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लक्ष्मण रेखा

>> Tuesday, September 6, 2011


आधुनिक युग में 
आधुनिकता का 
लिबास पहन कर 
चाहती हो तुम 
आधुनिक बनना 
लेकिन भूल जाती हो 
अपने मन की 
शक्ति को 
दैदीप्यमान करना 


सीता जी ने 
लांघी थी 
लक्ष्मण रेखा 
क्यों कि उन्हें 
करना था सर्वनाश 
रावण का 
उस समय तो 
रावण  की भी 
कोई मर्यादा थी 
उसे रोकने के लिए 
एक तृण  की ही 
ओट  काफी थी .
आज जब तुम 
अपने मन की 
लक्ष्मण रेखा 
लांघती हो 
तो घिर जाती हो 
एक नहीं 
अनेक रावणों से 
जिनकी नहीं होती 
कोई मर्यादा 


गर चाहती हो 
अपनी सुरक्षा 
तो तुमको 
स्वयं ही 
खींचनी होगी 
कोई लक्ष्मण रेखा 
जिससे तुम्हें 
कोई आधुनिकता 
के नाम पर 
शिकार न बना सके 
अपनी हवस का ...


80 comments:

Er. सत्यम शिवम 9/06/2011 4:10 PM  

गर चाहती हो
अपनी सुरक्षा
तो तुमको
स्वयं ही
खींचनी होगी
कोई लक्ष्मण रेखा
जिससे तुम्हें
कोई आधुनिकता
के नाम पर
शिकार न बना सके
अपनी हवस का ..

आज के परिपेक्ष्य में बहुत ही सुंदरता से संदेश प्रेषित करती रचना...लाजवाब।

Yashwant R. B. Mathur 9/06/2011 4:32 PM  

आज जब तुम
अपने मन की
लक्ष्मण रेखा
लांघती हो
तो घिर जाती हो
एक नहीं
अनेक रावणों से
जिनकी नहीं होती
कोई मर्यादा

बहुत सही कहा आपने।

सादर
------
वो स्कूल के दिन और मेरी टीचर्स

रविकर 9/06/2011 4:43 PM  

आज जब तुम
अपने मन की
लक्ष्मण रेखा लांघती, लिए हथेली जान |
बीस निगाहें घूरती, रावण को पहचान |

रावण को पहचान, नहीं अब तृण से डरता |
मर्यादा को भूल, हवस वो पूरी करता |

संगीता की सीख, ठीक पहचानो रावण |
खुद ही रेखा खींच, कहाँ तक खींचे लक्ष्मण ||

सदा 9/06/2011 5:09 PM  

आज जब तुम
अपने मन की
लक्ष्मण रेखा
लांघती हो
तो घिर जाती हो
एक नहीं
अनेक रावणों से
जिनकी नहीं होती
कोई मर्यादा
सार्थक व सटीक लेखन ...आभार ।

shikha varshney 9/06/2011 5:24 PM  

अपनी सुरक्षा अपने हाथ..
आज के परिवेश पर सही सन्देश देती रचना.

