कसक
>> Saturday, May 2, 2009
ज्यूँ आसमान से
तारा टूटता हो
एक सझर से
फूल गिरता हो
यूँ ही ज़िन्दगी में
कभी कभी
टूट जाते हैं रिश्ते ।
तारा टूट
विलीन हो जाता है
ब्रह्माण्ड में
फूल गिर
मिल जाता है
धूल में
पर आसमां औ पेड़
दोनों का ही वजूद
रहता है बना
अपनी - अपनी जगह ।
सोचती हूँ कि -
क्या इन दोनों को
रिश्ते टूटने का
दर्द नही होता ?
पर जब इंसानी रिश्ते
टूटते हैं तो
बिखर जाता है
दोनों का ही वजूद
और रह जाती है
बस एक कसक .
4 comments:
wahhhhhhhh bahot sundar
nihayat marmik abhivyakti
khoobsurat bayanii or dilkash andaj ..
दर्द के हर दर्द को उभार दिया,
इसे समझना इतना आसान नहीं होता......
chhoti chhoti panktiyo ke istemaal se flow bahut badhiya ban padaa hai kavita kaa
बिखर जाता है दोनों का ही वजूद
और रह जाती है बस एक कसक .
bahut khuub!
sundar rachna hai..
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