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उन्मादी प्रेम

>> Monday, February 13, 2012


प्रस्तुत रचना मनु भण्डारी जी के उपन्यास  " एक कहानी यह  भी  में उनके विचारों पर आधारित है , उनके विचार को अपने शब्द देने का प्रयास किया है ...



उफनते समुद्र की 
लहरों सा 
उन्मादी प्रेम 
चाहता है 
पूर्ण समर्पण 
और निष्ठा 
और जब नहीं होती 
फलित सम्पूर्ण  इच्छा 
तो उपज आती है 
मन में कुंठा 
कुंठित मन 
बिखेर देता  है 
सारे वजूद को 
ज़र्रा ज़र्रा 
बिखरा वजूद 
बन जाता है 
हास्यास्पद 
घट  जाता है 
व्यक्ति का कद 
लोगों की नज़रों में 
निरीह सा 
बन जाता है 
अपनों से जैसे 
टूट जाता नाता है .

गर बचना है 
इस परिस्थिति से 
तो मुक्त करना होगा मन 
उन्माद छोड़ 
मोह को करना होगा भंग |
मोह के भंग होते ही 
उन्माद का ज्वार 
उतर जाएगा 
मन का समंदर भी 
शांत लहरों से 
भर जायेगा .

 

78 comments:

Aruna Kapoor 2/13/2012 4:33 PM  

उन्मादी प्रेम की परिणीति को यहाँ सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया गया है....बहुत सुन्दर रचना!

सदा 2/13/2012 4:46 PM  

मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .
बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

ashish 2/13/2012 4:47 PM  

प्रेम की तीव्रता , उन्माद का ज्वार के बाद भाटा भी आता है . बस इतना हो की सर के ऊपर से पानी ना निकल जाए , नहीं तो सच में आग का दरिया है .मन्नू जी के शब्दों को आपने खूबसूरत भावो में पिरो दिया .

vandana gupta 2/13/2012 4:50 PM  

उन्मादी प्रेम का बहुत ही सटीक विश्लेषण किया है…………शानदार चित्रण्।

vidya 2/13/2012 4:59 PM  

और जब नहीं होती
फलित सम्पूर्ण इच्छा
तो उपज आती है
मन में कुंठा
कुंठित मन
बिखेर देता है
सारे वजूद को ...

एक दम सच कहा..
बहुत सुन्दर संगीता जी...
सादर.

Akshitaa (Pakhi) 2/13/2012 5:07 PM  

प्रेम को लेकर आपने सुन्दर गीत लिखा..बधाई.
_____________

'पाखी की दुनिया' में जरुर मिलिएगा 'अपूर्वा' से..

रश्मि प्रभा... 2/13/2012 5:17 PM  

लोग कहते हैं - प्रेम के साथ कुंठा नहीं , पर कुंठा होती है... प्रेम समर्पित है तो प्रतिदान की उम्मीद भी है . प्रेम की ख्वाहिश स्वार्थ नहीं , ... ऐसे में मोह से ऊपर उठना - धीरे धीरे उठ ही जाता है आदमी .
......... अच्छा तो आप ख़ामोशी से मनु भंडारी जी को पढ़ रही थीं और अपने विचारों को जन्म दे रही थीं

रविकर 2/13/2012 5:21 PM  

बहुत सुन्दर |
बधाई ||

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 2/13/2012 5:24 PM  

बहुत सार्थक प्रस्तुति।

kshama 2/13/2012 6:03 PM  

मोह के भंग होते ही
उन्माद का ज्वार
उतर जाएगा
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .
Sach! Aisa ho kitna achha ho!

अशोक सलूजा 2/13/2012 6:34 PM  

ठीक कहा आपने ...ये सब मोह की ही माया है |

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून 2/13/2012 6:45 PM  

लेकिन बहुत मुश्किल है मन को अपने हिसाब से चला पाना

रचना दीक्षित 2/13/2012 6:46 PM  

मोह से मुक्ति अत्यावश्यक है. उन्मादी प्रेम को शांति से जीतने का सार्थक सन्देश.

सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई.