रविकर 9/06/2011 5:53 PM  

लक्ष्मण रेखा लांघती, लिए हथेली जान |
बीस निगाहें घूरती, रावण को पहचान |

रावण को पहचान, नहीं अब तृण से डरता |
मर्यादा को भूल, हवस वो पूरी करता |

संगीता की सीख, ठीक पहचानो रावण |
खुद ही रेखा खींच, कहाँ तक खींचे लक्ष्मण ||

Nidhi 9/06/2011 6:33 PM  

यूँ मैं मानती हूँ की खराबी इंसान की नज़र में होती है पहनावे में नहीं...जिसे हवास का शिकार बनाना है वो ५ साल की बच्ची और ५० साल की औरत को भी नहीं छोड़ते..पर,साथ ही साथ इस बात से भी सहमत हूँ की हरेक जगह की अपनी मर्यादाएं होती हैं..जो कपडे पहन कर आप किसी पांच सितारा में ,अपनी गाडी में बैठ कर,जा सकती हैं और होटल के अन्दर उतर कर वहीँ से वापस आ सकती है कार में...वो कपडे पहन कर आप सब्जी मण्डी नहीं जा सकती..या तैरने के लिए जो कपडे पहने जाते हैं ..उन्हें पहन कर सडको पे नहीं टेहेलेंगी.
कपडे,समय स्थान सबका स्वयं भी ध्यान रखना चाहिए...यूँ तो किसी की मानसिकता पर जोर नहीं पर हाँ किसी को उकसाने से अवश्य बचा जा सकता है ...आधुनिकता के नाम पर फूहड़ता से जिस्म की नुमाइश गलत है.

Maheshwari kaneri 9/06/2011 6:37 PM  

सुन्दर ,सटीक और संदेश देती लाजवाब अभिव्यक्ति...

Rakesh Kumar 9/06/2011 6:49 PM  

बहुत सुन्दर प्रेरणास्पद प्रस्तुति है आपकी.
चेतनता और सजगता का अहसास कराती
अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

udaya veer singh 9/06/2011 7:05 PM  

तो घिर जाती हो
एक नहीं
अनेक रावणों से
जिनकी नहीं होती
कोई मर्यादा
बहुत सुन्दर सफल ,मुखर ,मर्यादित अभिव्यक्ति ,गंभीरता की चादर लिए सुरुचिपूर्ण लगी ,.... वंदन ,अभिन्दन /

Apanatva 9/06/2011 7:34 PM  

khoob!
vaise Dr Nidhika kahna theek hai.

प्रवीण पाण्डेय 9/06/2011 7:37 PM  

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, लक्ष्मण रेखा खीचनी ही होगी।

kshama 9/06/2011 7:37 PM  

गर चाहती हो
अपनी सुरक्षा
तो तुमको
स्वयं ही
खींचनी होगी
कोई लक्ष्मण रेखा
Bilkul sahee kaha aapne!

priyankaabhilaashi 9/06/2011 7:45 PM  

सत्य कहा आपने..!!

आज का परिवेश ना जाने कौन-कौन सी स्थितियाँ पैदा कर देता है..जहाँ ना चाह कर भी..जो नहीं होना चाहिए, हो जाता है..!!

Unknown 9/06/2011 7:59 PM  

स्वयं ही
खींचनी होगी
कोई लक्ष्मण रेखा
जिससे तुम्हें
कोई आधुनिकता
के नाम पर
शिकार न बना सके
अपनी हवस का ..

बहुत ही खरी और मोतियों भरी बात कही आपने.. बिलकुल, बगैर लाग-लपेट के !
हम आपको बधाई देना नहीं चाहते, आपको सलाम करना चाहते हैं..
संगीता दी आप ने हमेशा ही मुझे प्रोत्साहित किया है.. बहुत कृतज्ञ हूँ आपका...
बहुत ही अच्छी लेखन शैली है आपकी ! बहुत ही अच्छी संचालिका हैं आप !
अपनी नजर मुझ पर बनाये रखियेगा... आभार...

Kailash Sharma 9/06/2011 8:38 PM  

गर चाहती हो
अपनी सुरक्षा
तो तुमको
स्वयं ही
खींचनी होगी
कोई लक्ष्मण रेखा

....
आज की सामाजिक अवस्था और उसके परिपेक्ष्य में बहुत ही सारगर्भित प्रस्तुति। लेकिन इसके साथ साथ समाज को भी अपनी मानसिकता बदलनी होगी, क्यों की आज का रावण किसी भी लक्ष्मण रेखा को नहीं मानता और समाज और व्यवस्था की अकर्मण्यता की वजह से उसका साहस बढ़ता जा रहा है। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

