सपने में बापू
>> Saturday, October 2, 2010
मुझे आज बापू
सपने में दिख रहे थे
उनकी आँखों से
आँसू टपक रहे थे ।
मैने पूछा - बापू
क्यों रो रहे हो ?
हैरत से देख मेरी ओर बोले
क्या तुम सब सो रहे हो ?
वहाँ मेरी विरासत
नीलाम हो रही है
और यहाँ की सरकार
लंबी तान कर सो रही है ।
हांलांकि मैने शराब बंदी पर
आंदोलन चलाया
पर आज उसी का व्यापारी
काम आया ।
उसने ही भारतीयों को शर्मसार
होने से बचाया
विजय देश की विजय
बन कर आया
इस पर भी सरकार ने
अपना ठप्पा लगाया ।
जब माल्या टीपू सुल्तान की
तलवार लाया था
तब सरकार ने
उस पर टैक्स लगाया था
आज लाई हुई
मेरी चीज़ों पर भी टैक्स
लगाया जाएगा
मेरी अदना सी संम्पत्ति को
बढ़ा - चढ़ा कर बताया जाएगा ।
आज मैं ज़ार - ज़ार रोता हूँ
जब कभी भी अख़बार पढ़ता हूँ।
पूरे अख़बार में हिंसा, आतंकवाद ,
सड़क दुर्घटनाएँऔर
बलात्कार की खबरें ही आती हैं
कभी -कभी ऐसी भी खबर आती है
कि जिससे मेरी रूह
काँप जाती है
अस्पताल में बिल भरने की खातिर
एक माँ अपना बच्चा बेच देती है
और सरकार के कान पर
जूँ भी नही रेंगती है ।
आज सोचता हूँ कि,
काश गोडसे ने मुझे नही
मेरी आत्मा को मारा होता
तो उसने आज मुझे
इस दुख से उबारा होता ।
उनका प्रलाप सुन
मेरी नींद खुल गयी
और मैं मन में न जाने
कितने प्रश्न लिए रह गयी..
यह रचना पिछले वर्ष तब लिखी थी जब गाँधी जी कि चीज़ें नीलाम हुई थीं ...
60 comments:
संगीता आंटी..
यह मनोदशा सब की ही है..क्या कीजिएगा..? जो भी सर उठाता है..आवाज़ उठाता है..उसे ही दबा दिया जाता है..!! जब तक धानी से लेकर सत्ता के महारथी कुछ नहीं सोचेंगे..करेंगे..कुछ नहीं होगा..!! वैसे भी, भारत की जनता भाव-विहीन हो गयी है..किसी और का दर्द समझ ही नहीं सकती..!! आज हम सब मूल्य-विहीन हो गए हैं..!! 'क्या फरक पड़ता है'..इस मानसिकता ने हम सबको बदल दिया है..!!
आपने सत्य कहा है..काश..'आत्मा' का नाश हुआ होता..तो इन सबसे कोई फरक नहीं पड़ता..!!
शत-शत नमन बापू!
गाँधी की आत्मा को शुकून तभी मिलेगा जब हम उनके आदर्शो का पालन कर सके , जो दूर दूर तक नहीं दिखाई दे रहा है . विजय माल्या का गाँधी जी के वस्तुओ को सरकार के उदासीनता के बाद भी , नीलामी में मूह मांगी रकम देकर अपने देश लाना मेरे हिसाब से महती देशभक्ति का कृत्य है .
sach mein aaj bapu bahut dukhi honge shayad.....
bahut hi marmik rachna.....
मेरे ब्लॉग पर इस बार जाने क्या है बापू की इच्छा......
सत्य को दर्शाती एक अच्छी रचना.
बापू को शत शत नमन.
क्या खूब अभिव्यक्ति है .. बापू को नमन !!
arey...ye to golden days classic hai....!! :)
ya aapki best works mein se ek hai dadi...vyangyatmak dhang se itni badi baat keh gaye aap...aap hi kar sakte the ye :)
संगीता दी,
काश सो जाए ये देश सारा
ताकि स्वप्न में ही सही
बापू की पुकार कानोन तक पहुँचे...
