तुम यहीं कहीं हो
>> Thursday, September 29, 2011
जब मंद पवन के झोंके से
तरु की डाली हिलती है
पंछी के कलरव से
कानों में मिश्री घुलती है
तब लगता है कि तुम
यहीं - कहीं हो
जब नदिया की कल - कल से
मन स्पंदित होता है
जब सागर की लहरों से
तन तरंगित होता है
तब लगता है कि तुम
यहीं - कहीं हो
रेती का कण - कण भी जब
सोने सा दमकता है
मरू भूमि में भी जब
शाद्वल * सा दिखता है
तब लगता है कि तुम
यहीं - कहीं हो
बंद पलकों पर भी जब
अश्रु- बिंदु चमकते हैं
मन के बादल घुमड़ - घुमड़
जब इन्द्रधनुष सा रचते हैं
तब लगता है कि तुम
यहीं कहीं हो ...यहीं कहीं हो .
* शाद्वल --- नखलिस्तान
95 comments:
बंद पलकों पर भी जब
अश्रु- बिंदु चमकते हैं
मन के बादल घुमड़ - घुमड़
जब इन्द्रधनुष सा रचते हैं
तब लगता है कि तुम
यहीं कहीं हो ...यहीं कहीं हो .
bahut apnatv bhare ehsaason ko piroya hai
behad pyaari rachnaa
बंद पलकों पर भी जब
अश्रु- बिंदु चमकते हैं
मन के बादल घुमड़ - घुमड़
जब इन्द्रधनुष सा रचते हैं
तब लगता है कि तुम
यहीं कहीं हो ...यहीं कहीं हो .
वाह ……………मन के कोमल भावो का बहुत सुन्दर चित्रण किया है…………बेहद शानदार प्रेममयी प्रस्तुति।
कोमल भावनाएँ शब्दों से बाहर झांकती हुई , होठों पर स्मित मुस्कान बिखेरने में सफल . मुबारक हो शाद्वल .
ये नाजुक अहसास जो
...
बंद पलकों पर भी जब
अश्रु- बिंदु चमकते हैं
मन के बादल घुमड़ - घुमड़
जब इन्द्रधनुष सा रचते हैं
तब लगता है कि तुम
यहीं कहीं हो ...यहीं कहीं हो
यकीनन सच से लगते हैं ...बहुत-बहुत अच्छी रचना ।
सुन्दर कविता, भाव भरे शब्दों के साथ
आभार
wah ....bahut sunder ....
doori mit gayi hai ..jaise ....
sunder ehsaas...
lajbab.no words to say.
उच्च कोटि के अध्यात्मिक चिंतन को समावेशित करती अत्यंत गहन भाव युक्त प्रस्तुति ...महान रचनाकार परम पिता परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता जीवंत सम्प्रेषण ...
बंद पलकों पर भी जब
अश्रु- बिंदु चमकते हैं
मन के बादल घुमड़ - घुमड़
जब इन्द्रधनुष सा रचते हैं
तब लगता है कि तुम
यहीं कहीं हो ...यहीं कहीं हो .
आदरणीय बहन का कोटि कोटि अभिनन्दन !!!
वाह...यह हुई न बात.कोमल कोमल रेशम रेशम...बहुत ही प्यारी कविता.
जब नदिया की कल - कल से
मन स्पंदित होता है
जब सागर की लहरों से
तन तरंगित होता है
तब लगता है कि तुम
यहीं - कहीं हो
Bahut sundar ehsaas!
बहुत खूब ... वैसे सा च तो ये है की वो अगर कहीं जाएं तभी तो एहसास होगा इधर कहीं ही हैं ... वो तो हमेशा साथ ही हैं ...
श्रद्धा समर्पण भाव से पगी रचना!! बेहद मोहक!!
जब नदिया की कल - कल से
मन स्पंदित होता है
जब सागर की लहरों से
तन तरंगित होता है
तब लगता है कि तुम
यहीं - कहीं हो
बहुत ही अपनत्व भरी प्रस्तुति जैसे किसी के एहसास को हर पल अपने आस पास महसूस करते हुए उसकी यादों को संजोये बहुत ही भाब्नाओं से भरी सुंदर रचना /बहुत बधाई आपको /
आप और आपके परिवार को नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनायें /देवी माँ आपकी सारी मनोकामना पूर्ण करे /मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है/जरुर पधारें /
बहुत सुन्दर..भावों और शब्दों का उत्कृष्ट संयोजन..नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं !
