घरौंदा
>> Sunday, April 25, 2010
गम की तपिश हो
या सोचों का बवंडर हो
शोला हो मन का
या आंखों का समंदर हो ,
डूब जाता है जैसे सब
जब तैरना भी आता हो
मंझदार नही मिलती
किनारे पर चला आता हो ।
डूबना भी क्या डूबना
जो गहरे पानी में डूबा हो
डूबो तो वहां जा कर
जहाँ पानी का निशां न हो ।
ये सोचता है मन मेरा कि
हर दिल रेत का घरौंदा है
अचानक किसी लहर ने आ कर
जैसे इस घरौंदे को रौंदा है।
फिर बनाते हैं घरौंदा हम
अपने ही हाथों से
जान भी डालते हैं जैसे
अपनी ही साँसों से ।
हर लहर से टकरा कर जैसे
मेरा ख्वाब लौट आता है
ये घरौंदे और लहर का
कुछ ऐसा ही नाता है ।
निर्निमेष आंखों से फिर मैं
आकाश निहारा करती हूँ
शून्य में न जाने क्यों मैं
ख़ुद को तलाशा करती हूँ.
29 comments:
khud ki talaash shoonya mein hi hoti hai..........bahut sundar bhav sanyojan.
"निर्निमेष आंखों से फिर मैं
आकाश निहारा करती हूँ
शून्य में न जाने क्यों मैं
ख़ुद को तलाशा करती हूँ."
-------------------------------
dil ko chu gayi ye panktiyaan......
shyad jab hum apna astitva talash le,
tabhi jevan konayi uchayion par le ja payenge!!!!
regards-
ROHIT
sadaive kee bhanti sunder abhivyakti apane vicharo kee .
utkrusht rachana.......
Harek bhav,harek shabd,harek pankti chuninda hai!
Jisne zindagi ko qareeb se dekha ho wahi aisa likh pata hai..
bahut khoob...
अत्यंत भावपूर्ण रचना !
ये सोचता है मन मेरा कि
हर दिल रेत का घरौंदा है
अचानक किसी लहर ने आ कर
जैसे इस घरौंदे को रौंदा है।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ! बधाई एवं साधुवाद !
http://sudhinama.blogspot.com
http://sadhanavaid.blogspot.com
डूबो तो वहां जा कर
जहाँ पानी का निशां न हो ।
शायद इस तरह डूबे की थाह नहीं मिलती
एहसास का अथाह सागर है आपकी यह रचना
बेहतरीन
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ! बधाई
bahut hi khub
बेहतरीन रचना
डूब जाता है जैसे सब
जब तैरना भी आता हो
- न जाने कितनी वेदना छिपी हुई है इन दो पंक्तियों में , कितनी ही बार इन दो पंक्तियों में डूबी उतरी लेकिन फिर सारी सोचे मानो किनारों पर ही चली आती है.
डूबना भी क्या डूबना
जो गहरे पानी में डूबा हो
डूबो तो वहां जा कर
जहाँ पानी का निशां न हो ।
- इन पंक्तियों में जिन्दगी के अनंत अनुभव मानो समां गए हो ..वाह क्या बात कही है...इस बात की गहराई आप जैसा अनुभवी ही नाप सकता है और शब्दों में ढाल कर लिख सकता है...(हट्ट्स आफ्फ़ )
अचानक किसी लहर ने आ कर
जैसे इस घरौंदे को रौंदा है।
- आह, इस अभिव्यक्ति ने जैसे दिल ही निकल कर रख दिया है.
फिर बनाते हैं घरौंदा हम
अपने ही हाथों से
जान भी डालते हैं जैसे
अपनी ही साँसों से ।
हर लहर से टकरा कर जैसे
मेरा ख्वाब लौट आता है
ये घरौंदे और लहर का
कुछ ऐसा ही नाता है ।
- अपने आप को इस लहरों,घरोंदे को जान और साँसों से जोड़ कर एक हिम्मत न हारने वाले पथिक का उदाहरण दे कर आशाओ और उम्मीदों की रवानगी की है रचना के माध्यम से..
