कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
4 comments:
is purvnishchit satya ko sahi shabd diye,khud ko samjhane,sambhalne ki sashakt prakriya........
Geet
aapki har rachn
apna amit prabhav choR jati hai
वाह!कितनी अच्छी अभिव्यक्ति दी है आप ने....
.......कंचनलता चतुर्वेदी
"फिर भी हम
अक्सर सोचते हैं
कि -
काश उस समय
ऐसा किया होता "-man kee sthiti ka yatharth chitran hua hai.
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