स्मृतियों में रूस ... ( शिखा वार्ष्णेय ) ..मेरी नज़र से
>> Tuesday, December 20, 2011
शिखा वार्ष्णेय ब्लॉग
जगत का जाना माना नाम है पत्रकारिता में उन्होंने तालीम हासिल की है और स्वतंत्र पत्रकार के रूप में वो लेखन कार्य
से जुडी हुई हैं .. आज उनकी पुस्तक “ स्मृतियों में रूस “ पढ़ने
का सुअवसर मिला .. यह पुस्तक उनके अपने उन अनुभवों पर आधारित है जो उनको अपनी
पत्रकारिता की शिक्षा के दौरान मिले ..पाँच वर्ष के परास्नातक के पाठ्यक्रम को
करते हुए जो कुछ उन्होंने महसूस किया और भोगा उस सबका निचोड़ इस पुस्तक में पढ़ने को
मिलता है .उनकी दृष्टि से रूस के संस्मरण पढ़ना निश्चय ही रोचक है . स्कॉलरशिप के
लिए चयन होने पर भारतीय माता पिता के मनोभावों की क्या दशा होती है उसको सुन्दर
शैली में बाँधा है--
"आयोजन कर्ता सब करेंगे और अकेली थोड़े न जा रही है और ३० बच्चे हैं सब इसी की उम्र के होंगे.पापा बोले जा रहे थे कहने को तो यह सब वह मम्मी से कह रहे थे जो कि नाते रिश्तेदारों की बातों से परेशान थीं "
"आयोजन कर्ता सब करेंगे और अकेली थोड़े न जा रही है और ३० बच्चे हैं सब इसी की उम्र के होंगे.पापा बोले जा रहे थे कहने को तो यह सब वह मम्मी से कह रहे थे जो कि नाते रिश्तेदारों की बातों से परेशान थीं "
नए देश में सबसे पहले
समस्या आती है भाषा की ..और इसी का खूबसूरती से वर्णन किया है जब उनको अपने बैचमेट
के साथ चाय की तलब लगी ...
"हम कैफे आ गए. और शुरू हुई मुहीम वहां अटेंडेंट को चाय समझाने की .अपने हाव भाव से, कुछ अंग्रेजी को तोड़-मोड़ के, घुमा घुमा का होंट, बनाकर मुंह टेढ़े मेढे, वह महोदय हो गए शुरू. अब हमारा वह मित्र कहे टी-... टी ..., फॉर टी प्लीज. पर वह महिला समझ ही नहीं पा रही थी."
"हम कैफे आ गए. और शुरू हुई मुहीम वहां अटेंडेंट को चाय समझाने की .अपने हाव भाव से, कुछ अंग्रेजी को तोड़-मोड़ के, घुमा घुमा का होंट, बनाकर मुंह टेढ़े मेढे, वह महोदय हो गए शुरू. अब हमारा वह मित्र कहे टी-... टी ..., फॉर टी प्लीज. पर वह महिला समझ ही नहीं पा रही थी."
अनेक तरह से समझाने
का प्रयास करने के बाद पता चला कि रुसी में भी चाय को चाय ही कहते हैं .
शिखा ने अपनी पुस्तक में मात्र अपने अनुभव
नहीं बांटे हैं ... अनुभवों के साथ वहाँ की संस्कृति , लोगों के व्यवहार , दर्शनीय स्थल का
सूक्ष्म विवरण , उस समय की रूस की
आर्थिक व्यवस्था , राजनैतिक
गतिविधियों सभी पर अपने विचार प्रस्तुत किये हैं .जिससे पाठकों को रूस के
बारे में अच्छी खासी जानकारी हासिल हो जाती है ..
रुसी लोग कितने सहायक होते हैं इसकी एक झलक
मिलती है जब भाषा सीखने के लिए
उन्हें वोरोनेश भेजा गया .और जिस तरह वह एक
रुसी लडकी की मदद से वो यूनिवर्सिटी पहुँच पायीं उसका जीवंत वर्णन पढ़ने को
मिलता है .
उस समय रूस में बदलाव हो रहे
थे ---और उसका असर वहाँ की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा था ..इसकी झलक भी इस पुस्तक
में दिखाई देती है .
"आर्थिक तंगी का असर लोगों के काम पर उनके व्यक्तित्व पर जाहिर तौर पर पड़ रहा था नौजवान रूसियों में विदेशियों के खिलाफ मानसिकता जन्म लेने लगी थी.गहरे रंग वाले विदेशियों को मारने पिटने की कई घटनाये सामने आने लगी थीं यहाँ तक कि कुछ हत्याओं की घटनाएँ भी सुनने में आने लगीं थीं."