ऋता शेखर 'मधु' 2/13/2012 6:50 PM  

मनु जी के भाव को सुंदर शब्दों में ढाला है...
बहुत अच्छी प्रस्तुति|

अनुपमा पाठक 2/13/2012 6:56 PM  

बड़ी सुन्दरता से बांधा है भावों को कविता में!
सादर!

udaya veer singh 2/13/2012 7:10 PM  

समुन्नत शिल्प व कथनक रुचिकर लगा .. आभार /

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') 2/13/2012 7:35 PM  

एक खुबसूरत सन्देश देती रचना...
सादर.

sangita 2/13/2012 8:22 PM  

उन्माद का ज्वार
उतर जाएगा
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .......क्या बात कही है आपने|धन्यवाद,जो ऐसे भावों से परिचित कराया ,वरना प्रेम को तो महज उन्मादी ज्वार ही जाना जाता रहा है|

Yashwant R. B. Mathur 2/13/2012 8:29 PM  

बहुत ही अच्छा लिखा है आंटी।


सादर

दिलबागसिंह विर्क 2/13/2012 8:41 PM  

उन्मादी प्रेम
चाहता है
पूर्ण समर्पण
और निष्ठा

बिल्कुल सही , प्यार कब कुछ चाहता है
जो चाहे वो प्यार उन्माद ही तो है

Vandana Ramasingh 2/13/2012 8:47 PM  

उन्माद छोड़
मोह को करना होगा भंग |

सार्थक सन्देश

संतोष त्रिवेदी 2/13/2012 8:58 PM  

आजकल प्रेम भी उन्मादी हो गया है !

अच्छा रूपांतरण !

विभूति" 2/13/2012 9:06 PM  

बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......

मनोज कुमार 2/13/2012 9:36 PM  

जिनके लिए लिखा गया है, ऐसे लोगों का उन्माद का ज्वार कभी नहीं उतरता, ये तो घर जलाकर हाथ सेंकते हैं, क्योंकि इन्हें बस उष्मा चाहिए, घर और प्रेम नहीं।

प्रवीण पाण्डेय 2/13/2012 9:50 PM  

लहरों का उन्माद हृदय में उठता रहता...

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) 2/13/2012 10:06 PM  

बहुत खुबसूरत रचना ||
लाज़वाब !!!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने 2/13/2012 10:24 PM  

मोह का आवरण हमेशा सत्य को ढांक लेता है.. जब यह मोह भंग होता है तभी असलियत उभर कर सामने आती है एक शांत चित्त से!!

Sadhana Vaid 2/13/2012 11:15 PM  

निरंकुश और अनियंत्रित प्रेम के ज्वार को कौन बाँध सका है मर्यादाओं में ! बहुत सुन्दर, सार्थक और सशक्त रचना है संगीता जी ! इसमें निहित संदेश को जो समझ लेगा कुंठाओं के त्रास से तो अवश्य मुक्त हो जायेगा ! खूबसूरत रचना के लिये बधाई !

डॉ. मोनिका शर्मा 2/14/2012 1:15 AM  

गहरी अभिव्यक्ति..... सच में उन्मादी प्रेम तो सिवा कुंठा के कुछ नहीं....

shikha varshney 2/14/2012 2:13 AM  

कहानी के भाव बेहद खूबसूरती से उकेरे हैं.वाकई उम्माद से सब बिखर जाता है..पर समझ ही कौन पता है.

Udan Tashtari 2/14/2012 6:55 AM  

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!!

स्वाति 2/14/2012 7:55 AM  

स्वार्थ रहित सम्पूर्ण समर्पण का भाव ही प्रेम है...मगर आज ये विरले ही है....मन को छूती रचना...

Madhuresh 2/14/2012 8:13 AM  

गर बचना है
इस परिस्थिति से
तो मुक्त करना होगा मन
उन्माद छोड़
मोह को करना होगा भंग |
बहुत कठिन साधना है!

सुन्दर, प्रेरक रचना!

वाणी गीत 2/14/2012 9:05 AM  

प्रेम सिर्फ मुक्त हृदय के लिए ही संभव है !

Suman 2/14/2012 10:29 AM  

मोह के भंग होते ही
उन्माद का ज्वार
उतर जाएगा
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा ....
bikul sahi kaha hai ....
badhiya shbd-bhav ka pryog kiya hai...