निर्निमेष आंखों से फिर मैं
आकाश निहारा करती हूँ
शून्य में न जाने क्यों मैं
ख़ुद को तलाशा करती हूँ.
- और जब तक अपने बुने हुए ताने-बाने का, अपनी जगती हुई उम्मिद्दो का, अपने प्रयासों का कोई परिणाम नहीं मिल जाता तो इन्सान की स्थिति यही होती है की वो निर्निमेष आँखों से शून्य में तलाश जरी रखता है.
बहुत अच्छे शब्दों से आपने अपने एहसासों को सजाया है. बधाई.
हर दिल रेत का घरौंदा है..... bahut hi shaandaar abhivyakti sangeeta ji, har ehsaas gahre
badhiya nazm hai mumma...wakai dil ret ka gharonda hota hai ..lehren aati hain jaati hain ..todti hain ...na jane kaisi jaadui ret hai magar..gharaunda fir ban jata hai ... :)
निर्निमेष आंखों से फिर मैं
आकाश निहारा करती हूँ
शून्य में न जाने क्यों मैं
ख़ुद को तलाशा करती हूँ.
बहुत सुन्दर रचना है!
बधाई!
हर लहर से टकरा कर जैसे
मेरा ख्वाब लौट आता है
ये घरौंदे और लहर का
कुछ ऐसा ही नाता है ।
Wakai, lahrein tod jaati hain par gharaunde nahi bhikharte yun aasaani se...bahut hi khubsurat bhav
निर्निमेष आंखों से फिर मैं
आकाश निहारा करती हूँ
शून्य में न जाने क्यों मैं
ख़ुद को तलाशा करती हूँ.
और यह खुद की तलाश कभी ख़त्म नहीं होती...बेहतरीन रचना...
कविता बहुत सुन्दर है ... भावपूर्ण है, वेदना की अभिव्यक्ति बहुत साफ़ ढंग से की गई है ... अंतिम कुछ पंक्तियाँ तो जैसे झकझोर देती है ...
बाधाएं व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिये, मंद नहीं पड़ना चाहिये।
निर्निमेष आंखों से फिर मैं
आकाश निहारा करती हूँ
शून्य में न जाने क्यों मैं
ख़ुद को तलाशा करती हूँ.
......मन की अंतर्वेदना का भावपूर्ण चित्रण
.........गहरी भावाभियक्ति
हार्दिक शुभकामनाएं
वाह! बहुत खूब! लाजवाब! हर एक शब्द दिल को छू गयी! बेहद सुन्दर और भावपूर्ण रचना!
बहुत सुन्दर---
"गीत भला क्या होते हैं ,
बस एक कहानी है।
मन के सुख दुख अनुबन्धों की
व्यथा सुहानी है।"
haqmesha ki tarah ek bhavuk rachna...
bahut pasand aayi..
aabhaar..
अक्सर इंसान खुद को नही तलाश पाता ... दुनिया को फ़तह कर लेता है खुद को नही जीत पाता ... मन के भटकाव को बहुत अच्छे से लिखा है आपने ...
इस निसर्ग में खुद की तलाश जैसे जीव की अकुलाहट हो ब्रह्म से मिलने की ,,,सुन्दर कविता!
हर लहर से टकरा कर जैसे
मेरा ख्वाब लौट आता है
ये घरौंदे और लहर का
कुछ ऐसा ही नाता है ।
बहुत गहरी सोच, आपकी बात तो सीधे दिल को छू गयी
sundar rachan .....
आ गई हूँ मैं दी .......बाप रे कितना कुछ है पढने को अब लगता है एक महीने की छुट्टी के बाद एक महिना सिर्फ पढने में लगेगा.:) मजा आएगा.
अंतर्मन की सुन्दर अभिव्यक्ति...बधाई.
waah je waah bahut sundar
Post a Comment