साँप - सीढी
>> Friday, September 10, 2010
बचपन में खेल कर
सांप - सीढ़ी का खेल
सीख लिया था
ज़िंदगी का फलसफा .
खाने - दर - खाने
चलते हुए मानो
बस ज़िंदगी
चलती सी ही है .
और जब आ जाती है
सीढ़ी कोई तो
समझो ज़िंदगी में
कोई खुशी हासिल हुई
इन खुशियों के बीच
जब डंस लेता था सांप
तो प्रतीक था
ज़िंदगी में कष्ट आने का .
निन्यानवे पर होता था
सबसे बड़ा सांप
जो इंगित करता था
कि मंजिल पाने से पहले
करनी होती है
सबसे बड़ी बाधा पार .
गर नहीं कर पाए
निन्यानवे को पार
तो वो पहुंचा देता था
दस के आंकड़े पर .
फिर से
सारी बाधाओं को पार कर
खुशियों की सीढ़ी लांघते हुए
कवायद करनी होती थी
मंजिल पाने की .
और
बार- बार की कोशिशें
करा ही देती थीं
वो सौ का आंकड़ा पार ..
इस तरह
खेल - खेल में ही
सीख लिया मैंने
ज़िंदगी का व्यापार
74 comments:
gahri kavita.........
anoothi kavita !
संगीता दी,
सचमुच जिन्न्गी साँप सीढी का खेल है... आदमी बस नम्बर के सहारे ऊपर चढता चला जाता है, सीढी के मदद से... ध्यान से देखिए इस चढाई का खेल... ऊपर वाले पायदान को हाथ लगाना पड़ता है अऊर नीचे को पैर से दबाना होता है..यही है आज के नम्बर के खेल का मंत्र..
लोग भूल जाता है कि 99 का साँप बहुत ख़तरनाक है..मगर 99 पहुँचने पर, तब तक छोटे साँप से कटवाने के बाद कम्बख़्त आदमिये जहरीला हो जाता है!!
सलिल
बहुत बढ़िया संगीताजी ! आपके अंदर किसी भी चीज़ में सार्थकता ढूंढ लेने की असाधारण क्षमता है फिर चाहे वह सांप सीढ़ी का खेल हो या सुडोकू का ! आपकी हर रचना चमत्कृत कर देती है ! इसे पढ़ कर भी यही सोच रही हूँ कि अब आपका किस कोने से किस नए मोती को ढूँढ़ निकालेंगी ! सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई एवँ आभार !
अगर वह सांप सीडी का खेल इंसान की उम्र पर भी लागू होता तो में तो ४5 से फिसल कर २१ पर आ जाता :) ? खैर, सुन्दर अहसासों भरी रचना के लिए आभार !
सुडोकु के बाद सांप सीढी!
ये खेल भी ना....
पर हमारी तरह कई हैं जो ज़िन्दगी भर सांप और सीढी ही में उलझे रहते हैं। ९९ वाला सांप ज़रूर डंसता है। देखते हैं कब पासा सही पड़े और ९९ के फेर में पड़े बगैर फेरा पार हो जाए।
इस बार नहीं कहूंगा .. अच्छा चित्र! हां। ये बड़ा डरावना है। खास करके वो ९९ पर जो जीभ लपलपा रहा है।
सांप सीढ़ी का ये खेल बचपन में हमेशा खेला करती थी और बहुत ही मज़ेदार लगता था! आपकी कविता पढ़कर मैं बचपन के दिनों में चली गयी! ज़िन्दगी तो सांप सीढ़ी के खेल जैसा ही है जहाँ उतार चढाव लगा रहता है! बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना प्रस्तुत किया है आपने!
बहुत बढ़िया । हमने तो कभी साँप सीढ़ी का खेल खेला ही नहीं ।
बहुत शुक्रिया याद रखने का...इसे लिखने का और मुझे सबसे पहले बताने का.
ऐसा नहीं कहूँगा.
आपने इतना याद रखा ये आशीष है, तो बस प्रणाम कह वही लेता चलूँ...:)
बाकि तो मेरा कहना न कहना यूँ ही है, कविता बहुत अच्छी है :)
एक बार आज भी खेला..कुछ सीखा ही :)
वाह...क्या बात कह दी है आपने...आपकी चिंतन धरा और अभिव्यक्ति क्षमता की कायल तो मैं पहले से ही हूँ...इस रचना ने भी मन मोह लिया...
