थाने से बोल रहा हूँ .....
>> Thursday, April 1, 2010
भई आज कल बाजारवाद इतना बढ़ गया है कि हर दुकानदार अपने ग्राहकों को विशेष सुविधा प्रदान करता है .इसी वजह से आज कल प्रचलित है free home delivery की सुविधा. घर का कुछ भी सामान लाना है तो बस लिस्ट लिखा दीजिये और सामान आपके घर पर पहुंचा दिया जायेगा...तो भई हम जैसे लोगों को इस सुविधा से बहुत आराम हो गया है....राशन पानी सब ऐसे ही घर पहुँच जाता है...और अब तो सब्ज़ीवाले भी घर पर सब्जी पहुंचा देते हैं....इससे हम तो बहुत सुकून पाते हैं..क्यों कि कोई भी सामान उठा कर लाना हमारे वश की बात है नहीं तो बस फ़ोन पर आर्डर देते हैं और सामान घर पर आ जाता है...या फिर दुकान पर जा कर छांट - छूंट कर रख आते हैं...
अब कल की ही बात है कि हमें सब्जी मंगानी थी और दुकान तक जाने का मन नहीं था...शाम को फ़ोन पर आर्डर देना भी मुश्किल हो जाता है क्यों कि उस वक़्त ग्राहकों की संख्या ज्यादा होती है तो सब्जीवाला फ़ोन पर आर्डर लेता नहीं...तो हम बस इंतज़ार में थे कि कब पतिदेव शाम की सैर पर जाएँ और हम उनको लिस्ट थमा दें...ऐसे समय आवाज़ में ना जाने कहाँ से रस घुल जाता है...तो जैसे ही ये सैर के लिए जाने लगे मैंने कहा कि क्या आप सब्ज़ीवाले को लिस्ट दे आयेंगे? और एक बार में ही बिना ना- नुकर के इनकी हाँ सुन कर हम तो निहाल ही हो गए...लगा जैसे कोई जंग जीत ली हो . ..खैर लिस्ट दे दी गयी....और सब्जी भी रात को ९ बजे करीब घर पहुँच गयी..उस वक़्त रात के खाने की तैयारी के चक्कर में मैंने लिस्ट मिलाई नहीं और बस ऐसे ही सब समेट कर रख दी...हमेशा ये कहते हैं कि ज़रा देख लिया करो कि सामान सब आ गया या नहीं पर आदत से मजबूर उस समय लिस्ट मिलाई नहीं ...पूछने पर कह दिया कि हाँ सब ठीक है...
आज मन हुआ कि चलो ताज़ा कटहल मंगाया है तो आज ही बना लेती हूँ....अब फ्रिज में ढूंढ रहे हैं कटहल पर नहीं मिल रहा...लिस्ट में तो लिखा था....बुढापे में यादाश्त भी मरी कमज़ोर हो जाती है...खैर जब नहीं मिला तो सब्जी वाले को फ़ोन किया.....उधर से आवाज़ आई....हेल्लो ! थाने से बोल रहा हूँ.....ओह , ये रौंग नंबर भी ना ...फिर मिलाया फ़ोन.....फिर वही थाने से बोल रहा हूँ....
सोचा कि थोड़ी देर बाद करती हूँ फ़ोन अभी बार बार गलत ही मिल रहा है...और फिर इनसे भी तो छुप कर करना था फ़ोन नहीं तो पहले तो इनकी ही कितनी बात सुनने को मिलती कि चेक क्यों नहीं किया पहले...खैर....थोड़ी देर बाद फिर फ़ोन किया..तो फिर वही थाने जा लगा नंबर.... अब तो हम परेशान....इनसे कुछ कह नहीं सकते वरना बड़ी बेभाव की पड़ती...सो खुद ही दुकान तक जा कर बात करने में भलाई समझी.....मन ही मन सोच रहे थे कि ज़रूर सब्ज़ीवाले ने कुछ किया है जो इसको पुलिस पकड़ कर ले गयी है और इसका फ़ोन थाने में है....यदि अबकी फ़ोन कर दिया तो कहीं हम भी ना धरे जाएँ...ये सोच कर हिम्मत ही नहीं हुयी...
