देर आए दुरुस्त आए
>> Wednesday, December 14, 2011
बेख्याली में ही
गुज़ार दी सारी उम्र
इसी इंतज़ार में
कि
कभी तो कोई
रखे कुछ ख्याल
और जब आज
कोई अपना
रखता है
ज़रूरत से ज्यादा
ख़याल
तो अनिच्छा की
रेखाएं
खिंच जाती हैं
चेहरे पर,
वाणी में भी
उतर आता है
खीज भरा स्वर .
पर
अक्सर शाम को
करते हुए सैर
अपने से ज्यादा
उम्रदराज़ दम्पतियों को
जब देखती हूँ
हाथ में हाथ ले
बनते हैं सहारा
एक दूसरे का
तो
लगता है कि
शायद यही उम्र है
जिसमें रखा जाता है
सबसे ज्यादा ख्याल
और तब
मन में उभर आती है
बस एक सोच कि -
देर आए दुरुस्त आए .
75 comments:
और तब मन में उभर आती है
बस एक सोच कि -
देर आए दुरुस्त आए . शायद आपका कहना काफ़ी हद तक सही हो शुरुकी पंक्तियों मे कितना गहरा सच कहा है आपने ………मगर हम हमेशा समझौतावादी प्रवृत्ति ही अपनाते हैं और उसे भी प्यार ही समझ लेते हैं जो पता नहीहोता भी है या नही………या शायद एक जरूरत भर का ही रिश्ता होता है तब भी………इसी विषय पर मैने एक कविता लिख रखी है जल्द ही लगाऊँगी …………शायद ये मेरी भिन्न मानसिकता हो या मेरा वहम्।
हम भी आपके ब्लॉग पर देर आये दुरुस्त आये... सुन्दर अभिव्यक्ति
जब जगो तब सवेरा . किसी भी उम्र में हमसफर और सहारे की जरुरत होती है .
सचमुच उम्र के इस पडाव पर एक दूसरे के साथ की अहमियत बढ़ जाती है, मेरी सास पिछले ढाई वर्षों से बीमार हैं, ससुर जी एक बच्चे की तरह जब उनकी देखभाल करते हैं तो देखने वालों को रश्क होता है, कभी-कभी खीझ भी जाते हैं पर यह भी भीतर के प्रेम का ही एक रूप है.
और तब
मन में उभर आती है
बस एक सोच कि -
देर आए दुरुस्त आए .
Bilkul sahee farmaya aapne!
ये ही विश्वास-...है
सही बात है...देर आए दुरुस्त आए,सार्थक अभिव्यक्ति|
bahut hi gahri samvedanshil abhivyakti...
देर आए दुरुस्त आए.
कहाँ देर! मुझे तो बराबर दुरुस्त दिखाई दे रही हैं आप- भटक गईं है ऐसा कभी लगा नहीं !
ं
उम्र के इसी पड़ाव पर साथी की वेल्यु पता चलती है न :).सही मायनो में तो इसी उम्र में हनीमून पर जाना चाहिए.
बहुत प्यारी अभिव्यक्ति.
यही विस्वास तो उम्रभर हिलोरे लेता रहता है दिल में की कोई सिर्फ अपने साथ है बिलकुल अपना. हा ये अलग बात है की उम्र के अंतिम पड़ाव में ही सही किसी का हाथ तो मजबूती से मिला. बेहतरीन शब्दों से उकेरती संवेदनाये आपकी पहचान बन गयी है संगीता जी बधाई
सच उम्र के मुकाम पर एक सच्चे हमदर्द और हमसफ़र की बहुत ज़रूरत होती है जो सिर्फ ख्याल करे बिना किसी अपेक्षा के बिना किसी प्रतिदान की भावना से ! यथार्थ पर आधारित बहुत ही सुन्दर रचना !
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
जीवन है जबतक तब तक संभावनाएं हैं
जीवंत हृदय की कई अतृप्त अभिलाषाएं हैं
सभी एक एक कर पूरी हो
स्वप्न और वास्तविकता में न दूरी हो
रचना में हो रही एक नयी सबेर
सचमुच कहाँ हुई देर!!!
जब समझ में आ जाये, तभी जग जायें हम सब।
कितना अच्छा हो देर से नहीं आएं ... समय रहते ही दुरुस्त हो जाएं ...
बिलकुल सही कहा आपने,देर आये दुरूस्त आये.
सुंदर पोस्ट .....
मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
जहर इन्हीं का बोया है, प्रेम-भाव परिपाटी में
घोल दिया बारूद इन्होने, हँसते गाते माटी में,
मस्ती में बौराये नेता, चमचे लगे दलाली में
रख छूरी जनता के,अफसर मस्ती के लाली में,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो भूला नहीं न कहते, इसलिए देर आयद दुरुस्त आयद ...
इस उम्र में ही सबसे ज्यादा साथ की आवश्यकता होती भी है ..,
कोमल अहसासात....
सुन्दर रचना दी....
सादर...