सचमुच जीवन को इस तरह यदि हम देखने लगें तो फिर कभी न तो दुःख में हताशा होगी और न सफलता में अभिमान.....
निन्यानवे पर होता था...सबसे बड़ा सांप
जो इंगित करता था...कि मंजिल पाने से पहले
करनी होती है...सबसे बड़ी बाधा पार.....
.....खेल - खेल में ही
सीख लिया मैंने..ज़िंदगी का व्यापार...
बहुत उम्दा रचना...
सच है, जीवन का यही उतार-चढ़ाव
जीने की कला सिखा देता है... .
वाह क्या बात है....सांप सीढ़ी बहुत खेली और जब भी सांपों ने डसा तो ऐसी कुंठा भी हुई जैसे कोई जिंदगी की बाज़ी बारने वाले हों...लेकिन इतनी गंभीरता से कभी ना लिया...न सोचा...लेकिन इतनी गहनता से सोचना भी तो बुद्धिजीवियों का काम हैं जिसमे हमारा नंबर नहीं आता..हा.हा.हा.
बहुत सुंदर रचना.
अरे दी ! ये निन्यानवे के सांप वाली बात तो बड़ी ही प्रेक्टिकल कही है ..वाकई मंजिल से पहले कद संघर्ष ...वहां चुके तो फिर से स्कुएर वन पर...
क्या कहूँ आप तो माहिर हो गई हो खेल खेल में जिंदगी सिखाने की :)
खेल खेल में ही आपने जिन्दगी का फ़लसफ़ा सीखा दिया।
मंजिल तक पहुंचना आसान है लेकिन मंजिल पर पहुंचना बहुत कठिन।
बहुत सुंदर संगीता जी
आभार
खेल खेल में जिंदगी का फलसफा सीख लिया .... बहुत ख़ूबसूरत रचना ....
सचमुच सांप सीढ़ी का खेल ही है जीवन. बढ़िया.
bahut sundar kavita...
इस तरह
खेल - खेल में ही
सीख लिया मैंने
ज़िंदगी का व्यापार
मान गए दी जहाँ न पहुचे रवि वहाँ पहुचे कवि ...
पहले सुडूकु और अब साँप सिड़ी कहाँ कहाँ ज़िन्दगी का सार खोज लेती है आप , मैं तो कायल हूँ
हमेशा की तरह ही एक और लाजवाब रचना
मैं अनुष्का .....नन्ही परी
साँप और सीढ़ी
खेली मेरे साथ जिंदगी
निन्यानवे अब तक पार नहीं हुआ
कई बार चढ़ी
खेल अब भी शुरू है
जीतूंगी भी, मै ही
चाहे खेलना पड़े
पीढ़ी दर पीढ़ी...
wah ji wah ab to saap seedhi khelne ke saath saath kavita bhi gungunane ko mil gayee behatreen
aap sabhi ko Ganesh chaturthi aur Ied ki mubarak baad
बचपन की अनिवार्य घटना में जीवन दर्शन समझा दिया आपने।
कोई सोच भी नहीं सकता की मनोरंजन के लिए खेले गये खेल से जीवन की इतनी सुन्दर व्यखाया होगी |लाजवाब |
वाह...क्या बात है!!!!!!!!!!!जीवन दर्शन समझा दिया आपने साँप सीढी में । लाजवाब रचना
खूब !
दी नमस्ते
बहुत ही प्यारी और सीख देने वाली रचना
पढ़ कर बहुत आनंद मिला
जीवन की सीधी और सरल व्याख्या ....
मंजिल तक पहुँचने का उतार चढ़ाव .....
.....
.......आभार
खेल खेल में आप जीवन का पाठ पढ़ाती रहती हैं
सचमुच बड़ा अच्छा लगता है आपकी रचनाएँ पढ़कर
अरे वह! बेहतरीन रचना.....
her ank pe darr lagta tha, per haar kahan maante the , jeet ke hi dam lete the.... agar rah gaye to ek baazi aur
bahut sahi rachna
गणेश चतुर्थी एवं ईद की बधाई
हमीरपुर की सुबह-कैसी हो्गी?
ब्लाग4वार्ता पर-पधारें
सच ,जिन्दगी सांप सीढी ही तो है
सुन्दर जीवन दर्शन , साप सीढ़ी के खेल द्वारा मानव के उत्थान पतन के गूढ़ रहस्य को परिभाषित करना , केवल आप ही कर सकती हो. साधुवाद
गणेशचतुर्थी और ईद की मंगलमय कामनाये !