Dr. Manish Kumar Mishra 9/06/2011 9:38 PM  

प्रिय हिंदी ब्लॉगर बंधुओं ,
आप को सूचित करते हुवे हर्ष हो रहा है क़ि आगामी शैक्षणिक वर्ष २०११-२०१२ के दिसम्बर माह में ०९--१० दिसम्बर (शुक्रवार -शनिवार ) को ''हिंदी ब्लागिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनाएं '' इस विषय पर दो दिवशीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जा रही है. विश्विद्यालय अनुदान आयोग द्वारा इस संगोष्ठी को संपोषित किया जा सके इस सन्दर्भ में औपचारिकतायें पूरी की जा चुकी हैं. के.एम्. अग्रवाल महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजन की जिम्मेदारी ली गयी है. महाविद्यालय के प्रबन्धन समिति ने संभावित संगोष्ठी के पूरे खर्च को उठाने की जिम्मेदारी ली है. यदि किसी कारणवश कतिपय संस्थानों से आर्थिक मदद नहीं मिल पाई तो भी यह आयोजन महाविद्यालय अपने खर्च पर करेगा.

संगोष्ठी की तारीख भी निश्चित हो गई है (०९ -१० दिसम्बर२०११ ) संगोष्ठी में आप की सक्रीय सहभागिता जरूरी है. दरअसल संगोष्ठी के दिन उदघाटन समारोह में हिंदी ब्लागगिंग पर एक पुस्तक के लोकार्पण क़ी योजना भी है. आप लोगों द्वारा भेजे गए आलेखों को ही पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया जायेगा . आप सभी से अनुरोध है क़ि आप अपने आलेख जल्द से जल्द भेजने क़ी कृपा करें . आलेख भेजने की अंतिम तारीख २५ सितम्बर २०११ है. मूल विषय है-''हिंदी ब्लागिंग: स्वरूप,व्याप्ति और संभावनाएं ''
आप इस मूल विषय से जुड़कर अपनी सुविधा के अनुसार उप विषय चुन सकते हैं

जैसे क़ि ----------------
१- हिंदी ब्लागिंग का इतिहास

२- हिंदी ब्लागिंग का प्रारंभिक स्वरूप

३- हिंदी ब्लागिंग और तकनीकी समस्याएँ
४-हिंदी ब्लागिंग और हिंदी साहित्य

५-हिंदी के प्रचार -प्रसार में हिंदी ब्लागिंग का योगदान

६-हिंदी अध्ययन -अध्यापन में ब्लागिंग क़ी उपयोगिता

७- हिंदी टंकण : समस्याएँ और निराकरण
८-हिंदी ब्लागिंग का अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य

९-हिंदी के साहित्यिक ब्लॉग
१०-विज्ञानं और प्रोद्योगिकी से सम्बंधित हिंदी ब्लॉग

११- स्त्री विमर्श से सम्बंधित हिंदी ब्लॉग

१२-आदिवासी विमर्श से सम्बंधित हिंदी ब्लॉग

१३-दलित विमर्श से सम्बंधित हिंदी ब्लॉग
१४- मीडिया और समाचारों से सम्बंधित हिंदी ब्लॉग
१५- हिंदी ब्लागिंग के माध्यम से धनोपार्जन

१६-हिंदी ब्लागिंग से जुड़ने के तरीके
१७-हिंदी ब्लागिंग का वर्तमान परिदृश्य
१८- हिंदी ब्लागिंग का भविष्य

१९-हिंदी के श्रेष्ठ ब्लागर

२०-हिंदी तर विषयों से हिंदी ब्लागिंग का सम्बन्ध
२१- विभिन्न साहित्यिक विधाओं से सम्बंधित हिंदी ब्लाग
२२- हिंदी ब्लागिंग में सहायक तकनीकें
२३- हिंदी ब्लागिंग और कॉपी राइट कानून

२४- हिंदी ब्लागिंग और आलोचना
२५-हिंदी ब्लागिंग और साइबर ला
२६-हिंदी ब्लागिंग और आचार संहिता का प्रश्न
२७-हिंदी ब्लागिंग के लिए निर्धारित मूल्यों क़ी आवश्यकता
२८-हिंदी और भारतीय भाषाओं में ब्लागिंग का तुलनात्मक अध्ययन
२९-अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी ब्लागिंग क़ी वर्तमान स्थिति

३०-हिंदी साहित्य और भाषा पर ब्लागिंग का प्रभाव

३१- हिंदी ब्लागिंग के माध्यम से रोजगार क़ी संभावनाएं
३२- हिंदी ब्लागिंग से सम्बंधित गजेट /स्वाफ्ट वयेर


३३- हिंदी ब्लाग्स पर उपलब्ध जानकारी कितनी विश्वसनीय ?

