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हमारे मौन

>> Monday, June 18, 2012




नि: शब्द हूँ मैं 

तुम्हारे मौन को 
पालती हूँ 
पोसती हूँ 
और जब 
होता है मौन 
मुखरित तो 
हतप्रभ सी 
रह जाती हूँ ,


हमारी सोचें 
कितनी भी हों 
विरोधाभासी 
फिर भी कभी 
"हम" के वजूद से 
नहीं टकरातीं 
जब तुम्हारा "मैं "
आता है सामने 
तो मैं ---
हम बन जाती हूँ 
और जब मेरा "मैं "
दिखता है तुम्हें 
तो तुम --
हम बन जाते हो ,


यूं ही हमारे मौन 
अक्सर एक दूजे को 
नि: शब्द सा  करते हैं ।





62 comments:

संतोष त्रिवेदी 6/18/2012 4:13 PM  

शब्द ही हमें मिला देते हैं !

ANULATA RAJ NAIR 6/18/2012 4:16 PM  

बहुत सुन्दर भाव दी........

सादर

sonal 6/18/2012 4:22 PM  

मैं और हम ...बहुत सुन्दर

सदा 6/18/2012 4:56 PM  

अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ...आभार

रश्मि प्रभा... 6/18/2012 5:29 PM  

एक हम सारी दूरी मिटा देता है ...

Yashwant R. B. Mathur 6/18/2012 5:33 PM  

बहुत खूब आंटी!


सादर

kshama 6/18/2012 5:42 PM  

Aapne mujhe nishabd kar diya.

vandana gupta 6/18/2012 5:43 PM  

vaah ...........bahut khoobsoorat bhaav

shikha varshney 6/18/2012 5:53 PM  

मेरा , तुम्हारा ..अपना अपना मौन फिर भी हमारा मौन..
बस यही है.
बहुत सुन्दर भाव.

Anupama Tripathi 6/18/2012 6:02 PM  

आसमान की छवि सागर समेटे हुए ....कितना विस्तार है इस मौन मे ....कितना समर्पण है इस मौन मे ....कितना शाश्वत प्रेम है इस मौन मे ..बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी ....

ऋता शेखर 'मधु' 6/18/2012 6:20 PM  

जब हम कायम है तो क्या गम है...मुखरित मौन !!

Anju (Anu) Chaudhary 6/18/2012 6:51 PM  

जब मेरा मौन मेरे ही भीतर दम तोड़ता हैं ....तो शब्द और विचार बनते हैं ...

Maheshwari kaneri 6/18/2012 7:00 PM  

हम और मैं का निशब्द भावपूर्ण मिलन..

महेन्‍द्र वर्मा 6/18/2012 7:22 PM  

कविता में मैं यानी अहम् और हम का सटीक विश्लेषण प्रभावपूर्ण ढंग से समाहित है।

udaya veer singh 6/18/2012 7:44 PM  

वाह: बहुत सुन्दर रचना.. जी..

अनामिका की सदायें ...... 6/18/2012 8:08 PM  

ye HAM sakaaraatmak soch ke sath ham bane to kitna sukhdayi hai.

डॉ. मोनिका शर्मा 6/18/2012 8:13 PM  

एक दूजे से जुड़े रहने के निशब्द करते भाव

mridula pradhan 6/18/2012 8:45 PM  

hamen bhi nihshabd kar din aaj to.....

Sadhana Vaid 6/18/2012 9:36 PM  

खामोशी की यह भाषा जिसे पढना और समझना आ जाती है जीवन उसके लिए सुरभित फूलों की फुलवारी बन जाता है और जो नहीं समझ पाते वे सदैव अनर्गल शब्दों के काँटों की चुभन झेलने के लिए शापित बने रहते हैं कभी 'हम' नहीं बन पाते! बहुत ही सुन्दर रचना !

प्रतिभा सक्सेना 6/18/2012 10:03 PM  

मौन की थाह बड़ी मुश्किल से मिलती है - जाने क्या-क्या छिपा होता है उसमें !