Amrita Tanmay 2/14/2012 11:34 AM  

उन्मादी प्रेम..आग का दरिया है और डूब कर फना होना है..

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" 2/14/2012 1:14 PM  

sargarbhit roop mein poore upnyas ke bhavon ko samarthta ke sath vyakt karti hui shandaar rachna...is rachna ke sandesh se main puri tarah ittefak rakhta hoon..sadar pranam ke sath

Pallavi saxena 2/14/2012 3:30 PM  

हमेशा की तरह बहुत ही सुंदर भाव संयोजन...सार्थक पोस्ट ...

Kunwar Kusumesh 2/14/2012 3:40 PM  

सुन्दर,सटीक aur सामयिक रचना.

Anju (Anu) Chaudhary 2/14/2012 5:01 PM  

वाह बेहद खूबसूरत शब्दों की अभिव्यक्ति ....

Ayodhya Prasad 2/14/2012 5:24 PM  

बेहद खूबसूरत | कृपया हमारे ब्लॉग पर पधारें|
http://ayodhyaprasad.blogspot.in/

mridula pradhan 2/14/2012 6:33 PM  

bahut achcha likhi hain aap.....

गिरिजा कुलश्रेष्ठ 2/14/2012 7:59 PM  

कहानी के कथ्य का सुन्दर काव्यानुवाद है ।

***Punam*** 2/14/2012 8:34 PM  

कुंठित मन
बिखेर देता है
सारे वजूद को
ज़र्रा ज़र्रा
बिखरा वजूद
बन जाता है
हास्यास्पद
घट जाता है
व्यक्ति का कद
लोगों की नज़रों में
निरीह सा
बन जाता है
अपनों से जैसे
टूट जाता नाता है .


प्रेम में उन्माद ऐसी ही परिस्थिति खड़ी कर देता है इंसान के सामने .....
और फिर वही इंसान दूसरे को दोषी ठहराने लगता है......!!
इतने समुचित शब्दों में हकीकत बयां की है आपने....

Kailash Sharma 2/14/2012 8:44 PM  

मोह के भंग होते ही
उन्माद का ज्वार
उतर जाएगा
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .

...बिलकुल सच..बहुत सुंदर रचना..

अनामिका की सदायें ...... 2/14/2012 8:52 PM  

pyar ke dono pahluon ki sacchayi ukerti hai ye rachna.

lekin ant me moh bhang hone par beshak unmadi jwar utar jata hai magar man ka samander shant lehro se bhar jaye isme sanshay hai.

upanyas ke aadhar par sunder prayas. badhayi.

Vaanbhatt 2/14/2012 9:26 PM  

बिलकुल सही फ़रमाया...प्रेम ताकत बने कमजोरी नहीं...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया 2/14/2012 10:02 PM  

सटीक चित्रण उन्मादी प्रेम का,...
बहुत अच्छी रचना,सुंदर प्रस्तुति

MY NEW POST ...कामयाबी...

लोकेन्द्र सिंह 2/15/2012 3:38 AM  

आपका प्रयास सार्थक रहा...

Arun sathi 2/15/2012 7:35 AM  

par pdem me kuntha..

प्रतिभा सक्सेना 2/15/2012 12:41 PM  

उन्मादी प्रेम और मन की कुंठा को यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया है.मोह-भंग ही है इसका एकमात्र हल .

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद 2/15/2012 2:20 PM  

पुरुष तो पूर्ण समर्पण चाहता है पर क्या वह यही भाव स्त्री को देता है???

Maheshwari kaneri 2/15/2012 3:33 PM  

देर से आने के लिए माफी..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

गिरधारी खंकरियाल 2/15/2012 3:51 PM  

उन्माद दो प्रकार का होता है एक शांत चित सरल और तरल प्रेम का और दूसरा राक्षसीपन का व्यभिचारी.

