किनारे
>> Thursday, May 21, 2009
समंदर के किनारे
देख भी नही पाते
एक दूसरे को
बस एहसास होता है
उनको एक दूसरे का
समंदर के पानी से ।
पानी ही ज़रिया है
उनके बीच मिलन का
और वो खुश रहते हैं
दूर - दूर रह कर भी ।
दरिया के किनारे
देख पाते हैं
एक दूसरे को
सहज साथ देते हैं ।
पर दरिया का पानी
कभी कभी
व्यग्र हो उठता है
और उनको
मिलाने के प्रयास में
किनारे तोड़
विध्वंस कर जाता है ।
फिर आता है
स्वयं की सीमा में
और किनारे फिर
बाँध देते हैं दरिया को
एक सीमा रेखा में।
लेकिन-
बहुत मुश्किल होता है
बांधना समुद्र के पानी को
उसकी सीमाओं में ।
जब वो लांघता है
अपने किनारों को तो
हो जाती है विनाशलीला
और आ जाती है
सुनामी जैसी विध्वंसता
2 comments:
Di,
Bahut hi Gehri baat bahut hi khubsurti se likhi hai aapne....
great poem sangeeta ji.
-- ajit pal singh daia
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