नमन बापू को!
वंदना शास्त्री जी की!
गाँधी को तो अब रोना ही पड़ेगा। गाँधी त्याग को मानते थे और ग्रामोत्थान की बात करते थे लेकिन उन्होंने भारत की सत्ता किसे सौंपी? नेहरूजी को, जो भोगवादी और भारत को यूरोप की एक कॉलोनी बनाना चाहते थे। इसलिए कहते हैं कि आप कितने ही अच्छे क्यों ना हो, लेकिन यदि आप दूरदर्शी नहीं हैं और उचित व्यक्तित्व का समर्थन नहीं करते हैं तब ऐसा ही सत्यानाश होता है। लेकिन भाग्य से इस देश के राम जगे हैं तो हो सकता है कि भारत का उद्धार हो जाए।
bahut sunder abhivykti........ bapoo sadaiv yaad aae aur sabkee aatma ko jhakjhorte rahe aisee duaa hai meree.
Aabhar
Harsh reality...
अस्पताल में बिल भरने की खातिर
एक माँ अपना बच्चा बेच देती है
और सरकार के कान पर
जूँ भी नही रेंगती है ।
मार्मिक प्रश्न...लेकिन जवाब किसी के पास नहीं
बहरहाल...
गांधी जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं.
चल पड़े जिधर दो पग डगमग, चल पड़े कोटि पग उसी ओर,
पड़ गयी जिधर भी एक दृष्टि, गड़ गये कोटि दृग उसी ओर।
नमन बापू!
sangeeta ji , in bhawon ne udwelit ker diya
सत्य को दर्शाती एक अच्छी रचना.
बापू को शत शत नमन.
राष्ट्रपिता को नमन।
'मेरी अनुभूतियाँ' ही सब की अनुभूतियाँ हैं | यथार्थपरक एक अच्छी रचना|साधुवाद|
- अरुण मिश्र.
अब इस देश की सरकार से तो कोई उम्मीद कर नही सकते ना तो जिससे जो बनता है वो करता है………………बेहद उम्दा यथार्थपरक कविता।
बहुत ही सच्ची और वीभत्स सत्य को उजागर करती दिल को हिला देने में सक्षम एक प्रभावशाली रचना ! आज हर दर्दमंद भारतीय की आँखें शर्मिंदगी से नम हैं कि बापू के सपनों के भारत को हमारी अकर्मण्यता और खुदगर्जी ने किस ऊँचाई से कहाँ ला पटका है ! बहुत असरदार प्रस्तुति ! बहुत बहुत बधाई एवं आभार !
heheh...ye rachna to padhi hui hai mumma ...aaj bhi qatal hai .... :)
दो अक्टूबर को जन्मे,
दो भारत भाग्य विधाता।
लालबहादुर-गांधी जी से,
था जन-गण का नाता।।
इनके चरणों में मैं,
श्रद्धा से हूँ शीश झुकाता।।
बापू की सादगी आज कहाँ है .... ये नेता भी तो बापू के नाम पर खा रहे हैं ...
बापू की सादगी अब ब्रांड हो गयी है इसलिए महँगी भी ....
भले ही बापू ने खुद अपनी जिंदगी में इतनी लक्जरी कबूल नही की हो ...
बापू के सपनों के भारत की दुर्दशा पर सटीक कविता ...
आभार ..!
बहुत ही सुंदर रचना बधाई स्वीकारे !
सही लिखा आज इस बापू के लोग ही इस के नाम से सब काम कर रहे है, ओर बापू का नाम बदनाम कर रहे है, आज के भारत ओर बापू के जमाने के भारत की तुलना करे तो दिल बहुत दुखी होता है, आज के हालात देख कर, धन्यवाद इस सुंदर रचना के लिये
Bahut sunder bhav... ! saadar
गांधी जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं.
