कैसे मन मुस्काए
>> Wednesday, April 21, 2010
रोटी समझ चाँद को
बच्चा मन ही मन ललचाए
आशा भरकर वो यह देखेमाँ कब रोटी लाए
दशा देखकर उस बच्चे की
कैसे मन मुस्काए |
घर के बाहर
चलना दूभर
साँस सभी की
नीचे ऊपरकाँप रहा
घर के बाहर
चलना दूभर
साँस सभी की
नीचे ऊपर
उसका दिल थर-थर
मन बेहद घबराये
ऐसे आतंकी साये में
कैसे मन मुस्काए |
कैसे मन मुस्काए |
हुआ धमाका
बम का जब - जब
बढ़ी वेदनामन में तब - तब
लहूलुहान हुए लोगों का
खून छितरता जाये
इन दृश्यों को देख भला
लहूलुहान हुए लोगों का
खून छितरता जाये
इन दृश्यों को देख भला
फिर कैसे मन मुस्काए ?
आंच पर समीक्षा
http://manojiofs.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html
http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_22.html
नवगीत की पाठशाला
http://charchamanch.blogspot.com/2010/05/143.html
आंच पर समीक्षा
http://manojiofs.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html
http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_22.html
नवगीत की पाठशाला
http://charchamanch.blogspot.com/2010/05/143.html
26 comments:
आज के आतंक वाद के दौर में..एक मुसुकुराहट भी बहुत महेंगी हो गयी है...!
कभी ७२ शहीदों की शहादत और कभी बेक़सूर लोगो का आतंक का शिकार हो जाना...सच में पूरे देश की मुस्कराहट और महक को छीने जा रहे है.
बहुत मार्मिक रचना. बधाई.
Wednesday, April 21, 2010
कैसे मन मुस्काए
रोटी समझ चाँद को
बच्चा मन ही मन ललचाए
आशा भरकर वो यह देखे
माँ कब रोटी लाए
दशा देखकर उस बच्चे की
कैसे मन मुस्काए |
घर के बाहर
चलना दूभर
साँस सभी की
नीचे ऊपर
काँप रहा
उसका दिल थर-थर
मन बेहद घबराये
ऐसे आतंकी साये में
कैसे मन मुस्काए |
हुआ धमाका
बम का जब - जब
बढ़ी वेदना
मन में तब - तब
लहूलुहान हुए लोगों का
खून छितरता जाये
इन दृश्यों को देख भला
फिर कैसे मन मुस्काए ?
Behad sashakt rachana...sachhee rachana...jisse muh nahi moda ja sakta!
आज की वस्तविकता को दर्शाता ये कविता बहुत ही सुंदर है।
काँप रहा
उसका दिल थर-थर
मन बेहद घबराये
ऐसे आतंकी साये में
कैसे मन मुस्काए |
वाकई मन कैसे मुस्काए,
बहुत सुन्दर
sach aise halat mein koi kaise muska sakta hai..........bahut hi marmik varvan kiya hai halat ka.
बहुत ही मार्मिक नवगीत लिखा है आपने!
यही दौर है आज का...अति मार्मिक रचना.
बहुत मार्मिक .. सचमुच कैसे मन मुस्काए ??
घनीभूत पीड़ा को कितनी सहजता से शब्दों में बांध दिया है आपने.
बहुत ही दर्दभरी रचना है! आपने वास्तविकता को बड़े ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! हर एक शब्द दिल को छू गयी! उम्दा रचना!
मासूम मुस्कान और दहशत.... बखूबी उतारा है, बस कई बार पढ़ा , ....
Mumma..bahut achhi nazm hai..dard ke bahav ke saath saath nazm ka flow bhi bahut achha hai... :-)
bilkul sahi baat likhi aapne......
यही दौर है आज का...अति मार्मिक रचना.
मन में तब - तब
लहूलुहान हुए लोगों का
खून छितरता जाये
इन दृश्यों को देख भला
फिर कैसे मन मुस्काए ?
तब भला मन कैसे मुस्काए ...सच है ...मगर विध्वंस के बाद सृजन की सम्भावना और विकास के लिए मुस्कुराना जरुरी है ...आहों को दबा कर ...
हुआ धमाका
बम का जब - जब
बढ़ी वेदना
मन में तब - तब
लहूलुहान हुए लोगों का
खून छितरता जाये
इन दृश्यों को देख भला
फिर कैसे मन मुस्काए ?
Adaraneeya sangeeta ji,
aj ke am adamee ke dard aur usake man men base khauf ko apne bahut badhiya dhang se shabdon ka roop diya hai.
Poonam
bahut gahra chintan
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
बहुत ही मार्मिक कविता...एक शेर याद आ गया
"इस सदी में तेरे होठों पर तबस्सुम की लकीर
हंसने वाले तेरा पत्थर का कलेजा होगा
प्रभावशाली अभिव्यक्ति के साथ.... बहुत सुंदर रचना....
सरल शब्दों में गजब की रचना है ।
सत्य का दृश्य खैंच दिया है आपने ... आज के हालात में मुस्कुराना सच में आसान नही है ...
बहुत ही संवेदनशील भाव हैं इस कविता में ! बहुत अच्छा लगा पढ़कर ! दरअसल अब तो समाज की हालत ऐसी हो गयी है कि छोटे बच्चे तक डरे सहमे रहते हैं ! लाचारी और बेबसी कि हद हो गयी है !
ऐसे नवगीत समाज का मार्ग प्रशस्त करेंगे । भाव प्रशंसा नही समाधान माँगते हैं ।
सगीता जी ! जनोन्मुखी लेखन आपका वैशिष्ट्य है । रमानाथ अवस्थी ने लिखा -
नीर मे डूबा न मैं
डूबा नयन के नीर में ।
sach hai jab manavta khatre main ho,
to kaise man muskaye?
manviya trashadi ko ghari samvedna ke sath avivaykt karti hui rachna!
ek acchhi kabita.
dhanyabad
इस अद्भुत रचना के लिए एक बार फिर बधाई।
आंच की डोर थामे यहां तक आकर फिर से पढने का लोभ संवरण नहीं कर सका!
Post a Comment