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कमी रही ......

>> Saturday, November 22, 2014



हुनर   के पंख  लिए  हम   तकते  रहे  आसमाँ
पंखों में परवाज़ के  लिए  हौसले  की  कमी रही ।

मन के  समंदर  में  ख्वाहिशों  का  सैलाब  था
सपनों  के  लिए  आँखों  में नमी  की कमी रही|

चाहा  था  कि  इश्क़  करूँ  मैं तुझसे  बेइंतिहां
पर  मेरी इस  चाहत  में कुछ जुनूँ की कमी  रही|

चाहत  थी  कि  बयां  कर  दूँ मैं  दिल की हर  बात
पर तेरे पास  हमेशा ही  वक़्त  की  कमी  रही ।

गर अब  तू  चाहे  कि बैठ  गुफ़्तगू हो घड़ी दो घड़ी
पर अब हमारे  दरमियाँ मजमून  की कमी  रही ।

अब  रुखसती के वक़्त  क्या  करें  शिकवा गिला
आपस में  जानने को   कुछ  समझ की  कमी  रही ।

न्याय ....???

>> Monday, June 9, 2014


Bodies of two girls found hanging together

आज भी किसी पेड़ पर 
टंगा है एक शव 
भीड़ भी जुटी है भव्य 
हो रही है आपस में बत कुचनी 
किसकी होगी भला ये करनी 
दांत के बीच उंगली दबाये 
दृश्य देख रहे थे लोग चकराए 
किसका होगा ये  दुस्साहस
किसने ये जघन्य कर्म किया 
टांगना ही था पेड़ पर तो 
अंग भंग क्यों  किया 
मिडिया ने भी बात को 
कुछ इस कदर उछाला 
शर्मसार हो नेताओं को 
जवाबदार  बना  डाला ।
कहा नेता ने इसकी 
सी बी आई  जांच करायेंगे 
दोषी को  इस अपराध की 
ज़रूर सजा दिलाएंगे । 
न जाने कितनी  टंगी देह का 
इंतज़ार  इंतज़ार ही रह गया 
अभी तक तो किसी भी देह को 
न्याय नहीं मिला 
उठ गया है विश्वास अब 
कानून और  न्याय से 
इसी लिए आज न्याय कर दिया 
अपने हाथ से ।
भीड़ ये विभत्स दृश्य देख रही थी 
पेड़ पर आज मादा की नहीं , 
नर की देह थी । 
है  ये मेरी  कल्पना 
पर सच भी हो सकती है 
कोई  ज़ख़्मी औरत 
रण चंडी  भी  बन सकती है ।


Bodies of two girls found hanging together



हश्र ......

>> Tuesday, May 6, 2014




ज़र्द पत्तों की तरह 
सारी ख्वाहिशें झर गयी हैं 
नव पल्लव के लिए 
दरख़्त बूढ़ा हो गया है 
टहनियां भी अब 
लगी हैं चरमराने 
मंद समीर भी 
तेज़ झोंका हो गया है 
कभी मिलती थी 
छाया इस शज़र से 
आज ये अपने से 
पत्र विहीन हो गया है 
अब कोई पथिक भी 
नहीं चाहता आसरा 
अब ये वृक्ष खुद में 
ग़मगीन  हो गया है 
ये कहानी कोई 
मेरी तेरी नहीं है 
उम्र के इस पड़ाव पर 
हर एक का यही 
हश्र हो गया है ।



बेख्याली के ख्याल

>> Monday, February 24, 2014




ज़िंदगी के दरख्त से सब  उड़ गए परिंदे
दहलीज़ तक भी नहीं आते अब कोई बाशिंदे ।

पास के शजर से जब आती है चहचहाहट
पड़ जाते हैं न जाने क्यों मोह के फंदे ।

सब हैं अपने  अपनेआप में इतने व्यस्त
नहीं मिलते अब सहारे के लिए कोइ कन्धे ।

नेह नहीं  मिलता कहीं  हाट  बाज़ार में
ना  ही उगाही  के  रूप  में  काम आते  हैं चंदे ।

किसी के लिए  जब न रहो काम के
करते  रहो बस केवल अपने काम धंधे । 


भराव शून्यता का

>> Tuesday, February 4, 2014





बसंत पंचमी पर माँ सरस्वती को नमन करते हुए यह रचना सुश्री रश्मि प्रभा जी को समर्पित --

जब न हो संघर्ष जीवन में 
और न ही हो कोई विषमता 
तो वक़्त के साथ 
कुछ उदास सा 
हो जाता है मन 
सहज सरल सा 
जीवन भी ले आता है 
कुछ खालीपन .

यूँ तो शून्यता हो 
गर जीवन में 
तो उसे निर्वाण कहते हैं 
खोने पाने से जो 
ऊपर उठ जाएँ 
उसे हम महान कहते हैं .

पर जब घिर जाएँ 
हम स्वयं शून्यता से 
तो मन छटपटाता है 
अपने चारों ओर बस 
अन्धकार नज़र आता है .
ऐसे में किसी का पुकारना 
संबल बन जाता है 
भावों का स्नेहिल स्पर्श 
तम को हर जाता है . 
काश मैं भी  एक दीया 
ऐसा ही बन सकूँ 
किसी के जीवन की 
शून्यता में 
कोई अंक भर सकूं .

हमारी वाणी

www.hamarivani.com

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