३४-हिंदी ब्लागिंग : एक प्रोद्योगिकी सापेक्ष विकास यात्रा

३५- डायरी विधा बनाम हिंदी ब्लागिंग

३६-हिंदी ब्लागिंग और व्यक्तिगत पत्रकारिता

३७-वेब पत्रकारिता में हिंदी ब्लागिंग का स्थान

३८- पत्रकारिता और ब्लागिंग का सम्बन्ध
३९- क्या ब्लागिंग को साहित्यिक विधा माना जा सकता है ?
४०-सामाजिक सरोकारों से जुड़े हिंदी ब्लाग

४१-हिंदी ब्लागिंग और प्रवासी भारतीय


आप सभी के सहयोग क़ी आवश्यकता है . अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें



डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
हिंदी विभाग के.एम्. अग्रवाल महाविद्यालय

गांधारी विलेज , पडघा रोड
कल्याण -पश्चिम, ,जिला-ठाणे
pin.421301

महाराष्ट्र
mo-09324790726
manishmuntazir@gmail.com
http://www.onlinehindijournal.blogspot.com/
http://kmagrawalcollege.org/

Unknown 9/06/2011 9:39 PM  

समझने योग्य विचारों से अताप्रोत है आज की रचना . काश ! दूर तक समझी जाय. बधाई

Anupama Tripathi 9/06/2011 9:53 PM  

बहुत सुंदर रचना......लक्ष्मण रेखा तो ज़रूरी है ही ...जगत कल्याण के लिए .....

रश्मि प्रभा... 9/06/2011 10:07 PM  

lakshman rekha khud hi khinchne ka manobal ho phir koi prashn kahan , pareshani kahan !
lajawab rachna

इस्मत ज़ैदी 9/06/2011 10:36 PM  

बहुत सुंदर रचना
बिल्कुल सच कहा आपने हमें अपनी मर्यादाएं ख़ुद ही बनानी भी होंगी और उस का दृढ़ता से पालन भी करना होगा

डॉ. मोनिका शर्मा 9/06/2011 10:44 PM  

कोई आधुनिकता
के नाम पर
शिकार न बना सके
अपनी हवस का ...

गहरी बात बताती समझाती प्रासंगिक पंक्तियाँ.... बहुत उम्दा रचना

रचना दीक्षित 9/06/2011 10:46 PM  

सुन्दर, सटीक और सही संदेश देती अद्भुत अभिव्यक्ति.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) 9/06/2011 10:55 PM  

सार्थक संदेश देती हुई बेहतरीन रचना.

Taru 9/06/2011 11:12 PM  

मम्मा,
विषय अच्छा चुना आपने।सहमत हूँ इस बात से पूरी तरह।

:)

शोभना चौरे 9/06/2011 11:16 PM  

aaj ke mahoul ke liye sarthk sandes deti achhi kavita

Sonroopa Vishal 9/06/2011 11:44 PM  

दोराहे पैर है ये नारी जो आधुनिकता का जमा तो पहने है पर संशय है उसे कि क्या वो वास्तव में आधुनिक है ?

मनोज कुमार 9/06/2011 11:57 PM  

आपकी इस कविता के भाव का मैं समर्थन करता हूं।
पर कुछ नारी मुक्तिवादी शायद इसके विरोध में उठ कड़े हो जाएं।

रंजना 9/07/2011 12:10 AM  

बहुत ही सही कहा आपने....पूर्णतः सहमत हूँ...