संगीता दी!
कविता जिस भी भाव से लिखी गयी हो, एक आध्यात्मिक सुख प्रदान करती है और ऐसा प्रतीत होता है मानो कोई पुकार पुकार कर उस परमात्मा, उस स्रष्टा की उपस्थिति को अनुभव कर रहा है!!
बहुत बढ़िया गीत रचा है आपने!
प्रकृति तुम्हारे ही होने के संकेत कर रही है।
waah kya baat hai.....kon hai ji yahi kahin.......?
sunder abhivyakti.
कोमल भावो की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..सुन्दर ..
रेती का कण - कण भी जब
सोने सा दमकता है
मरू भूमि में भी जब
शाद्वल सा दिखता है
तब लगता है कि तुम
यहीं - कहीं हो .....
शाद्वल शब्द का बहुत सुन्दर प्रयोग....आपकी कविताएं मन को छूने में कामयाब रहती हैं | शुभकामनाएं |
ये एहसास भी क्या कम है...
प्रकृति की सुंदरता संग संग के साथ किसी के नजदीक होने का एह्सास! शायद उस परमसत्ता का……मां भगवती जगत का कल्याण करे……नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाओं सहित आभार……।
रेशमी और मोम सी कल्पनायें.
बंद पलकों पर भी जब
अश्रु- बिंदु चमकते हैं
मन के बादल घुमड़ - घुमड़
जब इन्द्रधनुष सा रचते हैं
तब लगता है कि तुम
यहीं कहीं हो ...यहीं कहीं हो .
बहुत ही कोमल, स्निग्ध एवं भावपूर्ण रचना ! हर एक शब्द मन को आंदोलित करता है और मानस पर गहन प्रभाव छोडता है ! नव रात्रि की शुभकामनायें स्वीकार करें !
♥
आदरणीया संगीता मौसी जी
सादर प्रणाम !
आपकी कविता पढ़ने के बाद मेरा भी मन कह रहा है … तुम यहीं कहीं हो ...यहीं कहीं हो
इश्क़े-हक़ीक़ी के रंग में रंगी इस रचना के लिए आभार !
# एक शंका का समाधान कर पाएं तो आभार मानूंगा … शाद्वल किस भाषा का मूल शब्द है … पहली बार ध्यान में आया है । आशय तो आपने दे ही दिया है …
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बंद पलकों पर भी जब
अश्रु- बिंदु चमकते हैं
मन के बादल घुमड़ - घुमड़
जब इन्द्रधनुष सा रचते हैं
तब लगता है कि तुम
यहीं कहीं हो ...यहीं कहीं हो .....
कविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं.... संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...
नवरात्रि पर्व आपके एवं आपके परिवार के लिए सुखकर, समृद्धिशाली एवं मंगलकारी हो...
सभी पाठकों का आभार ..
राजेन्द्र स्वर्णकार जी ,
शाद्वल शब्द हिंदी भाषा में ही पढ़ा है ...
रामधारी सिंह दिनकर की रचना में भी आया है ... उर्वशी में
पुरुरवा
हाँ समस्त आकाश दीखता भरा शांत सुषमा से
चमक रहा चन्द्रमा शुद्ध शीतल निष्पाप हृदय-सा
विस्मृतियाँ निस्तल समाधि से बाहर निकल रही हैं
लगता है चन्द्रिका आज सपने में घूम रही है.
और गगन पर जो असंख्य आग्नेय जीव बैठे हैं
लगते हैं धुन्धले अरण्य में हीरॉ के कूपॉ-से.
चन्द्रभूति-निर्मित हिमकण ये चमक रहे शाद्वल में?
या नभ के रन्ध्रॉ में सित पारावत बैठ गये हैं?
कल्प्द्रुम के कुसुम या कि ये परियॉ की आंखें हैं?
और आपकी जिज्ञासा देख कुछ खीज बीन भी की है ..
शाद्वल - की परिभाषा शाद्वल , का अर्थ शाद्वल
शाद्वलसंज्ञा पुं० १ . हरी घास । दूब । २ . साँड़ । बैल । ३ . रेगिस्तान के बीच की वह थोड़ी सी हरियाली जहाँ कुछ हलकी बस्ती भी हो । नखलिस्तान [......]
