वतः सार्थक हो जाता है।
कवि जब स+अंत (अंत निश्चित) के भावों में बहता है तो संत हो जाता है।
jis satya ko aapne apne blog par likha hai us se koi anjaan nahin hai lekin log fir bhi duniyadaari ke jhajhal mein fanskar bure kaam kar dete hai..
aapka blog padhkar har koi vivash ho jayega ki wo aapke post par apne vichar vyakt kare aur yahi vivashta meri bhi hai..
main aapko badhai aur dhnayavaad deta hoon ki aapne itne keemti posts apne blog par likhe.
main is blogger par naya hoon aur thoda bahut likhne ki gustaakhi kar leta hoon to plzzz mera blogs
samratonlyfor.blogspot.com and
reportergovind.blogspot.com par apni ek najar daalein aur us par apne comment bhi karein..
thanx
मेरी इच्छा हो रही है कि इस रचना को उन सभी को पढ़ाऊं जो जीवन का अर्थ नहीं समझते....
प्रशंसा को शब्द नहीं मेरे पास...
आपकी ये रचना बार -बार पढ़ी तब भी ये मन कर रहा कि एक बार और पढूँ.
आपने जो ये जीवन -मरण का फ़लसफ़ा समझाया, ये बहुत ही अच्छा लगा.
संगीता आंटी..
जीवन का सत्य इतनी शालीनता और सुन्दरता से चित्रित किया है..मानो किसी ने कंद(चीनी) के ढेर पर नमक के ढेले बिखेर दिए..!!!
बहुत बहुत भाव पूर्ण कविता |
बधाई
आशा
लम्बे अरसे बाद इन गलियों में आया हूँ आपकी तीनों कवितायेँ पढ़ी हर एक दूसरी से बेहतर लगती है पढ़ते वक़्त ..और हां आपकी ये कविता सोचने पर मजबूर करती है....
.इस सत्य पर भी तो सोचो कभी.
प्रेरक रचना, जिंदगी और मौत के बीच के अन्तराल को सार्थक करने की सीख देती हुई सी!
वन्दना जी,
जिन्दगी की महता को खूबसूरती से उकेरते हुये..... कविता ने मन को छू लिया। नैराश्य में डूबे हुये लोग क्यों मौत माँगते है जबकि जिन्दगी भी माँगी जा सकती है।
बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पर सक्रिय हो रहा हूँ....
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आपकी हर रचना कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है। उमदा प्रस्तुति। बधाई।
मुकेश कुमार तिवारी जी,
यह रचना और ब्लॉग दोनो संगीता स्वरुप ( गीत )के है।
वाकई आप बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पर सक्रिय हो रहे है।:)
बहुत सुन्दर रचना ..जीवन की हकीकत के साथ जीते रहने की प्रेरणे ! आज १७-१२-२०१० को आपकी यह रचना चर्चामंच में रखी है.. आप वहाँ अपने विचारों से अनुग्रहित कीजियेगा .. http://charchamanch.blogspot.com ..आपका शुक्रिया
बहुत ही खुब लिखा है आपने......आभार....मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ जिस पर हर गुरुवार को रचना प्रकाशित नई रचना है "प्रभु तुमको तो आकर" साथ ही मेरी कविता हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" at www.hindisahityamanch.com पर प्रकाशित..........आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे..धन्यवाद
समयचक्र: हिंदी ब्लॉगों के लिए नये एग्रीगेटर के विकल्पों पर ...:
सुन्दर चित्र के साथ सुन्दर चिन्तन जो शाश्वत सत्य भी है
उसको प्रतीक्षा में
मत व्यतीत करो
जो अंत में
तुमको मिलनी ही है
जीवन दर्शन को समेटे हुए आपके इस पोस्ट में दो रचनाएँ हैं : प्रथम आपकी कविता और द्वितीय कविता के साथ लगा हुआ चित्र. दोनों अपने आप में सम्पूर्ण जीवन दर्शन को व्यक्त करने में सक्षम.
क्षमा चाहूँगा 8 दिसम्बर को पोस्ट की आपकी रचना तक 17 दिसम्बर को पहुँच पाया.
आपकी रचनाओ मे हमेशा कुछ सीखने को ही मिलता है ।
बस ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहिये
आभार
यदि आम इंसान से उपर हो
तो ज़िंदगी को जिओ, और
मौत का इंतज़ार न करते हुए
ज़िंदा रहो... zindagi ko nahin jaana to kuch nahi jaana ...
संगीता जी,
बहुत दिनों बाद आज आपकी एक और दर्शन से ओत-प्रोत रचना पढ़ी, यु तो सबको पता है की शाश्वत सत्य है मृत्यु, परन्तु फिर भी क्षण भंगुर जीवन की उद्वेलित लालसा प्रत्येक मनुष्य के जीवन घट को पुनः पुनः छलकती रहती है और वो सम्पूर्णता का मर्म भूल कर फिर इस जगत के बन्धनों मे सत्य से परे हो जाता है!
आभार ...
meree nayee post blog tuk nahee pahuch rahee.
koi system kee hee problem lag rahee hai....
mai kal lout aaee hoo....bitiya theek hai ......
जिंदगी के कटु सत्य से परिचित कराती शानदार कविता।
---------
छुई-मुई सी नाज़ुक...
कुँवर बच्चों के बचपन को बचालो।
यह एक शाश्वत सत्य है, साथ में अतिप्रश्न ही है। एक ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर हर बार मिलता है.............फिर भी वह उत्तर के लिये प्रतीक्षारत रहता है..............व्यक्ति जबतक इससे स्वयं नहीं गुजरता तब तक इसका अनुभव नहीं होता........पर व्यक्ति जब गुजरता है तब अनुभव का कोई महत्त्व नहीं रह जाता।
बहुत अच्छी........सच्ची अभिव्यक्ति है।
bahut khoobsurati se maut ko paribhashit kiya hai aapne....
बहुत ही गहन अभिव्यक्ति ....आभार
सुन्दर रचना।
शाश्वत सत्य..सुन्दर सन्देश देती रचना, धन्यवाद
संगीता जी!
ज़िंदगी केवल तुम्हारी नही
इस सत्य को झुठला देते हैं सभी
पर-
इस सत्य पर भी तो सोचो कभी...
सुन्दर, अतिसुन्दर पंक्तियां। आप बहुत अच्छा लिखती हैं।
गहरा चिन्तन। सुन्दर सन्देश। बधाई।
शाश्वत सत्य
--
शाश्वत सत्य, संगीता दी ये कविता मन को छू सी गई, दार्शनिक भावों के साथ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति का आभास होता है, आप साहित्यकार हैं, आपकी भावनाएं अथाह है,मेरे जैसे मामूली व्यक्ति उन्हें परिभाषित नहीं कर सकता, आपके स्नेह व् मार्गदर्शन की प्रतीक्षा हमेशा रहती है / नमन सह
शाश्वत सत्य मार्गदर्शन कराती हुई..
शाश्वत सत्य... सुन्दर रचना...
सत्य को प्रकट करता बहुत ही सुंदर संदेश. मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
http://monijain21dec.blogspot.com/
लेकिन- ज़िंदगी-
ज़िंदगी केवल तुम्हारी नही
इस सत्य को झुठला देते हैं सभी
पर-
इस सत्य पर भी तो सोचो कभी..
वाह दीदी कभी कभी आप सीधे अंदर तक झझकोर देते हो ...प्रणाम !
सुन्दर सन्देश के साथ सकारात्मक प्रस्तुति !
Post a Comment