आज़ादी के 75 वर्ष
>> Sunday, August 14, 2022
आज़ादी के पिचहत्तर वर्ष
दिखता चेहरे पर सबके हर्ष
नाम दिया अमृत महोत्सव
मना रहे हम राष्ट्र उत्सव ।
एक उत्साह है ,एक जुनून है
घर घर पहुँचे तिरंगा अपना
हर घर में बस खुशहाली हो
बस इतना ही तो है एक सपना ।
देश की समृद्धि के लिए
कुछ तो तुम भी त्याग करो
खून बहाया वीरों ने अपना
उनको भी तो याद करो ।
आज़ादी के दीवानों ने
जान की बाज़ी लगाई थी
युवा चेतना ने जैसे
ली एक अंगड़ाई थी ।
आज उन्हीं वीरों को तुम
आतंकी तक कह देते हो
ऐसा सुन कर भला कैसे
तुम ठंडे ठंडे रह लेते हो ?
आज महोत्सव की पूर्व सांझ पर
बस इतना ही तो कहना है ,
अधिकार निहित कर्तव्यों में
बस उस पर ही तो चलना है ।
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आज उन्हीं वीरों को तुम
आतंकी तक कह देते हो .....
इस बात की पुष्टि के लिए श्री हरिओम पंवार जी को सुनिए ----
21 comments:
जिन वीरों ने प्राणों की आहुति देकर देश की रक्षा की या जो आज भी हमारे सैनिक भाई सीमा पर रात दिन डटे हमारी सुरक्षा कर रहे हैं आज कुछ बेशरम और अहसानफरामोश लोग उनको कुछ भी कह देते हैं । आज़ादी को लेकर प्रश्न उठाते हैं उन पर आपने सही निशाना साधा है-
आज उन्हीं वीरों को तुम
आतंकी तक कह देते हो
ऐसा सुन कर भला कैसे
तुम ठंडे ठंडे रह लेते हो ?….
बहुत खूब! सुन्दर, सटीक व देशप्रेम को जगाती रचना। आपको व सभी को आज़ादी के महोत्सव की हार्दिक बधाई …जय हिन्द 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 🇮🇳🇮🇳
आज़ाद देश के,
जिम्मेदार बुद्धिजीवी
बहुत शर्मिंदा हैं,
देश की बदहाल हवा में,
दिन-ब-दिन विषाक्त होता
पानी पीकर भी
अफ़सोस ज़िंदा हैं।
आज़ादी की वर्षगांठ पर
असंतुष्टि के
विश्लेषण का पिटारा ढोते
गली-चौराहों,
नुक्कड़ की पान-दुकानों पर,
अरे नहीं भाई! अब ट्रेड बदल गया है न....
कुछ पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी देशभक्त
अलग-अलग खेमों के प्रचारक
देश की चिंता में दुबलाते
क़लम की नोंक से
कब्र खोद-खोदकर
सोशल मीडिया पर
आज़ाद भारत के दुखित,पीड़ित,दलित
विवादित,संक्रमित विषयों का
मुर्दा इतिहास,जीवित मुर्दों के
वर्तमान और भविष्य की स्थिति का
मार्मिक अवलोकन करते
समाज,देश और स्त्रियों की दशा,
दुर्दशा पर चिंतित
दार्शनिक उद्गार व्यक्त करके
भयावह,दयनीय शब्दों के रेखाचित्र की
प्रदर्शनी लगाकर वाहवाही के
रेज़गारी बटोरकर आहृलादित होते
सोशल मंच पर उपस्थिति के
दायित्वों का टोकरा खाली करते हैं।
आज़ादी से हासिल
शून्य उपलब्धियों का डेटा
अपडेट करते
आज़ाद देश में भयभीत
असहिष्णुओं का मनोवैज्ञानिक
पोस्टमार्टम करते,
सच-झूठ के धागे और उलझाकर
तर्क-कुतर्क कर ज्ञान बघारते
ख़ुद ही न्यायाधीश बने
किसी को भी मुजरिम ठहरा
सही गलत का फैसला
गर्व से सुनाते है
देश के नाम का शृंगार कर
देश की माटी में विहार कर
इसी से उपजा अन्न खाकर
चैन की बाँसुरी बजाकर
देश के बहादुर रक्षकों की
छत्रछाया में सुरक्षित,
देश की आज़ादी की हर वर्षगांठ पर
देश को कोसने वाले
छाती पीटकर रोने वाले
हमारे देश के
सोशल बुद्धिजीवी ही तो
सच्चे देशभक्त हैं।
#श्वेता सिन्हा
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अमृत महोत्सव का अमृतपान सुखद अनुभूति है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता है।
बेहतरीन सारगर्भित अभिव्यक्ति दी।
जयहिंद, वंदेमातरम
आज महोत्सव की पूर्व सांझ पर
बस इतना ही तो कहना है ,
अधिकार निहित कर्तव्यों में
बस उस पर ही तो चलना है
बहुत सही कहा आपने अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे के पूरक हैं । स्वतंत्रता आंदोलन में तन मन धन अर्पित करने वाले वीरों को समर्पित सुन्दर सृजन । स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई आ . दीदी !
