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हु - तू - तू .......

>> Thursday, May 26, 2022

 


हु तू तू -  हु तू तू 

करते हुए

खेलते रहते हम 

ज़िन्दगी के मैदान में 

 हर वक़्त कबड्डी । 

हाँलांकि  , 

कबड्डी के खेल में 

होती हैं दो टीम 

और हर टीम में 

खिलाड़ी की संख्या 

होती है बराबर ।

लेकिन 

ज़िन्दगी के मैदान में 

होती तो हैं दो ही टीम ,

लेकिन 

तुम्हारीअपनी टीम में 

होता है एक खिलाड़ी 

और  वो 

तुम स्वयं हो । 

दूसरी टीम में 

वो सब जो 

जुड़े होते हैं 

किसी भी रूप में 

तुम्हारी  ज़िन्दगी से ,
 
खुद को 

बचाये रखने की 

ज़द्दोज़हद 

अक्सर बुलवाती रहती है 

कबड्डी , कबड्डी , कबड्डी । 

क्यों कि 

ज़िन्दगी की हु तू तू में 

तुमको जिंदा करने के लिए 

कोई साथी नहीं है । 

लड़नी है 

खुद ही खुद के लिए 

सारी लड़ाइयाँ । 

और इस खेल में 

हार की 

कोई गुंजाइश  नहीं ।





31 comments:

Usha Kiran,  5/26/2022 3:23 PM  

ज़िन्दगी की हु तू तू में

तुमको जिंदा करने के लिए

कोई साथी नहीं है ।

लड़नी है

खुद ही खुद के लिए

सारी लड़ाइयाँ ।

और इस खेल में

हार की

कोई गुंजाइश नहीं ।
वाह…संगीता जी बहुत गहरी बात …!

Shikha Varahney,  5/26/2022 4:19 PM  

वो भी कबड्डी का। अकेले पूरी टीम से जूझ कर निकलना है 👌👍

अनीता सैनी 5/26/2022 4:36 PM  


जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२७-०५-२०२२ ) को
'विश्वास,अविश्वास के रंगों से गुदे अनगिनत पत्र'(चर्चा अंक-४४४३)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

डॉ 0 विभा नायक 5/26/2022 5:07 PM  

zindgi ki ek paribhasha ye bhi hai jo aapne ki hai. varna sbke liye to zindgi ka apna path apni samiksha.

yashoda Agrawal 5/26/2022 6:29 PM  

शानदार खेल
एक आऊट तो दूसरा इन
सादर नमन

Amrita Tanmay 5/26/2022 8:30 PM  

एक विजयी खिलाड़ी की गगनभेदी गर्जन..... हर हाल में जीत के लिए उकसाता हुआ स्वर। हू-तू-तू---- हुर्रे।

जिज्ञासा सिंह 5/26/2022 11:32 PM  

अहा!
मन में उतरती रचना । सच यही तो है जीवन का यथार्थ ।

Meena Bhardwaj 5/27/2022 6:58 AM  

ज़िन्दगी की हु तू तू में
तुमको जिंदा करने के लिए
कोई साथी नहीं है ।
लड़नी है
खुद ही खुद के लिए
सारी लड़ाइयाँ ।
सौ फ़ीसदी सच .., प्रेरक भावाभिव्यक्ति ।

Anupama Tripathi 5/27/2022 7:14 AM  

गहन भाव रचना के, जीवन दर्शन लिए हुए

डॉ. मोनिका शर्मा 5/27/2022 8:24 AM  

जीवन के खेल की सही सीख देती रचना बहुत बढ़िया

विभा रानी श्रीवास्तव 5/27/2022 10:26 AM  

हार की कोई गुंजाइश नहीं और कभी-कभी जीतने की कोई संभावना दिखलाई नहीं देती
उम्दा रचना : साधुवाद

Anita 5/27/2022 10:53 AM  

यहाँ हार की कोई गुंजाइश नहीं, क्योंकि जीतना भी अपनों से हैं और हारना भी अपनों से, प्रीत की गली में कोई दूसरा है ही कहाँ!

