भ्रम
>> Saturday, July 11, 2009
हर भावों के रंगों से
रंजित थी उसकी काया
अनभिग्य सा भाव दिखा कर
उसने मेरे मन को भरमाया ।
भ्रम था उसको इसी बात का
कि मैंने चेहरा उसका नहीं पढ़ा
उसके रुखसारों कि लाली को
मैं देख रहा था खडा -खडा।
वदन पलाश फूल बना था
आँखों में झील उतर आई थी
इन्द्रधनुष के रंगों से फिर
सारी दुनिया सज आई थी ।
रक्ताभ अधर पर जैसे
सूर्य किरण सी बिखरी थी
कहने को कुछ मन विचलित था
संकुचित सी खुद में सिमटी थी ।
सब पढ़ आया एक नज़र में
खुद अनभिग्य सा बना हुआ
यही भ्रम बना रहे उसको भी
कि मैंने उसका चेहरा नहीं पढ़ा.
7 comments:
वदन पलाश फूल बना था
आँखों में झील उतर आई थी
इन्द्रधनुष के रंगों से फिर
सारी दुनिया सज आई थी
ऐसा भ्रम सत्य हो जाए तो कितना मधुर है.............. लाजवाब लिखा है आपने
वदन पलाश फूल बना था
आँखों में झील उतर आई थी
इन्द्रधनुष के रंगों से फिर
सारी दुनिया सज आई थी
ऐसा भ्रम सत्य हो जाए तो कितना मधुर है.............. लाजवाब लिखा है आपने
बहुत ही उच्चस्तरीय भाव ......
रक्ताभ अधर पर जैसे
सूर्य किरण सी बिखरी थी
कहने को कुछ मन विचलित था
संकुचित सी खुद में सिमटी थी ।
Adaraneeya sangeete ji,
apakee har rachana kee tarah yah bhee ek utkrisht evam bhavpoorna rachana hai.sadhuvad.
Poonam
bahut umda likha aapne
Nice..
Sangeeta ji..
bahut acchhi rachna..ye rang aapki kalam ka kuchh hat k laga..
kitni tez nazer thi uski jo usne us ranzit kaya wali ke chehre ke sab bhaav padh liye aur apne sare bhaav chhupa liye..bahut sunder shabdo se chitran kiya hai is baat ka..
ek gudguda dene wali rachna k liye badhayi.
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