अच्छी पंक्तिया लिखी है आपने ...
इस पर अपनी राय दे :-
(काबा - मुस्लिम तीर्थ या एक रहस्य ...)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_11.html
सारी ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा ये साँप सीढी का खेल ही तो है बस ज़िन्दगी इसी मे उलझती हुयी गुजर जाती है……………बहुत प्रभावशाली रचना।
एकदम सटीक और सार्थक विश्लेषण ।
सरल शब्दों में बहुत ही बेहतरीन रचना । आज तक सांप सीढी के खेल में छुपे जिंदगी के इस फ़लसफ़े इस बिल्कुल अनजान थे , आपने परिचय करवा दिया धन्यवाद ।
सही कहा आपने...जीवन सांप- सिढी के खेल ही की तरह होता है..सुंदर प्रस्तुति....ईद एवं गणोष चतुर्थी मुबारक!॰
संगीता जी, साँप-सीढी के खेल की जीवन-दर्शन के रूप में प्रस्तुति अच्छी लगी ।
पूरा फलसफ़ा है जिन्दगी है..उम्दा रचना.
बहुत बढ़िया!
गणेश चतुर्थी एवं ईद की बधाई
kash ki ye falsafa sabko samjh aa jati to zindagi kitna aasan hota zine me..bahut hi hurt touching aapne likha hai di,,,,,,,,........
लूडो के माध्यम से ....ज़िन्दगी की गहराइयों को अभिव्यक्त करती .... यह रचना बहुत अच्छी लगी...
इस तरह
खेल - खेल में ही
सीख लिया मैंने
ज़िंदगी का व्यापार
Khel to maine b bahut khela par kabhi itna gahrayi se soacha nhi use
anokhi kavita
Saanp sheedi mein jiwan darshan dekhakar bahut achha laga....
..bahut sundar prastuti
संगीताजी,वास्तव में जिसने सांप सीढ़ी के खेल में चढ़ कर गिरना सह लिया उसने ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा समझ लिया.आपकी कविता में गहरे निहितार्थ हैं.बधाई.
मैने अपने ब्लोग पर एक ताजा कविता पोस्ट की है.पढ़कर प्रतिक्रिया देने का कष्ट करें.
madhavnagda.blogspot.com
बहुत अच्छी कविता।
वाह मैडम...बचपन की यादें ताजा कर दी आपने
सांप सीढी सचमुच जिंदगी का खेल है । कभी खुशी कभी गम, कभी ज्यादा कभी कम ।
बार- बार की कोशिशें
करा ही देती थीं
वो सौ का आंकड़ा पार ..
इस तरह
खेल - खेल में ही
सीख लिया मैंने
ज़िंदगी का व्यापार
wah di kya bat he,
Saan-sidhi ke khel bachpan me khela karte the, lekin usme jinsdgi ki sachhai bhi chhupi hoti he , ye aapne apni is rachna kemadhyam se samjha diya
ek utkirsht lekhan ke liye badhai
खेल - खेल में ही
सीख लिया मैंने
ज़िंदगी का व्यापार
सच कभी कभी लगता है जिंदगी एक व्योपार ही तो है .... बस जीतने में लगे हुवे हैं सब ... पर कितना कुछ खोते जा रहे हैं कोई समझता नही ...
संगीता दी नमस्कार, जिन्दगी का फलसफा कितनी आसानी से समझा दिया आपने। आभार! -: VISIT MY BLOGS :- Sansar ( कविता और गजल ) तथा Mind and body researches इन ब्लोगोँ को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ
बहुत ही प्रभावशाली रचना....सांप -सीढ़ी के खेल में पूरा जीवन-दर्शन व्यक्त कर दिया....बहुत सुन्दर
सांप-सीढ़ी के खेल में जीवन का फलसफा भी बता दिया...उम्दा रचना..बधाई.
सारी बाते टिप्पणियों में आगयी, कुछ बचा ही नहीं। बस ऐसा ही लिखती रहें, शुभकामना है।
बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति. इसमें आपने जीवन की सच्चाई वयां कर दी.
इस नारे के साथ कि...... चलो हिन्दी अपनाएँ
आप सभी को हिन्दी दिवस पर शुभकामनाएँ
आपको बधाई और आभार .
क्या बात है बहुत ही अच्छी पंक्तिया लिखी है .....
इन्हें पेश करने का अंदाज बहुत पसंद आया ....