"आर्थिक तंगी का असर लोगों के काम पर उनके व्यक्तित्व पर जाहिर तौर पर पड़ रहा था नौजवान रूसियों में विदेशियों के खिलाफ मानसिकता जन्म लेने लगी थी.गहरे रंग वाले विदेशियों को मारने पिटने की कई घटनाये सामने आने लगी थीं यहाँ तक कि कुछ हत्याओं की घटनाएँ भी सुनने में आने लगीं थीं."
वहाँ के दर्शनीय
स्थलों की जानकारी काफी प्रचुरता से दी गयी है ... इस पुस्तक में रुसी लडकियों की
सुंदरता से ले कर वहाँ के खान पान पर भी विस्तृत दृष्टि डाली गयी है ..यहाँ तक की
वहाँ के बाजारों के बारे में भी जानकारी मिलती है ..
शिखा ने जहाँ अपने इन
संस्मरणों में पाँच साल के पाठ्यक्रम के तहत उनके साथ होने वाली घटनाओं और उनसे
प्राप्त अनुभवों को लिखा है वहीं रूस के वृहद् दर्शन भी कराये हैं ...
इस पुस्तक को पढ़ कर विदेश में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को किस किस कठिनाई से
गुज़रना पड़ता है इसका एहसास हुआ ..इतनी कम उम्र में अनजान देश और अनजान लोगों
के बीच खुद को स्थापित करना , आने वाली हर कठिनाई का सामना करना ,भावुक क्षणों में
भी दूसरों के सामने कमज़ोर न पड़ना , गलत को स्वीकार न करना और हर हाल में सकारात्मक
सोच ले कर आगे बढ़ना . ये कुछ लेखिका की विशेषताएँ हैं जिनका खुलासा ये पुस्तक करती
है . पुस्तक पढते हुए मैं विवश हो गयी यह सोचने पर कि कैसे वो वक्त निकाला
होगा जब खाने को भी कुछ नहीं मिला और न ही रहने की जगह .प्लैटफार्म पर रहते हुए
तीन दिन बिताने वो भी बिना किसी संगी साथी के ..इन हालातों से गुज़रते हुए और
फिर सब कुछ सामान्य करते हुए कैसा लगा होगा ये बस महसूस ही किया जा
सकता है ..
हांलांकि यह कहा जा सकता है कि पुस्तक की भाषा साहित्यिक न हो कर आम बोल – चाल की भाषा है ..
पर मेरी दृष्टि में यही इसकी विशेषता है ... पुस्तक की भाषा में मौलिकता है और यह
शिखा की मौलिक शैली ही है जो पुस्तक के हर पृष्ठ को रोचक बनाये हुए है
..भाषा सरल और प्रवाहमयी है जो पाठक को अंत तक बांधे रखती है कई जगह चुटीली
भाषा का भी प्रयोग है जो गंभीर परेशानी में भी हास्य का पुट दे जाती है --
"अब उसने भी किसी तरह हमारे शब्द कोष में से ढूँढ ढूँढ कर हमसे पूछा कि कहाँ
जाना है. हमने बताया. अब उसे भी हमारे उच्चारण पर शक हुआ. इसी तरह कुछ देर शब्दकोष के साथ हम दोनों कुश्ती करते रहे अंत में हमारा दिमाग चला और हमने फटाक से अपना यूनिवर्सिटी का नियुक्ति पत्र उसे दिखाया."
.हाँलांकि इस
पुस्तक के कुछ अंश हम शिखा के ब्लॉग स्पंदन पर पढ़ चुके हैं लेकिन उसके अतिरिक्त भी
काफी कुछ बचा था जो इस पुस्तक के ज़रिये हम तक पहुंचा है
पुस्तक में दिए गए रूस के दर्शनीय स्थलों
के चित्र पुस्तक को और खूबसूरती प्रदान कर रहे हैं . कुल मिला कर रोचक अंदाज़
में रूस के बारे में जानना हो तो यह पुस्तक अवश्य पढ़ें ..
पुस्तक -- स्मृतियों में रूस
लेखिका - शिखा वार्ष्णेय
प्रकाशक - डायमंड पब्लिकेशन
मूल्य -- 300 /रूपये
Diamond Pocket Books (Pvt.) Ltd.