अनुभूतियों के स्वर मुखर हो उठे हैं ...आखिर समृद्ध लेखनी का सानिध्य जो मिला ...... सुन्दर सृजन .
उम्र के ढलान पर ही साथ की आवश्यकता होती है।
बेहतरीन अभिव्यक्ति
हाँ सच कहा आपने ...दरअसल सबसे ज्यादा जरुरत होती है इस उम्र में एक दूसरे की ..सार्थक प्रस्तुति आभार
मुझे तो लगता है, ऐसा हर पल होता रहता है, अभिव्यक्ति का अंदाज़ अलग अलग होता है, हां हम समझने में देर कर देते हैं। फिर भी देर ही सही आए तो ...
शायद यही उम्र है
जिसमें रखा जाता है
सबसे ज्यादा ख्याल
हाँ साथ और साथी ज़रुरत सबसे जीवन इस दौर में ही होती है.....
der aaye durust aaye to un par fit baitha hai jinhone bekhayali me sari umr guzar di ki kabhi koi unka khayal rakhe....
imandaar prastuti.
आपके लेखन की सकारात्मकता और आशावादिता का मैं क़ायल हूँ. यही व्यवहार हमें मनुष्यता की ओर ले जाता है.
एक पूरी पीढ़ी को परिभाषित करती और उनके संबंधों को रेखांकित करती कविता.. संगीता दी, आभार!!
यह तो सच कहा आपने ....
हार्दिक शुभकामनायें आपको !
ख्याल रखने के लिए उम्रदराज होने का इन्तेज़ार कौन करे. ये आदत तो शुरू से डाल देनी पड़ेगी, जिससे बाद में अफ़सोस ना रहे. प्रेम की अनुभूति कभी भी मन को शीतलता प्रदान करती है.
सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई.
कलमकार का अपना अनुभव और अपनी अनुभूति ही किसी कृति को अलग खड़ा करने में सक्षम होती है। आ. दीदी, आप तो इस खेल में अच्छी महारत रखती हैं। एक छोटी सी कविता किस क़दर हमारे अन्तर्मन के कपाटों को खोलने में सक्षम होती है, उस का अद्भुत उदाहरण है यह कविता। सादर।
उम्रदराज़ दम्पतियों को जब देखती हूँ ..हाथ में हाथ ले ..बनते हैं सहारा ..एक दूसरे का ..
तो ..लगता है कि..शायद यही उम्र है ..जिसमें रखा जाता है
सबसे ज्यादा ख्याल ..aaderniya sangeeta ji..aapke rachnaayein padhkar aisa lagta hai jaise use mahshoos kiya ho..aapki rachnayein jindagi ki behtarin abhivyakti hoti hain.sadar pranam ke sath
दीदी ....
:) :) :) ..
खीजो मत ..वरना बाद में एक कविता लिखोगी कि दुरुस्त आये फिर भी समझने में देर कर दी .... :) :)
भावनाओं की यथावत अभिव्यक्ति ... हमेशा की तरह
मुदिता ...
देर आए दुरुस्त आए .........सांत्वना देने की बात लगती है !
अच्छी रचना ...
मैथिली में एक बड़ी प्यारी कथा हैः "मिझाइत दीप" अर्थात् "बुझता दीया"। इस कहानी में,जीवन के अंतिम पड़ाव पर दो बुजुर्ग मानो हर पल में अब तक की संपूर्ण यात्रा को समेटने की कोशिश करते हुए एक-दूसरे की अच्छाइयों को आपस में शेयर करते हैं। कविता पढ़ते हुए एकदम से ध्यान हो आया।
बहुत ही सही बात आप ने कहा..... उम्र का ये पड़ाव सहारा मांगता है.आहूत ही गहरे भाव है.
शहर कब्बो रास न आईल
फुर्सत के दो क्षण मिले, लो मन को बहलाय |
घूमें चर्चा मंच पर, रविकर रहा बुलाय ||
शुक्रवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-729:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
सरलता से गहरी बात।
और तब
मन में उभर आती है
बस एक सोच कि -
देर आए दुरुस्त आए .
..sach ant bhala to sab bhala...
bahut sundar abhivykati..
सुन्दर रचना,
बहुत सुंदर रचना !
कम्प्यूटर की खराबी के कारण हम भी आपके ब्लॉग पर "देर आए दुरुस्त आए"
आभार !!
बहुत सटीक और सार्थक प्रस्तुति।
नमस्ते, दीदी सदा की तरह सार्थक पोस्ट |प्यार और जरुरत की ओर इशारा करते हुए |सहारे के साथ ही अपनी स्वतंत्रता की भी चाह |हरवंश राय बच्चन जी ने भी लिखा है की "जीवन की आप-धापी में कब वक्त मिला जो बैठूं और सोचूं जो किया बुरा या भला "|आपकी संक्षिप्त और सुलझी हुई शैली सदैव मुझे प्रभवित करती है |
behtreen prstuti...
देर आए दुरुस्त आए
सिवाए इसके अब कुछ कहा भी न जाये ....!!
शुभकामनाएँ!