बस जल्दी से तैयार हुए और इनको कहा कि ज़रा बाज़ार तक जा रहे हैं...जवाब मिला...क्या लाना है? मैं ला देता हूँ....अब इनको सब बताना तो आ बैल मुझे मार वाली बात होती.....बस हम ये कहते हुए तेज़ी से घर से निकल लिए कि बस अभी आ रहे हैं....
दुकान पर जा कर देखा.. दो - चार ग्राहक खड़े थे....मैंने दुकानदार से कहा ...भैया कल सब्जी मंगाई थी पर कटहल नहीं भेजा...पैसे तो लगा ही दिए होंगे....तो वो बोला --- नहीं साहब आप लिस्ट देख लो पैसे नहीं लगाये थे , कल कटहल अच्छा नहीं था तो भेजा ही नहीं....आप पर्ची से मिला लो....अब हम कहाँ मिलाते....पर्ची तो फेंक दी थी....खैर हमने कहा अच्छा अभी तो दे दो...उसने अपना विजिटिंग कार्ड निकाला और मुझे देता हुआ बोला कि आप इस नंबर पर फ़ोन कर देते....मैंने कार्ड थामा और नंबर देखा तो बोली कि इसी नंबर पर तो सुबह से फ़ोन कर रही हूँ ....बार बार थाने में लग जाता है...
उसने कहा कि मैंने अपने फ़ोन में रिंग टोन की जगह थाने वाला डायलोग डाला हुआ है जी ...सब्ज़ीवाले का जवाब सुनकर अब चौंकने की बारी हमारी थी...............बिना वजह ही बन गए ना अप्रेल फूल ...
अब कल की ही बात है कि हमें सब्जी मंगानी थी और दुकान तक जाने का मन नहीं था...शाम को फ़ोन पर आर्डर देना भी मुश्किल हो जाता है क्यों कि उस वक़्त ग्राहकों की संख्या ज्यादा होती है तो सब्जीवाला फ़ोन पर आर्डर लेता नहीं...तो हम बस इंतज़ार में थे कि कब पतिदेव शाम की सैर पर जाएँ और हम उनको लिस्ट थमा दें...ऐसे समय आवाज़ में ना जाने कहाँ से रस घुल जाता है...तो जैसे ही ये सैर के लिए जाने लगे मैंने कहा कि क्या आप सब्ज़ीवाले को लिस्ट दे आयेंगे? और एक बार में ही बिना ना- नुकर के इनकी हाँ सुन कर हम तो निहाल ही हो गए...लगा जैसे कोई जंग जीत ली हो . ..खैर लिस्ट दे दी गयी....और सब्जी भी रात को ९ बजे करीब घर पहुँच गयी..उस वक़्त रात के खाने की तैयारी के चक्कर में मैंने लिस्ट मिलाई नहीं और बस ऐसे ही सब समेट कर रख दी...हमेशा ये कहते हैं कि ज़रा देख लिया करो कि सामान सब आ गया या नहीं पर आदत से मजबूर उस समय लिस्ट मिलाई नहीं ...पूछने पर कह दिया कि हाँ सब ठीक है...
आज मन हुआ कि चलो ताज़ा कटहल मंगाया है तो आज ही बना लेती हूँ....अब फ्रिज में ढूंढ रहे हैं कटहल पर नहीं मिल रहा...लिस्ट में तो लिखा था....बुढापे में यादाश्त भी मरी कमज़ोर हो जाती है...खैर जब नहीं मिला तो सब्जी वाले को फ़ोन किया.....उधर से आवाज़ आई....हेल्लो ! थाने से बोल रहा हूँ.....ओह , ये रौंग नंबर भी ना ...फिर मिलाया फ़ोन.....फिर वही थाने से बोल रहा हूँ....
