गुमशुदा ज़िन्दगी
>> Thursday, May 16, 2024
ज़िन्दगी
कुछ तो बता
अपना पता .....
एक ही तो मंज़िल है
सारे जीवों की
और वो हो जाती है प्राप्त
जब वरण कर लेते हैं
मृत्यु को ,
क्यों कि असल
मंज़िल मौत ही तो है ।
इस मंज़िल तक पहुँचने की राहें
अलग अलग भर हैं ।
ज़िन्दगी भर
न जाने क्यों
हर पल
जद्दोजहद करते हुए
सही - गलत का आंकलन करते हुए
ज़िन्दगी के जोड़ - घटाव में
कर्तव्यों का गुणा - भाग करते हुए
एक दूसरे से
समीकरण बैठाते हुए
कब ज़िन्दगी रीत जाती है ,
अहसास नहीं होता ।
उम्र के ढलान पर
जब ठहरती है ज़िन्दगी , तो
मुड़ कर एक बार जरूर सोचती है
कि , उस मोड़ से शुरू करें
फिर ये ज़िन्दगी ।
लेकिन इस छोर पर खड़े
केवल ख्वाहिश कर सकते है ,
शुरू नहीं ।
जब भी पीछे देखा है
तो ,
अक्सर रास्ते नहीं दिखते
दिखते हैं तो बस
मील के पत्थर
जो अहसास कराते हैं
कि -
चले तो बहुत लेकिन क्या ,
चल पाए सही और सीधी राह पर ?
कहीं फिसल तो नहीं गए
किसी चिकनी राह पर ?
गिर कर संभले या फिर
गिरते ही चले गए किसी राह पर ?
यूँ तो ये आंकलन करना भी
मात्र प्रपंच ही तो है ,
क्यों कि -
कहा जाता है कि
हम तो निमित्त मात्र हैं ।
सब कुछ पूर्व निश्चित है
हम तो अभिनय के पात्र हैं ।
तो फिर
पूछूँ भी क्या तुझसे ज़िन्दगी ?
वैसे यदि तू चाहे तो ,
बता अपना पता ज़िन्दगी ।