हांलांकि मैने शराब बंदी पर
आंदोलन चलाया
पर आज उसी का व्यापारी
काम आया ।
उसने ही भारतीयों को शर्मसार
होने से बचाया
विजय देश की विजय
बन कर आया
इस पर भी सरकार ने
Bahut hi prabhawi kathy aur sundar bhasha ke saath vyangatmak shaily ka adbhut prayog jo kathy ki teevrta ko kauee guna badha deta hai. Bahut hi sundar aur sarthak rachna heti badhayee sweekar kare.
बापू! मै भारत का वासी, तेरी निशानी ढूंढ रहा हूँ.
बापू! मै तेरे सिद्धान्त, दर्शन,सद्विचार को ढूंढ रहा हूँ.
सत्य अहिंसा अपरिग्रह, यम नियम सब ढूंढ रहा हूँ.
बापू! तुझको तेरे देश में, दीपक लेकर ढूंढ रहा हूँ.
कहने को तुम कार्यालय में हो, न्यायालय में हो,
जेब में हो, तुम वस्तु में हो, सभा में मंचस्थ भी हो,
कंठस्थ भी हो, हो तुम इतने ..निकट - सन्निकट...,
परन्तु बापू! सच बताना आचरण में तुम क्यों नहीं हो?
उचट गया मन इस समाज से, देखो कितनी दूषित है.
रीति-नीति सब कुचल गयी, नभ-जल-थल सभी प्रदूषित है.
घूमा बहुत इधर उधर, मन बार - बार तुमपर टिकता है.
अब फिर आ जाओ गांधी बाबा, मुझे तेरी बहुत जरुरत है.
संत भगीरथ ने अपने पुरखों को, गंगाजल से तारा है.
तुम भी तो एक 'राजसंत' थे, हमने बहुत विचारा है.
तुम्ही भगीरथ बन जाओ, अब तुम्हे गंगाजल लाना है.
नई पौध को सिंचित करके, एक भारत नया बनाना है.
कभी -कभी ऐसी भी खबर आती है
कि जिससे मेरी रूह
काँप जाती है
अस्पताल में बिल भरने की खातिर
एक माँ अपना बच्चा बेच देती है
और सरकार के कान पर
जूँ भी नही रेंगती है ।
मन को स्पर्श करने वाली पंक्तियां ,सच है बापू के सपनों का भारत बनने में कितना समय लगेगा मालूम नहीं
अभी तो गांधी जी और शास्त्री जी की जयंतियां मुबारक हों
कविता आपनें जब लिखी थी...अच्छी थी और आज भी !
इस प्रश्नों का जबाब किसी के पास भी नहीं है. बापू को शत शत नमन.
शत-शत नमन बापू!
बहोत दुःख की बात हम भगत सिंह और लाल बहादुर सस्त्री जी को भूल गये
आज अगर सरुख या सलमान का हो तो न्यूज़ पर भी दिखाते हैं पर अब क्या कह सकते हैं
Man ko gaharai tak chhuu gayi yaha rachna.Bapu evam Shastree ji ke janmdivas par ap ko hardik shubhkamnayen.
Poonam
क्या खूब अभिव्यक्ति है ..
..Baapoo ne sahi kaha....hamaari sarkaar hi desh ki bad-haali ke liye jimmedaar hai!....vaastavikta ko ujaagar karati rachanaa, badhaaI!
बापू को नमन ....... सच में हम निरुत्तर ही हैं बापू के प्रश्नों के आगे.....
बहुत ही अच्छी पोस्ट.....
बापू का दर्द है शब्दों में ढल गया.
बापू का देश क्यूँ इतना बदल गया?
भावभीनी पोस्ट पर आभार.
राष्ट्रपिता और शास्त्री जी को शत शत नमन ।
गांधी जी के दर्द को बखूबी आपने उकेरा है.....
bahut sundar - baapu ji ko sat sat naman..