X-30, Okhla Industrial Area, Phase-II,
New Delhi-110020 , India
Ph.+91-11- 40716600 , 41712100, 41712200
Fax.+91-11-41611866
Cell:+91-9810008004
Email: nk@dpb.in,
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New Delhi-110020 , India
Ph.
Fax.
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45 comments:
शुरुआत मैं ही कर रहा हूँ!! बधाई आपको इस त्वरित समीक्षा के लिए!! शिखा जी को इस (एक और पंख उनकी टोपी में) उपलब्धि के लिए और हम पाठकों को उनसे संबद्ध होने का गौरव हासिल करने के लिए!!
आपकी कलम से पढ़ना और भी सहज़ लगा ..शिखा जी को इस उपलब्धि पर बहुत-बहुत बधाई आपका प्रस्तुति के लिए आभार ।
Bahut badhiya sameeksha kee hai! Shikhaji ko anek shubh kamnayen!
:)))
sangeeta di ki samikshha se lag raha hai ki ye book wastav me padhne layak hai.. beshak free me na mile to paise lagaye ja sakte hain, wo alag baat hai isko kharidne ke liye gullak fodna pade:))
badhai dil se:)
सोवियत संघ के ज़माने में,मुझे दूतावासों और रेडियो स्टेशनों से काफी सामग्री मिलती थी। ऐसी पुस्तक उन यादों को सहेजने का काम करेगी।
मेरी प्रति तो कोरियर वाले के पास है . सुँदर समीक्षा , पढने की उत्सुकता बढाती हुई .
शिखा वार्ष्णेय ji dwara likhit स्मृतियों में रूस ki sundar dhang se sameeksha padhkar bahut achha laga...
swadeshi aur videshi ki bhawana ka yatharth chitran dekhne ko mila, jise dekh man dukhi to hota hai lekin sabki apni-apni mansikta hai...
bahut badiya pustak sameekasha ke liye aapka aabhar!
shikha jee kee is uplabdhi par unko hardi badhayee..aapne bahut he sanchipt me kitab ke bishay me puri jaankari dekar padhne kee jigyasa paida kar dee..iske liye aapko bhee hardik badhayee...sadar pranam ke sath
इस पुस्तक के सम्बन्ध बिशेष जानकारी देने एवं शिखा जी की इस उपलब्धी के लिए बहुत२ बधाई...
नये पोस्ट की चंद लाइनें पेश है.....
पूजा में मंत्र का, साधुओं में संत का,
आज के जनतंत्र का, कहानी में अन्त का,
शिक्षा में संस्थान का, कलयुग में विज्ञानं का
बनावटी शान का, मेड इन जापान का,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
शिखा जी की इस उपलब्धी के लिए बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं... संगीता जी आप की समीक्षा बहुत सहज और बहुत रोचक ्लगी ..आप को भी बहुत बहुत बधाई ...
यूँ तो शिखा जी के ब्लोग पर काफ़ी वृतांत पढे हैं और आपके कहे से सहमत हूं ऐसी परिस्थितियो मे रहना और खुद को संभालना और फिर उसे लेखनी बद्ध करना कोई आसान काम नही…………आपने बहुत सुन्दर और सटीक समीक्षा की है…………शिखा जी को इस उपलब्धि पर हार्दिक बधाई और शुभकामनायें………ये उडान जारी रहे।
शिखा को ढेरों बधाई और आपकी नज़र से शिखा की किताब - इस बारीकी में सबकुछ है
sunder evam vistrit sameeksha.
पुस्तक चर्चा पढ़कर अच्छा लगा.शिखा जी को बधाई.आपका समीक्षात्मक श्रम भी प्रशंसा योग्य है.
समस्त ब्लॉगजगत के लिए गर्व का विषय है ....
शिखा वार्ष्णेय बेहद प्रतिभावान लेखिका हैं , उनके संस्मरणों दिलचस्प और बांधे रखने की क्षमता रखते हैं ! आपका आभार कि यह जानकारी और बेहतरीन समीक्षा पढने को मिली !
बधाई उनको !
रूस के बारे में कितना कुछ अनजाना है, यह पुस्तक उस धुंध को हटाने में सहायक होगी।
शिखा जी को बधाई और शुभकामनाएं और आपको आभार इस बेहतरीन समीक्षा के लिए।
शिखा जी को बधाई एवं आपका बहुत बहुत आभार
शिखा जी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें भी आपका भी आभार इसकी बेहतरीन समीक्षा के लिए....
