वादा
>> Monday, November 9, 2009
सांझ समय
बैठी थी
पुष्प वाटिका में
कि
यादों के झुरमुट से
निकल कर आ गया था
चेहरा तुम्हारा सामने
आँखों में प्यास लिए।
तुम्हें देख
थिरक आई थी
मुस्कान मेरे लबों पर ।
ये देख
लगे थे करने चहलकदमी ।
जैसी कि
तुम्हारी आदत थी ।
तुम्हें देखते हुए
थक जाती थी
ग्रीवा मेरी
इधर से उधर
करते - करते।
तभी ऐसा लगा कि
तुम कह रहे हो
क्या होगा ?
हमारे अरमानो का
सपनो का
चाहतों का ।
धीरे से मैंने कहा कि
सब बिखर गए हैं
और
अब बिखरे हुए
ख़्वाबों को
चुना नहीं जाता है
गर चुनना भी चाहूँ तो
हाथ लहू - लुहान
हुआ जाता है ।
लगा कि तुमने
मेरे कंधे झिंझोड़ दिए हैं
और मैं जैसे
नींद से जाग गयी ।
मेरी बेटी
मेरे कन्धों पर
हाथ रख कर
कह रही थी कि
माँ, सपने क्यों
बिखर जाते हैं ?
मन के छाले
क्यों फूट जाते हैं ?
ये आंसू भी सब कुछ
क्यों कह जाते हैं ?
मुझे लगा कि
मेरी बेटी
अब बड़ी हो गयी है
मैंने उसे देखा
एक गहरी नज़र से
और कहा कि
मैं तुम्हारे हर ख्वाब
चुन लुंगी
अरमानो का खून
नहीं होने दूंगी
आँख से कतरा
नहीं बहने दूंगी
ये वादा है मेरा तुमसे
एक माँ का वादा है
जिसे मैं ज़रूर
पूरा करुँगी.
मैं तुम्हारे हर ख्वाब
चुन लुंगी
अरमानो का खून
नहीं होने दूंगी
आँख से कतरा
नहीं बहने दूंगी
ये वादा है मेरा तुमसे
एक माँ का वादा है
जिसे मैं ज़रूर
पूरा करुँगी.
14 comments:
जो कांटे हमें लहुलुहान और बेबस कर गए, मेरी बेटी उन काँटों को मैं टुकडों में विभक्त कर डालूंगी, तुम्हारी ज़िन्दगी में विवशता नहीं आने दूंगी.........
गहरे जज्बातों को उकेरा है आपने इस रचना में ....... एक माँ का दिल बहुत ही भावोक होता है ... पर जब ज़रुरत आती है तो माँ चट्टान भी बन जाती है ........
बेहद भावपुर्ण है आंखे नम हो गयी............अतिसुन्दर!
dil ko choo jane walee rachana .ma ka pyar hota hee aisaa hai.bitiya kee khushee ke liye kuch bhee prayas kar saktee hai bhavpoorn rachana kee badhai .
bahut hi sundar bhav.
abhar
सुन्दर
भावपूर्ण कविता
अच्छा लगा पढ़कर
हार्दिक शुभ कामनाएं
क्रियेटिव मंच
हां. माँ बेटी के बीच सुख दुःख बाँट लेने की यही सोच तो सेतु होती है उनके बीच के प्यार को पूर्णता देने का..बहुत अच्छी रचना.
atio uttam
aaz matajee kee yad men koren bhigo dee is kavita ne
Di! behad bhavpurn rachna....mamta ke ahsason se bhari hui...kuch nahi keh sakti or..
बहुत सुन्दर रचना, और चित्र भी.
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-4-22) को क्यों लिखती हूँ ?' (चर्चा अंक 4405) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
माँ और बेटी के अटूट रिश्ते को समर्पित बहुत ही प्यारी और मार्मिक रचना प्रिय दीदी।हर माँ इन्हीं मर्मांतक प्रश्नों के साथ बेटी कोजुझ्ते देखती है और फिर उभर कर आता है उसका संबल जो एक बेटी का सबसे बड़ा सहारा होता है।सादर ❣🙏🙏🌺🌺
एक माँ का बेटी से वादा !
परिस्थितियों को झुकना होगे एक माँ के सामने...और एक एक शब्द अक्षरशः सत्य होगा
गहन अर्थ समेटे बहुत ही सारगर्भित सृजन
वाह!!!
प्रिय रेणु और प्रिय सुधा जी
माँ मन में तो पक्का सोच लेती है कि बेटी को कभी मजबूरी के नाम पर समझौता नहीं करने देगी लेकिन कभी कभी हार भी जाती है । फिर भी मन से पूर्ण समर्पित रहती है अपने वादे पर ।
आभार
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