सुनामी की बाहों में .....
>> Monday, October 11, 2010
आँखों के समंदर में
ये कैसा तूफां है
खींच ले जाता है
साहिल से
मेरी हर ख्वाहिश को ,
दम तोड़ देती है
हर चाहत
जूझ कर खुद ही
सागर की लहरों के
हर थपेडे को सह कर ।
जज्ब कर लेता है
सिन्धु
अपनी ही गहराई में
देखे - अनदेखे
मेरे हर ख़्वाबों को ।
होती है सिहरन
बस भीगी सी रेत से
और ये रेत भी भीगी है
मेरे अश्कों की धारों से।
शुष्क है मन और
अब आँखें भी खुश्क हैं
न ख्वाहिश है कोई मन में
न ख्वाब आँखों में है।
कोशिश थी मेरी कि
बच जाए महल सपनों का
पर फूटा ऐसा ज्वालामुखी
कि समां गया
सुनामी की बाहों में.
ये कैसा तूफां है
खींच ले जाता है
साहिल से
मेरी हर ख्वाहिश को ,
दम तोड़ देती है
हर चाहत
जूझ कर खुद ही
सागर की लहरों के
हर थपेडे को सह कर ।
जज्ब कर लेता है
सिन्धु
अपनी ही गहराई में
देखे - अनदेखे
मेरे हर ख़्वाबों को ।
होती है सिहरन
बस भीगी सी रेत से
और ये रेत भी भीगी है
मेरे अश्कों की धारों से।
शुष्क है मन और
अब आँखें भी खुश्क हैं
न ख्वाहिश है कोई मन में
न ख्वाब आँखों में है।
कोशिश थी मेरी कि
बच जाए महल सपनों का
पर फूटा ऐसा ज्वालामुखी
कि समां गया
सुनामी की बाहों में.
59 comments:
संगीता जी, बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ... सपनो के महल यूँ ही बिखरते रहते हैं, लेकिन हमें बनाते रहना chahiye....
मेरे ब्लॉग पर इस बार
एक और आईडिया....
udas kar chodane walee rachana.....
आँखों के समंदर में...ये कैसा तूफां है
खींच ले जाता है...साहिल से...मेरी हर ख्वाहिश को ,
शुष्क है मन और..अब आँखें भी खुश्क हैं
.......कोशिश थी मेरी कि
बच जाए महल सपनों का
पर फूटा ऐसा ज्वालामुखी...
कि समां गया...सुनामी की बाहों में...
बेहतरीन....लाजवाब रचनाओं में से एक.
कोशिश थी मेरी कि
बच जाए महल सपनों का
पर फूटा ऐसा ज्वालामुखी
कि समां गया
सुनामी की बाहों में.
-ओह!!
लाजबाब!
होती है सिहरन
बस भीगी सी रेत से
और ये रेत भी भीगी है
मेरे अश्कों की धारों से।
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कोशिश थी मेरी कि
बच जाए महल सपनों का
पर फूटा ऐसा ज्वालामुखी
कि समां गया
सुनामी की बाहों में.
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कमाल की अभिव्यक्ति है!
सीधे मन पर प्रभाव डालती है!
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यूँ तो पूरी रचना ही बहुत बढ़िया है
मगर मुझे इन अन्तरों ने खासा प्रभावित किया है!
अब सुनामी ....कुछ भी मत छोडना दी ! पीछे ही पड़ गई हो ख़्वाबों के ..कुछ नहीं हुआ है ख़्वाबों को कहीं नहीं गए हैं वो सलामत रहेंगे हमेशा और साकार भी होंगे ...ओह भाषण ज्यादा हो गया
वैसे कविता वाकई जबर्दस्त्त है.एकदम सुनामी जैसी तूफानी.
इतनी वेदना को जज्ब करना और फिर उसे कलाम में ढालना. कमाल है मोहतरमा . हम तो सुनामी की नई परिभाषा पर लट्टू हो गए.
कविता वाकई जबर्दस्त्त है.
आदरणीय संगीता स्वरुप जी
नमस्कार !
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
अब मैं क्या लिखूँ?
इतनी बढ़िया रचना बन जायेगी ..
शायद आपको भी अहसास न रहा हो ...
मुझे तो सभी पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी .
कोशिश थी मेरी कि
बच जाए महल सपनों का
पर फूटा ऐसा ज्वालामुखी
कि समां गया
सुनामी की बाहों में.
Gazab tasveeron ke saath mel khati rachana! Wah!