मनोज कुमार 6/18/2012 10:18 PM  
This comment has been removed by the author.
मनोज कुमार 6/18/2012 10:19 PM  

मैं और हम में बस अहं न हो यही सबसे अहम है।
बाक़ी मैं क्या, और हम क्या, सब मन का भरम है।
दुनिया पूछती है मैं कौन और तू कौन है
किसी को नहीं पता, हर कोई मौन है।

प्रवीण पाण्डेय 6/18/2012 10:36 PM  

मौन मौन को पल्लवित करता है..

Dr. sandhya tiwari 6/18/2012 10:38 PM  

mai aur ham ke beech bahut hi sundar bhav .............

मेरा मन पंछी सा 6/18/2012 11:02 PM  

बहुत सुन्दर भाव
बहुत सुन्दर रचना ....
:-)

राजेश उत्‍साही 6/18/2012 11:20 PM  

हम में बहुत शक्ति है।

वाणी गीत 6/19/2012 7:43 AM  

हमारी सोच कितनी भी विरोधाभासी हो , हम हम ही रह जाते हैं ...कुछ रिश्तों में मैं की गुंजाईश जो नहीं होती !

डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' 6/19/2012 10:53 AM  

मौन में बड़ी शक्ति होती है... :)

Suman 6/19/2012 11:37 AM  

बहुत सुंदर रचना अर्थपूर्ण !

सदा 6/19/2012 12:30 PM  

कल 20/06/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


बहुत मुश्किल सा दौर है ये

अशोक सलूजा 6/19/2012 1:00 PM  

जब मौन एक दूजे को नि:शब्द करता है ...
तो फिर उसमें अपनापन जगता है !!!

Dr (Miss) Sharad Singh 6/19/2012 2:43 PM  

जब तुम्हारा "मैं "
आता है सामने
तो मैं ---
हम बन जाती हूँ
और जब मेरा "मैं "
दिखता है तुम्हें
तो तुम --
हम बन जाते हो ,


गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ...

रजनीश तिवारी 6/19/2012 6:46 PM  

बहुत सुंदर व्याख्या मैं और हम की ....

Kailash Sharma 6/19/2012 8:43 PM  

जब तुम्हारा "मैं "
आता है सामने
तो मैं ---
हम बन जाती हूँ
और जब मेरा "मैं "
दिखता है तुम्हें
तो तुम --
हम बन जाते हो ,

....बस यही भाव बना रहे तो जिंदिगी में खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी...बहुत सुन्दर रचना...

Anonymous,  6/20/2012 8:25 AM  

'तू तू मैं मैं 'बंद करने का बढ़िया नुस्खा है यह बढ़िया कविता 'मैं' का एहम जागृत होने पर परस्पर 'हम' हो जाना .न हो ऐसा तो हो जाए 'तू तू मैं मैं '

virendra sharma 6/20/2012 8:27 AM  

'तू तू मैं मैं 'बंद करने का बढ़िया नुस्खा है यह बढ़िया कविता 'मैं' का एहम जागृत होने पर परस्पर 'हम' हो जाना .न हो ऐसा तो हो जाए 'तू तू मैं मैं '

कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बुधवार, 20 जून 2012
क्या गड़बड़ है साहब चीनी में
http://veerubhai1947.blogs

कुमार राधारमण 6/20/2012 1:15 PM  

.
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...................

Anita 6/20/2012 1:48 PM  

जब तुम्हारा "मैं "आता है सामने तो मैं ---हम बन जाती हूँ और जब मेरा "मैं "दिखता है तुम्हें तो तुम --हम बन जाते हो ,

बहुत सुंदर पंक्तियाँ...यही तो प्यार है जहाँ मैं खो जाता है...

दिगम्बर नासवा 6/20/2012 2:05 PM  

चाहे मौन हों या शब्द ... जब एक मैं हो तो दूसरे का मैं न जागे ... बस हम की ही बात हो तो जीवन सुखद रहता है ... गहरी बात कही है इस माध्यम से ....

