हु - तू - तू .......
>> Thursday, May 26, 2022
हु तू तू - हु तू तू
करते हुए
खेलते रहते हम
ज़िन्दगी के मैदान में
हर वक़्त कबड्डी ।
हाँलांकि ,
कबड्डी के खेल में
होती हैं दो टीम
और हर टीम में
खिलाड़ी की संख्या
होती है बराबर ।
लेकिन
ज़िन्दगी के मैदान में
होती तो हैं दो ही टीम ,
लेकिन
तुम्हारीअपनी टीम में
होता है एक खिलाड़ी
और वो
तुम स्वयं हो ।
दूसरी टीम में
वो सब जो
जुड़े होते हैं
किसी भी रूप में
तुम्हारी ज़िन्दगी से ,
खुद को
बचाये रखने की
ज़द्दोज़हद
अक्सर बुलवाती रहती है
कबड्डी , कबड्डी , कबड्डी ।
क्यों कि
ज़िन्दगी की हु तू तू में
तुमको जिंदा करने के लिए
कोई साथी नहीं है ।
लड़नी है
खुद ही खुद के लिए
सारी लड़ाइयाँ ।
और इस खेल में
हार की
कोई गुंजाइश नहीं ।
33 comments:
ज़िन्दगी की हु तू तू में
तुमको जिंदा करने के लिए
कोई साथी नहीं है ।
लड़नी है
खुद ही खुद के लिए
सारी लड़ाइयाँ ।
और इस खेल में
हार की
कोई गुंजाइश नहीं ।
वाह…संगीता जी बहुत गहरी बात …!
वो भी कबड्डी का। अकेले पूरी टीम से जूझ कर निकलना है 👌👍
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२७-०५-२०२२ ) को
'विश्वास,अविश्वास के रंगों से गुदे अनगिनत पत्र'(चर्चा अंक-४४४३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
zindgi ki ek paribhasha ye bhi hai jo aapne ki hai. varna sbke liye to zindgi ka apna path apni samiksha.
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ मई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
शानदार खेल
एक आऊट तो दूसरा इन
सादर नमन
एक विजयी खिलाड़ी की गगनभेदी गर्जन..... हर हाल में जीत के लिए उकसाता हुआ स्वर। हू-तू-तू---- हुर्रे।
अहा!
मन में उतरती रचना । सच यही तो है जीवन का यथार्थ ।
ज़िन्दगी की हु तू तू में
तुमको जिंदा करने के लिए
कोई साथी नहीं है ।
लड़नी है
खुद ही खुद के लिए
सारी लड़ाइयाँ ।
सौ फ़ीसदी सच .., प्रेरक भावाभिव्यक्ति ।
गहन भाव रचना के, जीवन दर्शन लिए हुए
जीवन के खेल की सही सीख देती रचना बहुत बढ़िया
हार की कोई गुंजाइश नहीं और कभी-कभी जीतने की कोई संभावना दिखलाई नहीं देती
उम्दा रचना : साधुवाद
यहाँ हार की कोई गुंजाइश नहीं, क्योंकि जीतना भी अपनों से हैं और हारना भी अपनों से, प्रीत की गली में कोई दूसरा है ही कहाँ!
खुद को
बचाये रखने की
ज़द्दोज़हद
अक्सर बुलवाती रहती है
कबड्डी , कबड्डी , कबड्डी ।
क्यों कि
ज़िन्दगी की हु तू तू में
तुमको जिंदा करने के लिए
कोई साथी नहीं है ।
वाह!!!
क्या बात .... सचमुच कबड्डी सी जिन्दगी... हर तरफ से टाँग खिंचाई..
बहुत ही लाजवाब एवं विचाररणीय सृजन।
अद्भुत , जीवन का कटु सत्य कहती रचना।
सच जिंदगी में सबके साथ खेलते हुए भी अकेले ही अपना खेल खेलना होता है
जिंदगी की हु तू तू - हु तू तू ऐसा खेल जो पारी नहीं बदलता बस आपको ही हमेशा जीत कर आना होता है विरोधियों से ।
आपको गिर कर उठना भी है और फिर जूझना भी है।
गहन भाव लिए सुंदर सृजन।
अच्छा संदेश देती सुंदर रचना
वाह
बहुत बढ़िया प्रिय दीदी ! एक संघर्ष का प्रतीक है कबड्डी ।जीवन के मैदान का खेल कबड्डी से भिन्न भले हो उसका संघर्ष सामूहिक नहीं एकल होता है। वही उसे गिराने को बहुत लोग तैयार बैठे रहते हैं।बहुत सार्थकता से एक बेबाक दर्शन की भावपूर्ण अभिव्यक्ति हुई है रचना में।हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई स्वीकार करें।🙏🙏🌺🌺🌷🌷
लड़नी है
खुद ही खुद के लिए
सारी लड़ाइयाँ ।
बिल्कुल सही दी, कबड्डी के मैदान में भी साथी भले ही अनेकों होते हैं मगर विरोधियों का सामना तो अकेले ही करना होता है। जीवन में भी अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होती है और जीतना हारना भी खुद पर निर्भर करता है। प्रेरक सृजन,सादर अभिवादन दी
संघर्ष करना ही है। बहुत सुंदर भाव।
बेहतरीन लाजबाव सृजन
बहुत ही बढ़िया
भावपूर्ण सृजन
बहुत सुंदर प्रस्तुति
सच है जिंदगी का हर खेल खुद और केवल अकेले ही खेलना होता है ... और कई बार तो स्वयं से भी खेलना पड़ता है ... गहरे भाव ...
जिंदगी की लड़ाई इंसान को खुद ही लड़नी पड़ती है। कबड्डी के माध्यम से बहुत अच्छे से समझाया है आपने,संगीता दी।
बहुत ही लाजवाब एवं विचाररणीय सृजन।
I have not any word to appreciate this post…..Really i am impressed from this post….
बहुत खूब
कविता पढ़कर लगा कि मेरी ही कहानी है। शायद हम सब के साथ यही होता है। आपको बहुत-बहुत बधाईयाँ और शुभकामनाएँ।
It's very nice article. Thanks for sharing. Don't miss WORLD'S BEST GAME
कुल मिलाकर यह जिंदगी एक खेल ही तो है। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!!!
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