लक्ष्य
>> Saturday, November 21, 2009
उम्र की ढलान पर
ज़िन्दगी जैसे
लक्ष्य - विहीन सी
हो जाती है
पंखों की क्षमता जैसे
सारी त्वरित शून्य सी
हो जाती है .
कटे - फटे पंखों से
कब कोई विहग
उड़ पाता है
अपने परों को देख - देख
मन उदास सा
हो जाता है .
जब ताकत थी पंखों में तो
क्षितिज भी
दूर नहीं लगता था
उन्मुक्त गगन में जैसे
मन का पंछी
विचरण करता था .
अब एक उड़ान के लिए
मन विह्वल हो जाता है
गर चाहूँ पाना कुछ भी
लक्ष्य कहीं खो जाता है.
11 comments:
ांब एक ऊडान के लिये
मन विह्ल हो जाता है
गर चाहूँ पाना कुछ भी
लक्षय कहीं खो जाता है
रचना तो बहुत सुन्दर है मगर ज़िन्दगी थक हार कर नहीं चलती ।अपने सही कहा कभी कभी आदमी का मन उदास हो तो ऐसे ही सोचता है। शुभकामनायें
हकीकत और भाव का अच्छा समन्वय इस रचना में। सुन्दर।
लक्ष्य भला कैसे खोये जब गहरी दिल में चाह।
अगर हौंसला बना रहे तो ना कोई परवाह।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
mansthitee kee ek jhalak liye jo nishchatah asthayee hogee . ek bhavuk rachana .
bahut khoobsurat rachna...zindgi ke kuchh udaseen palo se churaye huai se mano-bhaav..lekin hamesha aisa nahi hota..na hi aisa hona chhahiye....man ki vihvalta ko door kar lakshey ko paane k liye...nabh k us paar jana hi padega..
nice creation.
कम शब्दों में आपने जीवन की एक सच्चाई बयान की है--इससे हम सभी को गुजरना ही है।सुन्दर रचना।
पूनम
सुंदर गीत
-बधाई
जीवन निराश होने के लिए नहीं है .......... आपकी रचना में कुछ उदासी, कुछ निराशा की झलक है आज .... रचना लाजवाब है ....
बुढ़ापा, बेबसी और विपरीत परिस्थितियां!!!!
hamesha ki tarah
khoobsurat gahra bhaav haqiqat tariin
di vo kehte hain na ki jab jago tabhi sawera....bas vahi sochna chahiye ..vese bahut hi sachchai hai is rachna main.sabhi ke jeevan main ye kshan jarur aate hain kabhi na kabhi.
जब ताकत थी पंखो मे --
वक्त वक्त की बात है
सुन्दर रचना
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