आँखों के समंदर में
ये कैसा तूफां है
खींच ले जाता है
साहिल से
मेरी हर ख्वाहिश को,
बहुत सुन्दर रचना ....आभार
कविता पाठके के मन को छू लेती है और कवयित्री की सामर्थ्य और कलात्मक शक्ति से परिचय कराती है। नितांत व्यक्तिगत अनुभव कैसे समष्टिगत हो जाता है इसे हम आपकी इस कविता में देख सकते हैं।
शुष्क है मन और
अब आँखें भी खुश्क हैं
न ख्वाहिश है कोई मन में
न ख्वाब आँखों में है।
पीड़ा घनीभूत हो जाए तो ऐसा ही लगता है...
अत्यंत मार्मिक रचना
आँखों के समंदर में
ये कैसा तूफां है
खींच ले जाता है
साहिल से
मेरी हर ख्वाहिश को ,
ye kya baat hai aapki kalam me indino ??????????
संगीता दी,
दुष्यंत जी ने कहा था
एक जंगल है तेरी आँखों में,
मैं कहीं राह भूल जाता हूँ.
और आज आपने एक पूरा समंदर उँड़ेल दिया. एक एक शब्द अंतर्मन की सच्ची अभिव्यक्ति करता है!
समय की सुनामी से कौन बचा है।
भाव प्रवण कविता
3/10
अच्छा प्रयास
होती है सिहरन
बस भीगी सी रेत से
और ये रेत भी भीगी है
मेरे अश्कों की धारों से।
लाज़वाब...वेदना की इतनी ह्रदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ! बहुत सुन्दर...आभार..
होती है सिहरन
बस भीगी सी रेत से
और ये रेत भी भीगी है
मेरे अश्कों की धारों से।
लाज़वाब...वेदना की इतनी ह्रदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ! बहुत सुन्दर...आभार..
दीदी,
कैसे बांध लेती है,उन्मुक्त भावों को शब्दों में?
कोशिश थी मेरी कि
बच जाए महल सपनों का
पर फूटा ऐसा ज्वालामुखी
कि समां गया
सुनामी की बाहों में.
मैडम,
आपके सुझाव पर अमल करते हुए वर्ड वेरिफिकेशन को नो कर दिया है .
एक बात और मैडम,
किसी का follower बनने में मेरी फोटो वहां नहीं पहुँचती है .इसे कैसे ठीक करें?
कृपया गाईड करें.कृपा होगी.
कुँवर कुसुमेश
कोशिश थी मेरी कि
बच जाए महल सपनों का
पर फूटा ऐसा ज्वालामुखी
कि समां गया
सुनामी की बाहों में.
बहुत ही उम्दा... कमाल की पंक्तियाँ हैं....आभार
आपकी कविता का प्रत्येक शब्द अर्न्तमन की परत दर परत खोलता हुआ प्रतीत होता हैँ। बहतरीन अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत आभार! -: VISIT MY BLOG :- मेरे ब्लोग पर पढ़िये इस बार....... जाने किस बात की सजा देती हो?........गजल।
भावों का सुगढ़ प्रगटन।
सारे के सारे एहसासों को लहरों और समुद्र के बिम्बो के सहयोग से सजा सुंदर रचना का रूप दिया है. और अंत में ज्वालामुखी ने अपना कमाल दिखा दिया.
प्रभावशाली चित्रण .
बधाई.
कोशिश थी मेरी कि
बच जाए महल सपनों का
पर फूटा ऐसा ज्वालामुखी
कि समां गया
सुनामी की बाहों में.
बहुत ही मार्मिक रचना
सोचकर आँखों मे आंशु आ गये
आँखों के समंदर में
ये कैसा तूफां है
खींच ले जाता है
साहिल से
मेरी हर ख्वाहिश को ...
आपकी मुस्कराहट आपके ग़म छिपाती है और आपकी कवितायें सब बयान कर देतीं हैं.... हमेशा की तरह बहुत सुंदर रचना! सादर
होती है सिहरन
बस भीगी सी रेत से
और ये रेत भी भीगी है
मेरे अश्कों की धारों से।
सुन्दर रचना यूँ लगा एक दर्द की इक लकीर गुजर गयी....
regards
bohot bohor sundar...hamesha hi ki tarha. u rock dadi.... ;)
सपनों का महल सुनामी की बाँहों में ..
कितना दर्द छिपा है इन पंक्तियों ...
सफीने पर जो कश्तियाँ डूब जाया करती हैं ...
वो भी क्या साहिल की तमन्ना किया करती हैं ...!
कोशिश थी मेरी कि
बच जाए महल सपनों का
पर फूटा ऐसा ज्वालामुखी
कि समां गया
सुनामी की बाहों में.