एकदम सही बात, आटे चावल का भाव तभी पता चल पाता है :) बहुत सुन्दर रचना !
बहुत भावपूर्ण रचना ...!
आभार !
बहुत भावपूर्ण रचना ...!
आभार !
एक छोटी सी कविता किस क़दर हमारे अन्तर्मन के कपाटों को खोलने में सक्षम होती है, उस का अद्भुत उदाहरण है
शायद यही उम्र है ..जिसमें रखा जाता है ख्याल
वो सुबह कभी तो आएगी.....
बस इसी इंतज़ार में
कट जाती है उमर.
खुशनसीब होते हैं
जो देर आते हैं
मगर दुरुस्त आते हैं.
कुछ इसी इंतजार में
चलते तो हैं,मगर
तय करना पड़ जाता है
अकेले ही रास्ता
और मानते हैं इस सत्य को कि
जिंदगी के सफर में
गुजर जाते हैं जो मकाम
वो फिर नहीं आते,
वो फिर नहीं आते...
सुंदर प्रस्तुति।
बेहतरीन लिखा है आंटी।
सादर
Behtareen bhav...
Bahut sundar
www.poeticprakash.com
गहन भावों का समावेश ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
bhawbhini.......madhur kavita.
बहुत ही सुन्दर कविता |
पता नहीं क्यों आप एकदम दिल की बात जान लेती हैं दी. यह उम्र आने पर ही पता चला की साथ क्या होता हैं ? क्यों माता -पिता बच्चे की शादी पर जोर देते हैं ..क्योकि उन्हें पता हैं की उम्र के इस मोड़ पर हमारा ख्याल रखने वाला कोई हैं ? और जब यह पता हैं तो कितना सुकून मिलता हैं कह नहीं सकती ...
बहुत सुंदर विचारो को आपने शब्दों में ढाला हैं दी .धन्यवाद आपकी लेखनी को ....
भावों की प्रचुरता...
सुन्दर रचना.....
पर
अक्सर शाम को
करते हुए सैर
अपने से ज्यादा
उम्रदराज़ दम्पतियों को
जब देखती हूँ
हाथ में हाथ ले
बनते हैं सहारा
एक दूसरे का
तो
लगता है कि
शायद यही उम्र है
जिसमें रखा जाता है
सबसे ज्यादा ख्याल
aapki ye paktiya bahut hi achchhi lagi. anubhav ki abhivyakti shayad aisi hi hoti hai
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति -एक युग यथार्थ ! :)
हम बेखुदी में उनको पुकारे चले गए ....न जाने क्यों यह याद आ गया सहसा :)
एक स्थाई भाव सा रहता है आपकी कविताओं का जो मुझे भी अच्छा लगता है
फिर कभी कहीं विस्तार से चर्चा करेगें ....एक अतिरिक्त सी चाहना ..एक अतिरिक्त सा लगाव ....
एक प्राणेर सी अकुलाहट :)
उम्र के चैथे चरण में व्यक्ति को भावनात्मक सहारे की अधिक आवश्यकता होती है।
सुंदर भावमयी कविता।
bahut khoob
बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना! मुझे भी आने में देर हो गई आपके ब्लॉग पर! देर आए दुरुस्त आए!
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
देर आये दुरुस्त आये सही कहा । इस उम्र में एक दूसरे के साथ की और ख्याल की सबसे ज्यादा जरूरत होती है । अक्सर पति ये अधिक करते हैं और पत्नियों को क्यूं कि इसकी आदत नही होती खीझ सी लगती है पर सोच विचार के बाद अच्चा लगता है कि कोई तो है जो हमारी परवाह करता है ।
सुंदर प्रस्तुति ।
लगता है कि
शायद यही उम्र है
जिसमें रखा जाता है
सबसे ज्यादा ख्याल
सच कहा आपने
hamesh ki tarah bahut shaandar prastuti.badhaai aapko.
आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (२२) में शामिल की गई है /कृपया आप वहां आइये .और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आपका सहयोग हमेशा इसी तरह हमको मिलता रहे यही कामना है /लिंक है
http://hbfint.blogspot.com/2011/12/22-ramayana.html
भले देर से आये मगर दुरुस्त आये.
सुन्दर प्रस्तुति.
Mera purana comment hi gum ho gaya :(
बहुत बढ़िया ..
देर आये दुरुस्त आये,लौट के बुद्धू घर आये,..
सुंदर रचना,....
मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
आफिस में क्लर्क का, व्यापार में संपर्क का.
जीवन में वर्क का, रेखाओं में कर्क का,
कवि में बिहारी का, कथा में तिवारी का,
सभा में दरवारी का,भोजन में तरकारी का.
महत्व है,...
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
me bhi yahi sochti hoon sachchha pyar to yahi hai aapki baat bilkul sahi hai
badhai
rachana
vah bahut sundar ... abhar.
सुन्दर अभिव्यक्ति
दुरुस्त होने में देरी हो ही जाती है . सुन्दर कविता..
वाह ... बहुत खूब
सुन्दर एहसास
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