जय हिन्द !! जय भारत !!
बहुत सुंदर रचना, जयहिंद जय भारत
"देश की समृद्धि के लिए
कुछ तुम भी तो त्याग करो
खून बहाया वीरों ने अपना
उनको भी तो याद करो।"
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वाह क्या बात है। अक्सर कहा
भी जाता है कि तिरंगा हवा से
नहीं लहराता। देश पर जान न्योछावर
करने वाले भारत माता के सपूतों के
खून से लहराता है। स्वतंत्रता की रक्षा
हर कीमत पर होनी चाहिए। आजादी के
अमृत महोत्सव पर आपकी यह
सार्थक और सुंदर रचना हमें प्रेरित करने के
साथ-साथ हमें हमारा कर्तव्य याद दिला रही है।भारत माता के बेटों को आतंकी बताने वालों से सख्ती से निपटा
जाना चाहिए।
आपको बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं।
बहुत सुंदर रचना
आज उन्हीं वीरों को तुम
आतंकी तक कह देते हो
ऐसा सुन कर भला कैसे
तुम ठंडे ठंडे रह लेते हो ?
आज महोत्सव की पूर्व सांझ पर
बस इतना ही तो कहना है ,
अधिकार निहित कर्तव्यों में
बस उस पर ही तो चलना है ।
..... स्वतंत्रता दिवस पर बहुत ही सुंदर सारगर्भित रचना ।
आपकी रचना को समर्पित कुछ पंक्तियां मेरी भी 😊😊
मातृभूमि का एक इंच, टुकड़ा लेकर दिखलाओ
गर हिम्मत है मेरे सम्मुख, सीना तान के आओ
यही प्रतिज्ञा लिए हुए हम, निकले अपने घर से
दुश्मन पीठ दिखाकर भागा,योद्धाओं के डर से
बाँधे कफ़न घूमते हैं हम, हम से आँख मिलाओ
ग़र हिम्मत है..
गौरवशाली राष्ट्र हमारा,गौरवशाली सेना
आन बान औ शान की ख़ातिर, आता जीवन देना
एक मंत्र है देश के लिए, मिट्टी में मिल जाओ
ग़र हिम्मत है..
भाषा,नस्ल,धर्म,जाति पर, देश में जो हैं लड़ते
वही राष्ट्र की संप्रभुता को, खण्डित हर क्षण करते
बाहर अंदर के बैरी तुम, सजग जरा हो जाओ
ग़र हिम्मत है..
स्वतंत्रता दिवस पर बहुत सुंदर सारगर्भित रचना।
वाह! अत्यंत सामयिक, समीचीन और सार्थक रचना।
आप सबका हार्दिक आभार ।।
आज महोत्सव की पूर्व सांझ पर
बस इतना ही तो कहना है ,
अधिकार निहित कर्तव्यों में
बस उस पर ही तो चलना है ।
कर्तव्यों में अधिकार निहित ...
बहुत सटीक एवं सारगर्भित
लाजवाब सृजन ।
अमृत महोत्सव का अमृतपान सुखद अनुभूति है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता है।
बेहतरीन सारगर्भित अभिव्यक्ति संगीता दी।
आज़ादी के अमृत महोत्सव पर हार्दिक शुभकामनायें ! आपने सही कहा है, अधिकारों के साथ-साथ कर्त्तव्यों का पालन करना भी ज़रूरी है।
अमृत महोत्सव के पुनीत पर्व को शब्द-पुष्प से सजाती आपकी इस सुन्दर कविता को पढ़ना जितना अच्छा लगा, वहीं आपकी दो पंक्तियों के समर्थन में उद्धृत डॉ. हरि ओम पंवार का ओजपूर्ण कविता-वचन मन को आल्हादित कर गया
शहीदों का भी वर्गीकरण हो रहा है आजकल , सच बात कही आपने
देशभक्ति की भावनाओं से परिपूर्ण बेहतरीन कविता। हार्दिक बधाई।
अमृत संदेश।
उत्तम सृजन, बधाई...
सम सामयिक विषय पर चिन्तन परक भावपूर्ण रचना प्रिय दीदी ! अधिकारों के लिए बवाल मचाते हुये अपने कर्तव्यों को बड़ी चतुराई से टालने में माहिर जनमानस अपनी स्वार्थ सिद्धि में निमग्न हो आजादी के सिपाहियों को भुलाने को यदि तत्पर है तो ये देश का दुर्भाग्य है। और राष्ट्र के सर्वोच्च बलिदानियों को आतंकी कहने वालों को समय उनके इस अक्ष्म्य अपराध के लिए कदापि क्षमा नहीं करेगा।सादर 🙏
जय भारत जय भारती
देश के लिये ,अपने कर्तव्य के प्रति सजग कर जन को सचेत करना ,कवि का दायित्व है -साधुवाद आपको !
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