"काश गोडसे ने मुझे नहीं
मेरी आत्मा को मारा होता"
आपकी कविता ने हर उस व्यक्ति के अंतर्मन की वेदना को साकार किया है जो गाँधी जी के आदर्शों की थोड़ी सी भी परवाह करता है. काश हम समय की पुकार को पहचान सकें और उन आदर्शों को फिर से जिन्दा करने में अपना योगदान कर सकें. बहुत अच्छी रचना
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
क्षमा कीजिएगा,गांधी कभी नहीं कह सकते कि काश! गोडसे ने मुझे नही मेरी आत्मा को मारा होता। न तो गांधी के लिए शरीर कभी महत्वपूर्ण था और न ही उनके समय में हिंसा या बलात्कार कम थे। अन्यथा,रामराज्य की कल्पना ही क्यों की जाती?
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना, बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
sbka drd ak hi hai
sbka drd ak hi hai
काश गोडसे ने मुझे नही
मेरी आत्मा को मारा होता
तो उसने आज मुझे
इस दुख से उबारा होता ।...
कटु सत्य की बहुत ही सटीक अभिव्यक्ति....आज गाँधी के सिद्धांतों की किसे ज़रूरत है?...जब गाँधी जी की फोटो के नीचे बैठ कर भ्रष्टाचार का व्यापार होता है तब उनकी आत्मा पर क्या गुज़रती होगी !...आज बापू की याद केवल २ अक्तूबर और ३० जनवरी को आती है, वह भी केवल उनकी समाधि पर फोटो खिंचवाने के लिए....बहुत सुन्दर रचना...आभार ....
गांधी जयंती पर देर से ही सही पर शुभकामनाएं ...
ये सच है कि आज उनके आदर्शों का कोई मोल नहीं रहा ...
क्षुब्ध मन ने असरदार कविता लिखवा ली है...सच तो यही है...हर कोई बापू के नाम का इस्तेमाल करना चाहता है..पर उनके बटाए रास्ते पर चलने को तैयार नहीं...
बहुत ही अफ़सोस होता है यह सब देख-सुन
दिल को छू लेने वाली बात कही आपने..आज के परिवेश पर एक सटीक रचना...गाँधी जी के रामराज्य के देश में आज ऐसा हो रहा है..तकलीफ़ होती है..बढ़िया रचना के लिए बधाई
Aapki is rachanane to rula diya...waise Baapuki aatmako kaun maar sakta tha? Wo to karodon saal is deshke liye dua karegi...aur royegi bhi...
बहुत प्रभावी रचना....
गांधी जी को एक 'वाद' बनाकर उसका उपयोग -प्रयोग नहीं-किया जाने लगेगा तो यही हाल होगा!
मैने पूछा - बापू
क्यों रो रहे हो ?
हैरत से देख मेरी ओर बोले
क्या तुम सब सो रहे हो ?
We are indeed sleeping . We will wake up only after losing everything.
Sigh !
.
कित्ता अच्छा लिखती हैं आप आंटी जी ...बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में अंडमान के टेस्टी-टेस्टी केले .
बापू जी तो हम बच्चों को बहुत प्यार करते थे...
देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ कुछ व्यस्त रही इन दिनों
लाजवाब!!!! किस तरह से मन के भाव उड़ेले हैं अपने देश में गाँधी को बिकते हम सबने भी देखा है
आपकी उत्कृष्ट रचना के साथ प्रस्तुत है आज कीनई पुरानी हलचल
अस्पताल में बिल भरने की खातिर
एक माँ अपना बच्चा बेच देती है
और सरकार के कान पर
जूँ भी नही रेंगती है ।
आज सोचता हूँ कि,
काश गोडसे ने मुझे नही
मेरी आत्मा को मारा होता
तो उसने आज मुझे
इस दुख से उबारा होता ।
वर्तमान की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करती कविता।
सादर
गांधी जी के सिद्धान्त तो सब नीलाम कर दिये गये हैं - अच्छा है जो वे देखने के लिये नहीं हैं!
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