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पिघलती बर्फ

>> Tuesday, February 16, 2021

बसन्त आगमन का दिन ही 
चुन लिया था मैंने
बासंती जीवन के लिए .
पर  बसंत !  
तुम तो न आये ।

ऐसा नहीं कि 
मौसम नहीं बदले 
ऐसा भी नहीं कि 
फूल नहीं खिले 
वक़्त बदला 
ऋतु बदली 
पर बसन्त !
तुम तो न आये । 

सजाए थे ख्वाब रंगीन 
इन सूनी आँखों में 
भरे थे रंग अगिनत 
अपने ही खयालों में 
कुछ हुए पूरे 
कुछ रहे अधूरे 
पर बसन्त !
तुम तो न आये ।

बसन्त तुम आओ 
या फिर न आओ 
जब भी खिली होगी सरसों 
नज़रें दूर तलक जाएंगी 
और तुम मुझे हमेशा 
पाओगे अपने इन्तज़ार में ,
बस बसन्त ! 
एक बार तुम आओ । 

*****************

अचानक
ज़रा सी आहट हुई
खोला जो दरीचा
सामने बसन्त खड़ा था 
बोला - लो मैं आ गया 
मेरी आँखों में 
पढ़ कर शिकायत 
उसने कहा 
मैं तो कब से 
थपथपा रहा था दरवाजा 
हर बार ही 
निराश हो लौट जाता था 
तुमने जो ढक रखा था 
खुद को मौन की बर्फ से 
मैं भी तो प्रतीक्षा में था कि
कब ये बर्फ पिघले 
और 
मैं कर सकूँ खत्म
तुम्हारे चिर इन्तज़ार को ।
और मैं - 
किंकर्तव्य विमूढ़ सी 
कर रही थी स्वागत 
खिलखिलाते बसन्त का । 



24 comments:

जिज्ञासा सिंह 2/16/2021 1:51 PM  

बहुत सुन्दर रचनाएं आदरणीय दीदी, निराशा में भी, आशा में भी, बसंत कभी निराश नहीं करता..सुन्दर संदेश देती समसामयिक रचना..

जितेन्द्र माथुर 2/16/2021 3:04 PM  

बहुत सुंदर । सचमुच बहुत ही सुंदर सृजन ।

Anita 2/16/2021 3:07 PM  

बहुत दिनों बाद आपको पढ़ना एक सुखद अनुभव है, अति सुंदर रचना !

shikha varshney 2/16/2021 3:51 PM  

शब्दों में उतर कर भी आ गया है बसंत

आलोक सिन्हा 2/16/2021 8:26 PM  

बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय प्रस्तुति

प्रतिभा सक्सेना 2/17/2021 2:51 AM  

हिम का आवरण हटते ही प्रत्यक्ष हो जाता है एक सुन्दर परिवेश,ऋतुओं का जादू अनायास सब को छा लेता है और नयन विस्मित देखते रह जातेहैं.

Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल 2/17/2021 7:58 AM  

सुन्दर सृजन, बसंत के निःश्वासों से गुथी रचना मुग्ध करती है। बहुत दिनों के बाद आदरणीया आपकी उपस्थिति मन को हर्ष प्रदान करती है - - नमन सह।

Onkar 2/17/2021 10:49 AM  

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

Kamini Sinha 2/17/2021 11:50 AM  

बसंत में मन स्वतः ही कभी उदास हो जाता कभी खुद-ब-खुद खिलखिला उठता है।
मन के इस भावों की बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीया संगीता जी,सादर नमस्कार आपको

Jyoti Dehliwal 2/17/2021 12:05 PM  

आशा का संचार करती सुंदर प्रस्तुति।

Tarun / तरुण / தருண் 2/17/2021 1:32 PM  

आदरणीया
बसंत को समर्पित मनोहारी रचना के लिए बधाई !

जय हो !

Amrita Tanmay 2/17/2021 2:03 PM  

बसंत किसी भी बर्फ को आखिर पिघला ही देता है । अति सुन्दर ।

Sweta sinha 2/18/2021 10:50 AM  

बेहद खूबसूरत भावाव्यक्ति।

सादर।

वाणी गीत 2/18/2021 12:54 PM  

वसंत हमारे आसपास ही होता है. अपनी उलझनों मेंघिरे हम ही देख नहीं पाते उसे ...
सुंदर भाव!
आपको ब्लॉग पर नियमित देखना अच्छा लग रहा!

दिगम्बर नासवा 2/18/2021 1:29 PM  

मौसमी बसंत तो आता है हर बार ... पर जीवन में कई बार प्रतीक्षा के बावजूद भी धोखा दे जाता है ... प्रतीक्षा लम्बी हो जाती है ...
यही जीवन है ...

Dr Varsha Singh 2/18/2021 8:01 PM  

उत्कृष्ट कविता...

आपकी लेखनी को प्रणाम आदरणीया 🙏

Dr Varsha Singh 2/18/2021 8:04 PM  

कृपया इस लिंक पर भी पधारने का कष्ट करें....

जयद्रथ, जयंत और स्त्री की मर्यादा

A rai 2/18/2021 10:21 PM  

रसराज आगमन का मार्ग प्रशस्त हुआ। प्रणाम।

ज्योति सिंह 2/19/2021 11:29 AM  

बेहद खूबसूरत दोनों रचना, अलग ही रंग लिए हुए हैं , शुक्र है आज कंमेंट कर पाई , नही तो कई बार पढ़ कर यू लौटना पड़ा ।
नमस्कार संगीता जी और धन्यबाद भी

Dr (Miss) Sharad Singh 2/19/2021 6:21 PM  

अचानक
ज़रा सी आहट हुई
खोला जो दरीचा
सामने बसन्त खड़ा था
बोला - लो मैं आ गया

कोमल भावनाओं से ओतप्रोत बहुत सुंदर रचना... 🌹🙏🌹

Meena Bhardwaj 2/20/2021 3:24 PM  

कोमल भावों की मनमोहक अभिव्यक्ति । अत्यन्त सुन्दर सृजन ।

Madhulika Patel 2/20/2021 11:32 PM  

बसन्त को समर्पित अदभुत रचना,आप की लेखनी को सादर नमन,आदरणीया शुभकामनाएँ ।

सदा 2/22/2021 5:35 PM  

खिलखिलाते बसन्त का स्वागत ... आनन्दित कर रहा है ...
आपका आना किसी बसन्त से कम है क्या ..
स्वागत ... वंदन ... अभिनन्दन ...💐💐

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