चेहरे बदल के मिलता है
13 years ago
कड़वाहटें मन में जो इतनी हैं
कि गुलों की खुशबू भी नही सुहाती है
कैसे इन काँटों को निकालूँ मैं
कि हर अंगुली मेरी लहुलुहान हुई जाती है
एहसास का ही जज्बा न हो जहाँ
वहां उम्मीद ही क्यों लगायी जाती है
उम्मीद ही नाराजगी का रूप धर कर
दिल के दरवाजों को बंद कर जाती है।
इन बंद दरवाजों को खोलने की कोशिशें
सब यूँ ही व्यर्थ चली जाती हैं
सारी उम्मीदें और चाहतें जैसे
एक खोल में सिमट कर रह जाती हैं ।
फिर चाहे तुम दस्तक देते रहो बार - बार
दिल के कान बहरे ही रह जाते हैं
अपनापन कहीं बीच में रहता नही
अपने लिए ही सब जीते चले जाते हैं.
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