आभार !
उर्वशी पढ़ा था … लेकिन वर्षों निकल गए …
पुनर्पठन का अवसर ही नहीं आया :)
आशा है, मेरे प्रश्न से बहुतों को लाभ हुआ …
आपने बुरा माने बिना इतनी सहजता से शंका-समाधान किया … प्रणाम !
( …अन्यथा , कुछ कुंठित स्वघोषित दिग्गज बने हुओं को पूछने पर बिदकते-घुड़कते भी पाने के अनुभव हुए हैं :(… )
मेरे द्वारा शस्वरं पर प्रयुक्त किसी शब्द /प्रसंग या अन्य शंका के समाधान के लिए मैं भी सदैव सहर्ष प्रस्तुत हूं …
किस -किस तरह से लगता है कि तुम यहीं हो , -या किस तरह नहीं लगता कि तुम यही हो !
वाह ...
बहुत ही भावपूर्ण रचना....
बहुत सुंदर ! समर्पण के भावों से सजी कविता पढकर तथा एक नए से शब्द से परिचय पाकर बहुत अच्छा लगा, आभार!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत प्रांजल अभिवयक्ति मन को दुलारती सी .
बंद पलकों पर भी जब
अश्रु- बिंदु चमकते हैं
मन के बादल घुमड़ - घुमड़
जब इन्द्रधनुष सा रचते हैं
तब लगता है कि तुम
यहीं कहीं हो ...यहीं कहीं हो .
सुंदर भावाभिव्यक्ति।
वाह....वाह...वाह...
पावन स्नेह भावपूर्ण कोमल अतिसुन्दर अभिव्यक्ति...
बहुत ही सुन्दर रचना...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति..
आपको नवरात्रि की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें.
बहुत सुन्दर मार्मिक रचना बधाई हो आपको
आप भी मेरे फेसबुक ब्लाग के मेंबर जरुर बने
mitramadhur@groups.facebook.com
MADHUR VAANI
BINDAAS_BAATEN
MITRA-MADHUR
सुन्दर कोमल भावों से सुसज्जित बेहतरीन प्रस्तुति
जिधर देखूँ ऊधर तुम हो ।
बेहद भावपूर्ण प्रस्तुति...
इस कविता की सरसता और कोमलता ने मन मोह लिया।
आपकी यह रचना मुझे सबसे अधिक पसंदीदा रचना में से एक है।
प्रवाह और भावात्मकता मन में रच बस जाती है।
खूबसूरत अह्साशों से भरी बेहतरीन कविता प्रस्तुत की है आपने . इस काव्य के रसास्वादन का अनुभव करने के लिए बधाई
जब मंद पवन के झोंके से
तरु की डाली हिलती है
पंछी के कलरव से
कानों में मिश्री घुलती है
तब लगता है कि तुम
यहीं - कहीं हो
सुन्दर रचना अभिव्यक्ति....
आभार
प्रेम का खूबसूरत अहसास सुंदर शब्दों की माला पिरो कर उसे भाव के गले में पहना दे तभी इतनी सुंदर कविता जन्मती है
तब लगता है कि तुम
यहीं कहीं हो ...यहीं कहीं हो .
ekdam theek lagta hai.......
बहुत सुंदर रचना। ऐसी रचनाएं कभी कभी पढने को मिलती हैं।
बंद पलकों पर भी जब
अश्रु- बिंदु चमकते हैं
मन के बादल घुमड़ - घुमड़
जब इन्द्रधनुष सा रचते हैं
तब लगता है कि तुम
यहीं कहीं हो ...यहीं कहीं हो
बंद पलकों पर भी जब
अश्रु-बिंदु चमकते हैं
मन के बादल घुमड़ - घुमड़
जब इन्द्रधनुष सा रचते हैं
तब लगता है कि तुम
यहीं कहीं हो ...यहीं कहीं हो
कोमल कल्पना, सुकामल अभिव्यक्ति।
प्राक्रितिक सुंदरता से सराबोर ,कोमल एहसास वाली सुंदर रचना ।
रेती का कण - कण भी जब सोने सा दमकता है मरू भूमि में भी जब शाद्वल * सा दिखता है तब लगता है कि तुम यहीं - कहीं हो ....
कितना सुंदर चित्रण..