एक बार पढ़कर अपनी राय दे :-
(आप कभी सोचा है कि यंत्र क्या होता है ..... ?)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_13.html
मैडम क्षमा चाहूंगी...मेरा नेट धीमा होने की वजह से मैंने आपका चर्चामंच से संबंधित कमेंट काफी देर बाद देखा...मैडम दरअसल मैं आपको ये अवगत करना चाहूंगी कि मेरी कविता 'मीडिया है कमाल' चर्चामंच पर शनिवार को शामिल की जा चुकी है...वैसे मुझे दोबारा इस कविता को चर्चामंच में शामिल किए जाने पर गर्व ही होगा...लेकिन एक बार चर्चामंच पर शामिल कविता को दोबारा शामिल किय़ा जा सकता है या नहीं मुझे इसकी जानकारी नहीं है...यदि इसे दोबारा शामिल किया जाता है तो मुझे कोई परेशानी नहीं है...बल्कि मेरा मान बढ़ेगा...इस संदेश का सिर्फ यही उद्देश्य है कि मैं आपको इससे अवगत कराना चाहती थी...मुझे आप तक संदेश पहुंचाने का कोई जरिया नहीं मिला इसलिए मैंने कमेंट के जरिए अपना संदेश आपतक पहुंचाने की कोशिश की है...
वाह संगीता जी ,
जीवन-दर्शन व्यक्त करने में कमाल हासिल है आपको !
सांप सीढ़ी का खेल तो मुझे बहुत अच्छा लगता है....सुन्दर कविता.
sangeeta di samajh me nahi aa raha ki
ek sach ka aaina dikhati hui itni gaharai se ,aur kitne chintan ke baad yah behad tathy- park kavita kitani mehanat se likhi gai hogi.
और
बार- बार की कोशिशें
करा ही देती थीं
वो सौ का आंकड़ा पार ..
isi liye shyad kaha jata hai ki
himmat na hariye ,
koshish to ki jeey,
safalta aapke
,kadam chumegi.
vastav me jindgi bhi saanp -seedhi ke khel ki tarah hi hai.
bahut hi shandar abhivyakti.
poonam
बहुत अच्छी कविता।
sangeeta ji...khel khel mein badi baat keh di..too gud :)
अच्छी पंक्तिया ........
अच्छी कविता ........
मेरे ब्लॉग कि संभवतया अंतिम पोस्ट, अपनी राय जरुर दे :-
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html
कृपया विजेट पोल में अपनी राय अवश्य दे ...
sach main zindagi ek saap seedhi ka khel hi to hain,
khel khel main hi zindagi main sangarsh karne ka sabak mil jaata hain.
सांप-सीढ़ी पर बहुत सुन्दर कविता ...बधाई.
_____________________________
'पाखी की दुनिया' - बच्चों के ब्लॉगस की चर्चा 'हिंदुस्तान' अख़बार में भी.
सच है जीवन कभी सांप-सीढ़ी तो कभी व्यापार ही है..
संगीता जी!
बहुत ही सहजता से जीवन की उठा-पटक को सांप-सीढ़ी के माध्यम व्यक्त किया है आपने....
शुभकामनाएं...
mumma...apne to poore saanp seedhi ko zindagi me utar diya ....:)
lekin ...aadmi agar ninyanve se satusht ho jaye to ....:P ...hehehe... ek kahavat bhi to hai kee 99 ka chakkar khatarnaak hota hai ,,:D
bahut dhaansu nazm mumma
sach kaha apne.samp sidi ka hi to khel hai jivan.......sunder kavita hai sangeeta ji........
बार- बार की कोशिशें
करा ही देती थीं
वो सौ का आंकड़ा पार ..
इस तरह
खेल - खेल में ही
सीख लिया मैंने
ज़िंदगी का व्यापार
bahut sundar vyaakhya
.
वाह...क्या बात है........जीवन दर्शन समझा दिया आपने साँप सीढी में । लाजवाब रचना
ni:shabd kar deti hai aapki rachnayen
hamesha
..
bahot achchi baat kahi hai aapne.
साँप - सीढी का खेल लगभग हम सभी का पसंदीदा खेल रहा है पर खेल के बहाने से जीवन की गहराईयों में डूबकर आंख चौंधियाने वाले उज्जवल मोतियों के ढेर की खूबसूरत प्रस्तुति अभिभूत कर गई. आभार.
सादर,
डोरोथी.
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