विचारणीय कविता...

Dr.NISHA MAHARANA 9/07/2011 12:47 AM  

bhut saccy bat khi aapne sangeeta jee.

ZEAL 9/07/2011 12:50 AM  

अपनी लक्ष्मण रेखाएं हमें खुद ही निर्धारित करनी होंगी।

Udan Tashtari 9/07/2011 5:19 AM  

आपके ख्यालों से पूर्ण सहमत...उम्दा विचार...बेहतरीन अभिव्यक्ति!!!

वाणी गीत 9/07/2011 5:53 AM  

खींचनी होगी तुम्हे स्वयं अपनी लक्ष्मण रेखा ...
खुद की खींची हुई लक्ष्मण रेखा का टूटना असंभव होता है ..
आजकल जहाँ हर दूसरा मुख रावण का है , ऐसी सीख की जरुरत भी है!

Vaanbhatt 9/07/2011 7:41 AM  

जिस समाज में क़ानून या नियम का राज है...वहां परिधान पर कोई विचार नहीं करता...चाहे वो आदिवासी समाज ही क्यों ना हो...सभ्य समाज में किसको क्या पहनना है...और किसकी लक्षमण रेखा क्या है...बाहरी रावण डिसाइड करें...ये सही नहीं है...ऐसे रावनों पर नियंत्रण की आवश्यकता है...

Vandana Ramasingh 9/07/2011 7:46 AM  

लेकिन भूल जाती हो
अपने मन की
शक्ति को
दैदीप्यमान करना

सुन्दर आह्वान बढ़िया सन्देश

Patali-The-Village 9/07/2011 9:11 AM  

बहुत ही सुंदरता से संदेश प्रेषित करती रचना|आभार ।

shephali 9/07/2011 9:22 AM  

आज के युग का बहुत जरुरी पहलु
बहत सुन्दर रचना है दीदी

Sadhana Vaid 9/07/2011 9:56 AM  

बड़ी सशक्त एवं सार्थक प्रस्तुति है संगीता जी ! जिस दिन नारी लिबासी आधुनिकता से मुक्त होकर विवेकवान बनेगी और विचारों की आधुनिकता का लिबास पहनेगी उसी दिन सच्चे अर्थों में समर्थ एवं सक्षम होगी ! इतनी सुन्दर रचना के लिये आभार एवं धन्यवाद !

vandana gupta 9/07/2011 10:41 AM  

आज के परिप्रेक्ष्य मे बेहद सटीक व सार्थक रचना सोचने को मजबूर करती है…………बेहतरीन चित्रण्।

mridula pradhan 9/07/2011 1:40 PM  

गर चाहती हो
अपनी सुरक्षा
तो तुमको
स्वयं ही
खींचनी होगी
कोई लक्ष्मण रेखा
ekdam theek kahi hain......

Anita 9/07/2011 1:56 PM  

सार्थक संदेश देती कविता !

दिगम्बर नासवा 9/07/2011 2:04 PM  

सच कहा है ... अपनी अपनी लक्ष्मण रेखा खुद ही खींचनी पढ़ती है ... लाजवाब रचना है ...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने 9/07/2011 2:16 PM  

संगीता दी,
बिलकुल सहमत हूँ आपसे.. बल्कि आपकी बात को विस्तार देते हुए यही कहना चाहता हूँ कि लक्ष्मण रेखा सिर्फ तीर की नोक से ही नहीं खींची जाती!! वह तो हर मर्यादा की रेखा है जो स्वतः खींचनी होती है और उसका सम्मान करना पड़ता है.. महाराष्ट्र में 'स्पीड लिमिट' को भी 'वेग मर्यादा' कहते हैं..
मर्यादा का पालन नहीं करने पर हमेशा दुर्घटना ही होती है!!

रेखा श्रीवास्तव 9/07/2011 4:35 PM  

खींचनी होगी
कोई लक्ष्मण रेखा
जिससे तुम्हें
कोई आधुनिकता
के नाम पर
शिकार न बना सके
अपनी हवस का ..