तब लगता है कि तुम
यहीं कहीं हो ...यहीं कहीं हो
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना
बंद पलकों पर भी जब
अश्रु-बिंदु चमकते हैं
मन के बादल घुमड़ - घुमड़
जब इन्द्रधनुष सा रचते हैं
तब लगता है कि तुम
यहीं कहीं हो ...यहीं कहीं हो
-बहुत ही प्यारी रचना..
आपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (११) के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/आप इसी तरह मेहनत और लगन से हिंदी की सेवा करते रहें यही कामना है /आपका
ब्लोगर्स मीट वीकली
के मंच पर स्वागत है /जरुर पधारें /
रचना का शीर्षक पूरी रचना पर छाया हुआ है.बहुत सुन्दर.
आदरणीया संगीता जी ,
सादर अभिवादन |
बहुत ही प्यारा गीत है आपका ...
बिलकुल बहती नदी की जलधार की तरह प्रवाहमान ...
बहुत कुछ सीखने को मिलता है आपसे ...
बहुत ख़ूबसूरत और प्यारी रचना ! शानदार प्रस्तुती!
दुर्गा पूजा पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
प्राकृतिक बिम्बों में प्रिय की झलक की सुन्दर सी कविता
कोमल भावो की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..सुन्दर ..
रेती का कण - कण भी जब
सोने सा दमकता है
मरू भूमि में भी जब
शाद्वल * सा दिखता है
तब लगता है कि तुम
यहीं - कहीं हो
bahut khoob.
मेरा नाम आया मुझे उसी में सुख मम्मा :)
चरण स्पर्श !
हर सुन्दर रूप में उसी की झलक -बहुत सुन्दर !
बंद पलकों पर भी जब
अश्रु- बिंदु चमकते हैं
मन के बादल घुमड़ - घुमड़
जब इन्द्रधनुष सा रचते हैं
तब लगता है कि तुम
यहीं कहीं हो ...यहीं कहीं हो .
Gahan Bhav...... Hridaysparshi rachna
तुम यहीं कहीं हो कितना प्यारा खयाल है और उसके आस पास का परिवेश आपकी रचना की सुंदरता को चार चांद लगा रहे हैं । प्रिय का ख्याल जो रेत के कण कण को सोने सा दमकाता है अश्रुबिंदुओं में इंद्र धनुष रचता है सागर की लहरों में मन को बहाता है वह यहीं कहीं जो है ।
जब नदिया की कल - कल से
मन स्पंदित होता है
जब सागर की लहरों से
तन तरंगित होता है
तब लगता है कि तुम
यहीं - कहीं हो
bahut khub
rachana
रेती का कण - कण भी जब
सोने सा दमकता है
मरू भूमि में भी जब
शाद्वल * सा दिखता है
तब लगता है कि तुम
यहीं - कहीं हो .....
बहुत सुन्दर चित्रण
एहसास का यह मधुरिम स्वर .. लाजवाब
विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
नवीन सी. चतुर्वेदी
वाह दी! यह छायावादी रचना बहुत सशक्त और सुन्दर रची है आपने...
आप को/परिवार को विजयादशमी की सादर बधाईयाँ....
सादर.
बहुत सुन्दर...
संवाद मीडिया के लिए रचनाएं आमंत्रित हैं...
विवरण जज़्बात पर है
http://shahidmirza.blogspot.com/
आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
विजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं.
कमाल की है रचना .अत्यंत गहन भाव ..
bahut sunder komal bhavbhari rachna ...
संगीता जी ,आपके इस गीत ने बच्चनजी के "निशा निमंत्रण" के गीतों की याद दिला दी ! आपकी इस रचना को भी पढते ही स्वर देकर गाने की इच्छा हुई ! फिर उलझ गया और कमेन्ट करने में पिछड गया ! इस सुंदर कृति के लिए बधाई ,धन्यवाद ,और आभार !ऐसे ही ,लिखती रहें !
भोला एवं कृष्णा
आदरणीय संगीता जी,
आपके बहुत जल्द स्वस्थ होने की
इश्वर से प्रार्थना है !
रेती का कण - कण भी जब
सोने सा दमकता है
मरू भूमि में भी जब
शाद्वल * सा दिखता है
तब लगता है कि तुम
यहीं - कहीं हो.