रेखा श्रीवास्तव 6/20/2012 2:31 PM  

बहुत सुंदर भावों को रूप दिया. 'अहम् ' का स्वरूप ही ऐसा है कि जब वह 'वयं' में समाहित हो जाता है तो अपने अस्तित्व को खो बैठता है और यही सामंजस्य जीवन के स्वरूप को बदल देता है.

Unknown 6/20/2012 3:33 PM  

बहुत ही भाव पूर्ण कविता, शानदार भवव्यक्ति की है आपने संगीता जी आपकी लेखनी शशक्त है बधाई

Reena Pant 6/20/2012 7:05 PM  

सार्थक रचना ....

रचना दीक्षित 6/20/2012 7:31 PM  

यूं ही हमारे मौन
अक्सर एक दूजे को
नि: शब्द सा करते हैं ।

मौन का निशब्द रह जाना एक सुंदर प्रयोग.
सुंदर भाव. बधाई.

Vandana Ramasingh 6/20/2012 8:46 PM  

जब तुम्हारा "मैं "
आता है सामने
तो मैं ---
हम बन जाती हूँ
और जब मेरा "मैं "
दिखता है तुम्हें
तो तुम --
हम बन जाते हो ,

बहुत सुन्दर भाव

देवेन्द्र पाण्डेय 6/21/2012 10:04 PM  

मैं जब हम होता, टूटता अहम है।
..वाह! बड़ी सरलता से सुखी दांपत्य जीवन की कुंजी थमा दी आपने। सहेज कर रखनी पड़ेगी।..आभार।

देवेन्द्र पाण्डेय 6/21/2012 10:04 PM  

मैं जब हम होता, टूटता अहम है।
..वाह! बड़ी सरलता से सुखी दांपत्य जीवन की कुंजी थमा दी आपने। सहेज कर रखनी पड़ेगी।..आभार।

virendra sharma 6/21/2012 10:59 PM  

यूं ही हमारे मौन एक दूजे को नि :शब्द करतें हैं और संवाद ज़ारी रहता .मुखर मौन की भाषा में .सुन्दर प्रस्तुति
कृपया यहाँ भी पधारें -


बृहस्पतिवार, 21 जून 2012
सेहत के लिए उपयोगी फ़ूड कोम्बिनेशन

http://veerubhai1947.blogspot.in/आप की ब्लॉग दस्तक अतिरिक्त उत्साह देती है लेखन की आंच को सुलगाएं रखने में .

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) 6/22/2012 1:05 AM  

मेरा मैं, तुम्हारा मैं और हम के त्रिकोण में सब कुछ

Sonroopa Vishal 6/23/2012 12:21 AM  

एक सार्थक मौन !

Dr.R.Ramkumar 6/23/2012 1:55 PM  

मैं तुम्हारे मौन को पालती हूँ पोसती हूँ और जब होता है मौन मुखरित तो हतप्रभ सी रह जाती हूँ ए
हमारे मौन अक्सर एक दूजे को नि:शब्द सा करते हैं

बहुत सुन्दर और चिन्तनपरक रचना।

Anjani Kumar 6/24/2012 11:22 AM  

मौन को पालना पोसना.....बहुत ही गहन चिन्तन की उपज लगती है ये रचना
आभार आंटी

Dr. Madhuri Lata Pandey (इला) 6/24/2012 6:03 PM  

mai ka hum me badalana hi jiwan ki sarthak shuruaat hai..uttam

Bharat Bhushan 6/27/2012 1:57 PM  

टकराहट में दो रेखाएँ बड़ी-छोटी होती रहती हैं, लहरों सी. जीवन तरलता चाहता है.

M VERMA 6/29/2012 8:17 AM  

मौन जब मुखरित होता है
तो इसका प्रभाव त्वरित होता है

Dee Sunset 12/08/2012 4:06 PM  

vaah ...........bahut khoobsoorat bhaav

Anonymous,  6/02/2013 10:50 AM  

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