लक्ष्मण रेखा हर स्थान पर होनी चाहिए सिर्फ परिधान में ही नहीं रिश्तों, आचरण, व्यवहार और सामाजिकता में - अपने समसामयिक समस्या पर बहुत सुंदर दिशा दिखाई है.

रेखा 9/07/2011 6:13 PM  

एक लक्ष्मण रेखा तो होनी ही चाहिए ..

monali 9/07/2011 6:34 PM  

Lakshman rekha k andar bhi aaj suraksha ka bharosa kahaan de sakta h koi??? fir bhi vartmaan paristhitiyo k saapeksh sundar rachna

अजय कुमार 9/07/2011 6:43 PM  

सही संदेश ,अच्छी रचना

विभूति" 9/07/2011 9:24 PM  

प्रभावपूर्ण रचना....

Sonroopa Vishal 9/08/2011 12:45 AM  

मेरा ब्लॉग ज्वाइन करने के लिए बहुत बहुत आभार सुशीला जी .......आपका आशीर्वाद चाहूँगी ....

Asha Joglekar 9/08/2011 5:17 AM  

सही है आधुनिकता के नाम पर सारे बंधन तोड कर हमारी बच्चियां स्वयं ही अपने लिये मुसीबतें खडी कर रही हैं ।

Suman 9/08/2011 10:46 AM  

सुंदर रचना के लिये बधाई आपको !

पूनम श्रीवास्तव 9/08/2011 11:19 AM  

sangeeta di
bahut hi sahjta ke saath aapne naari ki yatha sthiti ko gadha hai .
bahut hi sateek vsach baat kahi hai aapne aaj apni laxhman -rekha khud hi khinchni padegi .
bahut hi bdhiya abhivykti
sadar naman
poonam

प्रतिभा सक्सेना 9/08/2011 1:30 PM  

आधुनिकता का मतलब अपने आप को सस्ता बना देना नहीं ,अपने व्यक्तित्व की मर्यादा जब नारी जान लेती है तो उसकी सीमा में कोई अनधिकार प्रवेश नहीं कर सकता .

Shabad shabad 9/08/2011 2:59 PM  

सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') 9/08/2011 9:29 PM  

बहुत सार्थक रचना है दी...
मर्यादा विहीन जीवनशैली दुखों और परेशानियों के अलावा कुछ नहीं दे सकती...
सशक्त संदेशात्मक रचना के लिए सादर आभार...

Kunwar Kusumesh 9/09/2011 8:19 AM  

गर चाहती हो
अपनी सुरक्षा
तो तुमको
स्वयं ही
खींचनी होगी
कोई लक्ष्मण रेखा
जिससे तुम्हें
कोई आधुनिकता
के नाम पर
शिकार न बना सके
अपनी हवस का ...

सटीक संदेश देती अभिव्यक्ति.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 9/09/2011 9:40 AM  

ज्ञानप्रद सन्देश देती सुन्दर रचना !

Dr (Miss) Sharad Singh 9/09/2011 1:38 PM  

उस समय तो
रावण की भी
कोई मर्यादा थी
उसे रोकने के लिए
एक तृण की ही
ओट काफी थी .

एकदम सटीक...आज के परिवेश पर सही सन्देश देती सार्थक रचना.

Anupama Tripathi 9/09/2011 2:39 PM  

शनिवार (१०-९-११) को आपकी कोई पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर है ...कृपया आमंत्रण स्वीकार करें ....और अपने अमूल्य विचार भी दें ..आभार.

