भरमाये हैं .....
>> Wednesday, August 31, 2011
बावफा हो कर भी हम बेवफा कहलाये हैं
अपनो ने ही सीने में नश्तर चुभाये हैं |
चाहा तो नहीं था कि यकीं करें उनकी बातों पर
पर फिर भी उनके वादे पर हमने धोखे खाए हैं |
सियासत चीज़ है बुरी उस पर क्या यकीं कीजै
उनके किये वादे बस मन को लुभाए हैं |
अँधेरे में बैठे हैं हम दर औ दीवार को थामें
दामन नहीं है हाथ में , बस उनके साये हैं |
खामोशी से भी अब क्यों कुछ करें इज़हार
जुबां से कहे लफ़्ज़ों से कई बार भरमाये हैं ..
संगीता स्वरुप
व्ही० एन० श्रीवास्तव जी द्वारा शब्दों में कुछ परिवर्तन के साथ गाई गयी यह गज़ल ...
व्ही० एन० श्रीवास्तव जी द्वारा शब्दों में कुछ परिवर्तन के साथ गाई गयी यह गज़ल ...
63 comments:
अपने ही गिराते हैं नशेमन पे बिजलियाँ।
बहुत सुन्दर --
प्रस्तुति |
बधाई ||
drd bhre sach kaa bhtrin chitran.akhtar khan akela kota
बेहद उम्दा गज़ल लिखी है.बेहतरीन.शानदार.
बावफा ,बेवफा पर किसी शायर का शेर याद आ गया-
हम बावफा थे इसलिये काबिल नहीं थे,
तुमको किसी बेवफा की तलाश थी.
हमें कब था ,उनके वादों पर ऐतबार,
पर ऐतबार किया ,और बार-बार किया| "अज्ञात"
शुभकामनायें!
खामोशी से भी अब क्यों कुछ करें इज़हार
जुबां से कहे लफ़्ज़ों से कई बार भरमाये हैं ..
waah...bahut khub
bhut acha.madam aapke anusar dashboard pr jati hoon pr word varification nhi aata.hidi me comment likhne ke liye kya krna prta hai?actual me mujhe jiyada jankari nhi hai.
अँधेरे में बैठे हैं हम दर औ दीवार को थामें
दामन नहीं है हाथ में , बस उनके साये हैं
बहुत खूब संगीता जी , बेहतरीन शब्द संजोये है. आपकी काव्य यात्रा के नए सोपान पढ़कर अभिभूत हूँ बधाई
आद संगीता दी,
व्वाह!
कम्माल की, सुन्दर ग़ज़ल कही है अपने...
ईद, तीज और श्री गणेश चतुर्थी की सादर बधाईयाँ...
हम तो पढ़ के यूँ ही गुनगुनाये है , "हमरा बलमा बेईमान हमे समझाने आये है "
बहुत ही सुंदर....लाजवाब।
उम्दा शेर कहे हैं आपने, बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल है !
बहुत खूब !...... हरेक शेर लाज़वाब...
संगीता जी, गीत और ग़ज़ल दोनों विधाओं में आप सिद्धहस्त हैं.आपको मेरी हार्दिक बधाई।
बहुत भावपूर्ण भीगी-भीगी सी गज़ल कही है संगीता जी ! वाह वाह क्या बात है ! हर शेर मन को लुभा गया ! शुभकामनायें !
सियासत चीज़ है बुरी उस पर क्या यकीं कीजै
उनके किये वादे बस मन को लुभाए हैं .
- बहुत सही फ़र्माया है !
सुन्दर प्रस्तुति...दिल को छू गई...ईद मुबारक़
सियासत चीज़ है बुरी उस पर क्या यकीं कीजै
उनके किये वादे बस मन को लुभाए हैं .
- बिलकुल दुरुस्त फ़र्माया है !
खामोशी से भी अब क्यों कुछ करें इज़हार
जुबां से कहे लफ़्ज़ों से कई बार भरमाये हैं ..
बहुत सुन्दर ,भावपूर्ण अभिव्यक्ति....आभार
बहुत शानदार गज़ल...शुभकामनाएँ
जीवन का कटु सत्य ...
सीधे दिल पर उतर गयी पंक्तियाँ...
बहुत सुंदर ..
मोहब्बत, सियासत, वफ़ा, बेवफाई,
सभी रंग हैं इस गज़ल में समाए!
संगीता दी! इस बार ये रंग भी पसंद आया!!
खामोशी से भी अब क्यों कुछ करें इज़हार जुबां से कहे लफ़्ज़ों से कई बार भरमाये हैं ..
बहुत खूब शेर कहे हैं आपने, आपकी उर्दू भी बहुत अच्छी है... बधाई!
खामोशी से भी अब क्यों कुछ करें इज़हार
जुबां से कहे लफ़्ज़ों से कई बार भरमाये हैं ..
ab bas bhi karo, ab kuch nahi kahna ... bahut badhiyaa
बेहतर रचना ...
खामोशी से भी अब क्यों कुछ करें इज़हार
जुबां से कहे लफ़्ज़ों से कई बार भरमाये हैं ..
कई बार कई बातें ज़ुबान बंद रखने से ही स्पष्ट होती हैं और सामने वाले को सुनाई देती है।
आप ग़ज़ल भी लिखती हैं, यह देख कर मन हर्षित हुआ।
खामोशी से भी अब क्यों कुछ करें इज़हार
जुबां से कहे लफ़्ज़ों से कई बार भरमाये हैं ..
आपकी कलम जब चलती है तो फिर बाँध लेती हैं. बहुत सुंदर ग़ज़ल रची है. आभार !