...मन को स्पंदित करती हैं ये पंक्तियाँ..उम्दा कविता..बधाई.
जीवन संघर्ष की कलात्मक अभिव्यक्ति ।
बहुत सुन्दर कविता...
आप बहुत बढिया लिखती हैं। मन में ई सब आता तो है, पर लिख नहीं पाते, पर ऐसएहीं सुना ज़रूर देते हैं!
अपकी यह पोस्ट अच्छी लगी।
हज़ामत पर टिप्पणी के लिए आभार!
शुष्क है मन और
अब आँखें भी खुश्क हैं
न ख्वाहिश है कोई मन में
न ख्वाब आँखों में है।
सपनो के धराशायी होने का दर्द उभर कर आया है……………बेहद मार्मिक चित्रण किया है…………एक वक्त ऐसा भी आता है जब हर ख्वाहिश दम तोड देती है इस व्यथा को बहुत सुन्दरता से उकेरा है।
सपनों और ख्वाहिशों के टूटने का दर्द .... बहा ले जाता है सब कुछ ....
गहरे एहसास से बुनी रचना ...
sundar rachna!
न ख्वाहिश है कोई मन में
न ख्वाब आँखों में है।
in panktiyon ka dard bhed jata hai....
sapno ka dharashayi hone ki vyatha ubhar aayi hai!
sadhi hui kalam ki sundar abhvyakti!!
regards,
बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! आपकी लेखनी को सलाम!
बहुत दिनों के बाद कोई इतनी प्रभावशाली रचना पढी है ! आँखें नम कर गयी और ना जाने मन के कितने सोये हुए दर्दों को जगा गयी ! बहुत हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति !
कोशिश थी मेरी कि
बच जाए महल सपनों का
पर फूटा ऐसा ज्वालामुखी
कि समां गया
सुनामी की बाहों में.
Dil ko Chhu gayi aapki ye panktiyaan
behad khoobsurat aur ehsaason se purn aapki ye kavita
badhai, sapne dekhna hi chahiye / jivan tabhi chalta he
badhai
बहुत अच्छा लगा इसे फिर से पढना
बिनु विश्वास भगति नहिं, तेहि बिनु द्रवहिं न राम।
राम कृपा बिनु सपनेहुं, जीवन लह विश्राम ।।
bahut sundar kavita ke liye bahut bahut badhai
होती है सिहरन
बस भीगी सी रेत से
और ये रेत भी भीगी है
मेरे अश्कों की धारों से।
ati sundar shabdon ka sangam!
"कोशिश थी मेरी कि
बच जाए महल सपनों का
पर फूटा ऐसा ज्वालामुखी
कि समां गया
सुनामी की बाहों में."
बेहद मर्मस्पर्शी रचना.
आभार.
सादर डोरोथी.
कमबख्त ख्वाबों को भी नुकसान पंहुचाती है :) अच्छी कविता !
आँखों के समंदर में
ये कैसा तूफां है
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"कोशिश थी मेरी कि
बच जाए महल सपनों का
पर फूटा ऐसा ज्वालामुखी
कि समां गया
सुनामी की बाहों में."
.. behad sundar likha hai Sangeeta ji.....
आँखों के समंदर में
ये कैसा तूफां है
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"कोशिश थी मेरी कि
बच जाए महल सपनों का
पर फूटा ऐसा ज्वालामुखी
कि समां गया
सुनामी की बाहों में."
.. behad sundar likha hai Sangeeta ji.....
आँखों के समंदर में
ये कैसा तूफां है
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"कोशिश थी मेरी कि
बच जाए महल सपनों का
पर फूटा ऐसा ज्वालामुखी
कि समां गया
सुनामी की बाहों में."
.. behad sundar likha hai Sangeeta ji.....
बहुत सुन्दर दी. बधाई.
दम तोड़ देती है
हर चाहत
जूझ कर खुद ही
सागर की लहरों के
हर थपेडे को सह कर ।
बेहद भावपूर्ण !
दशहरा की ढेर सारी शुभकामनाएँ!!
शुष्क है मन और
अब आँखें भी खुश्क हैं
न ख्वाहिश है कोई मन में
न ख्वाब आँखों में है।
अच्छी भावपूर्ण कविता !
भावपूर्ण,मर्मस्पर्शी अतिसुन्दर रचना...
kaafi dino baat blogs padhe...bahut kam aisa mila jisne dil ko chua ho...na jaane kyon aapki ye rachna mood ke according fit baithi....kai baar padha....apni si lagi :-)
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