बहुत अच्छी समीक्षा . शिखा जी को बधाई......
संस्मरण लिखने का रोचक अंदाज़ शिखा के ब्लॉग पर पहले भी पढ़ा ही है , कुछ अंशों में ही सही ...
शिखा को बहुत बधाई और शुभकामनायें और समीक्षा के द्वारा किताब से रूबरू करवाने के लिए आपका बहुत आभार !
शिखा जी को शुभकामनाएं।
हार्दिक सुभकामनाएँ शिखा जी की इस उपलब्धि के लिए ,आपकी समीक्षा बहुत दिलचस्प है !
बहुत अच्छी समीक्षा की है !
बधाई आपको भी और शिखा जी को !
पुस्तक और उसके कथ्य पर आपने बहुत सहज भाषा में जानकारी दे है. इस समीक्षा ने पुस्तक को सही परिप्रेक्ष्य में यहाँ रख दिया है. आभार.
....पुस्तक चर्चा पढ़कर अच्छा लगा......
....शिखा जी को बधाई......
शिखा जी के संस्मरण, कविता और लेख रोचक शैली और दिलचस्प होते हैं ... बधाई है उनको इस पुस्कत के लिए एयर आपको इस लाजवाब समीक्षा के लिए ...
शिखा जी की पुस्तक की समीक्षा पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ! पढने की उत्सुकता बढ़ गयी है ! उन्हें इस उपलब्धि के लिये हार्दिक बधाई एवं इतनी सुन्दर एवं सार्थक समीक्षा के लिये आपका व आपकी लेखनी का हृदय से अभिनन्दन !
अच्छी समीक्षा
पुस्तक की जानकारी देने एवं शिखा जी की इस उपलब्धी के लिए बहुत-बहुत बधाई...
बहुत सुन्दर एवं उम्दा समीक्षा रहा! पढ़कर बहुत आनंद मिला!
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
शिखा जी की पुस्तक के विषय में आपकी परिचयात्मक समीक्षा पढ़ने का चाव जगानेवाली है .यों भी शिखा जी का लेखन जानकारी के साथ रुचिकर होता है .
उन्हें बधाई ,एवं शुभ-कामनायें !
(कल इस पर टिप्पणी लिखी थी पता नहीं कहाँ ग़ायब हो गई )
बहुत सुंदर समीक्षा...शिखा जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
बहुत ही बढ़िया समीक्षा की गई है.आपको बधाई.शिखा जी को नये सोपान रचने की शुभकामनायें.
पुस्तक और पुस्तक की समीक्षा के लिए शिखा जी को और आपको ढेरों बधाई और शुभकामनाएँ|
आपकी समीक्षा उत्सुकुता बढाती है दी...
शिखा जी को सादर बधाई...
सादर. आभार.
यह पुस्तक तो पढ़नी ही पड़ेगी। शिखा जी को बहुत बधाई। आभार आपका जानकारी के लिए।
शिखा जी के लेखन के तो हम प्रशंशक रहे ही हैं,पर आपने जिस शैली में समीक्षा की, उत्सुकता खूब बढ़ गयी...
आभार इस रोचक जानकारीपरक प्रविष्टि के लिए...
शिखा जी कों बधाई ..वैसे बड़ा ही रोचक समीक्षा किया है आपने . आभार..
संगीता आंटी के सुंदर शब्दों में शिखा जी के पुस्तक की समीक्षा पढ़ना बहुत अच्छा लगा.....शिखा जी को बधाईयाँ।
यात्रा संस्मरण के रूप में शिखा जी की पुस्तक की समीक्षा उसे पढ़ने की उत्कंठा जगा गई है।
आभार आपका।
sameeksha ke liye hardik badhai... achha lga Shikha ji ko bhi Hardik badhai.... mere nye post pr apka amantran hai
अरे वाह ......
शिखा जी .....??????
बहुत बहुत बधाई ...:))
जानकारी के लिए आभार,...शिखा जी को बधाई..
मेरे नए पोस्ट के लिए--"काव्यान्जलि"--"बेटी और पेड़"--में click करे
शुक्रिया तो अब छोटा पढ़ेगा इसलिए नहीं कहूँगी. आपकी नजर से यह पुस्तक चमक उठी दी!.
सभी पाठक मित्रों का भी तहे दिल से आभार.
सही मायने में पुस्तक कि सच्ची समीक्षा दीदी ! बहुत खूब ..मैंने पढ़ लिया दीदी पुस्तक ! :)
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