खामोशी से भी अब क्यों कुछ करें इज़हार
जुबां से कहे लफ़्ज़ों से कई बार भरमाये हैं .
sunder bhavon uttammprastuti
rachana
अँधेरे में बैठे हैं हम दर औ दीवार को थामें
दामन नहीं है हाथ में , बस उनके साये हैं |
मार्मिक संवेदनशील ग़ज़ल ,बहुत सुंदर समीचीन ..........शुक्रिया जी /
बहुत बढिया। हम तो अपनों से ही भरमाए हैं :)
मार्मिक!!!
आशीष
खामोशी से भी अब क्यों कुछ करें इज़हार
जुबां से कहे लफ़्ज़ों से कई बार भरमाये हैं .
बहुत सुन्दर गज़ल
बहुत खूब बधाई और शुभकामनाएं
जो शब्दों से भरमाये गये , खामोशियाँ का ऐतबार क्या करें ...
इन शेरों में ज़बरदस्त सम्प्रेषण है,संगीता जी.
पढ़ते पढ़ते किसी का एक प्यारा-सा शेर याद आ गया:-
हम बावफा थे इसलिए नज़रों से गिर गए,
शायद उन्हें तलाश किसी बेवफ़ा की थी.
दुश्मनों से प्यार होता जाएगा
दोस्तों को आजमाते जाइए !
अधिक कष्ट वे ही देते हैं जो अपने होते हैं ! दर्द भी इसी लिए अधिक होता है !
शुभकामनायें !
अदभुद कविता...
बहुत बढिया प्रस्तुति ..
गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें!
चाहा तो नहीं था कि यकीं करें उनकी बातों पर
पर फिर भी उनके वादे पर हमने धोखे खाए हैं |
Bhai wah.. sundar rachna !
अँधेरे में बैठे हैं हम दर औ दीवार को थामें
दामन नहीं है हाथ में , बस उनके साये हैं |
...बहुत खूब ! लाज़वाब गज़ल..
खामोशी से भी अब क्यों कुछ करें इज़हार
जुबां से कहे लफ़्ज़ों से कई बार भरमाये हैं ..सुन्दर पंक्तिया....
बहुत सुन्दर --
प्रस्तुति |
बधाई |
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
हार्दिक शुभकामनायें !
एवं साधुवाद !
अँधेरे में बैठे हैं हम दर औ दीवार को थामें
दामन नहीं है हाथ में , बस उनके साये हैं |
बहुत सुन्दर...
क्या बात है संगीता जी ...
बहु खूब .....!!
बावफा हो कर भी हम बेवफा कहलाये हैं
अपनो ने ही सीने में नश्तर चुभाये हैं |
यही तो खास बात होती है अपनों की
खूबसूरत अशआर आपके -
अँधेरे में बैठे हैं हम दर औ दीवार को थामें
दामन नहीं है हाथ में , बस उनके साये हैं |बधाई !
ओह हो शेर ओ शायरी भी ..क्या बात है..बहुत खूब.
वाह एक सुंदर ग़ज़ल.
सुंदर अगजल.
एकदम सच कहा संगीता जी आपने... सियासत बहुत बुरी चीज है... आप चाहे जो भी गुणा-भाग, जोड़-घटाना कर लें... नतीजा सिफ़र का सिफ़र :-)
Jin par zada bharosa ho.. wo hi itna dard de pate hain..ajnabiyo ko kahaan pata hota h hamari kamzoriyo ka..
वाह ... यह तो बहुत ही बढि़या ... ।
शब्दों का प्रयोग असरदार है. खूबसूरत, उम्दा गजल बनी है.
बधाई.
सुन्दर प्रस्तुति.
चाहा तो नहीं था कि यकीं करें उनकी बातों पर
पर फिर भी उनके वादे पर हमने धोखे खाए हैं ।
सुंदर अभिव्यक्ति, अच्छी ग़ज़ल।
ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
bahut sundar gazal hai di
ख़ामोशी से भी अब क्यों कुछ करे इजहार
जुबां से कहे लफ्जों से कई बार भरमाये है !
वाह क्या बात है सुंदर .....
खामोशी से भी अब क्यों कुछ करें इज़हार
जुबां से कहे लफ़्ज़ों से कई बार भरमाये हैं ..
संगीता दी, ये तो लाजवाब लगी
.
अँधेरे में बैठे हैं हम दर औ दीवार को थामें
दामन नहीं है हाथ में , बस उनके साये हैं |
Very touching couplets Sangeeta ji .
.
बेहतरीन गज़ल ........
अँधेरे में बैठे हैं हम दर औ दीवार को थामें
दामन नहीं है हाथ में , बस उनके साये हैं |
बेहतरीन शेर है .. कभी कभी साये भी मन को भरमा जाते हैं ...
नमस्कार ,
वैसे तो पूरी गज़ल कमाल की है
पर ये शेर तो जैसे दिल को बहुत कुछ कह गया
सियासत चीज़ है बुरी उस पर क्या यकीं कीजै
उनके किये वादे बस मन को लुभाए हैं |
उम्दा !!!
संगीता जी , राम राम
सचमुच एक प्रेरणा दायक रचना !पढते ही भोलाजी में छुपे बैठे ८२ वर्षीय 'स्वर सयोजक" ने आंतरिक प्रेरणा वश इस गजल की धुन भी बना ली!गजल को "गेय" बनाने में कुछ संशोधन भी करने पडे !इस अनाधिकार चेष्टा के लिए क्षमा प्रार्थी हैं भोला जी ! यदि अनुमति मिले तो 'महाबीर बिनवौ हनुमाना', में इसका संशोधित संस्करण गा कर सुनायें!
धन्यवाद और आभार
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