सोचा कि थोड़ी देर बाद करती हूँ फ़ोन अभी बार बार गलत ही मिल रहा है...और फिर इनसे भी तो छुप कर करना था फ़ोन नहीं तो पहले तो इनकी ही कितनी बात सुनने को मिलती कि चेक क्यों नहीं किया पहले...खैर....थोड़ी देर बाद फिर फ़ोन किया..तो फिर वही थाने जा लगा नंबर.... अब तो हम परेशान....इनसे कुछ कह नहीं सकते वरना बड़ी बेभाव की पड़ती...सो खुद ही दुकान तक जा कर बात करने में भलाई समझी.....मन ही मन सोच रहे थे कि ज़रूर सब्ज़ीवाले ने कुछ किया है जो इसको पुलिस पकड़ कर ले गयी है और इसका फ़ोन थाने में है....यदि अबकी फ़ोन कर दिया तो कहीं हम भी ना धरे जाएँ...ये सोच कर हिम्मत ही नहीं हुयी...
बस जल्दी से तैयार हुए और इनको कहा कि ज़रा बाज़ार तक जा रहे हैं...जवाब मिला...क्या लाना है? मैं ला देता हूँ....अब इनको सब बताना तो आ बैल मुझे मार वाली बात होती.....बस हम ये कहते हुए तेज़ी से घर से निकल लिए कि बस अभी आ रहे हैं....
दुकान पर जा कर देखा.. दो - चार ग्राहक खड़े थे....मैंने दुकानदार से कहा ...भैया कल सब्जी मंगाई थी पर कटहल नहीं भेजा...पैसे तो लगा ही दिए होंगे....तो वो बोला --- नहीं साहब आप लिस्ट देख लो पैसे नहीं लगाये थे , कल कटहल अच्छा नहीं था तो भेजा ही नहीं....आप पर्ची से मिला लो....अब हम कहाँ मिलाते....पर्ची तो फेंक दी थी....खैर हमने कहा अच्छा अभी तो दे दो...उसने अपना विजिटिंग कार्ड निकाला और मुझे देता हुआ बोला कि आप इस नंबर पर फ़ोन कर देते....मैंने कार्ड थामा और नंबर देखा तो बोली कि इसी नंबर पर तो सुबह से फ़ोन कर रही हूँ ....बार बार थाने में लग जाता है...
उसने कहा कि मैंने अपने फ़ोन में रिंग टोन की जगह थाने वाला डायलोग डाला हुआ है जी ...सब्ज़ीवाले का जवाब सुनकर अब चौंकने की बारी हमारी थी...............बिना वजह ही बन गए ना अप्रेल फूल ...
16 comments:
nice
Ha,ha, ha!
Aapki lekhan shaili aisi hai ki, aankhon ke aage ek tasveer ban jati hai!
वाह जी वाह ये भी खूब रही...
अच्छे उल्लू बने...डायलर टोन से ...
बस तो अब इंतजार किस बात का है
आप भी लगा डालिए एक नयी डायलर टोन
और कुछ नहीं तो डौगी की ही आवाज़ फीड
कर दीजिये...जो भी बिचारा सुनेगा...
कान के परदे तो फट ही जायेंगे..हा.हा.हा..
यह भी ख़ूब रही!
मज़ेदार संस्मरण!
mazedar rasedar jaykedar raha ye sansmaran.......... :) :)
kathal katne kee illat se mai banatee nahee lagata hai aapke paas aana padega ise khane....................:)........:)
:) :) सरिता जी ,
आप आईये ना..इसी बहाने सही ...यहाँ कटहल कटा हुआ ही मिलता है..:)
mazedaar
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ha ha ha!!
bahut khoob maa'm...
wakai bahut majedaar waqya hai.
हा हा हा जे न हुयी कोई बात -ब्लागरों देखो अप्रैल फूल ऐसा बनाया जाता है -हम भी आखिर तक पढ़ ही गए और अब बन भी गए !
यह भी ख़ूब रही...
फोटो में पावला जी हैं क्या ?
मजेदार संस्मरण .. सुबह सुबह फूल बन गयी आप .. वो भी सब्जीवाले से ही !!
हा हा हा ...यह तो बहुत ही मजेदार रहा..और वह भी पहली अप्रैल को ही होना था :)...बहुत खूब
संगीता जी आनन्द आ गया। बहुत ही अच्छा रहा संस्मरण।
vaah sangeeta ji...bahut achchha sansmaran raha...
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