Sudha Devrani 5/27/2022 11:53 AM  

खुद को

बचाये रखने की

ज़द्दोज़हद

अक्सर बुलवाती रहती है

कबड्डी , कबड्डी , कबड्डी ।

क्यों कि

ज़िन्दगी की हु तू तू में

तुमको जिंदा करने के लिए

कोई साथी नहीं है ।

वाह!!!
क्या बात .... सचमुच कबड्डी सी जिन्दगी... हर तरफ से टाँग खिंचाई..
बहुत ही लाजवाब एवं विचाररणीय सृजन।

ज्योति-कलश 5/27/2022 12:54 PM  

अद्भुत , जीवन का कटु सत्य कहती रचना।

कविता रावत 5/27/2022 3:58 PM  

सच जिंदगी में सबके साथ खेलते हुए भी अकेले ही अपना खेल खेलना होता है

मन की वीणा 5/27/2022 6:49 PM  

जिंदगी की हु तू तू - हु तू तू ऐसा खेल जो पारी नहीं बदलता बस आपको ही हमेशा जीत कर आना होता है विरोधियों से ।
आपको गिर कर उठना भी है और फिर जूझना भी है।
गहन भाव लिए सुंदर सृजन।

Jyoti khare 5/27/2022 10:27 PM  

अच्छा संदेश देती सुंदर रचना
वाह

रेणु 5/27/2022 10:58 PM  

बहुत बढ़िया प्रिय दीदी ! एक संघर्ष का प्रतीक है कबड्डी ।जीवन के मैदान का खेल कबड्डी से भिन्न भले हो उसका संघर्ष सामूहिक नहीं एकल होता है। वही उसे गिराने को बहुत लोग तैयार बैठे रहते हैं।बहुत सार्थकता से एक बेबाक दर्शन की भावपूर्ण अभिव्यक्ति हुई है रचना में।हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई स्वीकार करें।🙏🙏🌺🌺🌷🌷

Kamini Sinha 5/28/2022 8:09 PM  

लड़नी है

खुद ही खुद के लिए

सारी लड़ाइयाँ ।
बिल्कुल सही दी, कबड्डी के मैदान में भी साथी भले ही अनेकों होते हैं मगर विरोधियों का सामना तो अकेले ही करना होता है। जीवन में भी अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होती है और जीतना हारना भी खुद पर निर्भर करता है। प्रेरक सृजन,सादर अभिवादन दी

देवेन्द्र पाण्डेय 5/28/2022 10:49 PM  

संघर्ष करना ही है। बहुत सुंदर भाव।

Bharti Das 5/29/2022 3:52 PM  

बेहतरीन लाजबाव सृजन

डॉ विभा नायक,  5/30/2022 6:02 PM  

बहुत ही बढ़िया

MANOJ KAYAL 6/01/2022 12:58 PM  

भावपूर्ण सृजन

Onkar 6/06/2022 4:56 PM  

बहुत सुंदर प्रस्तुति

दिगम्बर नासवा 6/11/2022 7:12 PM  

सच है जिंदगी का हर खेल खुद और केवल अकेले ही खेलना होता है ... और कई बार तो स्वयं से भी खेलना पड़ता है ... गहरे भाव ...

Jyoti Dehliwal 6/12/2022 6:53 PM  

जिंदगी की लड़ाई इंसान को खुद ही लड़नी पड़ती है। कबड्डी के माध्यम से बहुत अच्छे से समझाया है आपने,संगीता दी।

संजय भास्‍कर 6/16/2022 6:32 PM  

बहुत ही लाजवाब एवं विचाररणीय सृजन।

bcom part III ka exam result 6/24/2022 5:30 PM  

I have not any word to appreciate this post…..Really i am impressed from this post….

Satish Saxena 7/05/2022 1:21 PM  

बहुत खूब

Vocal Baba 7/11/2022 1:12 PM  

कविता पढ़कर लगा कि मेरी ही कहानी है। शायद हम सब के साथ यही होता है। आपको बहुत-बहुत बधाईयाँ और शुभकामनाएँ।

विश्वमोहन 8/24/2022 6:45 PM  

कुल मिलाकर यह जिंदगी एक खेल ही तो है। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!!!

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