Dr Varsha Singh 9/09/2011 9:25 PM  

सांस्कृतिक गिरावट का दौर है....यथार्थ के धरातल पर रची गयी एक सार्थक प्रस्तुति !

prerna argal 9/09/2011 10:41 PM  

गर चाहती हो
अपनी सुरक्षा
तो तुमको
स्वयं ही
खींचनी होगी
कोई लक्ष्मण रेखा
जिससे तुम्हें
कोई आधुनिकता
के नाम पर
शिकार न बना सके
अपनी हवस का ...
bahut hi sunder yathart ko batati hui saarthak rachanaa.naariyon ko aekjut hokar is samasyaa ke nivaaran kaa upay sochanaa jaruri hai.aapko bahut badhaai itane jaruri vishay par itani achchi rachanaa likhne ke liye.

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति 9/10/2011 11:32 PM  

संगीता जी...बेहद शिक्षाप्रद ...और सामायिक ...आज की जरूरत ...लड़कियों और महिलाओं के लिए खास ... और बहुत ही उम्दा अंदाज..

Asha Lata Saxena 9/11/2011 6:43 AM  

'लेकिन भूल जाती हो अपने मन की शक्ति को दैदीप्यमान
करना ' मन को छूती पंक्तियाँ '
उत्तम संदेशात्मक रचना |
आशा

महेन्‍द्र वर्मा 9/11/2011 9:19 AM  

नई पीढ़ी को आधुनिकता रूपी रावण से बचने का संदेश देती हुई अच्छी कविता।

Sapna Nigam ( mitanigoth.blogspot.com ) 9/11/2011 3:16 PM  

नई पीढ़ी के लिये बहुत अच्छी नसीहत देती रचना. आधुनिक होने के लिये परिधान का आधुनिक होना अनिवार्य नहीं है.

Amrita Tanmay 9/11/2011 6:37 PM  

एक नए अंदाज में सुन्दर रचना आज के लिए |

Amrita Tanmay 9/11/2011 6:37 PM  

एक नए अंदाज में सुन्दर रचना आज के लिए |

Aruna Kapoor 9/12/2011 1:37 PM  

इस कविता द्वारा आपने एक बहुत ही जीवनोपयोगी शिक्षा दी है संगीताजी!...सही में ..लक्ष्मण रेखा स्वयं ही खिंचनी चाहिए!....धन्यवाद!

...मैंने 'दोस्ती' के बारे में कुछ लिखा है...अवश्य पढ़ें!

Neelkamal Vaishnaw 9/12/2011 7:05 PM  

Sangeeta jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
आप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए..
MADHUR VAANI कृपया यहाँ चटका लगाये
BINDAAS_BAATEN कृपया यहाँ चटका लगाये
MITRA-MADHUR कृपया यहाँ चटका लगाये

निर्झर'नीर 9/13/2011 10:30 AM  

मैं चाहता हूँ आपकी ये कविता जन जन तक जाये ..इससे सुन्दर सार्थक, काव्य और क्या हो सकता है ...नि:शब्द करती है ये रचना
बंधाई स्वीकारें

Aruna Kapoor 9/13/2011 1:05 PM  

धन्यवाद संगीताजी!....मै अभी लौटी नहीं हूं...२० सप्टेम्बर को फिर विदेश यात्रा पर जा रही हूँ!...इस बार शायद शिखाजी से मिलना हो जाए तो आनंद की अनुभूति होगी!

POOJA... 9/13/2011 7:50 PM  

thank you so much... sahi salaah unke liye jo aadhunikata ki andhi doud mei shamil ho gaye hain...

udaya veer singh 9/16/2011 7:36 PM  

बेहतरीन अभिव्यक्ति .... साधुवाद जी

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " 9/19/2011 12:59 PM  

आदरणीया संगीता दीदी ,
आपकी इस रचना की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है |
आपने जो मार्गदर्शन दिया है , वह भी इतने सुन्दर ढंग से ....प्रशंसनीय है , अनुकरणीय है |

देवेन्द्र पाण्डेय 9/22/2011 3:47 PM  

माता-पिता खींच देते हैं पुत्रियों के लिए वस्त्रों की लक्ष्मण रेखा मगर दे नहीं दे पाते पुत्रों को श्राप कि हद से आगे बढ़े तो खत्म हो जायेंगी तु्म्हारी सारी शक्तियाँ...!

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