बहुत ही सुंदर और प्यारी कविता. मन के भावों का मंद मंद झोंका मन प्रसन्न कर गया.
Adarniya Sangita di,
abhi kuchh blogs se apke sath huyi durghatana ki jankari mili..apke shighra svasth hone ki ishvar se prarthana karati hun.
Poonam
प्रिय संगीता स्वरूप जी,
नयी पुरानी हलचल में आज आपके एवं भाई साहव जी के दुर्घटना मे घायल होने का समाचार मिला.....जान कर अत्यंत दुख हुआ...आप दोनों सहित आपके वाहन चालक के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना है।
संगीता स्वरूप जी,
नयी पुरानी हलचल .....दुर्घटना में घायल होने का समाचार पा कर स्तब्ध रह गई....
आपके, भाई साहब के तथा वाहन चालक के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की ईश्वर से प्रार्थना है !
tum yahin kahin ho... kitna komal sa bhav hai...ye wakt shayad sabki zindagi me thode wakt ke liyae hi sahi ata to hai...
संगीता जी ....नयी पुरानी हलचल में आपकी दुर्घटना के बारे में पढ़ा ...अफ़सोस हुआ ...कैसे हुआ ये सब? इश्वर आपको , पति देव को और ड्राइवर को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ दे ....ऐसी हमारी कामना है ....
Very interesting, excellent post. Thanks for posting. I look forward to seeing more from you. Do you run any other sites?
जगजीत सिंह आधुनिक गजल गायन की अग्रणी है.एक ऐसा बेहतरीन कलाकार जिसने ग़ज़ल गायकी के सारे अंदाज़ बदल दिए ग़ज़ल को जन जन तक पहुचाया, ऐसा महान गायक आज हमारे बिच नहीं रहा,
उनके बारे में और अधिक पढ़ें : जगजीत सिंह
यादें कहीं नहीं जातीं ....हमारे आसपास महसूस होती हैं !
खूबसूरत रचना के लिए बधाई !
सुमन जी , पूनम , डा० वर्षा सिंह , डा ० शरद सिंह , अनिता अग्रवाल जी .
आप सबके स्नेह और शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
बंद पलकों पर भी जब
अश्रु- बिंदु चमकते हैं
मन के बादल घुमड़ - घुमड़
जब इन्द्रधनुष सा रचते हैं
तब लगता है कि तुम
यहीं कहीं हो ...यहीं कहीं हो .
रचना मनभावन है....!
komal bhavo ki sundar abhivyakti.
तुम यहीं कहीं हो... इस आभास को बड़ी सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है!
आद. संगीता दी,
आपकी दुर्घटना का समाचार व्यथित करता है....
अब आप की तबियत कैसी है?
आप के स्वस्थ्य होने की सादर विनती है इश्वर से...
सादर...
प्रभावशाली प्रस्तुति
वाह नैसर्गिकता को समेटे एक अद्भुत प्रस्तुति -!
आदरणीया संगीता जी अभिवादन करवा चौथ पर्व पर हार्दिक शुभ कामनाएं ...सुन्दर रचना ..प्रेम की अभिव्यक्ति लाजबाब ....लगता है तुम यहीं कहीं हो
भ्रमर ५
बंद पलकों पर भी जब
अश्रु- बिंदु चमकते हैं
मन के बादल घुमड़ - घुमड़
जब इन्द्रधनुष सा रचते हैं
तब लगता है कि तुम
यहीं कहीं हो ...यहीं कहीं हो
जब नदिया की कल - कल से
मन स्पंदित होता है
जब सागर की लहरों से
तन तरंगित होता है
तब लगता है कि तुम
यहीं - कहीं हो
बंद पलकों में भी डूबे एहसासों को बखूबी पिरोया है आपने। बेहतरीन कविता है।
प्रभावशाली प्रस्तुति ...
बहुत अच्छे से अपने भावों को व्यक्त किया है आपने!
रेती का कण - कण भी जब
सोने सा दमकता है
मरू भूमि में भी जब
शाद्वल सा दिखता है
तब लगता है कि तुम
यहीं - कहीं हो.
👌👌👌👌👌
वाह ।
कितनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
सा... शब्द जोड़कर और भी ज़्यादा भीतरघात का आईना स्वरूप शक्ल दे दी आपने 🙏
हर एक पंक्ति बहुत कुछ कहती हुई ।
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