मेरा साहित्य 2/16/2012 6:44 AM  

prem yahi hai shayad .shabdon ka sunder jugnu bikhera hai aapne
badhai
rachana

दीपिका रानी 2/16/2012 10:20 AM  

आजकल लोग उन्माद को ही प्रेम समझ बैठते हैं जबकि प्रेम तो एक ठहरा हुआ एहसास है। सुंदर अभिव्यक्ति संगीता जी

निर्झर'नीर 2/16/2012 11:55 AM  

आपने तो कविता में जीने की कला सिखा दी ,,अति सुन्दर ,सारगर्भित ,शुभकामनायें

Pushpendra Vir Sahil पुष्पेन्द्र वीर साहिल 2/16/2012 4:43 PM  

बिखरा वजूद
बन जाता है
हास्यास्पद
घट जाता है
व्यक्ति का कद
लोगों की नज़रों में....

कितनी बारीकी से देखा गया, बताया गया सच. दार्शनिक कविता ! आपका आभार इस रचना के लिए.

induravisinghj 2/17/2012 12:22 PM  

ज़र्रा ज़र्रा
बिखरा वजूद
बन जाता है
हास्यास्पद
घट जाता है
व्यक्ति का कद
लोगों की नज़रों में
निरीह सा
बन जाता है
अपनों से जैसे
टूट जाता नाता है ....

behad touchy,sunder rachna........

कुमार राधारमण 2/17/2012 4:36 PM  

और मन मुक्त कैसे होगा?

Dr. sandhya tiwari 2/18/2012 2:27 PM  

prem ki abhivyakti ki sundar prastuti.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) 2/18/2012 2:39 PM  

मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .सार्थक रचना दीदी.

Naveen Mani Tripathi 2/18/2012 5:25 PM  

मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .

SANGEETA JI KYA KAHU ......NAYEE SFOORTI SE PARIPOORN KR DENE WALI RACHANA LAGI ....KOTI KOTI ...BADHAI.

Onkar 2/18/2012 6:37 PM  

behad sundar rachna

prerna argal 2/20/2012 10:46 AM  

आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (३१) में शामिल की गई है/आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप इसी तरह लगन और मेहनत से हिंदी भाषा की सेवा करते रहें यही कामना है /आभार /

महेन्‍द्र वर्मा 2/20/2012 1:12 PM  

मन शांत लहरों से भरा रहे।
बहुत सुंदर कविता।
अच्छे भाव।

दिगम्बर नासवा 2/20/2012 10:15 PM  

स्सच कहा है मुक्त प्रेम ही जीवन का आनद देता है ...

पूनम श्रीवास्तव 2/21/2012 6:11 PM  

di , bahut hi behatreen
saari panktiyan hi
bahut sarthak sandesh de gain------
poonam

Saras 2/22/2012 7:31 AM  

मोह जन्म देता है अपेक्षाओं को ...और फिर होती है दर्द और कुंठा की शुरुआत ....बहुत सुन्दर लिखा है आपने !!!

Minakshi Pant 2/22/2012 10:12 AM  

बहुत सुन्दर सार्थक रचना |

Asha Joglekar 2/22/2012 10:16 AM  

मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .
पर ये हो नही पाता तभी तो कुंठा उपजती है । मोह पर विजय पा लेंगे तो ज्ञानी बन जायेंगे ।
सुंदर प्रस्तुति ।

virendra sharma 2/22/2012 12:04 PM  

मोह के भंग होते ही
उन्माद का ज्वार
उतर जाएगा
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .
पद्यानुवाद का ज़वाब नहीं .शब्द नपेतुले भावों के अनुरूप ढल गएँ हैं खुद- बा -खुद .

Smart Indian 2/22/2012 3:19 PM  

बहुत सुन्दर!

डॉ. जेन्नी शबनम 2/22/2012 4:49 PM  

prem mein unmaad man-saagar mein sthirta nahi aane deta, prem ka charam tabhi sambhav hai jab unmaad na ho, moh bhale ho. man mein shaant lahre bhar jaaye to isase uttam kuchh bhi nahi. bahut sundar rachna.

निर्झर'नीर 3/05/2012 1:59 PM  

उन्माद छोड़
मोह को करना होगा भंग |
मोह के भंग होते ही
उन्माद का ज्वार
उतर जाएगा
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .............behatriin talkh haqiqat hai ye ,ye rachna bahut gahra prabhav choRti hai .

मेरा मन पंछी सा 5/14/2012 8:51 PM  

उन्मादी प्रेम की सुन्दर रचना..
अति उत्तम रचना...:-)

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